शुक्रवार, 1 मार्च 2013

सरगुजा में ईसाई मिशनरी से बढ़ता खतरा


        छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग जनजतीय बहुल क्षे़त्र होने के कारण यहां पर हजारों वर्षो से वनवासी रह रहे। वनवासियों को ईसाई मिशनरी द्वारा बहला फूसलाकर ईसाई बनाने का कार्य लगभग 100 वर्षों से चला रही हैं । लेकिन ईसाई मिशनरी अपने धर्मपरिवर्तन के काम में असफल होने पर उनके पादरियों और ननों द्वारा किसी भी प्रकार से विवाद खडा किया जाता रहा है। ईसाई मिशनरियों का मुख्य काम है धर्म परिवर्तन करना है, किसी भी प्रकार से ये लोगों को धोखे या प्रलोभन देकर धर्मातरण करते हैं। ईसाई मिशनरी सेवा के आड़ में चुपचाप अपना खेल खेलते है । जगह जगह पर स्कूल कालेज अस्पताल खोलते है़। स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे को आसानी से अपना शिकार बनाते है। बच्चों के बालमन पर किसी प्रकार से ईसाई बनाने का प्रभाव डालते है। जब कोई बच्चा इनके चगुल में नही फॅसता है, तो उस पर अनेक प्रकार से अत्याचार करते है। अस्पताल में आने वाले रोगियों पर इसीप्रकार की धोखेबाजी भी करते है। यदि कोई रोगी ठीक नही होता उसे प्रार्थना और चंगाई, अंधविश्वास की नौंटकी करते है।
        सरगुजा संभाग में इस प्रकार की घटनाओं का इतिहास है। 1956 में बनी नियोगी कमीशन की रिर्पोट में धर्मातंरण के हजारों प्रकरण का उल्लेख है। तत्काल में सरगुजा के अम्बिकापुर के दरिमा चिरिगा कल्याणपुर में मिशनरी स्कूल आषादीप में पादरी द्वारा 4 बच्चियों के साथ अनैतिक कार्य किया । जब एक बच्ची अपने घर में जा कर अपनी माँ को बताई तथा बच्ची के पिता ने थाने में जाकर रिपोंर्ट लिखाया। पुलिस मिशनरी के दबाब में आकर रिपोंर्ट नही लिखी ।  गाव में इस घटना की खबर तेजी से फैला, बाद अनेक बच्चीयों ने अपने घरवालों को बताया। तो पूरा गाव थानों का घेराव करने पहुचा, जिसके बाद रिपोर्ट लिखा गया और अपराधी पादरी मिनसेंट टोप्पों को जनता की दबाव में गिरफ्तार किया गया । पूरे प्रदेष में हो रहे विरोध से घबराकर ईसाई मिशनरी के स्कूलों ने अम्बिकापुर के सेन्ट जेवियर स्कूल में एक बैठककर इस प्रकार घटना से अपना पल्ला झाड़कर एवं अशासकीय संस्था को बदनाम करने कोशिश करार दिया गया, जो कि एक प्रकार से अपराधियों का समर्थन ही है।
        इस घटना से पूर्व गुतूरमा सीतापुर में शासकीय छात्रावास की ईसाई अधिक्षिका के पति ने छात्रावास अध्ययनरत कई बालिका का अनेक बार शाररिकशोषण किया। यह घटना ध्यान में आने पर आरोपी पति एवं पत्नी को गिरफतार किया गया । इसी प्रकार की घटना बगीचा क्षेत्र में ईसाई शिक्षिका ने अपने शासकीय स्कूल की 4 छात्राओं की चोटी काट दिया, छात्राएं शर्म के कारण कई दिनों तक स्कूल नही गई, जन आक्रोष एवं शिकायत होने पर शिक्षिका को वहां से हटा दिया गया । लेकिन बच्चियों के मन पर जो घाव है वो कैसे भरेगा ।
       दूसरी घटना राजपुर विकासखण्ड के आरा गांव के बीच में चंगाईसभा का आयोजित किया गया । बाहर से आकर धर्मान्तरित हानेवालों लोगो को बुलाकर उनका धर्मान्तरण करना था, उसी गाव के दो आदिवासी युवको का चगाई के द्वारा उनका धमान्तरण करने का काम किया जा रहा था कि गाव के लोगो को शंक होने पर तुरंत पुलिस को बुलाकर चंगाई में भाग लेने 15 लोगो को गिरफतार किया गया । जिसमें से सभी उत्तरप्रदेष और झांरखण्ड थे।
        इन सभी बिन्दूओं पर गौर किया जाय तो मालूम पड़ता है कि अधिकांश मामले में ईसाई संस्था के लोग ही शामिल है, इसका मतलब यह है कि ईसाई मिशनरी के लोगों द्वारा कही न कही हिन्दू वनवासीयों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिऐ ही ऐसा कृत्य किया जा रहा है। सरगुजा में ईसाई मिशनरी द्वारा धोखे से धर्मातरण किया जा रहा है़। इसका उदाहरण अम्बिकापुर न्यायलय ने कुछ वर्षो पूर्व धर्मान्तरण करने के आरोप में एक पादरी एवं नन को सजा साथ में जुमाना दिया गया था।
        दुनिया के कई देषों में बच्चों के साथ मिशनरीओं के पादीरयों द्वारा अनेक प्रकार के दुकृत्य किये हैं। इस मामले को लेकर दुनिया के अनेक देषो में हो रहे विरोंध के कारण पोप को माफी मागनी पड़ी। सैकडों नही करोडे मामले जिसमें पादरियों ने चर्च में पढने वालों बच्चों के साथ अनैतिक कार्य किये। इनके अपराध पर वहां की सरकार एवं न्यायालय कई को कडी सजा भी दी गई है। लेकिन इसके बाद भी दुनिया भर में नही रूक रहा है । पादरी और ननों द्वारा जिस प्रकार से धर्मान्तरण एवं अत्याचार हो रहा है । समाज में इनके प्रति अविष्वास निमार्ण हो रहा है। यदि किसी प्रकार की घटना होने पर इसकी जिम्मेंदारी भी ईसाई समाज की है। धर्मान्तरण के खिलाफ अनेक घटना हो चुका है। उडिसा में गुजरात मध्यप्रदेश में ईसाई मिशनरियों के संग्दिध गतिविधियों के स्थानीय नागरिकों का विरोध का सामना करना पडा है । इन सभी घटनों जिम्मेंदार ईसाई संस्था भी है।
       इन सारी घटनाओं के कारण दुनिया भर में चर्च की प्रतिष्ठा गिरी है, जिसे स्वयं पोप जान बेनेडिक्ट भी रोकने में असफल रहे अंततःअसमर्थ के कारण उन्होने पोप के पद से स्तीफा दे दिया। भारत में भी चर्च के बड़े पदाधिकारीयों द्वारा ऐसे कृत्यों की जिम्मेदारी लेते हुए नैतिकता के तकाजे को मानते हुए अपने पदों को त्यागते हुए इस प्रकार की घटनाओं की घोर भर्तस्ना करनी चाहिए। ताकि मानव के जीवन में सुख एवं शांति का वास हो सके।

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