शनिवार, 8 नवंबर 2014

गांवों के लिए पत्रकारिता -

गांवों के लिए पत्रकारिता -

           देश की चटुकार मीडिया गाव पर पत्रकारिता कभी नहीं किया और दिखाना भी नहीं आया। साल भर हीरों,हिरोइन के प्रेम संबध ,क्रिकेटरों के भदे फोटो, दारू, सिगरेट बिसलरी के बोतल के साथ दिया केवल भडवा गिरी रहा। लडकियों के कपडों पर रोचक कम्मेट से फुरसत नहीं मिलाता। जो समय बच गया उस समय पर केवल नेताओ पर मजाक उड़ना । देश की जनता को बताना कि हम जो कहे वही सही क्योंकि हम है लोक तन्त्र के चौथे स्तभ | जिसका वे लोग  दम?

          केवल एक मोदी ने इनकी औकात बताया। जयापुर जाकर दिखाया की अब ग्रामीण पत्रकारिता करों । गाव की प्रमुख समस्या क्या है । जब से जयापुर को गोद लेने की बात शुरू हुआ । तब से इलेक्ट्रानिक मीडिया के छुहारे स्ट्रेगर अपने लुटिया वाले कैमरे लेकर गाव में घूमना शुरू किये। गाँव की क्या समस्या है उन्हें पता ही नहीं क्योकि पत्रकारिता से नाता नहीं बल्कि दलाली करने से फुर्सत नहीं । शौचालय , पीने का पानी , स्कुल , सफाई आदि बिषय पर समाचार लिखे और दिखाई जाने लगी है। जिस गंभीरता से दिखाया जाना चाहिए था केवल कपिल कामेडी रिपोर्ट जैसा दिखाया गया। भारत अभी भी गांवों में बसता है। आदि गांवों में सुविधा दिया जाये तो शहरों में भीड़ कम होगा और गांवों का विकास होगा।

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