15अगस्त 1948 के बाद भारत को अंगेजो ने अनेक हिस्सों में बाँटकर चले गयें | भारत के विभाजन के बाद देश के
अनेक हिस्सों में भीषण दंगा हो रहा था | पूरा राष्ट्र विभाजन के
बाद अराजकता में फंसा हुआ था | इस विकट स्थिति से निपटने में सरदार पटेल लगे हुए थे | पुरे राष्ट्र को एक
करने के लिए सरदार पटेल लगे हुए किसी भी तरह से साम दाम दण्ड भेद से भारत राष्ट्र
को एक बनाया जाया | भारत को राष्ट्र बनाने का श्रेय सरदार पटेल को जाता है। अंग्रेजों ने भारत को
आजाद करते हुए देश के लगभग 6 सौ राजे-रजवाड़ो को यह अधिकार दिया था कि वे चाहें तो भारत
या पाकिस्तान में शामिल हों और चाहे तो इन दोनों देशों में शामिल न होकर आजाद रह
सकते हैं। यदि सभी राजे-रजवाडे आजाद रहने का फैसला करते तो भारत अनेक टुकडों में
बाँट जाता । सरदार पटेल ने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति और मजबूत रणनीति के सहारे दो-तीन
राजाओं को छोड़कर सभी रियासतों के प्रमुखों को भारत में शामिल कर लिया था। परंतु
हैदराबाद और जम्मू कश्मीर को भारत में शामिल नहीं किया जा सका था। हैदराबाद को तो
सेना के सहारे भारत में शामिल कर लिया गया |
अंगेज भारत को स्वतंत्र
करने से पूर्व एक अधिनियम बनाया जैसे भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 कहा जाता है | इस अधिनियम के तहत भारत
को दो भागों में बाँट जायेगा | एक भारत डोनियम तथा दूसरा पाकिस्तान डोनियम बनाया
गया | देश के सभी रियासत को केवल इस दो डोनियम में शामिल होने कि छुट थी लेकिन
इसमें भी एक शर्त यह था कि उस राज्य कि सीमा जिस डोमिनियम में मिलेगा ,उसे उसी डोमिनियम में
मिलना होगा |
इस अधिनियम के अनुसार भारतीय
उपमहाद्वीप में जहां अंगेजो का शासन था तथा ऐसे जहां रियासत या राजा रजवाड़े राज्य
था | उस
राज्य कि राजा को निर्णय करना था की उसे की राज्य डोमिनियम में मिलना है | उसे कांग्रेस के
अध्यक्ष को सौपा जायेगा तथा जहां रियासत या राजा रजवाड़े उन्हें भारतीय या
पाकिस्तान डोमिनियम में शामिल होने की छुट थी | किसी भी राज्य की जनता को
अधिकार नहीं था की वह अपने राजा के खिलाफ जाये | इसी अधिनियम के तहत कश्मीर के
महाराजा हरिसिंह ने जम्मूकश्मीर को भारत में विलय किया था तथा इसी अधिनियम के कारण
सरदार पटेल ने हैदराबाद के निजाम को भारत में विलय के लिए मजबूर किया था | लेकिन महाराजा हरिसिंह
के साथ पाकिस्तान की सीमा थी तो सरदार पटेल उन्हें मजबूर नहीं कर सकते थे | महाराजा हरिसिंह भारत
में विलय करना चाहते थे लेकिन पंडित नेहरू जी के उपर उनको भरोसा नहीं था | यह भरोसा आखिर में सत्य
साबित हुआ |
महाराजा हरिसिंह के खिलाफ
अंगेजों तो थे अंगेजो ने शेख अब्दुल्ला को महाराजा के खिलाफ खड़ा करदिया था | पाकिस्तान के साथ 14 अगस्त, 1947 को “स्टैंडस्टिल समझौता “ अर्थात ब्रिटिश सरकार की सर्वोच्च सत्ता के समाप्त होने से उत्पन्न स्थिति में
किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ न करने का समझौता कर लिया। इस समझौते के साथ यह भी तय
किया गया कि कश्मीर की डाक-तार व्यवस्था का, जिसका जिम्मा पहले ब्रिटिश सरकार
का था, संचालन
पाकिस्तानी सरकार करती रहेगी और वही रसद व पेट्रोल की सप्लाई का भी काम करेगी। यही
समझौता पाकिस्तानी षड्यंत्रों में सहायक सिद्ध हुआ और 9 अगस्त को पुंछ में दंगा
प्रारम्भ हुआ। इसी का फायदा उठाकर 22 अक्तूबर, 1947 को पठान काबाइलियों के गिरोहों
ने कश्मीर पर उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत से आक्रमण कर दिया और 26 अक्तूबर तक वे राजधानी
श्रीनगर के निकट पहुंच गये।
पंडित नेहरू के मित्र लार्ड
माउंटबेटन ने तत्कालीन कश्मीर रियासत के प्रधानमंत्री रामचन्द्र के माध्यम से
महाराजा पर दबाव डलवाया कि उस रियासत का विलय पाकिस्तान में कर दिया जाए। महाराजा
इसके लिए भी तैयार नहीं हुए। महाराजा हरिसिंह रामचन्द्र काक के चाल को समझ गये थे | सरदार पटेल के कहने पर
महाराजा हरिसिंह ने रामचन्द्र काक को हटाकर पंजाब के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश
न्यायमूर्ति मेहर चंद महाजन को अपनी रियासत का प्रधानमंत्री बना दिया। मेहर चन्द्र
महाजन के प्रधानमंत्री बनते ही सरदार पटेल ने अपनी योजना को जम्मूकश्मीर में लागु
करने लगे | सरदार पटेल के कहने पर मेहर चन्द्र ने संघ के तात्कालिक सर संघचालक श्री गुरु
जी को महाराजा से निवेदन करने को कहा था | मेहर
चन्द्र ने श्री गुरूजी सर कहा कि- सरदार पटेल भी यही चाहते है आपके कहने से
महाराजा हरिसिंह तैयार हो सकते है | महाराजा हरिसिंह आप पर पूरा विश्वास रखते है और वह भारत में जम्मूकश्मीर विलय के लिए तैयार हो
जाएगें । यह बात पटेल जानते थे कि महाराजा हरिसिंह श्री गुरुजी का बहुत सम्मान
करते हैं। । पूज्य श्री गुरुजी ने इस राष्ट्रीय कर्तव्य की पूर्ति के लिए तैयार हो गये | वे तुरंत भारत सरकार द्वारा
विमान से पहले दिल्ली और वहां से श्रीनगर
पहुंचे। जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रांत संघचालक पंडित प्रेमनाथ डोगरा और
जम्मूकश्मीर के प्रधानमंत्री मेहर चंद महाजन ने श्री गुरुजी और महाराजा के बीच
भेंटवार्ता की व्यवस्था की। "केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार पटेल ने श्री मेहर
चंद महाजन-दीवान, जम्मू- कश्मीर रियासत-से महाराजा को हिन्दुस्थान में विलय के लिए तैयार कराने
को कहा था।"
"श्री गुरुजी दिल्ली से श्रीनगर
हवाई जहाज से दिनांक 17 अक्तूबर 1947 को पहुंचे। महाराजा हरिसिंह से श्री गुरूजी 18 को प्रात:लगभग 10.30 हुई । 18 अक्टूबर को महाराजा
हरिसिंह स्वयं महारानी तारादेवी जी के साथ स्वागत के लिए उनके कर्ण महल के द्वार
पर उपस्थित थे 7 श्री गुरूजी का 'कर्ण महलÓ
और भव्य
स्वागत हुआ | महाराजा हरिसिंह व श्री गुरूजी स्वागत के बाद चर्चा प्रांरभ हुआ | भेंट के समय 15-16 वर्षीय युवराज कर्ण
सिंह जांघ की हड्डी टूटने से प्लास्टर में बंधे वहीं लेटे थे । डॉ. कर्ण सिंह आज कांग्रेस के संसद है | श्री मेहर चंद महाजन
भेंट के समय उपस्थित थे । श्री गुरुजी ने महाराजा हरिसिंह से निवेदन किया कि- "आप हिन्दू राजा हैं, पाकिस्तान में विलय करने
से आपकी प्रजा को भीषण संकटों से संघर्ष करना होगा। यह ठीक है कि अभी हिन्दुस्थान
से रास्ते, रेल या हवाई मार्ग का कोई संबंध नहीं है, किंतु यह सब शीघ्र ही ठीक हो
जाएगा। आपका और जम्मू-कश्मीर रियासत का भला इसी में है कि आप हिन्दुस्थान में विलय
कर जाएं।"
"श्री मेहर चंद महाजन ने महाराजा से कहा कि " महाराज गुरुजी ठीक कह रहे
हैं। आपको हिन्दुस्थान के साथ मिलना चाहिए। अंत में महाराजा ने पूज्य श्री गुरुजी
को "तुस" की शाल भेंट की। जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय में पूज्य श्री
गुरुजी का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा।"
महाराजा हरिसिंह जब भारत में
विलय के लिए तैयार नहीं हुए तो अनेक राष्ट्रीय नेताओं यथा आचार्य जे.बी.कृपलानी,
सरदार पटेल,
महात्मा गांधी
इत्यादि ने महाराजा को भारत में विलय करने के लिए समझाया। महाराजा नहीं माने,
वे स्वतंत्र रहना
चाहते थे । जिस महाराजा पर देश के अनेक राष्ट्रीय नेताओं का तनिक भी असर न हुआ,
उसी महाराजा ने एक
राष्ट्रीय तपस्वी की बात मान ली।श्री गुरूजी ने अपने निस्वार्थ भाव से महाराजा को
उनके अपने राष्ट्रीयधर्म और राष्ट्र की रक्षा का महत्व को स्मरण कराया । जिसका
परिणाम यह हुआ कि महाराजा हरिसिंह जम्मूकश्मीर को
भारत में विलय के लिए तैयार हो गए।
26 अक्तूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने
जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय संबंधी पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। 27 अक्तूबर को भारत के
गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन ने इस विलय को स्वीकार कर लिया।महा राजा हरिसिंह जी
ने विलय पत्र में कहा -
" मेरे इस विलय पत्र की
शर्तें भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के किसी भी संशोधन द्वारा
परिवर्तित नहीं की जायेंगी, जब तक कि मैं इस संशोधन को इस विलय पत्र के पूरक (Instrument Supplementary) में स्वीकार नहीं करता ।"
(भारतीय स्वाधीनता अधिनियम 1947 के अनुसार शासक द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के
उपरान्त आपत्ति करने का अधिकार पंडित नेहरू, लार्ड माउण्टबेटन, मोहम्मद अली जिन्ना,
इंग्लैंड की
महारानी, इंग्लैंड
की संसद तथा संबंधित राज्यों के निवासियों को भी नहीं था।)
उसी दिन गृहमंत्री सरदार
पटेल ने भारतीय सेना को श्रीनगर के लिए
रवाना कर दिया। पाकिस्तान की सेना पीछे हटने लगी। श्रीनगर और बारामूला शहर बचा लिए
गए। पूरा कश्मीर पाकिस्तानी सेना के कब्जे से मुक्त होने ही वाला था कि जवाहरलाल
नेहरू ने शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के कहने पर एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा करके
मोर्चों पर बढ़ रहे |
भारतीय सैनिकों के पांवों में संयुक्त राष्ट्र संघ की बेडिय़ां डाल दीं। इस तरह एक
तिहाई कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया|
27 अक्तूबर, 1947 को लार्ड माउण्टबेटन ने
महाराजा हरि सिंह को लिखा 'विशेष परिस्थितियों में मेरी सरकार ने कश्मीर रियासत के
भारत डोमीनियन में शामिल होने के निर्णय को स्वीकार करने का निश्चय किया है,
इसलिए मेरी सरकार की इच्छा है
कि जैसे ही कश्मीर में कानून और व्यवस्था फिर से स्थापित हो जाए और आक्रमणकारी भगा
दिये जाएं | भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में परिवाद कर मांग की कि वह
पाकिस्तान को निर्देश दे कि वह कश्मीर में घुसपैठियों को मदद देने से बाज आए। फलत:
1 जनवरी,
1949 युद्धविराम
समझौता लागू हुआ। लेकिन अब तक पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर का लगभग 78114 वर्ग किमी क्षेत्रफल
अपने कब्जे में ले चुका था। लेकिन यूएनओ ने 'जहां हैं जैसे हैंÓ का सिद्धांत प्रतिपादित
किया और इसे नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ कण्ट्रोल) मान लिया गया।
पाकिस्तान ने यूएनओ द्वारा दिए गये नाम 'पाकिस्तान अधिकृत कश्मीरÓ (पीओके) को अपने दस्तावेजों में
आज़ाद कश्मीर (मकबूजा कश्मीर) नाम दिया और फिर वहां की सरकार ने अपनी 28 हजार वर्ग मील जमीन
पाकिस्तान को दे दी। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पाकिस्तान के 'पाक अधिकृत कश्मीर
को मान्यता देने
सम्बन्धी प्रस्ताव को नामूंजर कर देने के बावजूद भी 1963 में 4500 वर्ग मील भाग चीन को (पाकिस्तान
ने) दे दिया। लेकिन भारत आज तक इस विषय पर सख्त नहीं हो पाया। आखिर क्यों?
पू. पूज्य सुदर्शन जी अपने बौद्धिक
वर्गों में अक्सर कहा करते थे कि देश आज जितनी भी महत्वपूर्ण समस्या में नेहरूजी का
ही हाथ है | पूज्य सुदर्शन के निधन से एक दिन पूर्व रायपुर संघ कार्यालय जाग्रति
मंडल में - उन्होंने मुझे कहा था कि पंडित नेहरु जम्मूकश्मीर के बिषय पर हमेशा शेख अब्दुल्ला का साथ
दिया |
महाराजा हरिसिंह ने जब भी भारत के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से सैनिक सहायता मांगी
तो पंडित जी ने महाराजा को कहा-"पहले अपनी रियासत का भारत में विलय करके शेख
अब्दुल्ला को सत्ता सौंपें, तभी भारत की सेना को भेजा जाएगा।" शेख अब्दुल्ला अपनी हिन्दू विरोधी गतिविधियों
के कारण श्रीनगर की जेल में बंद थे। शेख अब्दुल्ला जान गया था कि अंगेज भारत छोडकर
जानेवाले है क्यों न मुस्लिम बहुल राज्य जम्मूकश्मीर को मुस्लिमों "महाराजा, कश्मीर छोड़ो
आंदोलन था। पंडित जवाहर लाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला द्वारा छेडग़ए
आंदोलन (हिन्दू) "महाराजा, कश्मीर छोड़ो" के
पक्ष में थे। पंडित नेहरू शेख ने इस आंदोलन में भाग लेने के लिए पंडित नेहरु को बुलाया था | नेहरु ने बिना सोचे इस आंदोलन में चले गये | महाराजा हरिसिंह ने पंडित नेहरू
जी से अपील कि आप इस आन्दोलन में न आये क्योकि शेख अब्दुल्ला यहाँ के मुसलमानों को
भडकाकर हिन्दुओं के खिलाफ यह आंदोलन कर रहा है | अगर शेख अपने आंदोलन में सफल हो
गया तो यहाँ पर हिंदुओं कि भारी जनहानि होगी | पंडित नेहरू जी नहीं माने शेख
अब्दुल्ला के आंदोलन में भाग लेने के लिए कश्मीर गए थे | परंतु महाराजा द्वारा कश्मीर की सीमा पर पंडित नेहरू कि
गिरफ्तार कर लिए गए। यहीं से पंडित नेहरू के मन में महाराजाहरिसिंह के लिए स्थाई
नफरत घर कर गई थी। पंडित नेहरू कि यह नफरत आज भी देश के लिए नासूर बन गयी है |