गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

16 दिसंबर यानी विजय दिवस , 16 दिसंबर, 1971 को भारत ने पाकिस्तान को हराकर इतिहास रचा ......

            
             


भारत की स्वत्रंतता की आन्दोलन ने ब्रिटिश सरकार को हिला दिया द्वतीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों की बुरी तरह से हार के बाद अब उन्हें भारत में शासन करना कठिन हो गया अत भारत को 200 वर्षो की परतंत्रता से ब्रिटिश सरकार मुक्त करना चाहती थी लेकिन भारत की सत्ता किसे दिया जाये, उस समय कांग्रेस देश में सबसे बड़ी पार्टी थी। इस सन्दर्भ में अंग्रेजों ने एक चाल चली भारत की दो समुदाय में विभाजन किया जाये। उस समय मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना के तरफ से मुसलमानों के लिए अलग देश पाकिस्तान की माँग को समर्थन करना शुरू किया क्योंकि भारत में हिदू और मुस्लिम दो अधिक जनसँख्या वाले समुदाय रहते थे। 1947 में अंग्रेजों की यह चाल सफल रहा मोहम्मद अली जिन्ना की माँग पर आबादी के अनुसार मुस्लिम बहुमत वाले क्षेत्र को पाकिस्तान देश तथा हिन्दू बहुल को भारत बना दिया लेकिन पाकिस्तान दो हिस्सों में शुरू से ही बंट गया था        

ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत भारतवर्ष का जनसंख्या के अनुसार से  हिन्दू और मुस्लिम द्विराष्ट्र सिध्दांत के आधार पर विभाजन किया जाना तय हुआ। अतः भारत देश हिन्दूओ के लिए तथा नया देश पाकिस्तान में मुस्लिमों के लिए दो देश में विभाजन किया गया था, पहला भारत बना दूसरा पाकिस्तान बना। पाकिस्तान के गठन के समय भारत के पश्चिमी क्षेत्र में सिंधीपठानबलोचपंजाब और पश्तूनी थी, इसे पश्चिम पाकिस्तान कहा जाता था। जबकि भारत के पूर्व हिस्से में बंगाली बोलने वालों का बहुमत था, इसे पूर्व पाकिस्तान कहा जाता था। पूरबी पाकिस्तान भाग में राजनैतिक चेतना की कभी कमी नहीं रही लेकिन पूर्वी हिस्सा पाकिस्तान की सत्ता में कभी भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल सकाहमेशा राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा। यहाँ तक की सभी को उर्दू पढ़ना, लिखना और बोलने का आदेश दिया गया था। बंगाली भाषा की उपेक्षा को लेकर पूर्वी पाकिस्तान में भारी विरोध हो रहा था इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबर्दस्त नाराजगी थी। इसी नाराजगी के परिणाम स्वरुप उस समय 1969 में पूर्व पाकिस्तान के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही स्वायत्तता की मांग की। 1970 में हुए आम चुनाव में पूर्वी क्षेत्र में शेख की पार्टी ने जबर्दस्त विजय हासिल की उनके दल ने पाकिस्तान के नेशनल असेंबली में बहुमत भी हासिल किया। लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के बजाय तत्कालीन राष्ट्रपति याहिया खान ने शेख मुजीबुर्रहमान को  जेल में डाल दिया गया। यहीं से 1971 में पाकिस्तान के विभाजन की नींव रखी गई। 

पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली बोलने वाले पर अत्याचार किया जाने लगा। बंगाली भाषी लोगों को पकड़कर जेल भेजना तथा गोली मार का 3 लाख लोगों का नरसंहार किया जाने लगा। उनकी महिलाओं के साथ तो सबसे बुरा बर्ताव किया गया, महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार कर हत्या किया गया खासकर हिन्दुओं के साथ तो बहुत ही जघन्य अपराध किया गया था। यह सब पाकिस्तानी सेना और वहाँ की पुलिस कर रही थीं। 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के कई हिस्से में जबर्दस्त लगभग 3 लाख लोगों का नरसंहार हो चूका था। इससे पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी पाकिस्तान क्षेत्र के निवासियों में जबर्दस्त रोष हुआ और उन्होंने अलग भारत के समर्थन में मुक्तिवाहिनी सेना बना ली। पाकिस्तानी फौज का निरपराधहथियार विहीन लोगों पर भारी अत्याचार जारी रहा। बंगला भाषी लोग अपनी जान बचाने के लिए भारत के पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में 10 लाख शरणार्थी पहुँचने लगे जिससे भारत की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी थी। भारत के तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से लगातार अपील की कि पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति सुधारी जाएलेकिन किसी देश ने ध्यान नहीं दिया। जब वहां के विस्थापित लगातार भारत आते रहे तो अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देकरबांग्लादेश को आजाद करवाने का निर्णय लिया। 

25 अप्रैल 1971 को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कैबनेट मीटिंग बुलाई इसमें तत्कालीन थलसेनाध्यक्ष सैम मानिकाशा को भी बुलाया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने थलसेनाध्यक्ष सैम मानिकाशा से पूर्वी पाकिस्तान की हालत से सेना और पुलिस द्वारा हो रहे अत्याचार, जनता पर हिंसा तथा आ रहे पूर्वी पाकिस्तान से शरणार्थी से उपजा समस्या से अवगत कराकर, सैम को पूर्वी पाकिस्तान में भारतीय सेना को दाखिल देने को कहा। थलसेनाध्यक्ष सैम मानिकाशा ने इंदिरा जी को सलाह दिया की यदि तुरंत युद्ध किया गया, तो हमारी हार होगी यदि योजना बनाकर, तैयारी से युद्ध किया गया तो जीत हमारी पक्का होगा। क्योकि भारतीय सेना 10 वर्षो में लगातार तीसरा युद्ध लड़ने के लिए तैयार नहीं है। सैम ने आगे कहा कि अभी लड़ाई शुरू होगी तो जून का महिना आ जायेगा यह महिना बरसात का होता है इस महीने में पूर्वी पाकिस्तान के कई भागों में भारी बरसात से टापू बन जाते है उस समय हमारी वायुसेना भी काम नहीं आयेगी प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने सैम मानिकशा की बात समझ गई और उन्होंने निर्देश दिये की भारतीय सेना पुरी तैयारी के साथ जबाबी कार्यवाही करे।भारतीय थलसेनाध्यक्ष सैम मानिकाशा की बात को श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने ठीक से समझा और उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान की समस्या को राजनीतिक कूटनीतिक से हल तथा भारतीय सेना हथियारों से लड़ेगी। इंदिरा गाँधी ने अपने मित्र राष्ट्रों के साथ मिलकर पूर्वी पाकिस्तान में हो रहे नरसंहार से अवगत कराया था सोवियत संघ से 20 सूत्रीय मुद्दे पर समझौता किया  वही भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में सैम मानिकशा के आदेश से मुक्तिवाह्नी सेना में स्थानीय लोगों को भर्ती कर उन्हें सैनिक की तरह प्रशिक्षण दिया जा रहा था की पूर्वी पाकिस्तान की सेना और पुलिस लड़ते रहे 

3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने कश्मीर से लेकर गुजरात के सभी हवाई अडडा पर हमला कर दिया। भारतीय सेना और भारत सरकार ने जिस समय तथा पाकिस्तान की गलती का इंतजार कर रहा था वह मौका पाकिस्तान ने हमला करके दे दिया भारतीय सेना ने दोनों तरफ पूर्वी पाकिस्तान एवं पश्चिम पाकिस्तान पर जबरदस्त हमला कर दिया था। भारतीय सेना को तुरन्त जबाब देना पड़ा। 



थल सेना ने पश्चिमी छोर से जबरजस्त जबाबी कारवाही शुरू किया। पाकिस्तान के पजाब सिंध कश्मीर के इलाके के 5 हजार वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर लिया था। जैसे लोंगोवाल फ्वाइत् पर पाकिस्तान की ओर से हमला हुआ द्य भारतीय सेना पहले से तैयार बैठी थी 23 पंजाबी रेजिमेंट के 120 जवानों ने मुकाबला किया द्य बहादुरी के साथ रात भर पाकिस्तानी सेना को रोक कर राखा। पाकिस्तानी सेना में 3000 सेना 58 टैक के साथ थी। सुबह होते ही भारतीय एयर र्फोर्स  से पाकिस्तानी सेना 52 टैक को उड़ दिया 6 टैक को कब्जा कर लिया। इसके हीरो ब्रिगेडियर कुलदीपसिंह थे।

इधर पूर्वी कमान प्रमुख जे स जैकब ने सीधा ढाका पहुँचकर उनके साथ मात्र 3000 सेना थी। उहोने ने कूटनीति का सहारा लेकर नियाजी के पास जाकर कहा की आप लोग समर्पण करोआप और  आप के आदमी की सुरक्षा की गारंटी लेते है। 120 उसके बाद ऐसा नहीं किया तो सुरक्षा की गारंटी नहीं होगी और तुम्हे 30 मिनट का समय देता हूँ। स्वयं जाकर सरेंडर के कागज तैयार किया और  तीन बार पुनः पूछा और नियाज ने स्वीकार कर लिया। उस समय जिया के पास 30 हजार सेना थी। इस प्रकार 93 हजार सैनिको के साथ  आत्मसमर्पण किया।

अंत्यतः 16 दिसंबर 2971 कोनौ महीनों तक चले युद्ध के पश्चात्पूर्वी पाकिस्तान ने बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्रता घोषित कर दी।

16 दिसम्बर 1971 को भारत ने पाकिस्तान को हारकर इतिहास रचा था द्य 93 हजार पाकिस्तान की  सेना को घुटने टेकने के किए मजबूर कर दिया। उसके बाद उदय हुआ बाग्लादेश का ....



 (फोटो कैप्शन : 1971 में पाकिस्तान पर ऐतिहासिक जीत के बाद पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाजी ने जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने समर्पण के दस्तावेजों पर दस्तखत किए। तस्वीर में (दायीं ओर) खड़े हैं जेएफआर जैकब)

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