सोमवार, 12 अप्रैल 2021

ध्येय आया देह लेकर- डॉ केशव बलिराम हेडगेवार


 

आज भारत में हिन्दू, हिंदुत्व, राष्ट्रीयता और राम मंदिर पर बात हो रही, इसकी पृष्ठ भूमिका डॉ हेडगेवार के जन्म से शुरू हो गया था। ऐसा व्यक्तित्व हजारों वर्षो के तप के बाद अवतरण होता है। अपने 50 वर्ष के जीवनकाल में आने वाले 100 वर्ष पूर्व का भारत का कल्पना कर लिए थे। अपने जीवन का अनमोल क्षण एक ध्येय के लिए समर्पित कर गए की आने वाली पीढ़िया ऐसे ही राष्ट्रीय कार्य करने के लिए समर्पित होते रहे।

डॉ॰ हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को महाराष्ट्र के नागपुर जिले में पण्डित बलिराम पन्त हेडगेवार के घर हिन्दू वर्ष प्रतिपदा के दिन हुआ था। आपकी माता का नाम रेवतीबाई था। माता-पिता ने पुत्र का नाम केशव रखा। केशव का बड़े लाड़-प्यार से लालन-पालन होता रहा। उनके दो बड़े भाई भी थे, जिनका नाम महादेव और सीताराम था। पिता बलिराम वेद-शास्त्र एवं भारतीय दर्शन के विद्वान थे एवं वैदिक कर्मकाण्ड (पण्डिताई) से परिवार का भरण-पोषण चलाते थे। वैसे तो हेडगेवार परिवार मूल रूप से तेलंगाना के कांडकुर्ती गांव का रहने वाला था। लेकिन हैदराबाद (तेलंगाना) के मुस्लिम शासक निजाम ने वहाँ के हिन्दुओ का जीना दूभर कर दिया था। यहाँ तक कि कोई हिन्दू मंदिर नहीं बना सकता था और यज्ञ आदि करने पर भी प्रतिबन्ध था। इसलिए मराठा वंश के भोसले के राज्य नागपूर में आकर वैदिक कर्मकांड उचित विधान से कर सके। जब केशव 13 बरस के थे, तो प्लेग की वजह से उनके माता-पिता का निधन हो गया। उनके बड़े भाई महादेव पंत और सीताराम पंत ने उनकी पढ़ाई-लिखाई का ख़्याल रखा।

केशव के सबसे बड़े भाई महादेव भी शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे ही मल्ल-युद्ध की कला में भी बहुत माहिर थे। वे रोज अखाड़े में जाकर स्वयं तो व्यायाम करते ही थे गली-मुहल्ले के बच्चों को एकत्र करके उन्हें भी कुश्ती के दाँव-पेंच सिखलाते थे। महादेव भारतीय संस्कृति और विचारों का बड़ी सख्ती से पालन करते थे। केशव के मानस-पटल पर बड़े भाई महादेव के विचारों का गहरा प्रभाव था। किन्तु वे बड़े भाई की अपेक्षा बाल्यकाल से ही क्रान्तिकारी विचारों के थे। जब वो हाई स्कूल की पढ़ाई कर रहे थे तो वंदेमातरम गाने की वजह से उन्हें निकाल दिया गया था क्योंकि ऐसा करना ब्रिटिश सरकार के सर्कुलर का उल्लंघन था। हाई स्कुल के बाद उन्हें साल 1910 में मेडिकल की पढ़ाई के लिए कलकत्ता भेज दिया गया। घर से कलकत्ता गये तो थे डाक्टरी पढने परन्तु वापस आये उग्र क्रान्तिकारी बनकर। कलकत्ता में श्याम सुन्दर चक्रवर्ती के यहाँ रहते हुए बंगाल की गुप्त क्रान्तिकारी संस्था अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य बन गये। डॉक्टरी करते करते ही उनकी तीव्र नेतृत्व प्रतिभा को भांप कर उन्हें हिन्दू महासभा बंगाल प्रदेश का उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया। इस प्रकार अनेक क्रान्तिकारियों की साथ में रहकर समस्त गतिविधियों का ज्ञान और संगठन-तन्त्र की गुणदोषों को सीखे और समझे। 1914 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से प्रथम श्रेणी में डॉक्टरी की परीक्षा भी उत्तीर्ण किया और साल 1915 में वो डॉक्टर के रूप में नागपुर लौट आए। परन्तु घर वालों की इच्छा के विरुद्ध देश-सेवा के लिए नौकरी और विवाह का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया।

डॉ हेडगेवार के मन में शासकीय सेवा में या अपना अस्पताल खोलकर पैसा कमाने के लिये डॉक्टर नहीं बने। भारत का स्वातंत्र्य यही उनके जीवन का ध्येय था। उस ध्येय का विचार करते करते उनके ध्यान में स्वतंत्रता हासिल करने हेतु क्रांतिकारी क्रियारीतियों की मर्यादा में रहकर करने की आवश्कता है। दो-चार अंग्रेज अधिकारियों की हत्या होने के कारण अंग्रेज यहाँ से भागनेवाले नहीं थे। किसी भी बड़े आंदोलन के सफलता के लिये व्यापक जनसमर्थन की आवश्यकता होती है। क्रांतिकारियों की क्रियाकलापों में उसका अभाव था। सामान्य जनता में जब तक स्वतंत्रता की प्रखर भाव निर्माण नहीं होती, तब तक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं होगी और मिली तो भी टिकेगी नहीं, यह बात अब उनके मनपर अंकित हो गई थी।

1921 में अंग्रेजो ने तुर्की को परास्त कर, वहां के सुल्तान को गद्दी से उतार दिया था वही सुल्तान मुसलमानों के खलीफा भी कहलाते थे। ये बात भारत व अन्य मुस्लिम देशों के मुसलमानों को नागवार गुजरी जिससे जगह-जगह आन्दोलन हुए, हिन्दुस्थान में खासकर केरल के मालाबार जिले में आन्दोलन ने उग्र रूप ले लियास। 1922 में भारत के राजनीतिक पटल पर गांधी के आने के पश्चात ही मुस्लिम सांप्रदायिकता ने अपना सिर उठाना प्रारंभ कर दिया। खिलाफत आंदोलन को गांधी जी का सहयोग प्राप्त था - तत्पश्चात नागपुर व अन्य कई स्थानों पर हिन्दू, मुस्लिम दंगे प्रारंभ हो गये तथा नागपुर के कुछ हिन्दू नेताओं ने समझ लिया कि हिन्दू एकता ही उनकी सुरक्षा कर सकती है। ऐसी कई बातें डॉ हेडगेवार को भी खटकने लगी वह सोचने को प्रवृत हुए कि समाज में जिस एकता और धुंधली पड़ी देशभक्ति की भावना के कारण हम परतंत्र हुए है वह केवल कांग्रेस के जन आन्दोलन से जागृत और पृष्ट नही हो सकती जन-तन्त्र के परतंत्रता के विरुद्ध विद्रोह की भावना जगाने का कार्य बेशक चलता रहे लेकिन राष्ट्र जीवन में गहरी हुयी विघटनवादी प्रवृति को दूर करने के लिए कुछ  उपाय करने की मुझे जरूरत है इसी विचार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की पृष्ठभूमि बनी 

1925 में विजयदशमी के दिन भोसले के बाडे जिसे मोहितेबाड़े के कुछ भाग को साफसुथरा कर छोटे बच्चों के साथ खेल खेल से शुरू हुआ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ .....     


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