बुधवार, 20 मार्च 2013

निर्मल यमुना जी



       उत्तरप्रदेश तथा हरियाण से यमुना बचाओं दल ने मथुरा से दिल्ली की घेराबंदी शुरू की तो ऐसा ही कुछ हुआ कि -सोई सरकार जागकर दिखावटी कारवाही करने लगी । यमुना की स्वच्छता ज्यादा पानी छोड़ने की मांग लिए आस्था की हिलोर के साथ जन ज्वार उमड़ पड़ा। डरपोक सरकार ने दिखाने के लिए तो सड़ती-मरती यमुना में ओखला बैराज से अचानक पानी छोड़ा शुरू किया जाने लगा।

       यमुना जी स्वच्छ निर्मल प्रवाह सदा बना ठीक रहे इसके लिए कठोर नीति हो, जो यह तय करना जरूरी है। वजीराबाद बैराज के बाद यमुना का बहाव कम से कम दस क्यूबिक मीटर प्रति सैकंड होना चाहिए जबकि रह जाता है सिर्फ 2-3 क्यूबिक मीटर प्रति सैकंड। सरकार को बताना होगा कि 1993 से नदी में जहर घोलने और सफाई के नाम पर 5000 करोड़ों रुपये पीने वालों को अब तक क्यों खुला छोड़ा गया?

               देश की राजधानी दिल्ली है देष के लोग यमुना का हिसाब दिल्ली से मांग रहे है। यह जवाबदेही इसलिए भी बनती है क्योंकि क्षेत्र के हिसाब से देश का सबसे बड़ा शहर दिल्ली ने यमुना की जान लेने में भी सबसे आगे है। राजधानी की 70 प्रतिशत प्यास यमुना बुझाती है। बदले में यमुना को इसके कुल प्रदूषण का 80 प्रतिशत जहर दिल्ली से मिलता है।

               यह है पढ़े-लिखे लोगों और चैतरफा विकास का दम भरने वाले नीति-निर्माताओं का  व्यवहार एक पवित्र नदी। शहरी समाज तो आस्था की इस अविरल धारा से कटा हुआ है, दारू बनाने वाली कंपनी को पानीं लुटाने वाली यमुना में जल नही छोडते है बल्कि अधिक मात्रा प्रदुषण स्तर से तेरह गुना ज्यादा औद्योगिक कचरा और रासायनिक जहर इस नदी में छोडा जा रहा है।

               पिछले वर्ष में अहमदाबाद गया था और साबरमति पर निर्माण समाप्ति की ओर था । जिस नदी पर के किनारे गांधी जी का आश्रम है कुछ वर्ष पुर्व गटर का पानी बहता था और गर्मी में धुल उडने वाली नदी का कायाकल्प बदल गया। 2004 में 1180 करोड.की सबारमती योजना बनाकर 9 वर्षों में दुनिया की सुन्दर नदी बना दिया गया। साबरमती में जल लाने के लिंए नर्मदा जी स जल को नहरो द्वारा पहुचाया गया। साबरमती नदी आज पुन जीवित हो उठी है । इसका श्रेय अहमदावाद लोगों को जाता है कि उन्होने इस काम के लिए पुरा गुजरात सहयोग किया विरोध कभी नही किया । गटर के पानी को फिल्टर प्लाट तक मोडा गया अब स्वच्छ कर छोडा जाता है । दोनों किनारे पर सुन्दर दिखने हेतु वृक्ष रोपड किया जा रहा है । आज साबरमती की तुलना टेम्प नदी से होती  है |

  

        क्या दिल्ली के लोगों ऐसा प्रयास यमुना जी स्वच्छ बहते रहे। अबतक 5000 करोड खर्च करने के बाद यमुना का पानी साफ नही हो क्यों कि -संयंत्र जरूरत के हिसाब से लगे ही नहीं। जो लगे भी हैं उनका हाल यह कि क्षमता का आधा इस्तेमाल भी हो नहीं पाता। शहर की अस्सी प्रतिशत गंदगी से अटे बड़े-बड़े बजबजाते नाले सीधे यमुना में जा मिलते है तो कैसे होगा हो निर्मल यमुना। साबरमती के लिए जो प्रयास किया गया है ऐसा ही प्रयास यमुना के लिए हो सकता है ।

 

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

सरगुजा में ईसाई मिशनरी से बढ़ता खतरा


        छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग जनजतीय बहुल क्षे़त्र होने के कारण यहां पर हजारों वर्षो से वनवासी रह रहे। वनवासियों को ईसाई मिशनरी द्वारा बहला फूसलाकर ईसाई बनाने का कार्य लगभग 100 वर्षों से चला रही हैं । लेकिन ईसाई मिशनरी अपने धर्मपरिवर्तन के काम में असफल होने पर उनके पादरियों और ननों द्वारा किसी भी प्रकार से विवाद खडा किया जाता रहा है। ईसाई मिशनरियों का मुख्य काम है धर्म परिवर्तन करना है, किसी भी प्रकार से ये लोगों को धोखे या प्रलोभन देकर धर्मातरण करते हैं। ईसाई मिशनरी सेवा के आड़ में चुपचाप अपना खेल खेलते है । जगह जगह पर स्कूल कालेज अस्पताल खोलते है़। स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे को आसानी से अपना शिकार बनाते है। बच्चों के बालमन पर किसी प्रकार से ईसाई बनाने का प्रभाव डालते है। जब कोई बच्चा इनके चगुल में नही फॅसता है, तो उस पर अनेक प्रकार से अत्याचार करते है। अस्पताल में आने वाले रोगियों पर इसीप्रकार की धोखेबाजी भी करते है। यदि कोई रोगी ठीक नही होता उसे प्रार्थना और चंगाई, अंधविश्वास की नौंटकी करते है।
        सरगुजा संभाग में इस प्रकार की घटनाओं का इतिहास है। 1956 में बनी नियोगी कमीशन की रिर्पोट में धर्मातंरण के हजारों प्रकरण का उल्लेख है। तत्काल में सरगुजा के अम्बिकापुर के दरिमा चिरिगा कल्याणपुर में मिशनरी स्कूल आषादीप में पादरी द्वारा 4 बच्चियों के साथ अनैतिक कार्य किया । जब एक बच्ची अपने घर में जा कर अपनी माँ को बताई तथा बच्ची के पिता ने थाने में जाकर रिपोंर्ट लिखाया। पुलिस मिशनरी के दबाब में आकर रिपोंर्ट नही लिखी ।  गाव में इस घटना की खबर तेजी से फैला, बाद अनेक बच्चीयों ने अपने घरवालों को बताया। तो पूरा गाव थानों का घेराव करने पहुचा, जिसके बाद रिपोर्ट लिखा गया और अपराधी पादरी मिनसेंट टोप्पों को जनता की दबाव में गिरफ्तार किया गया । पूरे प्रदेष में हो रहे विरोध से घबराकर ईसाई मिशनरी के स्कूलों ने अम्बिकापुर के सेन्ट जेवियर स्कूल में एक बैठककर इस प्रकार घटना से अपना पल्ला झाड़कर एवं अशासकीय संस्था को बदनाम करने कोशिश करार दिया गया, जो कि एक प्रकार से अपराधियों का समर्थन ही है।
        इस घटना से पूर्व गुतूरमा सीतापुर में शासकीय छात्रावास की ईसाई अधिक्षिका के पति ने छात्रावास अध्ययनरत कई बालिका का अनेक बार शाररिकशोषण किया। यह घटना ध्यान में आने पर आरोपी पति एवं पत्नी को गिरफतार किया गया । इसी प्रकार की घटना बगीचा क्षेत्र में ईसाई शिक्षिका ने अपने शासकीय स्कूल की 4 छात्राओं की चोटी काट दिया, छात्राएं शर्म के कारण कई दिनों तक स्कूल नही गई, जन आक्रोष एवं शिकायत होने पर शिक्षिका को वहां से हटा दिया गया । लेकिन बच्चियों के मन पर जो घाव है वो कैसे भरेगा ।
       दूसरी घटना राजपुर विकासखण्ड के आरा गांव के बीच में चंगाईसभा का आयोजित किया गया । बाहर से आकर धर्मान्तरित हानेवालों लोगो को बुलाकर उनका धर्मान्तरण करना था, उसी गाव के दो आदिवासी युवको का चगाई के द्वारा उनका धमान्तरण करने का काम किया जा रहा था कि गाव के लोगो को शंक होने पर तुरंत पुलिस को बुलाकर चंगाई में भाग लेने 15 लोगो को गिरफतार किया गया । जिसमें से सभी उत्तरप्रदेष और झांरखण्ड थे।
        इन सभी बिन्दूओं पर गौर किया जाय तो मालूम पड़ता है कि अधिकांश मामले में ईसाई संस्था के लोग ही शामिल है, इसका मतलब यह है कि ईसाई मिशनरी के लोगों द्वारा कही न कही हिन्दू वनवासीयों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिऐ ही ऐसा कृत्य किया जा रहा है। सरगुजा में ईसाई मिशनरी द्वारा धोखे से धर्मातरण किया जा रहा है़। इसका उदाहरण अम्बिकापुर न्यायलय ने कुछ वर्षो पूर्व धर्मान्तरण करने के आरोप में एक पादरी एवं नन को सजा साथ में जुमाना दिया गया था।
        दुनिया के कई देषों में बच्चों के साथ मिशनरीओं के पादीरयों द्वारा अनेक प्रकार के दुकृत्य किये हैं। इस मामले को लेकर दुनिया के अनेक देषो में हो रहे विरोंध के कारण पोप को माफी मागनी पड़ी। सैकडों नही करोडे मामले जिसमें पादरियों ने चर्च में पढने वालों बच्चों के साथ अनैतिक कार्य किये। इनके अपराध पर वहां की सरकार एवं न्यायालय कई को कडी सजा भी दी गई है। लेकिन इसके बाद भी दुनिया भर में नही रूक रहा है । पादरी और ननों द्वारा जिस प्रकार से धर्मान्तरण एवं अत्याचार हो रहा है । समाज में इनके प्रति अविष्वास निमार्ण हो रहा है। यदि किसी प्रकार की घटना होने पर इसकी जिम्मेंदारी भी ईसाई समाज की है। धर्मान्तरण के खिलाफ अनेक घटना हो चुका है। उडिसा में गुजरात मध्यप्रदेश में ईसाई मिशनरियों के संग्दिध गतिविधियों के स्थानीय नागरिकों का विरोध का सामना करना पडा है । इन सभी घटनों जिम्मेंदार ईसाई संस्था भी है।
       इन सारी घटनाओं के कारण दुनिया भर में चर्च की प्रतिष्ठा गिरी है, जिसे स्वयं पोप जान बेनेडिक्ट भी रोकने में असफल रहे अंततःअसमर्थ के कारण उन्होने पोप के पद से स्तीफा दे दिया। भारत में भी चर्च के बड़े पदाधिकारीयों द्वारा ऐसे कृत्यों की जिम्मेदारी लेते हुए नैतिकता के तकाजे को मानते हुए अपने पदों को त्यागते हुए इस प्रकार की घटनाओं की घोर भर्तस्ना करनी चाहिए। ताकि मानव के जीवन में सुख एवं शांति का वास हो सके।