पिलखा पहाड़ की तलहटी पर साल और महुआ के वृक्ष की हरियाली से सुशोभित, रेणुका नदी की जलधारा के किनारे तथा कटनी-गुमला राष्ट्रीय राजमार्ग क्र.78 पर काला हीरा के विशाल भण्डार को अपने गर्भ में सजोये हुए विश्रामपुर क्षेत्र। जो ऍनसीडीसी द्वारा बसाया गया एक नगर है। ब्रिटिश काल में हुए सवेक्षण में बिश्रामपुर झिलमिलीकोल ब्लाक के नाम से जाना जाता है। इस बिश्रामपुर कोल ब्लाक से कोयले के परिवहन के लिए अनुपपुर से बिश्रामपुर तक रेललाईन 1962 में लाया गया है। इसके बाद ही विशालका्य ड्रगलाईन को लाया गया था। ब्रिटिश काल में बिश्रामपुर सी पी एड बरार स्टेट का हिस्सा था, 1954 में मध्यप्रदेश राज्य बनने के बाद मध्यप्रदेश का हिस्सा बना तथा अब वर्तमान में 2000 छत्तीसगढ़ राज्य का हिस्सा है। छत्तीसगढ़ की राजधानी से 350 किमी तथा संभाग मुख्यालय अम्बिकापुर से 28 किमी. पश्चिम तथा जिला मुख्यालय सूरजपुर से 12 किमी. पूर्व में स्थित है।
भारत स्वतंत्र होने के बाद अपने चहुमुखी विकास के लिए, नए नए कल कारखाने साथ उद्योगिग विकास का कार्य शुरू होने लगा। इस विकास करने के लिए बिजली की सबसे ज्यादा जरुरत थी उस समय कोयला इसका मुख्य आधार था। वर्ष 1956 में भारत सरकार ने उपक्रम राष्ट्रीय कोयला विकास निगम (एन.सी.डी.सी.) की स्थापना किया गया जिसके तहत योजनाबध्द भारतीय कोयला उद्योग के सुनियोजित विकास कर उत्पादन को बढाया जाये जो की सरकार का पहला बड़ा कदम है। इसी के आधार पर कोल बैरिंग एक्ट 1957 कोयला खदान खोलने के लिए भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है।
1958 में बिश्रामपुर कोल ब्लाक पर काम शुरू हुआ। कोल बैरिंगएक्ट 1957 के अंतर्गत उरडबाहर गाव को अधिग्रहण कर सतापता, शिवनदनपुर, केशवनगर, गोरखनाथपुर, कुन्जनगर, जयनगर, कुम्दा आदि गांवो से भूमि अधिग्रहण किया गया। लगभग 8 हजार हेक्टेयर में ओपनकास्ट, जयनगर व न्यू जयनगर, कुम्दा भूमिगत, को शुरू किया गया। 1960 तक सभी खदानों से उत्पादन शुरू हो गया था। लेकिन रेलवेलाइन नहीं होने के कारण कोयले का परिवहन शुरू नहीं हो पाया था। 1962 में बोरीडाड से बिश्रामपुर तक नई लाइन बिछाया गया। 1960 में बिश्रामपुर नगर प्रशासन के लिए आवास का निर्माण भी शुरू हुआ। यह आज भी स्मार्ट सिटी बिश्रामपुर की कल्पना किया जा सकता है आज से 60 वर्ष पूर्व कोल कम्पनी स्मार्ट सिटी बना सकती है।
![]() |
Bishrampur shakti Marion 7800 dragline @ramashanker62 |
भारत
के विकास हेतु कोयले की मांग के अनुसार पूर्ति करने हेतु बहुत ही विशालका्य ड्रगलाइन
मशीन को भारत सरकार ने बिश्रामपुर कोल ब्लाक को दिया गया। आज एसईसीएल बिश्रामपुर
क्षेत्र की शान कहे जाने वाले विशालकाय शिवा शक्ति ड्रगलाइन मशीन है।
छ: दशक पूर्व अमेरिका से एशिया महाद्वीप के सबसे बड़े ड्रगलाइन की आयात किए गए। यह ड्रगलाइन रेलवे के द्वारा बिजुरी में आकर रखा हुआ था। उस समय अच्छी रोड नहीं था। 1600 टन मशीन को लेकर आने के लिए गाड़ी ट्रक भी नहीं था और सड़क भी नहीं था। इसलिए बिश्रामपुर तक नई रेल्वे की पटरी बिछाने तक रुका हुआ था। 1962-63 में बिश्रामपुर में आया इसे एक्स्वेशन में असेम्बल किया गया। 1964 में इसे चालू कर बिश्रामपुर में कोल कंपनी को कमीशन किया गया। मेरियन 7800 को भारतीय नाम शिव शक्ति दिया गया। अमेरिका से मेरियन कंपनी की मेरियन पावर शावेल कंपनी से माडल मेरियन 7800 शिवा व शक्ति नामक दो ड्रगलाइन मशीनों को करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये में खरीद कर आयात किया गया था।
यह इस विशालकाय मशीन का वजन 1860 टन एसईसीएल बिश्रामपुर क्षेत्र में ओपन कास्ट खदान से कोयला उत्पादन करने ओबी हटाने के लिए उपयोग में लाया गया। यह दोनों विशालकाय मशीनें अपने जमाने की एशिया महाद्वीप की सबसे बड़ी मशीनें थी। इस कोल क्षेत्र की बिश्रामपुर ओपन कास्ट परियोजना में 30 नवंबर 1964 को शक्ति ड्रगलाइन एवं 10 अगस्त 1967 को शिवा ड्रगलाइन से ओबी उत्पादन का कार्य प्रारंभ किया गया था। ओपन कास्ट (खुली खदान) के कोयला उत्पादन में ड्रगलाइन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। कोयले की सिम के ऊपर से मिट्टी हटाने के लिए में मशीन के बोकेट से एक बार में 39 क्यूबिक यार्ड मिट्टी हटाई जाती है। यह मशीन अकेले प्रतिदिन सैकड़ों मजदूरों से ज्यादा ओबी हटाने का करती रही है। इसके एक दिन खड़े रहने से कंपनी को लाखों रुपए की क्षति होती थी। बताया गया कि 10 अगस्त 1967 को चालू शिवा ड्रगलाइन की कार्य क्षमता समय सीमा 30 साल अथवा 1.40 लाख घंटा निर्धारित थी, जबकि प्रबंधन ने इस मशीन से 50 वर्षों में 2.07 लाख घंटे काम लिया है।
इन दोनों मशीनों के कारण ही बिश्रामपुर क्षेत्र में अपने जमाने में कोयला उत्पादन के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने का गौरव हासिल किया था। दोनों ही मशीनें अपने कार्य क्षमता की समय सीमा पूरी कर चुकी है। इनमें से शिवा ड्रग लाइन को सर्वे ऑफ करने के बाद नीलाम कर दिया गया है। वहीं शक्ति ड्रगलाइन को किसी तरह खींचतान कर चलाया जा रहा है। वह भी सर्वे ऑफ होने की कगार पर खड़ी है।
शिवा ड्रगलाइन मशीन को दिल्ली स्थित भारत सरकार की अधिकृत एजेंसी द्वारा नीलामी प्रक्रिया के तहत कानपुर की जय मां ज्वालामुखी आयरन स्क्रैप फर्म को 2.71 करोड़ में नीलाम कर दिया गया है। नीलामी के साथ ही बिश्रामपुर क्षेत्र का गौरव कहे जाने वाली शिवा ड्रगलाइन का अस्तित्व समाप्त हो गया शिवा ड्रगलाइन पर एक नजर अमेरिका से आयातित शिवा ड्रगलाइन का वजन 1860 टन था।
सात
साल से खड़ी है ड्रगलाइन सूत्रों की मानें तो पांच अप्रैल 2011 को कार्य के दौरान शिवा ड्रगलाइन का मेन शॉफ्ट टूट गया था।
शॉफ्ट टूटते ही मशीन ने काम करना बंद कर दिया था, जिससे कंपनी को अपूरणीय क्षति का सामना करना
पड़ा था। प्रबंधन द्वारा अमेरिका स्थित कंपनी से मशीन का शॉफ्ट
मंगाने संबंधी प्रस्ताव एस ई सी एल कंपनी मुख्यालय बिलासपुर को भेजा गया था। पांच दशक पूर्व
करीब पौने दो करोड़ रुपये में मंगाई गई इस मशीन के शॉफ्ट की कीमत अनुमानित दो
करोड़ रुपये बताई गई थी। इसी बीच 12 अप्रैल 2017 को प्रबंधन द्वारा इस ड्रगलाइन मशीन को सर्वे
ऑफ घोषित कर दिया गया।
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------
सुझाव -
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें