
चेदरू मंडावी जो कि खास बस्तर के अबूझमाड़ क्षेत्र में रहने वाले एक मुरिया जनजाति समाज से था। उसके पिता और दादा
एक कुशल शिकारी थे तथा जीवन यापन के लिए खेतीबाड़ी किया करते थे। एक दिन शिकार के लिए गए थे उन्हों बाघ का बच्चा मिला उसे बांस की टोकरी में रखकर घर ले आये। वह चेंदरू के लिये एक तोहफा लाये, तोहफा एक दोस्ती का जिसने चेंदरू का जीवन बदल दिया। बांस की टोकरी में
छुपे तोहफे को देखने चेंदरू बड़ा ही उत्साहित था।
जब टोकरी खुली, चेंदरू ने अपने सोच से परे कुछ पाया।
टोकरी में था एक बाघ का बच्चा। जिसे देख चेंदरू ने उसे गले लगा लिया और इस
मुलाकात से बाघ और चेंदरू की दोस्ती की शुरूआत हो गई।

सोचिए एक ऐसा दृश्य जहाँ एक मनुष्य और एक बाघ एक दूसरे के दोस्त हो, दोनों में कोई बैर नही। जिनकी सुबह साथ मे होती है और रात भी। कोई भी ऐसा
किस्सा सुन ले तो अपनी आंखों से देख कर ही दम भरे, और अब ऐसा
दृश्य डायरेक्टर “अरने सक्सडोर्फ” के
सामने था। जिसे देख उस दृश्य को उन्होंने पूरी दुनिया को दिखाने का फैसला कर लिया।
अरने सक्सडोर्फ
ने फ़िल्म बनाई “द फ्लूट एंड द एरो” जिसे भारत मे नाम दिया गया “द जंगल सागा”। फ़िल्म अंतराष्ट्रीय स्तर पर खूब सफल रही। 1957 में
बनी इस फ़िल्म को 1958 के कांस फ़िल्म फेस्टिवल में भी जगह
मिली। फ़िल्म की शूटिंग के समय अरेन सक्सडोर्फ और चेंदरू में एक रिश्ता सा बन गया।
अरने सक्सडोर्फ के शब्द थे कि वह चेंदरू को अपने बेटे की तरह देखते थे। फ़िल्म की
वजह से चेंदरू और टेम्बू कि कहानी दुनिया ने देखी, अब दुनिया
चेंदरू को करीब से देखने की लालसा में थी। अरेन भी चाहते थे कि चेंदरू वो जगह देखे
जहाँ से वह आये है, तो उन्होंने चेंदरू को स्वीडन ले जाने का
सोचा। और वो उसे स्वीडन ले गए।

वर्षो बीत गए, कुछ टीवी पर बीमार
चेंदरू के बारे में बस समाचार में ही है। जब चेंदरू मंडावी को लकवा मारने पर
अस्पताल पहुचा। बीमार चेंदरू की टीवी और समाचार पत्रों में केवल खबर बस रह गया। कोई सरकार या
सामाजिक संस्था ने भी रूचि नहीं दिखाया। राज्य सभा टीवी पर राजेश बादल का 20 मिनट का रिपोर्टिंग किया हुआ कार्यक्रम है। 1996 में बना JungleDreams नाम से एक डाक्युमेटरी ही जिसे प्रमोद माथुर बनाया और Youtube पर शेयर किया है। हमे देखना चाहिए और अपने बच्चों को भी साथ में बताना चाहिए की वन्य जीव हमारे लिए खतरनाक नहीं है, बल्कि पूरक है मानव जाती का धर्म है। इस जंगल को बचाना हमारी जिम्मेदारी है जंगल रहेगा तो जीव भी रहेगे हो सकता है, कि कोई चेंदरू मोगली कोई टार्जन भी फिर दे आये ।
जब चेंदरू मंडावी नाम व्यक्ति को 23 सितंबर 2011 लकवा की बीमारी से जगदलपुर हास्पिटल में
भर्ती होता है। तभी स्थानीय मीडिया तथा समाचार पत्रों के द्वारा लोगों को पता चलता की चेंदरू
मंडावी के बारे में, उसमे से मै भी हूँ। ऐसा भी व्यक्तित्व होते हुए भी हमने खो
दिया है। खानापूर्ति के लिए रायपुर में एक प्रतिमा लगा कर इतिश्री कर दिया है। यदि
कोई राजनीतिक या भड़वे कलाकार होता तो कई फिल्में बन जाते। लेकिन एक निडर बालक पर
एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म भर है। राज्य सभा टीवी पर भी उसी डॉक्यूमेंट्री पर
रिपोर्टिंग भर है। आज जंगल में जानवर और मनुष्य पर संघर्ष सभी जगह दिखा जाता है, लेकिन पूरकता नही। इस कमी को चेंदरू मंडावी ने दोस्ती के साथ पूरा करने की कोशिश
ही है....
साभार -https://kosalkatha.com/chendru-mandavi-bastar-chhattisgarh/
https://www.bbc.com/hindi/india/2013/09/130831_tiger_boy_chandru_fma
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