रविवार, 15 अगस्त 2021

1989 में अफगानिस्तान से सोवियत संघ ( रूस ) भी भागा था, आज अमेरिका भी भाग रहा है -


1989 में सोवियत संघ को भी अफगानिस्तान से जाना पड़ा था। उसके बाद अफगानिस्तान में तालिबान और अलकायदा जैसे इस्लामी आतकंवादियों का स्वर्ग बन गया। इन आतंकवादियो का साथ दिया था पाकिस्तान और अमेरिका ने, सोवियत संघ की सेना को अफगानिस्तान बाहर भागने के लिए ?  अमेरिका ने पाकिस्तान के कंधे पर सवार होकर तालिबान को हथियार और पैसे से मदद किया था। कहावत कहा जाता है कि जो दुसरे के लिए कुआ खोदता है, वह भी उस कुए में गिर सकता है ऐसा ही अमेरिका के साथ हुआ। जिन आंतकियो को अमेरिका ने मदद किया था। यही से संचालित अलकायदा ने 9/11/2001 को अमेरिका के न्यूयार्क शहर में स्थित वर्ल्ड ट्रेड टावर को विमान हाइजेक कर उड़ा दिया था। इन्ही आतंकवादियो को खत्म करने के लिए अमेरिका ने अपनी सेना भेजा था। 20 वर्षों में अमेरिकी सेना के 3000 सैनिक मरे गए 14 हजार घायल हुए तीन ट्रियल डालर खर्च हुए। आज अमेरिका को अफगानिस्तान से हार कर जाना पड़ रहा है। आज ही के दिन 20 वर्ष बाद अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार की वापसी हो गई है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी तथा अन्य नेता और अधिकारीयों को अमेरिका की सेना ने तजाकिस्तान ले गए है।

1919 में अंग्रेजों से अफगानिस्तान आजाद होने के बाद खुले विचारों तथा महिलाओं की शिक्षा के साथ आधुनिक देश बनकर उभर रहा था। लेकिन अफ़ग़ानिस्तान का इतिहास संघर्ष भरा रहा है इसकी शुरूआत 1973 में तब हुई थी जब वहाँ के राजा ज़ाहिर शाह को गद्दी से हटा दिया गया था ज़ाहिर शाह अपनी आँख़ का इलाज कराने के लिए इटली गए हुए थे और उनके चचेरे भाई मोहम्मद दाऊद ने ही उनके पीछे ही बग़ावत करके राजमहल पर क़ब्जा कर लियामोहम्मद दाऊद ने अफ़ग़ानिस्तान को एक गणराज्य घोषित करते हुए, ख़ुद को राष्ट्रपति बना दिया मोहम्मद दाऊद ने अपना सत्ता केंद्र स्थापित करने के लिए वामपंथियों पर भरोसा किया और उभरते हुए पेट्रो डालर के दम से उभरते इस्लामी आंदोलन को कुचल दिया। इस्लामिक कट्टरतावाद को फैलाने के लिए बड़े इस्लामिक देश अन्य देशों के इस्लामिक गुटों को आर्थिक सहायता करते थे।   

लेकिन मोहम्मद दाऊद ने अपनी सत्ता के आख़िरी दिनों तक आते-आते अपने वामपंथी समर्थकों को सत्ता के पदों से हटाना शुरू कर दिया इसी बात से नाराज कम्यूनिस्ट ने विद्रोह कर दिया जिसे 1978 का देश के अप्रैल क्रांति के नाम से जाना जाता है अफ़ग़ानिस्तान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दौर की शुरूआत हुई। अफ़ग़ानिस्तान सहित अन्य इस्लामिक कट्टरपन्थियो द्वारा इस्लामिक देशों में ऐसे ही सत्ता में परिवर्तन हुए। इस इस्लामिक सत्ता परिवर्तनों को रोकने के लिए सोवियत संघ ने अपनी सेना को अफगानिस्तान में कम्यूनिस्ट पार्टी की सरकार बचाने के लिए भेजा। सोवियत संघ को अपनी सेना भेजना सबसे बड़ी गलती थी।       

सोवियत संघ के कम्यूनिस्ट प्रभाव के विरोधी लड़ाकों (मुजाहिदीन) ने लाल सेना को देश से भागने के लिए भारी लड़ाई की थी इसमें पाकिस्तान के कंधे का उपयोग करते हुए, अमरीका ने आर्थिक व हथियार से भरपूर सहयोग मिला। यहाँ तक की इन लड़कों को पाकिस्तान में प्रशिक्षण और हथियार साथ ही पैसा भी दिया गया सोवियत सेना ने 10 वर्ष लड़ने के बाद आर्थिक रूप से कमजोर हो गई, टूटने के कगार पर पहुच गया दस साल के संघर्ष के बाद मई 1989 में सोवियत संघ ने आख़िरकार अफ़ग़ानिस्तान से अपनी सेनाएँ हटा लीं। जैसे अमेरिका वियतनाम से भागना पड़ा। अत: 1989 में सोवियत संघ ने आख़िरकार अफ़ग़ानिस्तान से   सत्ता राष्ट्रपति नजीबुल्ला के हाथों में सौंप दिया वापस रूस चला गया नजीबुल्ला बबराक करमाल के बाद राष्ट्रपति बने थे। नजीबुल्ला बबराक करमाल के बाद राष्ट्रपति बने थेनजीबुल्ला सोवियत सेनाओं के हटने के बाद क़रीब तीन साल यानी 1992 तक सत्ता में रहे और संयुक्त राष्ट्र उस समय सत्ता के शांतिपूर्ण स्थानांतरण की कोशिश कर रहा था लेकिन पूर्व राष्ट्रपति नजीबुल्ला को तालिबान ने मार डाला। तब से लेकर अब तक अफगानिस्तान ..... 




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