आज ही लगभग 100 दिनों
के बाद शाहीनबाग में धरने पर बैठे प्रदर्शनकारियों को
पुलिस ने हटा दिया है। 15 दिसंबर
से नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में तथाकथित वामपंथी, कांग्रेस तथा आप पार्टी के समर्थन से चल रहा था शाहीनबाग का आन्दोलन का
खेल को पुलिस ने खत्म कर दिया। पुरे विश्व में कोरोना वायरस के खतरे के कारण
से दिल्ली समेत पूरे भारत में लॉकडाउन तथा धारा
144 लागू किया गया है। लेकिन इसके बाद भी शाहीनबाग में प्रदर्शनकारी मंगलवार सुबह
भी प्रदर्शन की तैयारी में थे। लेकिन अब पुलिस ने वहां महिला प्रदर्शनकारियों को पूरी तरह
से हटाकर दिया है।
गृहमंत्री अमित शाह ने
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) कानून
भारत की संसद के दोनों सदनों पटल पर रखा और 12 दिसंबर को पारित तथा राष्ट्रपति महोदय ने भी अपनी मुहर लगा दे दी। नागरिकता संशोधन कानून (CAA)
के विरोध में दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के
छात्र लगातार सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे थे। नागरिकता संशोधन कानून (CAA)
लागु होने के पहला शुक्रवार 15 दिसंबर 2019 को नमाज खत्म
होने के बाद जामिया नगर के लोग सीएए के खिलाफ सड़क पर उतर आए थे। इस प्रदर्शन में जामिया मिल्लिया के छात्रों भी घुस आये, दिल्ली की सड़को पर हिंसा करना शुरू कर दिए।जामिया
मिल्लिया के छात्रों के अचानक इस प्रदर्शन ने
हिसंक रूप में बसों में तोड़फोड़ औऱ उसे जलाने लगे। पुलिस
और प्रदर्शनकारियों के बीच पथराव शुरू हो गया, जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले भी छोड़े। इतना ही नहीं पुलिस ने जामिया की लाइब्रेरी में घुसकर प्रदर्शनकारियों पर
लाठीचार्ज किया, जिसमें कई
छात्र भी घायल हुए। वामपथी मीडियाकर्मियों तथा कांग्रेस,
आप पार्टी और विपक्षी पार्टियों ने इस आन्दोलन को हाथों हाथ ले
लिया। चारों तरफ से आलोचनाओं के कारण दिल्ली
पुलिस बैकफुट पर आ गई और आगे से कोई दूसरी कार्रवाई नहीं करना चाहती थी। जामिया का हिंसक प्रदर्शन से परेशान प्रशासन ने इलाके को चारों तरफ से बंद
कर दिया था। शाम से आठ बजे से शाहीन बाग इलाके की कुछ
महिलाएं रोड पर आ कर बैठ गईं। दिल्ली पुलिस से सबसे बड़ी
गलती यही हुई कि ये महिलाएं रात में वापस चली जाएंगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह दिल्ली पुलिस की गलती ने देश के देशदोहियो को एकजुट कर दिया
16 दिसंबर की शाम में करीब 500 महिलाएं इस प्रदर्शन में शामिल हो चुकी थीं। इसी बीच जेएनयू और जामिया के
छात्र-छात्राएं शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए। इसके बाद इस प्रदर्शन की कमान महिलाओं ने अपने हाथों में ले ली और क्षेत्र के लोग वॉलिंटियर
के रूप में लग गए। शाहीन बाग के आंदोलन में 29 दिन की बच्ची को मां गोद में लेकर धरने पर बैठी नजर आई तो 80 साल की दादी इस प्रोटेस्ट का हिस्सा बनी। इतना ही नहीं शाम होते ही आसपास की महिलाएं आंदोलन स्थल पर पहुंच जाती हैं।
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