रविवार, 22 सितंबर 2019

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलकर भावुक हुए कश्मीरी पंडित, बोले- कश्मीर पर हर फैसले में हम आपके साथ



अमेरिका में रहने वाले कश्मीरी पंडित भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी से मिलकर भावुक हो गए। सात दिन के अमेरिकी दौरे पर है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ह्यूस्टन में पहला दिन अमेरिकी सीईओ से लेकर भारतीय समुदाय के लोगों के साथ मुलाकातों और बातों में बीता। आज भारतीय समुदाय कश्मीर पंडितों के लोगों पीएम मोदी से मिलकर काफी खुशी महसूस कर रहे थे।  कश्मीरी पंडितों से मिलने के दौरान पीएम मोदी भी भावुक नजर आए। कश्मीरी पंडितों के समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले सुरिंदर कौल ने उनका हाथ चूम लिया। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के फैसले का स्वागत करते हुए पीएम मोदी से कहा कि जम्मू कश्मीर के विकास के लिए जाने वाले हर कदम में आपके साथ हैं।

सुरिंदर कौल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने हमसे कहा कि आपने बहुत कुछ सहा है और हम साथ मिलकर नया कश्मीर बनाएंगे। हमारे युवाओं ने उन्हें वह संदेश दिए जो समुदाय ने उनके लिए तैयार किए हैं। उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। कौल ने कहा कि हमने उन्हें सात लाख कश्मीरी पंडितों की तरफ से यह ऐतिहासिक फैसला लेने की वजह से धन्यवाद कहा। हमने उन्हें आश्वासन दिया कि हमारा समुदाय सरकार के साथ मिलकर उस कश्मीर के सपने को पूरा करेगाजहां शांति होगीविकास होगा और सभी खुशहाल होंगे। 
      कैसे हुआ कश्मीर का जन्म और कैसे पड़ा इसका ये नाम-
हजारों वर्ष पूर्व कश्यप ऋषि के द्वारा बसाया गया था इसलिए कश्मीर को कश्यप ऋषि के नाम से पुकारने के कारण कश्मीर नाम पड़ा तभी कश्मीर के मूल निवासी सारे हिन्दू थे। कश्मीरी पंडितो की संस्कृति5000 साल पुरानी है और वे ही कश्मीर के मूल निवासी हैं। प्राचीनकाल से ही कश्मीर महर्षि कश्यप के नाम पर हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का पालना रहा है। ब्रह्म से ब्रह्माब्रह्मा से मरीचिमरीचि से कश्यप ऋषि ही कश्मीर के मूल निर्माता थे। पुराणों में ऋषि कश्यप का उल्लेख है की कश्मीर के निर्माण के लिए उल्लेखित है। उनके साथ-साथ भगवान शिव की पत्नी देवी सती का नाम भी पुराणों में लिया गया है। 

प्राचीनकाल में कश्मीर हिन्दू और बौद्ध संस्कृतियों का पालना रहा है। माना जाता है कि यहां पर भगवान शिव की पत्नी देवी सती रहा करती थीं और उस समय ये वादी पूरी पानी से ढकी हुई थी। यहां एक राक्षस नाग भी रहता थाजिसे वैदिक ऋषि कश्यप और देवी सती ने मिलकर हरा दिया और ज्यादातर पानी वितस्ता जो आज झेलम नदी के नाम से जानी जाती है उसके रास्ते बहा दिया। इस तरह इस जगह का नाम सतीसर से कश्मीर पड़ा। इससे अधिक तर्कसंगत प्रसंग यह है कि इसका वास्तविक नाम कश्यपमर अथवा कछुओं की झील था। इसी से कश्मीर नाम निकला।

स्थानीय लोगों का विश्वास है कि इस विस्तृत घाटी के स्थान पर कभी मनोरम झील थी जिसके तट पर देवताओं का वास था। एक बार इस झील में ही एक असुर कहीं से आकर बस गया और वह देवताओं को सताने लगा। त्रस्त देवताओं ने ऋषि कश्यप से प्रार्थना की कि वह असुर का विनाश करें। देवताओं के आग्रह पर ऋषि ने उस झील को अपने तप के बल से रिक्त कर दिया। इसके साथ ही उस असुर का अंत हो गया और उस स्थान पर घाटी बन गई. कश्यप ऋषि द्वारा असुर को मारने के कारण ही घाटी को कश्यप मार कहा जाने लगा यही नाम समय के साथ-साथ बदल कर कश्मीर हो गया निलमत पुराण में भी ऐसी ही एक कथा का उल्लेख है कश्मीर के प्राचीन इतिहास और यहां के सौंदर्य का वर्णन कल्हण रचित राज तरंगिनी में बहुत सुंदर ढंग से किया गया है

यहां का प्राचीन विस्तृत लिखित इतिहास है राजतरंगिणीजो कल्हण द्वारा 12वीं शताब्दी ई. में लिखा गया था। तब तक यहां पूर्ण हिन्दू राज्य रहा था। यह अशोक महान के साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। लगभग तीसरी शताब्दी में अशोक का शासन रहा था। तभी यहां बौद्ध धर्म का आगमन हुआजो आगे चलकर कुषाणों के अधीन समृध्द हुआ था। उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य के अधीन छठी शताब्दी में एक बार फिर से हिन्दू धर्म की वापसी हुई। उनके बाद ललितादित्या हिन्दू शासक रहाजिसका काल 697ई. से 738 ई. तक था। अवन्तिवर्मन ललितादित्या का उत्तराधिकारी बना। उसने श्रीनगर के निकट अवंतिपुर बसाया। उसे ही अपनी राजधानी बनायाजो एक समृद्ध क्षेत्र रहा। उसके खंडहर अवशेष आज भी शहर की कहानी कहते हैं। यहां महाभारत युग के गणपतयार और खीर भवानी मन्दिर आज भी मिलते हैं। गिलगिट में पाण्डुलिपियां हैंजो प्राचीन पाली भाषा में हैं। उसमें बौद्ध लेख लिखे हैं। त्रिखा शास्त्र भी यहीं की देन है। यह कश्मीर में ही उत्पन्न हुआ। इसमें सहिष्णु दर्शन होते हैं। चौदहवीं शताब्दी में यहां मुस्लिम शासन आरंभ हुआ। उसी काल में फारस से से सूफी इस्लाम का भी आगमन हुआ। यहां पर ऋषि परम्परा,त्रिखा शास्त्र और सूफी इस्लाम का संगम मिलता हैजो कश्मीरियत का सार है। भारतीय लोकाचार की सांस्कृतिक प्रशाखा कट्टरवादिता नहीं है।

मध्ययुग में मुस्लिम आक्रान्ता कश्मीर पर क़ाबिज़ हो गये। कुछ मुसलमान शाह और राज्यपाल हिन्दुओं से अच्छा व्यवहार करते थे। 14वीं शताब्दी में तुर्किस्तान से आये एक क्रूर आतंकी मुस्लिम दलुचा ने 60,000लोगो की सेना के साथ कश्मीर में आक्रमण किया और कश्मीर में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना की। दुलुचा ने नगरों और गाँव को नष्ट कर दिया और हजारों हिन्दुओ का नरसंघार किया। बहुत सारे हिन्दुओ को जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया। बहुत सारे हिन्दुओ ने जो इस्लाम नहीं कबूल करना चाहते थेउन्होंने जहर खाकर आत्महत्या कर ली और बाकि भाग गए या क़त्ल कर दिए गए या इस्लाम कबूल करवा लिए गए। आज जो भी कश्मीरी मुस्लिम हैउन सभी के पूर्वजो हिन्दू थे आंतकियों के अत्याचारों के कारण जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया था। भारत पर मुस्लिम आक्रमण विश्व इतिहास का सबसे ज्यादा खुनी कहानी है। ज़ैनुल-आब्दीन का 1420-1470 तक राज्य रहा था। सन 1589 में यहां मुगल का राज हुआ। यह अकबर का शासन काल था। मुगल साम्राज्य के विखंडन के बाद यहां पठानों का कब्जा हुआ। यह काल यहां का काला युग कहलाता है। फिर 1814 में पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह द्वारा पठानों की पराजय हुई व सिख साम्राज्य आया।

अंग्रेजों द्वारा सिखों की पराजय 1846 में हुईजिसका परिणाम था लाहौर संधि। अंग्रेजों द्वारा महाराजा गुलाब सिंह को गद्दी दी गई जो कश्मीर का स्वतंत्र शासक बना। गिलगित एजेन्सी अंग्रेज राजनैतिक एजेन्टों के अधीन क्षेत्र रहा। कश्मीर क्षेत्र से गिलगित क्षेत्र को बाहर माना जाता था। अंग्रेजों द्वारा जम्मू और कश्मीर में पुन: एजेन्ट की नियुक्ति हुई। महाराजा गुलाब सिंह के सबसे बड़े पौत्र महाराजा हरि सिंह1925 ई. में गद्दी पर बैठेजिन्होंने 1947 ई. तक शासन किया। भारत की स्वतन्त्रता के समय महाराजा हरि सिंह यहाँ के जम्मू कश्मीर लदाख शासक थेजो अपनी रियासत को स्वतन्त्र राज्य रखना चाहते थे। कश्मीरी पंडित और राज्य के ज़्यादातर मुसल्मान कश्मीर का भारत में ही विलय चाहते थेक्योंकि भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। 


पाकिस्तान को ये बर्दाश्त ही नहीं था कि कोई मुस्लिम-बहुमत
 प्रान्त भारत में रहे । इससे उसके दो-राष्ट्र सिद्धान्त को ठेस लगती थी। 1947-48 में पाकिस्तान ने कबाइली और अपनी छद्म सेना से कश्मीर में आक्रमण करवाया और क़ाफ़ी हिस्सा को हथिया लिया। उस समय प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने मोहम्मद अली ज़िन्ना से विवाद जनमत-संग्रह से सुलझाने की पेशक़श कीजिसे जिन्ना ने उस समय ठुकरा दिया क्योंकि उनको अपनी सैनिक कार्रवाई पर पूरा भरोसा था। जम्मू कश्मीर के महाराजा श्रीमंत हरिसिंह ने 26 अक्तूबर 1948 को भारत में कुछ शर्तों के तहत विलय संधि हस्ताक्षर कर भारत में विलय कर दिया। भारतीय सेना ने जब राज्य का काफ़ी हिस्सा बचा लिया थातब इस विवाद को संयुक्त राष्ट्र में ले गया।






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