गुरुवार, 27 जून 2013

चार धाम की यात्रा


       उत्तराखड में अत्याधिक वर्षा तथा केदारनाथ के उपर महात्मा गाँधी बांध के टूट जाने से हुई भारी तबाही एवं जनहानि हआ है । यह अत्याधिक हदयविदारक एवं प्रकृति घोर उपेक्षा से तबाही हुआ है। यह कहा जाय कि प्रकृति ने लोगों का एक प्रकार से चेतावनी दिया है कि पहाड एव वनों से छेडछेडा अधिक हो रहा है। यही हाल रहा तो दुनिया तबाही की ओर जा रही है। केदारनाथ से रुद्ररूप में निकली गंगा( मंदाकिनी ) जी ने जो तबाही मचाई कि उत्तराखंड के मुख्यमत्री को कहना पडा कि केदारनाथ कि या़त्रा दुबारा शुरू करने में दो साल लगेगे।

        प्राचीनकाल से पूरे भारत वर्ष को जोडने के लिए आद्य शकराचार्य ने चारोधाम की या़त्रा प्रांरभ किये था । यात्रा का मुख्य उददेष यही था कि पूरे भारत वर्ष को सांस्कृतिक रूप से, ज्ञान ,उपदेषों ,प्रवचनों के द्वारा एवं धार्मिक, अध्यामिक शक्ति से एक राष्ट्र  की भावना का जागरण हो। हजारों वर्षो से युवा सन्यासियों , अध्यात्मिकता ओर जाने वाले संनसारिक लोग भी यात्रा के लिए निकल पडते थे। यात्रा पर जाने से पूर्व अपने सगे सबधियों से मिल कर जाते थे कि वापस आने कि उम्मीद नही के बराबर होता था। यदि यात्रा के समय मृत्यु हो जाय तो जीवन धन्य माना जाता कि भगवान की कृपा से मोक्ष प्राप्त हुआ है।

        उत्तराखंड में आऐ इस आपदा ने लोगों के मनोबल को कमजोर किया जाने की कोशिश मीडिया और विधर्मीयों किया जा रहा है। केदारनाथ मंदिर के पुजारी जी ने कहा कि आज आस्था एवं मोक्ष प्राप्त करने के लिए चारधाम की यात्रा का भाव नही है बल्कि अधिकाश पिकनीक मौज मस्ती के लिए धार्मिक यात्रा आते है। टीवी पर मीडिया द्वारा जो दिखाया जा रहा जो लोग बच गये रोते बिलखते दिखते है | यह कहते है कि अब दुबारा यात्रा पर नही जायेगे। अपने भारत के सांस्कृतिक महत्व की अज्ञानता के कारण चारोधाम यात्रा के बारे भ्रम फैला रहे है | कहने का मतलब यही है हमारी आस्था और सास्कृतिक भावना मजबूत होना चाहिए |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें