मंगलवार, 8 सितंबर 2015

जीवो को भी जीने का अधिकार है


जीवो को भी जीने का अधिकार है 

 भारत के दूसरे सबसे घनी आबादी वाले राज्य महाराष्ट्र में एक जैन पर्व के दौरान मीट की बिक्री पर प्रतिबंध का आदेश आया है। लेकिन सबसे ज्यादा कांग्रेस और भाजपा विरोधी दलों ने इसके विरोध में कहना शुरू कर दिया की सरकार तय करगे कि आम लोगो के खाने पीने में क्या खाए। जब महाराष्ट्र में पहले ही बीफ रखने या बेचने पर 5 साल तक जेल की सजा का प्रावधान है। हम महात्मा गाँधी के देश में आदि चार दिन के लिए मांस पर प्रतिबन्ध लगाया तो शांतिदूत धर्म के लोगो का जीवन खतरे में हो जायेगा। हमारे राष्ट्र में अनेक धर्मो के लोग रहते है हमें उनके भी धर्म के बारे में सोचा होगा तभी धर्मनिरपेक्षता सही हो सकता है न किसी को दोष देना।  
महाराष्ट्र में वर्ष 1970 दशक से जैन संप्रदाय के पर्व पर्युशान के अवसर पर बृहनमुंबई नगर निगम (बीएमसी) दो दिन के लिए प्रतिबन्ध लगता है, लेकिन इस बार चार दिनों के लिए मांस की बिक्री पर रोक लगा दी है। जैन संप्रदाय का यह त्योहार 10 से 28 सितंबर के बीच मनाया जाना है, पहले आठ दिन महापर्व के रूप में मनाए जाते हैं। 17 सितंबर से नगर में गणेश चतुर्थी का उत्सव शुरु हो जाएगा, जिसकी पूरे महाराष्ट्र में बहुत धूम रहती है। पिछले साल भी शहर में चार दिनों के लिए मीट की बिक्री पर मनाही थी आदेश में लिखा है कि इस मीट बैन की मांग विश्वमैत्री ट्रस्ट के अहिंसा संघ की ओर से आई थी। उनके पत्र में लिखा है, जैन धर्म अहिंसा के आदर्श पर आधारित है। केवल मुंबई में रहने वाले ही नहीं बल्कि इस दौरान बाहर से भी कई जैन मुनि मुंबई आते हैं। हम अपनी बात मनवाने के लिए किस हद तक जा सकते है इसमे इतना राजनीति क्यों होना चाहिए। 
भारत के संविधान में सभी पन्थो की आदर की बात कही गयी है लेकिन क्या किसी प्रथा के आदर करने के लिए चार दिन के लिए जीवो की हत्या बंद नहीं कर देना चाहिए।  इससे कितना फर्क पड़ेगा, जब हम दुसरो के धर्म की आदर नहीं करेगे तो हमारी धरम की आदर की अपेक्षा क्यों करते है? दूसरी बात क्या किसी जीव का जीने का अधिकार नहीं क्या? केवल भोजन के लिए ही जीवो की हत्या करनी चाहिए।  हमें भी सोचना चाहिए की प्रकृति ने सभी जीवो को एक दुसरे के अनुरूप बनाया है। कही न कही हम प्रकृति के नियम को तोड़ रहे है।  प्रकृति भी हमें इसकी सजा भी दे रहा है।  हिंसा से हिंसा ही फैलता है। आज अरब देशो में हो रहे मारकाट मचा हुआ है। वहा का जीवन वहा के अनुरूप है पर भारत में तो भोजन के लिए प्रकृति रूप से फल, फुल, अन्न लेकिन हम मांस के पीछे इतना क्यों भाग रहे है।   
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें