भारतीय संसद लोकसभा और राज्य सभा में कुछ दिन पूर्व मंगलवार को धर्मांतरण
के मुद्दे पर जमकर चर्चा हुई। भाजपा के दो सांसदों मितेश रमेशभाई पटेल और चंद्रसेन
जादोन ने धर्मांतरण इसे लेकर अपनी राय में कहा कि धर्म परिवर्तन करने वाले
अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों की आरक्षण की सुविधा खत्म करने के लिए कानून
बनाने की आवश्यकता है। दोनों सांसदों ने लोकसभा के सदन में शून्यकाल के दौरान धर्म
परिवर्तन का विषय उठाया। राज्यसभा में हरकनाथ सिंह यादव ने भी बीजेपी के एक सदस्य
ने धर्मांतरण का मसला उठाया। उन्होंने भी धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की मांग
की।
मितेश रमेशभाई पटेल ने कहा, ''ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के बाद
अनुसूचित जनजाति के लोगों को आरक्षण का लाभ मिलता है...धर्म परिवर्तन करने वाले
लोग अल्पसंख्यक और अनुसूचित जनजाति दोनों श्रेणियों को मिलने वाले लाभ लेते हैं।
इसके साथ ही इनको ईसाई मिशनरियों से भी लाभ मिलता है।'' पटेल ने कहा कि अनुसूचित जनजाति के लोगों
के धर्म परिवर्तन पर उन्हें आरक्षण और दूसरे लाभ नहीं मिलें, इसको लेकर कानून बनाने की जरूरत है। जादोन ने भी कहा कि आदिवासी समुदाय के लोगों को धर्म परिवर्तन करने पर
आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए और इसके लिए जरूरी कानूनी प्रावधान होना चाहिए।
राज्यसभा में भी उठाया गया मुद्दा
शून्यकाल में उत्तर प्रदेश से भाजपा के
सदस्य हरनाथ सिंह यादव ने राज्यसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए आरोप लगाया कि
विदेशी मिशनरी देश में आदिवासी और गरीब तबके के लोगों के धर्मांतरण के लिए एक ‘‘सोची समझी साजिश’’ के तहत अभियान चला रहे हैं। उन्होंने देश में इसकी वर्तमान स्थिति को ‘‘भयावह व चिंताजनक’’ करार दिया। इसे रोकने के लिए
राष्ट्रीय स्तर पर एक कानून बनाने की मांग की।
धर्मांतरण पर महात्मा गांधी के एक कथन का
उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘...मानवता की सेवा की आड़ में धर्म परिवर्तन रुग्ण मानसिकता का परिचायक है।
छल प्रपंच और प्रलोभन के जरिये धर्म परिवर्तन एक अपराध है। देश में स्थिति अत्यंत
भयावह और चिंताजनक है। अतः मैं देश की सामाजिक सुरक्षा, सामाजिक
सौहार्द, समरसता एकता और सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर
एक कठोर, धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की मांग करता हूं।’’
देश में चल रहा
धर्मांतरण कराने का अभियान
उन्होंने कहा कि देशभर में अवैध रूप से धर्मांतरण कराने का अभियान चलाया जा
रहा है। वह बोले, ''विदेशी
मिशनरियों की ओर से देश में आदिवासी और गरीब तबके के लोगों का धर्मांतरण करने का
एक सोचा समझा अभियान चलाया जा रहा है।'' झारखंड का एक उदाहरण देते हुए उन्होंने
कहा कि इस आदिवासी बहुल राज्य में 2001 से 2011 के बीच आदिवासी हिंदुओं की संख्या 30
फीसदी घट गई। उन्होंने कहा, ''आखिर यह 30
फीसदी आदिवासी कहां गए ?''
उन्होंने दावा किया कि पूर्वोत्तर सहित
देश के अन्य हिस्सों में भी इसी प्रकार के अभियान चलाए जा रहे हैं। यादव ने कहा कि
राष्ट्रीय स्तर पर धर्मांतरण कानून बनाने के लिए संसद में पहले भी आवाज उठाई गई थी
और 1995 में सुप्रीम कोर्ट
ने भी उस समय की सरकार को इस सिलसिले में एक समिति बनाने का सुझाव दिया था। उन्होंने कहा, ‘‘...लेकिन
अल्पसंख्यक मतों के लालच में कुछ नहीं किया गया। देश में बहुसंख्यक समाज असुरक्षित
है।’’
हिंदुओं की स्थिति बुरी
एक रिपोर्ट हवाला देते हुए यादव ने कहा कि
पिछले 25 वर्षों में हरियाणा
के मेवात क्षेत्र में 180 से अधिक गांव हिंदू विहीन हो गए
हैं और कश्मीर से तीन लाख से अधिक हिंदुओं को प्रताड़ित कर वहां से भगा दिया गया।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के कैराना से हिंदुओं के पलायन करने का मुद्दा पूरे
देश में आज भी चर्चित है।
सुप्रीम कोर्ट
ने 2004 मेें केरल सरकार व अन्य बनाम चंद्रमोहन
व अन्य वाद के आलोक कहा है कि धर्मांतरित जनजाति समुदाय के सदस्य, जिन्होंने जनजातीय परंपरा, रीति- रिवाज, पूजा- अनुष्ठान त्याग दिया है और विवाह, विरासत,
उतराधिकार के प्रथागत सामाजिक नियम (कस्टमरी लॉ) का अनुपालन नहीं
करते, उन्हें जनजाति का संवैधानिक लाभ नहीं दिया जाना चाहिए़
यह सिर्फ 1932 के खतियान के आधार पर न दिया जाये़
अनुसूचित जनजाति समाज के पाहन, पुजार, बैगा, मांझी, नाइकी, जो धार्मिक-
सामाजिक पूजा अनुष्ठान कार्य कराते थे, उन्हें जीवनयापन के
लिए पारंपरिक सामाजिक जमीन दी गयी थी़ धर्मांतरित होने के बाद भी कुछ लोगों का उस
भूमि पर आज भी कब्जा है़ ऐसे मामलों में गुवाहाटी हाइकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के
निर्णय के आलोक में ऐसी जमीन कब्जा मुक्त करायी जाये और इसे वर्तमान सामाजिक-
धार्मिक जनजातीय पुरोहितों को दी जाये़
इसके अतिरिक्त, गैर जनजातीय पुरुषों से विवाह करनेवाली कई जनजातीय महिलाएं / युवतियां
पंचायतीराज व्यवस्था सहित अन्य पदों के चुनावों में जनजातीय आरक्षण का लाभ ले रही
है़ं। ऐसी महिलाओं के नाम पर गैर जनजाति पुरुष भी बड़े पैमाने पर भू-संपत्ति का
क्रय कर हड़प रहे है़ं। इसे तत्काल रोका जाये़ विवाह बाद जनजातीय महिला का जाति
प्रमाण पत्र पति के नाम सहित बनाना अनिवार्य हो़ झारखंड में सीएनटी व एसपीटी एक्ट
लागू है़
इसके बावजूद अनुसूचित जनजाति की जमीन गैर
जनजाति के दबंग व दलालों के पास जा रही है़ आज सरकार के बाद सबसे अधिक जमीन ईसाई
मिशनरियों के पास है़ यह जमीन उनके पास कैसे गयी, इसकी जांच करा कर इसे मूल रैयतों को वापस करायी जाये़ प्रतिनिधिमंडल में
डॉ सुखी उरांव, मेघा
1947 में भारत स्वतंत्र होने के पश्चात देश में 700 से अधिक जनजातियों के सुरक्षा, संरक्षण विकास और उन्नति के लिए संविधान निर्माताओं ने आरक्षण और अन्य सुविधाओं का प्रावधान किया। लेकिन इन सुविधाओं का लाभ उन जनजाति के स्थान पर, वे लोग उठा रहे हैं जो अपनी जनजाति छोड़कर ईसाई या मुसलमान बन गए हैं। संविधान के अनुसार जनजातीय समुदाय का अर्थ भौगोलिक दृष्टि विशिष्ट संस्कृति बोली भाषा परंपरा एवं न्याय व्यवस्था सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन सीधा सरल सहज स्वभाव के कारण इन जातियों को अनुसूचित जनजाति किस श्रेणी में रखा गया है। उनके लिए न्याय और विकास की सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण तथा अन्य विशेष प्रावधान किया गया है। जनजातियों को इन सुविधाओं को अपनी अपनी संस्कृति प्राचीन परंपरा अपने पूर्वजों द्वारा विकसित मान्यताओं की सुरक्षा करते हुए सशक्त बनाने हेतु दिए गए थे। लेकिन कुछ ईसाई और मुसलमान समूह द्वारा इन जनजातियों को लाभ और अशिक्षा के कारण मैं तांत्रिक कर अपनी संस्कृति परंपरा आस्था त्याग कर ईसाई या मुसलमान बन चुके हैं। वही जनजाति ढोंगी कर बाकी जनजातियों का आरक्षण का लाभ ले रहे हैं तथा तथा अल्पसंख्यक का भी लाभ ले रहे हैं। ऐसे लोग दोहरा लाभ लेने के कारण अब इन्हें धर्मांतरण लोगों को जनजाति से लाभ से वंचित किया जाने को लेकर मांग उठ रही है। अनुसूचित जाति हेतु वर्तमान धारा 341 के प्रावधानों को अनुसार जनजाति समाज हेतु ऐसे कानून बने हैं ऐसा नहीं है कि इससे पूर्व 1967 में रांची के रांची के स्वर्गीय कार्तिक उरांव ने 235 सांसदों के हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दिया था। लेकिन तत्कालीन इंदिरा गांधी ने दुर्भावनापूर्ण इसे कानून नहीं बनने दिया यह मांग वर्षों तक देवी थी लेकिन आज के समय
अनुसुचित जाति को एस.सी, कापे अधिनियम 1950 धारा 341,कंडिका 2 के अनुसार एक प्रकार का सैवाधानिक संरक्षण प्राप्त है। जिसके अनुसार अनुसूचित जनजातियों का कोई भी सदस्य यदि ईसाई या मुसलमान बनता है, तो उसका आरक्षण का लाभ नहीं मिलता। इस प्रकार का सैंवधानिक संरक्षण जनजातियों को भी मिले। इस दृष्टि से केंद्रीय मंत्री रहते हुए उन्होंने 348 सांसदों के हस्ताक्षर युक्त एक ज्ञापन, तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय. इंदिरा गांधी को दिया था। किन्तु ईसाईयों के दबाव में आकर 348 सांसदों के ज्ञापन को अस्वीकार किया गया।
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