5 अगस्त
2019 के बाद जम्मू-कश्मीर
प्रशासन ने बड़ी कार्यवाही करते हुए, 11 सरकारी कर्मचारियों को
"राष्ट्र-विरोधी" और "आतंकवाद से संबंधित" गतिविधियों में
कथित संलिप्तता के कारण बर्खास्त कर दिया। बर्खास्त
कर्मचारियों में चरमपंथी हिजबुल मुजाहिदीन के संस्थापक सैयद सलाहुद्दीन के दो बेटे भी
शामिल हैं। भारत
के संविधान के अनुच्छेद 311
(2) (सी) के तहत मामलों की जांच और सिफारिश करने के लिए जम्मू और
कश्मीर में नामित समिति ने सरकारी सेवा से बर्खास्तगी के लिए कुल 11 मामलों
की सिफारिश की। कश्मीर से अनुच्छेद 370 और धारा 35-ए को खत्म किए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन की सबसे बड़ी
कार्यवाही किया है ऐसी कार्यवाही अबतक नहीं हुआ था।
19 जनवरी 1990 का दिन भारत के इतिहास का एक ऐसा काला दिन है, जिसको याद करके से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। जब भारत के कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में मस्जिदों में ऐलान हुआ था कि मस्जिदों और चौराहों पर लाउडस्पीकर के द्वारा अनाउंस किया गया कि पंडित लोग यहां से चले जाए नहीं तो बुरा होगा। उसके बाद लाखों कश्मीरी पंडितों को देश का स्वर्ग कहे जाने वाला कश्मीर छोड़ना पड़ा था। जब संविधान भी था अदालत भी कानून भी पुलिस भी सेना भी लेकिन राजनेताओं के पास इच्छा शक्ति की कमी ही थी। इसके बाद से ही कश्मीर में लोग हत्या और रेप जैसी घटनाओं को अंजाम देने लगे। उसके बाद से आज तक कश्मीर में अशांति के बादल छाये हुए था। लेकिन 2014 में भाजपा की मोदी सरकार आने के बाद धीरे धीरे परिस्थिती बदलने लगी। 5 अगस्त 2019 के बाद अनुछेद 370 व 35 ए हटने के बाद आंतकियो संगठनों का सफाया हो चूका है। अब सरकार उन लोगों पर ध्यान दे रही है जो लोग इनकी मदद करते थे खास तौर से इन आंतकियो की मदद करते थे।
तीन अधिकारियों को बर्खास्त करने की सिफारिश
आईटीआई, कुपवाड़ा
के एक अर्दली से संबंधित थी, जो
आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) का ओवर ग्राउंड वर्कर था। कथित तौर पर, वह
आतंकवादियों को सुरक्षा बलों की आवाजाही के बारे में जानकारी प्रदान कर रहा था, आतंकवादियों
को गुप्त तरीके से गतिविधियों को अंजाम देने के लिए उकसा रहा था और उन्हें पनाह दे
रहा था।
अन्य दो अनंतनाग जिले के शिक्षक थे। सरकारी
सूत्रों ने कहा कि वे जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) और दुख्तारन-ए-मिल्लत (डीईएम) की
अलगाववादी विचारधारा में भाग लेने, समर्थन करने और प्रचार करने सहित
"राष्ट्र-विरोधी" गतिविधियों में शामिल पाए गए।समिति की दूसरी बैठक में
बर्खास्त करने के लिए अनुशंसित अन्य आठ सरकारी कर्मचारियों में जम्मू कश्मीर पुलिस
के दो कांस्टेबल शामिल हैं जिन्होंने पुलिस विभाग के भीतर से आतंकवाद का समर्थन
किया है और आतंकवादियों को आंतरिक जानकारी के साथ-साथ रसद सहायता भी प्रदान की है।
रिपोर्ट
में कहा गया है कि एक कांस्टेबल अब्दुल राशिद शिगन ने खुद सुरक्षा बलों पर हमले
किए हैं। सरकारी सूत्रों ने यह भी पुष्टि की कि हिजबुल मुजाहिदीन के संस्थापक सैयद
सलाहुद्दीन के बेटों को भी सरकारी सेवा से हटा दिया गया था। सैयद अहमद शकील और
शाहिद यूसुफ भी आतंकी फंडिंग में शामिल थे। एनआईए ने उन दोनों व्यक्तियों के आतंकी
फंडिंग ट्रेल्स को ट्रैक किया है, जो
हिजबुल मुजाहिदीन की आतंकी गतिविधियों के लिए हवाला लेनदेन के माध्यम से धन जुटाने, प्राप्त
करने, एकत्र
करने और स्थानांतरित करने में शामिल पाए गए हैं।
आतंकी लिंक वाले एक अन्य सरकारी कर्मचारी नाज़
मोहम्मद अली हैं, जो
स्वास्थ्य विभाग के एक अर्दली हैं। वह एचएम का ओवर ग्राउंड वर्कर है और उसका
आतंकवादी गतिविधियों में सीधे तौर पर शामिल होने का इतिहास रहा है। सरकारी सूत्रों
ने बताया कि दो खूंखार आतंकवादियों को उनके आवास पर पनाह दी गई थी। शिक्षा विभाग
के दो कर्मचारियों को भी बर्खास्त कर दिया गया है। सूत्रों ने कहा कि जब्बार अहमद
परे और निसार अहमद तांत्रे पाकिस्तान के प्रायोजकों द्वारा फैलाए गए अलगाववादी
एजेंडे को आगे बढ़ाने में सक्रिय रूप से शामिल थे और जमात-ए-इस्लामी विचारक हैं।
बिजली
विभाग के एक निरीक्षक शाहीन अहमद लोन को हिजबुल मुजाहिदीन के लिए हथियारों की
तस्करी और परिवहन में शामिल पाया गया है। वह पिछले साल जनवरी में श्रीनगर-जम्मू
राष्ट्रीय राजमार्ग पर दो आतंकवादियों के साथ हथियार, गोला-बारूद
और विस्फोटक ले जाते हुए पाया गया था।बर्खास्त किए गए 11 कर्मचारियों
में से 4 अनंतनाग
के, 3 बडगाम
के, 1-1 बारामूला, श्रीनगर, पुलवामा
और कुपवाड़ा के हैं।इनमें से 4 शिक्षा
विभाग में, 2 जम्मू
कश्मीर पुलिस में और 1 कृषि, कौशल
विकास, बिजली, एसकेआईएमएस
और स्वास्थ्य विभागों में कार्यरत थे।
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