शनिवार, 5 अगस्त 2023

पोलावरम बांध, डूबा जायेगा छत्तीसगढ़ के कोंटा साथ ही 18 ग्राम पंचायत

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के कोंटा और आसपास के क्षेत्र के पोलावरम परियोजना के डुबान में आने की आशंका से स्थानीय लोगों में बने दहशत के माहौल बना हुआ है। आंधप्रदेश के गोदावरी नदी पर निर्माणाधीन पोलावरम राष्ट्रीय परियोजना जिसका मुख्य उदेश्य कृषि कार्य  हेतु है। देश की सबसे बड़ी बहुउदेश्यीय पोलावरम बांध परियोजना का निर्माण 1978 से शुरू हुआ है। छत्तीसगढ़ की सीमा से 130 किलोमीटर दूर बन रही है लेकिन छत्तीसगढ़ के 18 ग्राम पंचायत डूबने वाला है तो वही दोरना जनजाति का अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। छत्तीसगढ़ में पोलावरम परियोजना से जुड़े अधिकारियों के साथ बैठक करके बांध के बैक वाटर से सबरी नदी में आने वाली बाढ़ से कोंटा तहसील के डुबान क्षेत्र का नक्शा मांगा गया है। दहशत का माहौल तब निर्मित हुआ जब पता चला कि पोलावरम बांध का निर्माण लगभग पूरा होने की स्थिति में आ चुका है। 

   डूबेंगे सुकमा जिले के अठारह गांव-

पोलावरम परियोजना की उंचाई 45.75 मीटर से अधिक होनें पर सुकमा जिले के अठारह बसाहट क्षेत्र, राष्ट्रीय राजमार्ग का एर्राबोर से कोंटा के बीच 13 किलोमीटर का हिस्सा, पांच हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन डूब जाएगी। डूबने वाले गांवों में कोंटा और वेंकटपुरम के अलावा ढोढरा, सुन्नमगुड़, चिंताकोंटा, मंगलगुड़ा, इंजरम, फंदीगुड़ा, इरपागुड़ा, आसीरगुड़ा, पेदाकिसोली, बोजरायगुड़ा, जगावरम, बंजामगुड़ा, मेटागुड़ा, राजपेंटा, दरभागुड़ा शामिल हैं। उपरोक्त 18 गांव पांच ग्राम पंचायत और एक नगरपंचायत के तहत है। इसमें अधिकाश जनजाति की जीविकापार्जन वनौपाज पर निर्भर है तथा कुछ खेतीबाड़ी करते है। वे वनभूमि पर काबिज है लेकिन राज्यस्व विभाग के जानकारी नहीं है विस्थापित होने पर मुवाबजा और विस्थापन कैसे हो गया अभी तक सरकार की नीति नहीं बनी है।      

     दोरला जनजाति के विलुप्त होने का खतरा

तहसीलदार कोंटा की राज्य शासन को भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार पोलावरम् परियोजना के डूबान से दक्षिण बस्तर में रहने वाली दोरला जनजाति के विलुप्त होने का खतरा है, और ऐसा होने पर दोरला संस्कुति भी नष्ट हो जाएगी। दोरला जनजाति बस्तर में गोड जनजाति की उपजाति है। दोरला गोंड जाति की 56 शाखाओं में से एक है। यह जनजाति देश में सिर्फ दक्षिण बस्तर के विशेषत: कोंटा सुकमा क्षेत्र में निवास करती है। वर्ष 2010 में राजस्व विभाग द्वारा कराए गए। सर्वेक्षण के अनुसार कोंटाढोढराबंडा इंजरममूलका,किमोलीराजपेण्टाबेंकुटपुरमसुन्नमुंगडाफंदीगुड़ाइरपागुड़ा,आसीरगुड़ापेटा किसालीबोजरायगुड़ाडुबान प्रभावित गांवों मिलाकर यहां निवासरत लगभग 13 हजार आदिवासियों में अकेले 12,700 के आसपास दोरला जाति की आबादी है। नक्सलियों प्रभावित क्षेत्र होने के कारण कुछ लोग आन्धप्रदेश के कुछ जिले में सुरक्षित रहने हेतु चले गये है।  

जिस सर्वेक्षण की बात आंध्रप्रदेश सरकार द्वारा कही गई है। तत्कालीन कलेक्टर के.आर.पिस्दा द्वारा प्रमुख सचिव जल संसाधन विवेक ढांढ को पत्र लिखकर (21 अप्रैल 2006) भेजकर संदेहास्पद करार दिया जा चुका है। इधर दोरला जाति के विलुप्त होने की आशंका जताते हुए दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने 23 अगस्त को राय शासन को एक रिपोर्ट प्रेषित किया है। यह रिपोर्ट 25 अगस्त को मुख्य सचिव छ.ग. शासन की अध्यक्षता में पोलावरम् मुद्दे पर राजधानी रायपुर में हुई बैठक में भी रखी गई थी। दोरला जनजाति के विलुप्त होने की आशंका के बारे में उप क्षेत्रीय केन्द्र मानव विज्ञान सर्वेक्षण की मानव विज्ञानी डॉ. रंजूहासिनी साहू का कहना है कि दोरला ही नहीं वन क्षेत्रों में निवास करने वाली कोई भी जनजाति आसानी से विस्थापन स्वीकार नहीं कर सकती। यह उनका स्वभाव है।

  छत्तीसगढ़ राज्य ने अभी तक नुकसान का विस्तृत आंकलन नहीं किया-

बस्तर सीमा के नजदीक आंध्रप्रदेश में गोदावरी नदी पर निर्माणाधीन पोलावरम परियोजना के डूबान प्रभावित बस्तर संभाग के सुकमा जिले में सर्वे का कार्य अभी तक शुरू नहीं हुआ है। सर्वे से डुबान क्षेत्रों में पड़ने वाले प्रभाव का वन जीव जंतुओं पर होने वाले प्रभावों का भी अध्ययन होना चाहिए । साथ ही बांध के डुबान से जलमग्न होने वाले खनिज भंडारों के बारे में रिपोर्ट तैयार करने का कार्य सर्वे से होना चाहिए। विदित हो कि बांध के डूबान से सुकमा जिले के प्रमुख कस्बा कोंटा सहित अठारह बसाहट क्षेत्र आ रहे हैं। जहां की 50 हजार से अधिक की आबादी के भी प्रभावित होने की संभावना है।

 सिविल सूट

निर्माणाधीन इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना में सुप्रीम कोर्ट में दायर सिविल सूट में भाजपा सरकार संशोधन करेगी। सिविल सूट में संशोधन का फैसला 19 मई को ही राज्य सरकार ने ले लिया था। छत्तीसगढ़ शासन ने 20 अगस्त 2011 को सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार के अधीन काम करने वाली संस्था केन्द्रीय जल आयोग और आंध्रप्रदेश सरकार को पार्टी बनाया है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में दायर सिविल सूट में संशोधन प्रस्ताव पिछले एक साल से लटका पड़ा था।

सबरी का बैक वॉटर मचाएगा तबाही-

पोलावरम बांध से सबरी और इसके सहायक नालों में आने वाले बैक वॉटर से सुकमा जिले के एक बड़े भू-भाग के डूबने की आंशका बनी रहेगी। परियोजना का निर्माण छग के कोंटा क्षेत्र में डूबान का अधिकतम स्तर आरएल प्लस 150 फीट अर्थात 45.75 मीटर रखने पर सहमति हुई थी पर वर्तमान स्थिति में आरएल 177 तक पहुंचने की बात कही जा रही है और यदि ऐसी स्थिति बनती है तो सुकमा जिले के अठारह बसाहट क्षेत्र के डूबने का खतरा है। छग सरकार ने बांध की उंचाई समझौते के अनुरूप आरएल 150 फीट रखने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर कर रखी है। छग शासन का आरोप है कि परियोजना का निर्माण समझौते का उल्लंघन करके किया जा रहा है। लेकिन इस बिंदु पर भूपेश बघेल सरकार कुछ भी नहीं करती दिख रही है।




पोलावरम परियोजना के प्रभावितों को नए ठिकाने की तलाश, नगर पंचायत कोंटा सहित नौ बसाहट क्षेत्र होंगे प्रभावितपोलावरम बांध: छत्तीसगढ़ के 550 घर डूबेंगे तब जाकर बुझेगी आंध्र प्रदेश की प्यास

Polavaram project likely to submerge 276 villages in Andhra Pradesh

मंगलवार, 1 अगस्त 2023

भारतीय संसद में धर्मांतरित जनजातीय लोगों द्वारा दोहरा लाभ को लेकर विरोध

भारतीय संसद लोकसभा और राज्य सभा में कुछ दिन पूर्व मंगलवार को धर्मांतरण के मुद्दे पर जमकर चर्चा हुई। भाजपा के दो सांसदों मितेश रमेशभाई पटेल और चंद्रसेन जादोन ने धर्मांतरण इसे लेकर अपनी राय में कहा कि धर्म परिवर्तन करने वाले अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों की आरक्षण की सुविधा खत्म करने के लिए कानून बनाने की आवश्यकता है। दोनों सांसदों ने लोकसभा के सदन में शून्यकाल के दौरान धर्म परिवर्तन का विषय उठाया। राज्‍यसभा में हरकनाथ सिंह यादव ने भी बीजेपी के एक सदस्य ने धर्मांतरण का मसला उठाया। उन्‍होंने भी धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की मांग की।

मितेश रमेशभाई पटेल ने कहा, ''ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के बाद अनुसूचित जनजाति के लोगों को आरक्षण का लाभ मिलता है...धर्म परिवर्तन करने वाले लोग अल्पसंख्यक और अनुसूचित जनजाति दोनों श्रेणियों को मिलने वाले लाभ लेते हैं। इसके साथ ही इनको ईसाई मिशनरियों से भी लाभ मिलता है।'' पटेल ने कहा कि अनुसूचित जनजाति के लोगों के धर्म परिवर्तन पर उन्हें आरक्षण और दूसरे लाभ नहीं मिलें, इसको लेकर कानून बनाने की जरूरत है। 
जादोन ने भी कहा कि आदिवासी समुदाय के लोगों को धर्म परिवर्तन करने पर आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए और इसके लिए जरूरी कानूनी प्रावधान होना चाहिए।


राज्‍यसभा में भी उठाया गया मुद्दा
शून्यकाल में उत्तर प्रदेश से भाजपा के सदस्य हरनाथ सिंह यादव ने राज्‍यसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए आरोप लगाया कि विदेशी मिशनरी देश में आदिवासी और गरीब तबके के लोगों के धर्मांतरण के लिए एक ‘‘सोची समझी साजिश’’ के तहत अभियान चला रहे हैं। उन्‍होंने देश में इसकी वर्तमान स्थिति को ‘‘भयावह व चिंताजनक’’ करार दिया। इसे रोकने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक कानून बनाने की मांग की।

धर्मांतरण पर महात्मा गांधी के एक कथन का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘...मानवता की सेवा की आड़ में धर्म परिवर्तन रुग्ण मानसिकता का परिचायक है। छल प्रपंच और प्रलोभन के जरिये धर्म परिवर्तन एक अपराध है। देश में स्थिति अत्यंत भयावह और चिंताजनक है। अतः मैं देश की सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक सौहार्द, समरसता एकता और सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक कठोर, धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की मांग करता हूं।’’

देश में चल रहा धर्मांतरण कराने का अभियान

उन्होंने कहा कि देशभर में अवैध रूप से धर्मांतरण कराने का अभियान चलाया जा रहा है। वह बोले, ''विदेशी मिशनरियों की ओर से देश में आदिवासी और गरीब तबके के लोगों का धर्मांतरण करने का एक सोचा समझा अभियान चलाया जा रहा है।'' झारखंड का एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इस आदिवासी बहुल राज्य में 2001 से 2011 के बीच आदिवासी हिंदुओं की संख्या 30 फीसदी घट गई। उन्होंने कहा, ''आखिर यह 30 फीसदी आदिवासी कहां गए ?''

उन्होंने दावा किया कि पूर्वोत्तर सहित देश के अन्य हिस्सों में भी इसी प्रकार के अभियान चलाए जा रहे हैं। यादव ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर धर्मांतरण कानून बनाने के लिए संसद में पहले भी आवाज उठाई गई थी और 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उस समय की सरकार को इस सिलसिले में एक समिति बनाने का सुझाव दिया था। 
उन्होंने कहा, ‘‘...लेकिन अल्पसंख्यक मतों के लालच में कुछ नहीं किया गया। देश में बहुसंख्यक समाज असुरक्षित है।’’

हिंदुओं की स्थिति बुरी
एक रिपोर्ट हवाला देते हुए यादव ने कहा कि पिछले 25 वर्षों में हरियाणा के मेवात क्षेत्र में 180 से अधिक गांव हिंदू विहीन हो गए हैं और कश्मीर से तीन लाख से अधिक हिंदुओं को प्रताड़ित कर वहां से भगा दिया गया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के कैराना से हिंदुओं के पलायन करने का मुद्दा पूरे देश में आज भी चर्चित है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2004 मेें केरल सरकार व अन्य बनाम चंद्रमोहन व अन्य वाद के आलोक कहा है कि धर्मांतरित जनजाति समुदाय के सदस्य, जिन्होंने जनजातीय परंपरा, रीति- रिवाज, पूजा- अनुष्ठान त्याग दिया है और विवाह, विरासत, उतराधिकार के प्रथागत सामाजिक नियम (कस्टमरी लॉ) का अनुपालन नहीं करते, उन्हें जनजाति का संवैधानिक लाभ नहीं दिया जाना चाहिए़ यह सिर्फ 1932 के खतियान के आधार पर न दिया जाये़

अनुसूचित जनजाति समाज के पाहन, पुजार, बैगा, मांझी, नाइकी, जो धार्मिक- सामाजिक पूजा अनुष्ठान कार्य कराते थे, उन्हें जीवनयापन के लिए पारंपरिक सामाजिक जमीन दी गयी थी़ धर्मांतरित होने के बाद भी कुछ लोगों का उस भूमि पर आज भी कब्जा है़ ऐसे मामलों में गुवाहाटी हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आलोक में ऐसी जमीन कब्जा मुक्त करायी जाये और इसे वर्तमान सामाजिक- धार्मिक जनजातीय पुरोहितों को दी जाये़

इसके अतिरिक्त, गैर जनजातीय पुरुषों से विवाह करनेवाली कई जनजातीय महिलाएं / युवतियां पंचायतीराज व्यवस्था सहित अन्य पदों के चुनावों में जनजातीय आरक्षण का लाभ ले रही है़ं। ऐसी महिलाओं के नाम पर गैर जनजाति पुरुष भी बड़े पैमाने पर भू-संपत्ति का क्रय कर हड़प रहे है़ं। इसे तत्काल रोका जाये़ विवाह बाद जनजातीय महिला का जाति प्रमाण पत्र पति के नाम सहित बनाना अनिवार्य हो़ झारखंड में सीएनटी व एसपीटी एक्ट लागू है़

इसके बावजूद अनुसूचित जनजाति की जमीन गैर जनजाति के दबंग व दलालों के पास जा रही है़ आज सरकार के बाद सबसे अधिक जमीन ईसाई मिशनरियों के पास है़ यह जमीन उनके पास कैसे गयी, इसकी जांच करा कर इसे मूल रैयतों को वापस करायी जाये़ प्रतिनिधिमंडल में डॉ सुखी उरांव, मेघा

1947 में भारत स्वतंत्र होने के पश्चात देश में 700 से अधिक जनजातियों के सुरक्षा, संरक्षण विकास और उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण और अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया लेकिन इन सुविधाओं का लाभ उन जनजाति के स्थान पर, वे लोग उठा रहे हैं जो अपनी जनजाति छोड़कर ईसाई या मुसलमान बन गए हैं संविधान के अनुसार जनजातीय समुदाय का अर्थ भौगोलिक दृष्टि विशिष्ट संस्कृति बोली भाषा परंपरा एवं न्याय व्यवस्था सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन सीधा सरल सहज स्वभाव के कारण इन जातियों को अनुसूचित जनजाति किस श्रेणी में रखा गया है उनके लिए न्याय और विकास की सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण तथा अन्य विशेष प्रावधान किया गया है। जनजातियों को इन सुविधाओं को अपनी अपनी संस्कृति प्राचीन परंपरा अपने पूर्वजों द्वारा विकसित मान्यताओं की सुरक्षा करते हुए सशक्त बनाने हेतु दिए गए थे लेकिन कुछ ईसाई और मुसलमान समूह द्वारा इन जनजातियों को लाभ और अशिक्षा के कारण मैं तांत्रिक कर अपनी संस्कृति परंपरा आस्था त्याग कर ईसाई या मुसलमान बन चुके हैं वही जनजाति ढोंगी कर बाकी जनजातियों का आरक्षण का लाभ ले रहे हैं तथा तथा अल्पसंख्यक का भी लाभ ले रहे हैं ऐसे लोग दोहरा लाभ लेने के कारण अब इन्हें धर्मांतरण लोगों को जनजाति से लाभ से वंचित किया जाने को लेकर मांग उठ रही है अनुसूचित जाति हेतु वर्तमान धारा 341 के प्रावधानों को अनुसार जनजाति समाज हेतु ऐसे कानून बने हैं ऐसा नहीं है कि इससे पूर्व 1967 में रांची के रांची के स्वर्गीय कार्तिक उरांव ने 235 सांसदों के हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दिया था लेकिन तत्कालीन इंदिरा गांधी ने दुर्भावनापूर्ण इसे कानून नहीं बनने दिया यह मांग वर्षों तक देवी थी लेकिन आज के समय

अनुसुचित जाति को एस.सी, कापे अधिनियम 1950 धारा 341,कंडिका 2 के अनुसार एक प्रकार का सैवाधानिक संरक्षण प्राप्त है। जिसके अनुसार अनुसूचित जनजातियों का कोई भी सदस्य यदि ईसाई या मुसलमान बनता है, तो उसका आरक्षण का लाभ नहीं मिलता। इस प्रकार का सैंवधानिक संरक्षण जनजातियों को भी मिले। इस दृष्टि से केंद्रीय मंत्री रहते हुए उन्होंने 348 सांसदों के हस्ताक्षर युक्त एक ज्ञापन, तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय. इंदिरा गांधी को दिया था। किन्तु ईसाईयों के दबाव में आकर 348 सांसदों के ज्ञापन को अस्वीकार किया गया।

 



धर्म बदला तो रिजर्वेशन से धोना पड़ेगा हाथ! कानून बनाने के लिए उठी संसद में आवाज