शनिवार, 24 जुलाई 2021

24 जुलाई 1991 को 30 वर्ष पूर्व नरसिम्हा राव की सरकार ने नई उदारीकरण अर्थव्यवस्था की शुरुवात किया |

 


1991 लोकसभा चुनाव के बाद जून 1991 में नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने भारत में अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने के लिए वित्त मंंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी मनमोहन सिंह को। इससे पहले मनमोहन सिंह रिजर्व बैंक के गवर्नर रह चुके थे। मनमोहन सिंह को राजनीति में लाने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को जाता है उस समय अर्थव्यवस्था की हालत खराब थी। 30 साल पहले जो आर्थिक इतिहास रचा गयाउससे देश एक विशाल अर्थव्यवस्था बन गया है नरसिम्हा राव ने वित्त मंत्री के तौर पर मनमोहन सिंह को अर्थव्यस्था में सुधार के लिए बड़े बदलाव करने की छूट दी। वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने आज ही के दिन 1991 में अपना पहला बजट संसद में पेश किया था। 24 जुलाई, 1991 को चूँकि बजट पेश होना थाकिसी सांसद का ध्यान असली सुधार की ओर नहीं गया जिसने नेहरू और इंदिरा गाँधी की औद्योगिक नीति को सिरे से पलट दिया था

चन्द्रशेखर सरकार को राजीव गाँधी ने जासूसी के नाम पर गिरा दिया। तब लोकसभा का चुनाव तय हो गया। इसी आम चुनाव के दुसरे चरण में अचानक पेरुम्बदुर में एक बम विस्फोट द्वारा 21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या हो गई। ऐसे में सहानुभूति की लहर के कारण कांग्रेस को निश्चय ही लाभ प्राप्त हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं प्राप्त हुआ लेकिन वह सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। कांग्रेस ने 232 सीटों पर विजय प्राप्त की थी। गाँधी परिवार के खास सलाहकार हडसन के सलाह पर सोनिया गाँधी ने पी वी नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री के नाम को कांग्रेस पार्टी में प्रस्तावित किया जिसके बाद नरसिम्हा राव को कांग्रेस संसदीय दल का नेतृत्व प्रदान किया गया। ऐसे में उन्होंने सरकार बनाने का दावा पेश किया। सरकार अल्पमत में थी, लेकिन कांग्रेस ने बहुमत साबित करने के लायक़ सांसद जुटा लिए और कांग्रेस सरकार ने पाँच वर्ष का अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक पूर्ण किया। इनके प्रधानमंत्री बनने में भाग्य का बहुत बड़ा हाथ रहा है। 

पीवी नरसिंह राव ने देश की कमान काफी मुश्किल समय में संभाली थी। 20 जून, 1991 की शाम कैबिनेट सचिव नरेश चंद्रा नवनियुक्त प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव से मिले और बताया कि वास्तव में इससे भी ज़्यादा.खराब है  ,भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की हालत ये थी कि वो अगस्त 1990 आते आते सिर्फ़ 3 अरब 11 करोड़ डॉलर रह गया था जनवरी, 1991 में भारत के पास मात्र 89 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा रह गई थी  तो भारत के पास दो सप्ताह के आयात के लिए ही विदेशी मुद्रा बची थी 

पी वी नरसिम्हा राव जी दूरदर्शी नेता थे, उनके इरादे भारत को बड़ी और आर्थिक रूप से मजबूत राष्ट्र बनाना था  उन्होंने अपने दोस्त इंदिरा गाँधी के प्रधान सचिव रहे, पी सी अलेक्ज़ेंडर को इशारा किया था कि वो अपने मंत्रिमंडल में एक पेशेवर अर्थशास्त्री को वित्त मंत्री लेना चाहते हैं  उन्होंने रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर मनमोहन सिंह के नाम लिए थे जब मनमोहन सिंह ने नरसिंह राव के सामने एक पेज में बजट का सारांश रखा तो उन्होंने उसे बहुत ध्यान से पढ़ा था. फिर नरसिंह राव ने मनमोहन सिंह की तरफ़ देख कर कहा था, "अगर मैं यही बजट चाहता तो मैंने आपको ही क्यों चुना होता?

उस समय भारत का विदेशी मुद्रा भंडार चिंताजनक स्तर तक कम हो गया था और देश का सोना तक गिरवी रखना पड़ा था। उन्होंने रिजर्व बैंक के अनुभवी गवर्नर डॉ. मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाकर देश को आर्थिक भंवर से बाहर निकाला। 

डॉ. मनमोहन सिंह ने 24 जुलाई 1991 को वो ऐतिहासिक बजट पेश किया तो संसद में बहुत शोर-शराबा और हंगामा हुआ कई लोगों ने इसे आईएमएफ़ और वर्ल्ड बैंक के लिए पेश किया गया बजट बतायामनमोहन सिंह ने अपने भाषण का अंत विक्टर ह्यूगो के मशहूर उद्धरण से किया था, "दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ पहुंचा है दुनिया में भारत का एक बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में उदय एक ऐसा ही विचार है. पूरी दुनिया ये साफ़ तौर पर सुन ले कि भारत जाग चुका है

एक दिन के अंदर राव और मनमोहन ने मिलकर नेहरू युग के तीन स्तंभों, लाइसेंस राज, सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार और विश्व बाज़ार से भारत के अलगाव को समाप्त कर दियाजैसे ही मनमोहन सिंह ने अपना भाषण समाप्त किया दर्शक दीर्घा में बैठे बिमल जालान ने जयराम रमेश की आँखों में आँखें मिलाकर थम्स अप का इशारा किया

1991 में अपनाई गई नई आर्थिक नीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर हावी रहे लाइसेंस और परमिट के विशाल नेटवर्क का ख़ात्मा कर दिया इससे बाज़ार में नए प्लेयर्स के आने का रास्ता साफ़ हो गया और पहले से अधिक प्रतिस्पर्धी माहौल की शुरुआत हुई

दूसरा महत्वपूर्ण बदलाव राज्य और सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के प्रति मौजूद भारी पूर्वाग्रहों से दूर जाना था वास्तव में राज्य के लिए विशेष रूप से आरक्षित कई क्षेत्रों को निजी उद्यमों के लिए खोल दिया गया था

 तीसरा जो बेहद महत्वपूर्ण है उसका संबंध विदेश व्यापार से है इसमें आयात नीति को और उदार बनाया गया, आयात प्रतिस्थापन की नीति बदली गई

हम एक ऐसे स्थिति में पहुंच गए थे जहां हमारे पास केवल तीन हफ़्ते आयात करने जितना विदेशी मुद्रा भंडार उपलब्ध था सामने विदेशी कर्ज़ के भुगतान में चूक होने की पूरी संभावना दिख रही थी


 

 


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