बुधवार, 16 सितंबर 2015

पेटलावद हादसा या मानवता का नरसंहार -

झाबुआ के पेटलावद में हुए हादसे में अब तक सैकड़ों जाने जा चुकी है घायलों की संख्या भी सैकडो में है। घटना के बाद पेटलावद श्मसान जैसा हो गया है। टूटी चूड़िया, बिलखते बच्चे, माताओं के रुदन, तबाह हुआ परिवार, जिनका कोई भी कसूर नहीं था। निर्दोषो को मौत के मुह में पहुचने वाले में अधिकारी, अपराधी व राजनीति करने वाले ही दोषी है । जिन पर लोगों की सुरक्षा का था जिम्मा उन्ही लोग निक्कमे निकले। स्थानीय अधिकारी और जनता आमने सामने खड़ी है। अब प्रश्न उठता है कि जनता ने स्थानीय प्रशासनीय को लिखित में जानकारी दिया था । उस समय उचित कार्यवाही क्यों नही की गई।

सत्ता के साथ ही चोर बदमाश गुंडे शामिल हो जाते है। दूसरी बात की लोकतन्त्र में चुनाव में इन गुंडे चोर बदमाशों का उपयोग यही नेता कर अपनी सत्ता चलते है। यदि जनता ने सत्ता बदला तो यही लोग सत्ता के दलालों को पैसा के दम पर तथा पुराने लालची अधिकारियों से फिर से सत्ता की गलियों में पहुँच जाते है । नेता को भी पैसा चाहिए क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए पैसा चाहिए । इन अपराधियो की पैठ फिर से सत्ता की गलियों तक हो जाती है। इसी के दम पर ये अपराधी झाबुआ कांड, नसबदी कांड और न जाने क्या क्या कांड करते है।

झाबुआ कांड भी इसी का नतीजा है। जमींन खरीद ठेकादारी, आदि में पैसा लगा और नेताओं अधिकारियों की सेवा करना । कुछ हुआ तो ऐसे अधिकारी नेता बचाव के लिए दीवार की तरह खड़े हो जाते है। झाबुआ कांड से पूर्व लिखित में शिकायत किया गया। लेकिन बीजेपी के स्थानीय नेता और अधिकारियों ने दबा दिया। यदि उसी समय कार्यवाही होती तो कम से कम 100 लोगो की जान बच जाती है। लेकिन घटना के तुरत बाद ही SDM  ने जानकारी दिया की उनके पास जिलेटिन रखने का लाइसेंस प्राप्त है इसी ही बात राज्य की DGP ने कहा कि उनके पास लायसेंस है लेकिन पहले होटल के सिलेंडर में विस्पोट हुआ । उसके बाद बाजू के गोदाम में हुआ। ऐसा इस लिए हुआ कि अपराधी नेता और अधिकारियों के गठबंधन हो तो सभी एक स्वर में बोलेंगे। 

मीडिया ने वहां के इतनी मौत पर सवेंदनशील दिखाते हुए स्थानीय लोगों से बातो को दिखाया। इस मामले में आम जनता का कहना कि जब लोगों ने प्रशासन को गोदाम में गैरकानूनी विस्फोटक रखे गये जानकारी दी गई, उचित कार्यवाही होनी चाहिए थी । लेकिन मामले को दबाया गया, इस मामले में स्थानीय नेताओं ने मामला को दबा में क्यों रूचि दिखाई । यह घटना एक प्रकार से दुर्घटना नहीं मानवता का नरसंहार है। इसका दोषी राज्य सरकार के मुखिया भी है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पेलावर दौर करने की हिम्मत दिखाई। लोगों ने घेर लिए नेता का जब आम जनता से संबध होता है जनता का कहना नेता मानता और नेता का कहना जनता भी मानती है। दौरे से शिवराज ने घटना की गंभीरता को समझा दिन भर प्रभावित लोगों से मिलते रहे। प्रभावित लोगों को मुआबजा 10 लाख कर दिया।

समस्या आर्थिक सहयोग करने या जाँच कमेटी या आयोग से नहीं हल होगा। लेकिन इस अपराध रूपी सांप का फन कुचलने से होगा। इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक काम किया है। ऐसे अपराधी, सत्ता के दलालों को सत्ता के गलियारों में धुसने पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। इनदलालों को किसी नेता या अधिकारी के साथ दिखे तो उसकी ख़ैर नहीं। दिल्ली के सत्ता से बाहर हो चुके दलालो से राज्य सरकारे को प्रेरणा लेना चाहिए। जो व्यापम के बाद अब तक शिवराज सरकार ने नहीं किया है । इस दिशा में पार्ट्री ने भी अपनी राज्य की सरकार को निर्देश नहीं दिये है।अब सवेदनशील मामले को दबाने से नहीं बल्कि दोषी अपराधियों को ढूढकर दण्डित करने से है चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में छिपे हो।

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

जीवो को भी जीने का अधिकार है


जीवो को भी जीने का अधिकार है 

 भारत के दूसरे सबसे घनी आबादी वाले राज्य महाराष्ट्र में एक जैन पर्व के दौरान मीट की बिक्री पर प्रतिबंध का आदेश आया है। लेकिन सबसे ज्यादा कांग्रेस और भाजपा विरोधी दलों ने इसके विरोध में कहना शुरू कर दिया की सरकार तय करगे कि आम लोगो के खाने पीने में क्या खाए। जब महाराष्ट्र में पहले ही बीफ रखने या बेचने पर 5 साल तक जेल की सजा का प्रावधान है। हम महात्मा गाँधी के देश में आदि चार दिन के लिए मांस पर प्रतिबन्ध लगाया तो शांतिदूत धर्म के लोगो का जीवन खतरे में हो जायेगा। हमारे राष्ट्र में अनेक धर्मो के लोग रहते है हमें उनके भी धर्म के बारे में सोचा होगा तभी धर्मनिरपेक्षता सही हो सकता है न किसी को दोष देना।  
महाराष्ट्र में वर्ष 1970 दशक से जैन संप्रदाय के पर्व पर्युशान के अवसर पर बृहनमुंबई नगर निगम (बीएमसी) दो दिन के लिए प्रतिबन्ध लगता है, लेकिन इस बार चार दिनों के लिए मांस की बिक्री पर रोक लगा दी है। जैन संप्रदाय का यह त्योहार 10 से 28 सितंबर के बीच मनाया जाना है, पहले आठ दिन महापर्व के रूप में मनाए जाते हैं। 17 सितंबर से नगर में गणेश चतुर्थी का उत्सव शुरु हो जाएगा, जिसकी पूरे महाराष्ट्र में बहुत धूम रहती है। पिछले साल भी शहर में चार दिनों के लिए मीट की बिक्री पर मनाही थी आदेश में लिखा है कि इस मीट बैन की मांग विश्वमैत्री ट्रस्ट के अहिंसा संघ की ओर से आई थी। उनके पत्र में लिखा है, जैन धर्म अहिंसा के आदर्श पर आधारित है। केवल मुंबई में रहने वाले ही नहीं बल्कि इस दौरान बाहर से भी कई जैन मुनि मुंबई आते हैं। हम अपनी बात मनवाने के लिए किस हद तक जा सकते है इसमे इतना राजनीति क्यों होना चाहिए। 
भारत के संविधान में सभी पन्थो की आदर की बात कही गयी है लेकिन क्या किसी प्रथा के आदर करने के लिए चार दिन के लिए जीवो की हत्या बंद नहीं कर देना चाहिए।  इससे कितना फर्क पड़ेगा, जब हम दुसरो के धर्म की आदर नहीं करेगे तो हमारी धरम की आदर की अपेक्षा क्यों करते है? दूसरी बात क्या किसी जीव का जीने का अधिकार नहीं क्या? केवल भोजन के लिए ही जीवो की हत्या करनी चाहिए।  हमें भी सोचना चाहिए की प्रकृति ने सभी जीवो को एक दुसरे के अनुरूप बनाया है। कही न कही हम प्रकृति के नियम को तोड़ रहे है।  प्रकृति भी हमें इसकी सजा भी दे रहा है।  हिंसा से हिंसा ही फैलता है। आज अरब देशो में हो रहे मारकाट मचा हुआ है। वहा का जीवन वहा के अनुरूप है पर भारत में तो भोजन के लिए प्रकृति रूप से फल, फुल, अन्न लेकिन हम मांस के पीछे इतना क्यों भाग रहे है।