गुरुवार, 12 अगस्त 2021

आर्य ही भारत के मूल निवासी हैं


2011 में हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में हुई, हड़प्पाकालीन सभ्यता की खोदाई में मिले। 5000 साल पुराने कंकालों के अध्ययन के बाद जारी की गई रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि आर्य यहीं के मूल निवासी थेबाहर से नहीं आए थे। इसलिए इतिहास को नये सिरे से लिखने की आवश्यकता है। मिले वैज्ञानिक सबूतों में आर्य बाहर से आये यहाँ की सभ्यता को नष्ट कर दिया और नए सभ्यता की शुरु किया। इसका कोई भी सबूत वैज्ञानिक सबूतों नहीं मिला है। भारत के लोगों के जीन में पिछले हजारों सालों में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है।  डेक्कन कॉलेज के पूर्व कुलपति और इस प्रोजेक्ट के मुखिया डॉ वसंत शिंदे और बीरबल साहनी पुरानीविज्ञानी संस्थानलखनऊ के डॉ. नीरज राय (डीएनए वैज्ञानिक) भी शामिल थे। 


डेक्कन कॉलेज के पूर्व कुलपति और इस प्रोजेक्ट के मुखिया डॉ वसंत शिंदे ने राखीगढ़ी में किये शोध के बाद बताया कि ‘‘हमारा अध्ययन आर्कियोलॉजिकल डाटा और जेनेटिक पर आधारित है। आर्कियोलॉजिकल शोध से पता चला कि शुरुआत ईसा पूर्व 7 हजार के आसपास हुई। आर्कियोलॉजिकल डाटा को बनाने में जो अवशेष मिले हैं, जैसाकि औजार, गहने, अलग-अलग क्राफ्ट मिलते हैं। उनका अध्ययन किया गया है। इसमें क्राफ्ट में एक प्रगति मिलती है। हड़प्पा सभ्यता के समय इन लोगों ने विकास किया। हमारा दूसरा अध्ययन जेनेटिक डाटा को लेकर है। ईसा पूर्व 2500 के आसपास के कंकाल हैं। राखीगढ़ी जो हड़प्पा सभ्यता के एक प्रमुख स्थानों में से एक रहा है, वहां से 2015-16 में हमें खुदाई में 40 कंकाल मिले है। इनमें से जलवायु के चलते अधिकतर कुछ काम के नहीं निकले लेकिए एक कंकाल काम का था। यह किसी महिला का था। कंकाल के जीन का हमने परीक्षण किया। जब इस जीन की तुलना दूसरे समकालीन लोगों के जीन से की गई तो दोनों एकदम अलग निकले। शोध में किसी भी मध्य एशिया के पूर्वजों के डीएनए का मिलान नहीं हुआ। इससे पता चलता है कि राखीगढ़ी के रहने वाले लोगों का मध्य एशिया के लोगों से कोई संबंध नहीं है जबकि अफगानिस्तान से लेकर बंगाल और कश्मीर से लेकर अंडमान तक के लोगों के जीन से मिलान करने पर पता चला कि यह एक ही वंश के हैं। इससे साबित होता है कि आर्य भारत के ही थे, और हम आर्यों के ही वंशज हैं।’’

डीएनए साइंटिस्ट डॉ. नीरज राय ने कहा कि हमने हड़प्पा के एक प्राचीन जीनसमूह का मिलान सेंट्रल एशिया, मिडिल ईस्ट, ईस्टर्न यूरोप, वेस्टर्न यूरोप आदि के लोगों से कराया लेकिन मिलान नहीं हुआ। वहीं देश के अलग-अलग हिस्सों से करीब 2500 लोगों के ब्लड सैंपल लेकर उनका डीएनए और राखीगढ़ी में मिले मानव कंकाल के डीएनए का मिलान किया तो पाया कि आज भी उनका और हमारा डीएनए मेल खाता है। डॉ राय के मुताबिक, इससे ये साबित होता है कि हड़प्पावासी कहीं बाहर से नहीं आए थे बल्कि हमारे ही देश के मूलनिवासी थे। ‘‘उन्होंने ही खेती की खोज की। इन्हीं के समय वेद भी लिखे गए। अब यदि कोई आर्य शब्द जैसा टर्म इस्तेमाल करता है तो हम कह सकते हैं कि यही आर्य थे। डॉ राय के मुताबिक, हम ऐसा मानते हैं कि डीएनए की डायवर्सिटी जहां ज्यादा होती है, वहां से लोग कम डायवर्सिटी की ओर जाते हैं। शोध में राखीगढ़ी में रहने वालों लोगों के डीएनए में डायवर्सिटी ज्यादा मिली। इससे ये पता चलता है कि यहां के लोग विदेशों में गए न कि वहां के लोग यहां आकर बसे। वे कहते हैं कि, 1500 बीसी से पहले तक मिक्सिंग नहीं हुई है।

जब कोई भी व्यक्ति बाहर से भारत में आता है तो अपने साथ अपनी सभ्यता भी लेकर आता है साईटिफिक पद्धति से डीएनए निकला गया है इसमें हावर्ड युनिवर्सिटी के डीएनए वैज्ञानिक और जर्मन मैक्स प्लान युनिवर्सिटी तथा सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मोलेक्यूलर बायोलॉजी ( कोशिका और आणविक जीवविज्ञान केंद्र The Centre for Cellular and Molecular Biology or CCMB ) के साथ मिलकर साईंटिफिक जरनल में शोधकर्ताओं प्रकाशित हो चूका है। इस शोध में 16 देशों के लगभग 40 वैज्ञानिकों ने कार्य किये है। अब इसपर कोई भी सवाल नहीं है इसलिए आर्यन इंवेशन Aryan invasion theory की थ्योरी को खत्म हो जाना चाहिए। भारत में आर्यो ने हमला कर सिन्धु घाटी सभ्यता खत्म किये और यहाँ के मूल निवासियों को दक्षिण में भगा दिया      

नए शोध पर मिले आंकड़े के अनुसार भारत सरकार के यूजीसी ने इतिहास के छात्र के पाठ्यक्रम में शामिल किया है उसमे इतिहास (ऑनर्स) के पहले पेपर को आइडिया ऑफ भारत नाम किया गया है। इसमें भारतवर्ष की अवधारणा के साथ-साथ वेद, वेदांग, उपनिषद, महाकाव्य, जैन और बौद्ध साहित्य, स्मृति और पुराण पढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया है। इतना ही नहीं एक चैप्टर में भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति, अंतरीक्ष, विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, आयुर्वेद और योग तक के भारतीय विचारों को रखा गया है। अब तीसरे पेपर में सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ (  The Indus – Saraswati Civilization) के नाम से एक बिषय जोड़ा गया है। इसमें सिंधु, सरस्वती सभ्यता और वैदिक सभ्यता के संबंधों पर बहस का वर्णन किया गया है। अंग्रेजो ने भारत की गुरुकुल शिक्षा को बदल कर स्कुल व्यवस्था लागु किया और भारत के इतिहास को बदल दिया। इसमें मैक्समूलर, विलियम हंटर और लॉर्ड टॉमस, मैकॉले इन चारों लोगों के कारण भारत के इतिहास को बदलकर विकृतिकरण किया। अंग्रेंजों द्वारा लिखित इतिहास में चार बातें प्रचारित की जाती है। पहली यह की भारतीय इतिहास की शुरुआत सिंधु घाटी की सभ्यता से होती है। दूसरी यह की सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ थे। तीसरी यह कि आर्यो ने बाहर से आकर सिंधु सभ्यता को नष्ट करके अपना राज्य स्थापित किया था। चैथी यह कि आर्यों और दस्तुओं के निरंतर झगड़े चलते रहते थे। आर्य बाहर से आए थे लेकिन कहां से आए हैं उसका कोई सटीक जवाब किसी इतिहासकार के पास नहीं है। कोई सेंट्रल एशिया कहता है, तो कोई साइबेरिया, तो कोई मंगोलिया मतलब यह कि किसी के पास आर्यों का सुबूत नहीं है। लेकिन इस थ्योरी को सबसे बड़ी चुनौती 1921 में मिली। लेकिन अंग्रेजों की मानसिकता के इतिहाकारों ने धीरे धीरे यह प्रचारित करना शुरु किया कि सिंधु लोग द्रविड़ थे और वैदिक लोग आर्य थे। सिंधु सभ्यता आर्यों के आगमन के पहले की है और आर्यों ने आकर इस नष्ट कर दिया। 

अमेरिका मूल के डॉ डेविड फ्रॉले उर्फ वामदेव शास्त्री  ने कई बार भारत में व्याखान में कहा है कि पूरी दुनिया में आर्य यहाँ से बाहर गए है, आये नहीं है। लेकिन आज भी भारत में यही पढाया जाता है कि आर्य बाहर से आये थे। विदेशियों ने अगर आपकी पाठ्य पुस्तकों में इतिहास  के नाम से कुछ भी लिख दिया हो, अपने फायदे के वह अंतिम कैसे हो सकता है। भारतीयों को नहीं भूलना चाहिए की उनका इतिहास उसके औपनिवेशिक काल में लिखा गया है। जितने भी देश औपनिवेशिक काल के अंर्तगत थे, उन्होंने अपना इतिहास बदल दिया जैसे की चीन ने भी किया।  सभी भारतीयों से अपने अतीत को अपने नजरों से देखे और उसपर गर्व करे।

सुप्रीम कोर्ट में चल रही अयोध्या मामले की 40 दिन की सुनवाई के दौरान भारत में आर्यों का अस्तित्व पर फिर से चर्चा में आया। हिंदू पक्षकार के वकील के पाराशरण ने कहा कि आर्य यहां के मूल निवासी थे, क्योंकि रामायण में भी सीता माता अपने पति श्रीराम को आर्य कहकर संबोधित करती हैं। ऐसे में आर्य कैसे बाहरी आक्रमणकारी हो सकते हैं?

इस शोधकार्य  को 16 देश के 40 वैज्ञानिकों की टीम ने कार्य किये है। इनमें डेक्कन कॉलेज के पूर्व कुलपति और इस प्रोजेक्ट के मुखिया डॉ वसंत शिंदे और बीरबल साहनी पुराविज्ञानी संस्थान, लखनऊ के डॉ. नीरज राय (डीएनए वैज्ञानिक) भी शामिल थे। 

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