रविवार, 30 अक्तूबर 2011

पाकिस्तान नासूर को खत्म कर दिया गया होता तो ..


मुंबई में 26 नवंबर को हुए हमलों के बाद तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणबमुखर्जी के कड़े शब्दों से पाकिस्तान इतना घबरा गया था कि उसने चीन से लेकर अमेरिका तक को कह दिया कि भारत ने युद्ध का फैसला कर लिया है। तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस के मुताबिक इस्लामाबाद ने व्हाइट हाउस को सूचित किया कि भारत ने उन्हें युद्ध का फैसला करने के लिए चेताया है। व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति के एक सहायक ने चिंतित हो कर राइस को इसकी सूचना दी और राइस भी परेशान हो गईं तथा उनके मुंह से निकला क्या .. ?’

   काश यह काम हो गया होता तो आज भारत के नागरिक चेन से रहते होते | पाकिस्तान को समाप्त करने की कई बार मौका  मिला लेकिन कमजोर नेतृत्व ने निर्णय करने में चूक  गए | ऐसे कई बार समय आया कि जिस समय पाकिस्तान कों दुनिया के नक्से खत्म किया जा सकता था | इस काम में सेना तैयार था ,लेकिन राजनीतिक नेतृत्व कमजोर था | आज जितने भी आतंकवाद हमला हो रहे इस राजनीतिक अकुशलता के कारण इसलिए हमारे देश के नेता पर आम लोगों का विश्वास कम होता जा रहा है |

     १९४८ में जब पाकिस्तान ने कबीलों को पैसा देकर कश्मीर में गुपचुप हमला किया था | तब महाराजा हरिसिंह जी कश्मीर को भारत में विलय किया लेकिंन नेहरु उस समय कसमीर में शेख अब्दुल्ला को राजा बनने के चक्कर में कश्मीर के बारे में गलत काम किया | (मैने एक ब्ल्ल्ग में पढा है कि नेहरु का खानदान मुस्लिम था | इलाहबाद में आकार अपने को कश्मीर के पंडित बन गए | इंदिरा गाँधी फारसी थी ,तथा राजीव गांधी ईसाई हो गये और उनका पूरा खानदान आज ईसाई है |)

    दूसरी बार पाकिस्तान ने फिर से भारत पर हमला किया था| तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने देश कि आम जनता को आह्वान कर देश को एक जुट कर पाकिस्तान को जबाब दिया | वे कहा करते थे कि मैं भारतीय टैक में बैठा कर लाहोर जाऊँगा | जैसा कहा वैसा हुआ | कांग्रेसियों ने सत्ता के लिए अपने प्रधानमंत्री को गलत सलाह दिया| सोवियत संघ ने देश के प्रधानमंत्री को ताशकंध में भारत और पाकिस्तान से समझौता करने को बुलाया | अपने गुरु जी ने जाने को मना किया था लेकिन लाल बहादुर ने ताशकंद गए | हमे समझना चाहिए कि कितना भी हमारा दोस्त विदेशी हो लेकिन वह विदेशी है वह अपनी फायदा कि बात सोचेगा | ताशकंध में यही हुआ हमारे देश के देश भक्त प्रधानमंत्री से गलत समझौता कराया गया | यह जानते हुए कि भारत कि जनता नहीं मानेगी ,इस लिए अपना प्राण ताशकंध में त्याग दिया |

    १९७१ में पाकिस्तान कि फिर बुद्धि मारी गई और भारत पर अमेरिका के सह पर फिर से हमला कर दिया | इस समय इन्दिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थी | इंदिरा जी के बारे में पहले उनका खानदान मुस्लिम है ,मोतीलाल नेहरु इलाहाबाद में आ कर अपने को कश्मीर पंडित कहलाने लगे | इंदिरा गांधी ने एक मुस्लिम से प्रेम किया लेकिन इज्जत बचने के लिए फिरोज को गाँधी जी ने अपना दत्तक पुत्र बना कर विवाह करा दिया था | लेकिन नेहरु खानदान कि मुस्लिम परस्ती आज भी है | आज फिरोज गाँधी के वंश उसका नाम भी नहीं लेते है ,कही पर भी  फिरोज गाँधी का नाम भी नहीं आता है | इतिहास से फिरोज गाँधी का नाम मिटा दिया गया है | इस मुस्लिम पस्त महिला ने जब दुबारा पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया तो हमारे देश की सेना ने इतिहास रच दिया पूर्वी पाकिस्तान को जित लिया | इतिहास में वह चित्र अंकित किया कि- पाकिस्तान की १ लाख सेना ने भारत के सामने आत्म समपर्ण किया जो दुनिया के लिए एक इतिहास हो गया | शांति दूत बनने के चक्कर में इंदिरा गाँधी ने शिमला के समझौता में जीती बाजी एक टेबल पर हार गयी | एक परिवार ने मुस्लिम परस्ती ने देश को कितना बड़ा धोखा दिया है हम आज सोच नहीं सकते है |

 तीन बार हार के बाद पाकिस्तान ने सामने के युद्ध से अपने को तौबा कर लिए और शुरू किया आंतकवाद और उग्रवाद का नया रूप जो आज हमारे नेता जानते हुए ,शुरुर्ग्मुर्ग के समान आँख बंद कर लिए है | यह आंतकवाद ने भारत कि आम जनता के लिए नासूर बन गया है | हम लोगों जितनी भी लड़ाई है उससे कही अधिक लोगो की जान ले चूका है तथा हमे आर्थिक रूप से हमे कंगाल कर रहा है | पता नहीं कितने लोगो का जान ले कर यह घिनौना रूप समाप्त होगा | पहले उसने पंजाब के लोगो को अलग खालिस्तान के नाम से बरगलाकर १० वर्ष तक खून की नदिया पंजाब में बहा | हजारों लोगों को उग्रवादी बनकर लाखो लोगों कि खालिस्तान के लिए हत्या किया गया | लगभग १० वर्ष तक चला यह खुनी खेल जिससे पूरा पंजाब का विकास रुक गया | इसी प्रकार कश्मीर ने २८ वर्षों से ज्यादा चल रहा है खुनी खेल जिसका अंत नही दिखता है | इसी तरह चुपचाप कश्मीर में अपनी सेना को भेज कर कहा घाटी में कब्जा करने कि नापाक काम किया | इस बार युद्ध के बजाय पाकिस्तान की सेना की नार्दन लाइट इन्फैंट्री के नियमित सैनिकों ने विदोहियों के भेष में लाइन ऑफ कंट्रोल पार कर भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कराये गए थे। इसकी वजह थी पाकिस्तान सेना के दो नापाक मकसद-- पहला द्रास और कारगिल सेक्टर की सामरिक महत्व की ऊँची चोटियों पर कब्जा कर लेह-सियाचिन की आपूर्ति को बाधित करना | दूसरा संयुक्त राष्ट्र में एक बार फिर कश्मीर मुद्दे को उठाकर हताश हो रहे जेहादियों में नई जान फूँकना ।  

6 मई से जब गरकोन घाटी में अपने मवेशियों को ढूँढ़ने गए ताशी नामयाल और त्रेशिंग मोरप ने कुछ हथियारबंद लोगो को पहाड़ी की ओर जाते और संगर बनाते देखा। पहले-पहले इस घुसपैठ को दुश्मन का लॉंग रेंज पेट्रोल समझा गया | कारगिल में बर्फ से ढंके नियंत्रण क्षेत्र पर घुसपैठियों का कब्जा था। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार पाकिस्तानी सेना की मदद से घुसपैठियों ने फरवरी 1999 से ही इन क्षेत्रों पर कब्जा जमा लिया था। क्षेत्र में भारी बर्फ जम जाने के कारण भारतीय सेना जाड़ों के मौसम में अपने सैनिकों को वहां से हटा लेती थी और दुश्मनों ने इसी का फायदा उठाया। कारगिल में जब घुसपैठियों के कब्जे की बात खुली तो भारतीय सेना ने इसके जवाब में मई से कार्रवाई शुरू की। भारतीय थल सेना के लिए यह युद्ध आसान नहीं था क्योंकि उन्हें पर्वतीय क्षेत्र में ऐसे स्थलों पर लड़ना था, जहां दुश्मन पहाड़ की चोटियों पर कब्जा जमाए बैठा था।

युद्ध के शुरू में भारतीय थलसेना को अपने कुछ जवानों का बलिदान देना पड़ा, लेकिन बाद में जब वायुसेना ने थलसेना के साथ मोर्चा संभाला तो पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों के पैर उखड़ने लगे और जल्द ही भारतीय सेना ने पूरे कारगिल क्षेत्र पर भारतीय झंडा फहरा दिया। कारगिल युद्ध में भारतीय पक्ष की ओर से आधिकारिक रूप से 533 लोगों की जान तथा १३०० सैनिक घायल हो गये । पाकिस्तान ने शुरू में तो अपने ज्यादा लोगों के मारे जाने की बात को नहीं कबूला, लेकिन बाद में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने स्वीकार किया कि उनकी ओर से करीब 4000 लोग मारे गए।

रक्षा विश्लषेक ब्रिगेडियर [सेवानिवृत्त] अरुण वाजपेई ने स्वीकार किया कि यदि भारतीय सेना बेहतर तालमेल के साथ काम करती और हमारे देश का राजनीतिक नेतृत्व फैसले लेने में शीघ्रता दिखाता तो कारगिल युद्ध में हम कम जानें गंवाते। उन्होंने कहा कि हमें कारगिल युद्ध के सबक को कभी नहीं भुलाना चाहिए। इस लड़ाई में पाकिस्तान की सीमा छोटा करने का मौका दुबारा हमारे हाथ से निकल गया | कारगिल विजय को यदि हम आगे और बढाते तो अधिक्रत कश्मीर भी भारत के पास होता तथा कश्मीर कि समस्या को खत्म किया जा सकता था | अफगानिस्तान से हम सीधे जुड जाते और चीन का यहाँ दखल खत्म हो  जाता | लेकिन हमारी चूक कितना घातक हुआ हम महसूस कर सकते है |

संसद पर हमला के बाद पुनःस्थिति हमारे पक्ष में था | देश के प्रधानमंत्री ने लड़ाई के संकेत दिए और देश कि सेना ने सीमा पर मोर्च संभाल लिया था | लेकिन देश कि सत्ता ने न जाने (यु टर्न) क्यों लिया | यदि सीमा पर दो दो हाथ में हो जाता तो आज हम करोड़ों रूपये एंव जानें जाने से बच सकते थे | दस वर्ष पूर्व पूरी सेना कोसिम पर आने में ८०० करोड रुपये खर्च हुआ था | इस पुरे घटना कि स्मृति में लोकसभा और राज्य सभा के निक्कमे इकठ्ठा होकर शोक सभा करते है | उच्चतम न्यायालय ने संसद के हमलावरों को फांसी कि सजा सुनाया | इन हमला करने वालो को वोट कि राजनीति के कारण  हम उन्हें बिरयानी खिला रहे है | हमारे देश के प्रधानमंत्री जी को कुछ चमचो के चक्कर में आ गये कि आने वाले समय में दुनिया कि सर्वोच्च पुरस्कार से नवाजा जायेगा कि- आप ने शांति के लिए पाकिस्तान पर हमला नहीं किया | हमारे प्रधानमंत्री जी आ कर इस मौका से चूक गए | आज वह अपनी अंतिम साँस गिनती कर रहे है | सत्ता से चपकने के बाद देश धर्म को भूल जाते है और ऐसे लोगों को जनता भी भूल जाती है |

जब मुम्बई पर हमला हुआ तो टीवी पर सब कुछ दिखा रहा था | देश कि मिडिया ने देश के दुश्मनों तक पूरा खबर पहुचती रही वह लोग राष्ट्र धर्म नहीं निभाया | अब अपने देश कि राजनीतिक नेतृत्व विदेशियों के पास है | इससे क्या उमीद किया जा सकता है | जिस प्रकार अफजल गुरु और कसाब को बिरयानी खिलाया जा रहा है | आज तक कोई इटली वाले ने एकभी लड़ाई नहीं जीती है तो वह क्या युद्ध कर सकते है | सत्ता के लिए कोई भी समझौता नही किया जाना चाहिए | राइस ने अपनी नवीनतम किताब "नो हाई ऑनर्स" में लिखा है कि पाकिस्तान की ओर से आ रही अफवाहों भारत हमले की पूरी तैयारी कर लिया है | पाकिस्तान डर गया था वह किसी भी तरह से युद्ध से बचना चाहता था | यदि प्रणव मुखर्जी में कुशलता होती तो वह कर कुछ सकते थे | लेकिन ये लोग रात में सोते लोगों पर लाठीचार्ज ,देश के लिए जनलोकपाल पर विवाद पैदा करना , ईमानदार लोगों को परेशान कर सकते लेकिन देश हित युद्ध नही कर सकते |