शनिवार, 17 अप्रैल 2021

पूजास्थल कानून-1991 ( Places of Worship Act 1991 ) की वैधानिकता को चुनौती

 


पूजास्थल कानून-1991 की वैधानिकता को चुनौती देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। इस संबंध में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में पूजास्थल कानून-1991 को भेदभावपूर्ण और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है। उन्होंने कानून की धारा 2, 3 और 4 को संविधान का उल्लंघन बताते हुए इन्हें रद्द करने की मांग की है।

भारतीय मुसलमान भारत के राजनीति में कांग्रेस का एक बहुत बड़ा वोट बैंक रहा है। इसे कांग्रेस किसी भी कीमत पर नहीं नाराज कर सकती थी। इसलिए 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार ने राम मंदिर आन्दोलन के कारण एक ऐसा कानून बनाया। जो भारत में खास तौर से मस्जिदों को सुरक्षित कर सके, जो मुगल काल में मंदिर को तोड़कर बनाया गया हो। राम मंदिर के आन्दोलन में कई बार मथुरा और काशी के जन्वापी मस्जिद के बारे में आवाज उठाने लगी थी। ऐसा कई इतिहासकारों और लेखकों ने कई बार उल्लेख किया है की भारत में गजनी, गोरी, बाबर, हुमायू, अकबर और औरंगजेब के द्वारा लगभग तीन हजार मंदिरों को तोड़कर कर मस्जिद बनाई गयी है। आजाद भारत में हिन्दुओं बहुसंख्यकों के द्वारा मांग किया जाता रहा कि जो भी मंदिर तोड़कर कर मस्जिद बनाई गयी हो। उसे पुनः वापस मंदिर बनाया जाये, जैसा कि श्रीराम मंदिर अयोध्या मामले के अलावा मथुरा में श्री कृष्ण जन्मस्थान, काशी विश्वनाथ, विदिशा में विजय मंदिर, गुजरात के बटना में रुद्र महालय, अहमदाबाद में भद्रकाली मंदिर, राजा भोज की प्राचीन नगरी धार में भोजशाला जैसे कि अन्य आस्था स्थलों को मुगलकाल में तोड़कर मस्जिद, दरगाह और ईदगाह बना दिया गया।

कांग्रेस की सरकार ने लियाकत नेहरू समझौता 1950 में किया था जिसमे दोनों देशों के अल्पसंख्यकों को सुरक्षित एवं सुनिश्चित किया जाये लेकिन भारत ने माना पाकिस्तान ने नही माना पूजा स्थल कानून 1991 में एक ऐसा कानून बनाया जाये जो जितने भी मंदिर तोड़कर उनपर जो मस्जिद बनाई गई थी उन सभी मस्जिदों को कानून के दायरे लाकर सुरक्षित किया जाये। क्योंकि कांग्रेस का मुख्य बिषय यह था कि मुस्लिम तुष्टीकरण और अपना वोट बैंक को सुरक्षित करना था केंद्र सरकार को इस तरह का कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है। संविधान में तीर्थस्थल राज्य का विषय है। यह संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची में शामिल है। केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने जो पूजा स्थल कानून 1991 में कानून बनाया गया। उसमें अयोध्या को बाहर रखा गया, लेकिन मथुरा को इसके दायरे में रखा गया। सरकार का कार्य कोर्ट का दरवाजा बंद करना नहीं है, लेकिन सरकार ने हिन्दू, जैन, सिखों, बौद्ध को अदालत के दरवाजे पर पहुंचने से रोक दिया है। सनातन भारत के अन्य समुदायों बौद्ध, जैन, सिखपारसी आदि का अपमान भी किया। यहाँ इतिहास में हिन्दुओं के साथ सैकडों वर्षो से नाइंसाफी किया गया था स्वंत्रत भारत में भी होता रहा है। यह इस्लाम की मूल भावना के खिलाफ भी है, जिसमें दूसरे की जमीन हड़पकर या दूसरों के उपासना स्थल तोड़कर मस्जिद बनाना निषिद्ध है।

भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने कहा, ‘सरकार का काम गैरकानूनी कार्य को कानूनी बनाना नहीं होता है, लेकिन कांग्रेस ने वह किया है। इसीलिए उस कानून को मैंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिया है उनका कहना है कि हमारा मौलिक अधिकार है कि जो हमारे धार्मिक स्थान हैं उन पर हमारा पूर्ण स्वामित्व हो, उनकी देखरेख करने का हमें अधिकार है। लेकिन बहुत सारे चाहे वह मथुरा का मंदिर हो, भगवान विश्वनाथ का मंदिर हो जिनपर अवैध तरीके से कब्जा किया गया है। सरकार का कर्तव्य था कि उनको कब्जों से मुक्त करवाकर जिसके हैं उन्हें सौंपा जाता, लेकिन कांग्रेस ने उल्टा किया। उसने जिसके पास उसका कब्जा था, उसी को मालिकाना हक दे दिया। उन्होंने मांग की है कि संवैधानिक प्रावधानों और हिंदू, जैन, बौद्ध और सिखों के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करते हुए सुप्रीम कोर्ट उनके धार्मिक स्थलों को पुनर्स्थापित करे। साथ ही कानून की धारा 2, 3 और 4 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन बताते हुए रद्द करने की अपील की है।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें