रविवार, 4 अप्रैल 2021

छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले, 22 जवान शहीद, गृहमंत्री अमित शाह ने टॉप लेवल मीटिंग बुलाई

 


छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के जिले बीजापुर के तर्रेम इलाके में जोनागुड़ा पहाड़ियों के पास नक्सलियों ने 700 जवानों को एबुश लगाकर घेरकर तीन ओर से फायरिंग शुरू कर दी। मुठभेड़ शनिवार को दोपहर करीब 12.30 बजे शुरू हुई और शाम करीब 5.30 बजे यानी 5 घंटे तक चली। इस दौरान नक्सलियों ने UGNL, रॉकेट लांन्चर, इंसास और AK-47 से हमला किया। इस हमले में 22 जवान शहीद हो गए। इनमें कोबरा बटालियन के 9, DRG के 8, STF के 6 और एक बस्तरिया बटालियन का जवान शामिल है।

बीजापुर एनकाउंटर को लेकर गृहमंत्री अमित शाह ने असम से अपनी चुनावी रैली को छोड़कर दिल्ली लौटे और रविवार शाम टॉप लेवल मीटिंग बुलाई। दिल्ली में शाह के निवास पर हुई इस मीटिंग में गृह सचिव अजय भल्ला, IB के डायरेक्टर अरविंद कुमार और CRPF के सीनियर अधिकारी मौजूद रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जवानों के शहीद होने पर दुख जताया है। उन्होंने कहा कि वीर जवानों के बलिदान को कभी नहीं भुलाया जाएगा। मेरी संवेदनाएं छत्तीसगढ़ में शहीद हुए जवानों के परिजनों के साथ हैं। उन्होंने घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना की।

पश्चिम बंगाल के दार्जिलिग जिले में नक्सलबाड़ी नाम का गाँव में 25 मई 1967 को सशस्त्र क्रांति हुई। जिसका नेतृत्व कान्यु सान्याल और चारू मजुमदार ने किया था। नक्सलबाड़ी के नाम से नक्सलवाद शुरू हुआ, कुछ ही समय में यह आन्दोलन वैचारिक जन आन्दोलन का रूप ले लियाचाय बागान में काम करने वाले मजदुर और जमीदारों के बीच में मजदूरी को लेकर हुए विवाद में हिंसक आदोलन का रूप ले लिया। इस प्रकार हिंसा से शुरू हुआ आन्दोलन एक विकराल रूप ले लिया। नक्सलवादियों का मानना है की राजनीतक सत्ता बन्दूक की नोक से मिलती है ऐसे विचारधारा के लोग चीन के माओ से प्रभावित होकर भारत में सशस्त्र क्रांति से राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना चाहते है और बंदूक के दम से पश्चिम बंगाल में सत्ता का परिवर्तन किया भी इस आन्दोलन की सफलता ने बिहार, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़,  आध्रप्रदेश, तेलगाना और महाराष्ट्र में बहुत ही नरसंहार किये। जिन लोगो ने नक्सलबाड़ी से यह आन्दोलन शुरू किया था वे लोग पीछे हो गए, अन्य आपराधिक लोगो से इस हिंसक आन्दोलन से सत्ता के शिखर पर पहुच गए 

१९४७ में भारत को अग्रेजों से आजादी मिल है। उस समय तेलगाना की मांग उठाने लगी। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री थे। इस मांग को नेहरू जी ने ध्यान नही दिया था। तेलगाना में कम्युनिस्ट पार्टी का घुसपैठ शुरू हुआ इस। तेलगाना आन्दोलन के माध्यम से बस्तर में नक्सलियों का आगमन हुआ। उस समय बस्तर मध्यप्रदेश का एक संभाग हुआ करता था। प्रवीण भंजदेव सिंह बस्तर के राजा हुआ करते थे। मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डी पी मिश्रा से कुछ विवाद होने से, उस समय की मध्यप्रदेश की पुलिस ने जगदलपुर के राज्यमहल में घुसी। 25 मार्च 1966 को मध्यप्रदेश पुलिस के हाथों बस्तर के महाराजा प्रवीण भंजदेव की हत्या हो गई। इस हत्याकांड से पुरे मध्यप्रदेश में प्रदेश सरकार के खिलाफ जनता में विरोध शुरू हो गया। देश भर में नारे लगाये गए की बस्तर की गलियों सुनी है, डी पी मिश्रा दोषी है। बस्तर के महाराजा प्रवीण भंजदेव काफी लोकप्रिय थे। वहा के आदिवासियों में उन्हें देवता के सामान माने जाते थे। इस हत्याकांड से बस्तर में आंधप्रदेश से नक्सलियों आना शुरू हुआ। उन्होंने इस हत्याकांड के बाद से आदिवासियों की सहानभूति प्राप्त कर लिया। इसी हत्याकांड ने बस्तर में आंधप्रदेश से नक्सालियों को घुसने का मौका मिल गया है नक्सालियों ने इस जनभावना का लाभ उठाकर सरकार विरोधी अपना एजेंडा पर काम करना शुरू किया कुछ वर्षो में नक्सलियों ने वही काम शुरू किया जिस काम के लिए जाने जाते है बदलाव के लिए खुनी खेल किया।  

26 मार्च को बीजापुर में माओवादियों ने ज़िला पंचायत के सदस्य बुधराम कश्यप की हत्या कर दी. 25 मार्च को माओवादियों ने कोंडागांव ज़िले में सड़क निर्माण में लगी एक दर्जन से अधिक गाड़ियों को आग लगा दी 23 मार्च को नारायणपुर ज़िले में माओवादियों ने सुरक्षाबल के जवानों की एक बस को विस्फोटक से उड़ा दिया, जिसमें 5 जवान मारे गए इसी तरह 20 मार्च को दंतेवाड़ा में पुलिस ने दो माओवादियों को एक मुठभेड़ में मारने का दावा किया 20 मार्च को बीजापुर ज़िले में माओवादियों ने पुलिस के जवान सन्नू पोनेम की हत्या कर दी

13 मार्च को बीजापुर में सुनील पदेम नामक एक माओवादी की आईईडी विस्फोट में मौत हो गई 5 मार्च को नारायणपुर में आईटीबीपी के एक जवान रामतेर मंगेश की आईईडी विस्फोट में मौत हो गई। 4 मार्च को सीएएफ की 22वीं बटालियन के प्रधान आरक्षक लक्ष्मीकांत द्विवेदी दंतेवाड़ा के फुरनार में संदिग्ध माओवादियों द्वारा लगाये गये आईईडी विस्फोट में मारे गये

माओवादी एक के बाद एक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं ऐसा नहीं लगता कि वे कहीं से कमज़ोर हुए हैं सरकार के पास माओवाद को लेकर कोई नीति नहीं है सरकार की नीति यही है कि हर बड़ी माओवादी घटना के बाद बयान जारी कर दिया जाता है कि जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी मैं चकित हूं कि सरकार इस दिशा में कुछ भी नहीं कर रही है कोई नीति होगी तब तो उस पर क्रियान्वयन होगा

 

सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच पिछले 40 सालों से बस्तर के इलाके में संघर्ष चल रहा है राज्य बनने के बाद से छत्तीसगढ़ में 3200 से अधिक मुठभेड़ की घटनाएँ हुई हैं. गृह विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2001 से मई 2019 तक माओवादी हिंसा में 1002 माओवादी और 1234 सुरक्षाबलों के जवान मारे गये हैं इसके अलावा 1782 आम नागरिक माओवादी हिंसा के शिकार हुए हैं इस दौरान 3896 माओवादियों ने समर्पण भी किया है। 2020-21 के आंकड़े बताते हैं कि 30 नवंबर तक राज्य में 31 माओवादी पुलिस मुठभेड़ में मारे गये थे, वहीं 270 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया था 


शांति वार्ता का प्रयास -  

21 अप्रैल 2012 - सुकमा के कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन का मांझीपारा गांव से नक्सलियों ने अपहरण किया कलेक्टर की रिहाई के लिए सरकार ने नक्सलियों से चर्चा की शुरूआत की. नक्सलियों ने मध्यस्थता के लिए दो नाम तय किए एक नाम बस्तर के पूर्व कलेक्टर बीडी शर्मा और दूसरा नाम प्रोफेसर हरगोपाल बताया

3 मई 2012 - बीडी शर्मा और प्रो. हरगोपाल कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन की रिहाई के लिए नक्सलियों से बातचीत करने ताड़मेटला के जंगल गए नक्सलियों से चर्चा के बाद अलेक्स पॉल मेनन को साथ लेकर लौटे

3 मई 2012 - छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सलियों से हुए समझौते के तहत छत्तीसगढ़ के जेलों में निरुद्ध नक्सलियों के मामलों के पुनर्विचार के लिए मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच की अध्यक्षता में एक स्थायी समिति का गठन किया

4 सितंबर 2014 - निर्मला बुच समिति ने ढाई साल की अवधि में 9 बैठकों में जेल में 2 साल से ज्यादा समय से और छोटे प्रकरणों में निरूद्ध नक्सलियों से जुड़े 654 मामलों पर विचार किया 306 प्रकरणों में बंदियों की जमानत पर रिहाई की अनुशंसा भी की

छत्तीसगढ़ में बड़े माओवादी हमले -

बीजापुर : 03 अप्रैल 2021 बीजापुर में शनिवार को सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में 24 जवान शहीद हो गए।

नारायणपुर : 23 मार्च 2021 नक्सलियों ने नारायणपुर में IED ब्लास्ट के जरिए किया हमला, ब्लास्ट में 5 जवान शहीद हुए थे।

कोराजडोंगरी : 22 मार्च 2020 सुकमा में कोराजडोंगरी के चिंतागुफा के पास नक्सली हमले में 17 जवान शहीद हो गए थे। शहीद होने वाले जवानों में डीआरजी के 12 जवान और एसटीएफ 5 जवान थे।

श्यामगिरी : 09 अप्रैल 2019 दंतेवाड़ा के लोकसभा चुनाव में माओवादियों के इस हमले में भीमा मंडावी के अलावा उनके चार सुरक्षाकर्मी भी मारे गये थे।

दुर्गपाल : 24 अप्रैल 2017 सुकमा जिले में सड़क निर्माण करने वालों अफसरों पर नक्सलियों ने अटैक कर दिया। हमले में (CRPF) के 25 जवान शहीद हो गए और 7 घायल हुए थे। ये 2017 का सबसे बड़ा हमला था।

सुकमा : 11 मार्च 2014 सुकमा जिले में झीरम घाटी के घने जंगलों में नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया था। इसमें सीआरपीएफ के 11 जवान, 4 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे। 01 नागरिक की भी मौत

दंतेवाड़ा: 28 फरवरी 2014 नक्सल हमले में एक SHO समेत 6 पुलिसकर्मी शहीद हुए थे।
दरभा: 25 मई 2013 बस्तर के दरभा घाटी में हुए इस माओवादी हमले में आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा, कांग्रेस पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष नंद कुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 30 लोग मारे गए थे।

दंतेवाड़ा: 04 जून 2011 दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर एंटी लैंड माइन वाहन विकल को उड़ा दिया था। इसमें 10 पुलिसकर्मी शहीद हो गए।।
धोड़ाई: 29 जून 2010 नारायणपुर जिले के धोड़ाई में सीआरपीएफ के जवानों पर माओवादियों ने हमला किया। पुलिस के 27 जवान मारे गए।
दंतेवाड़ा: 17 मई 2010 एक यात्री बस में सवार हो कर दंतेवाड़ा से सुकमा जा रहे सुरक्षाबल के जवानों पर माओवादियों ने बारूदी सुरंग लगा कर हमला किया था, जिसमें 12 विशेष पुलिस अधिकारी समेत 36 लोग मारे गए थे।
बीजापुर : 8 मई 2010 छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने पुलिस की एक गाड़ी को उड़ा दिया था, जिसमें भारतीय अर्धसैनिक बल के 8 जवान शहीद हुए थे।
ताड़मेटला: 6 अप्रैल 2010 बस्तर के ताड़मेटला में सीआरपीएफ के जवान सर्चिंग के लिए निकले थे, जहां संदिग्ध माओवादियों ने बारुदी सुरंग लगा कर 76 जवानों को मार डाला था।
मदनवाड़ा: 12 जुलाई 2009 राजनांदगांव के मानपुर इलाके में माओवादियों के हमले की सूचना पा कर पहुंचे पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे समेत 29 पुलिसकर्मियों पर माओवादियों ने हमला बोला और उनकी हत्या कर दी।
उरपलमेटा: 9 जुलाई 2007 एर्राबोर के उरपलमेटा में सीआरपीएफ और ज़िला पुलिस का बल माओवादियों की तलाश कर के वापस बेस कैंप लौट रहा था। इस दल पर माओवादियों ने हमला बोला, जिसमें 23 पुलिसकर्मी मारे गए।
रानीबोदली: 15 मार्च 2007 बीजापुर के रानीबोदली में पुलिस के एक कैंप पर आधी रात को माओवादियों ने हमला किया और भारी गोलीबारी की। इसके बाद कैंप को बाहर से आग लगा दिया। इस हमले में पुलिस के 55 जवान मारे गए।
दंतेवाड़ा : 16 जुलाई 2006 नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले में एक राहत शिविर पर हमला किया था, जहां कई ग्रामीणों का अपहरण कर लिया गया था। इस हमले में 29 लोगों की जान गई थी।

एर्राबोर : 28 फरवरी 2006 नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के
एर्राबोर गांव में लैंडमाइन ब्लास्ट किया, जिसमें 25 जवानों की जान गई थी।
किरंदुल : 19 फरवरी 2006 किरंदुल के पास हिरोली मैग्जीन पर हमला, 19 टन बारूद लूटा, सीआईएसएफ के 8 जवान शहीद

बीजापुर : 03 सितंबर 2005 बीजापुर के पदेड़ा-चेरपाल के पास 24 जवान शहीद

नारायणपुर : 20 फरवरी 2000 नारायणपुर के बाकुलवाही में एएसपी समेत 23 जवान शहीद, नक्सलियों ने बारूदी विस्फोट का पुलिस की 407 वाहन को उड़ा दिया था। 



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