उत्तरप्रदेश
तथा हरियाण से यमुना बचाओं दल ने मथुरा से दिल्ली की घेराबंदी शुरू की तो ऐसा ही
कुछ हुआ कि -सोई सरकार जागकर दिखावटी कारवाही करने लगी । यमुना की स्वच्छता ज्यादा
पानी छोड़ने की मांग लिए आस्था की हिलोर के साथ जन ज्वार उमड़ पड़ा। डरपोक सरकार
ने दिखाने के लिए तो सड़ती-मरती यमुना में ओखला बैराज से अचानक पानी छोड़ा शुरू
किया जाने लगा।
यमुना जी स्वच्छ निर्मल प्रवाह सदा बना
ठीक रहे इसके लिए कठोर नीति हो, जो यह तय करना जरूरी है। वजीराबाद बैराज के बाद यमुना
का बहाव कम से कम दस क्यूबिक मीटर प्रति सैकंड होना चाहिए जबकि रह जाता है सिर्फ 2-3
क्यूबिक मीटर प्रति सैकंड। सरकार को बताना होगा कि 1993 से
नदी में जहर घोलने और सफाई के नाम पर 5000
करोड़ों रुपये पीने वालों को अब तक क्यों खुला छोड़ा गया?
देश की राजधानी दिल्ली है देष के लोग यमुना का हिसाब
दिल्ली से मांग रहे है। यह जवाबदेही इसलिए भी बनती है क्योंकि क्षेत्र के हिसाब से
देश का सबसे बड़ा शहर दिल्ली ने यमुना की जान लेने में भी सबसे आगे है। राजधानी की
70
प्रतिशत प्यास यमुना बुझाती है। बदले में यमुना को इसके कुल प्रदूषण का 80
प्रतिशत जहर दिल्ली से मिलता है।
यह है पढ़े-लिखे लोगों और चैतरफा विकास का दम भरने
वाले नीति-निर्माताओं का व्यवहार एक
पवित्र नदी। शहरी समाज तो आस्था की इस अविरल धारा से कटा हुआ है, दारू
बनाने वाली कंपनी को पानीं लुटाने वाली यमुना में जल नही छोडते है बल्कि अधिक
मात्रा प्रदुषण स्तर से तेरह गुना ज्यादा औद्योगिक कचरा और रासायनिक जहर इस नदी
में छोडा जा रहा है।
पिछले वर्ष में अहमदाबाद गया था और साबरमति पर
निर्माण समाप्ति की ओर था । जिस नदी पर के किनारे गांधी जी का आश्रम है कुछ वर्ष
पुर्व गटर का पानी बहता था और गर्मी में धुल उडने वाली नदी का कायाकल्प बदल गया। 2004
में 1180 करोड.की सबारमती योजना बनाकर 9
वर्षों में दुनिया की सुन्दर नदी बना दिया गया। साबरमती में जल लाने के लिंए
नर्मदा जी स जल को नहरो द्वारा पहुचाया गया। साबरमती नदी आज पुन जीवित हो उठी है ।
इसका श्रेय अहमदावाद लोगों को जाता है कि उन्होने इस काम के लिए पुरा गुजरात सहयोग
किया विरोध कभी नही किया । गटर के पानी को फिल्टर प्लाट तक मोडा गया अब स्वच्छ कर
छोडा जाता है । दोनों किनारे पर सुन्दर दिखने हेतु वृक्ष रोपड किया जा रहा है । आज
साबरमती की तुलना टेम्प नदी से होती है |
क्या दिल्ली के लोगों ऐसा प्रयास यमुना
जी स्वच्छ बहते रहे। अबतक 5000 करोड खर्च करने के बाद यमुना का पानी साफ नही हो
क्यों कि -संयंत्र जरूरत के हिसाब से लगे ही नहीं। जो लगे भी हैं उनका हाल यह कि
क्षमता का आधा इस्तेमाल भी हो नहीं पाता। शहर की अस्सी प्रतिशत गंदगी से अटे
बड़े-बड़े बजबजाते नाले सीधे यमुना में जा मिलते है तो कैसे होगा हो निर्मल यमुना।
साबरमती के लिए जो प्रयास किया गया है ऐसा ही प्रयास यमुना के लिए हो सकता है ।
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