शुक्रवार, 28 जून 2013

देश में आपदा प्रबंधन पर करे पुन: विचार


      उत्तराखंड में केदारनाथ धाम से शुरू हुआ आपदा ने आपदा प्रबंधन पर विचार करने के विवश किया है | आपदा प्रबधन किसी भी स्थान पर किसी प्रकार की आपदा से आने पर लोगों द्वारा सहयोग किया जाता रहा है । जैसे अधिक वर्ष के समय पर अनेक गांव में पानी भर जाते है ऐसे स्थानों के लोगों को सुरक्षित ले जाना एवं भोजन पानी की व्यवस्था करना यदि काम करना ही आपदा प्रबंधन होता है। यदि यहां बडे स्तर हो जैसे भूकंप,तूफान या बाढ आने पर लोगों को सहायता करना, फंसे लोागो तक भोजन पानी तथा सुरक्षित स्थान पर ले जाना आदि अनेक कार्य है। प्रकृति द्वारा जो आपदा आती है ,प्रकृति आपदा की सरल परिभाषा है कि यह प्रकृति से छेड़छाड़ और कुप्रबंध का परिणाम है। प्रकृति का हमने वर्षों से जैसा शोषण किया है उसका यह परिणाम है। मूक प्रकृति ने इस दुर्व्यवहार का बदला लेना शुरू किया है और प्राकृतिक आपदा अब बड़ी चुनौती के रूप में हमारे सामने है।

     आपदाओं की चिंता के तहत सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर एक आपदा प्रबंधन इकाई का गठन किया। इसका मूल उद्देश्य आपदाओं के प्रति सचेत व नियंत्रण रखने की रणनीति पर अमल करना है। देश के प्रधानमंत्री के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर पर आपदा नीति भी है और साथ में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अथॉरिटी भी। इनकी सहायता के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान भी गठित किया गया। प्रधानमंत्री स्वयं अथॉरिटी के अध्यक्ष हैं। लेकिन अनेक वर्षो से बैठक ही नही हुआ है ।

     उत्तराखंड में आये आपदा के बाद नरेन्द्र मोदी ने देहरादून जाकर वहां से गुजरात के लोगों को अपने साधन से गुजरात भेज दिया तो मीडिया में खबर चला कि मोदी 15000 हजार लोगों को लेकर उड गये । यदि प्रधानमंत्री ने राष्ट्र स्तर पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन से राज्यों को जोडा होता तो देश की पूरी आपदा प्रबंधन की टीम उत्तराखंड में हजारों लोगों को और बचाया जा सकता था । चारधाम की यात्रा में देश के सभी कोने से लोग यात्रा करते है। सभी राज्य के लोगों को बचाया जा सकता था।

       आपदा प्रबंधन पर राज्यों में कोई आपदा नीति नहीं है और वहां आपदा आने पर ही चर्चा या कार्रवाई होती है। औपचारिक तौर पर आपदा कार्यालय हर राज्य में आवश्यक है | लेकिन केंद्र और राज्यों में कोई समन्वय नहीं दिखता है। हम एक दृष्टि आपदाओं और उनके प्रबंधन पर नजर डालें, तो निराशा हाथ लगेगी। हमारे देश में आपदा के बाद रेड अलर्ट शुरू होता है। आपदा आने पर ही हलचल होगी और सच तो यह है कि विभाग अपनी उपस्थिति दर्ज करते है बस ।

      किसी भी आपदा प्रबंधन को तीन चरणों में देखा जाता है। आपदा में तत्काल, अल्प अवधि व दीर्घकालीन प्रबंधन की बात होती है। दीर्घकालीन प्रबंधन में सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। परंतु तत्काल व अल्प अवधि प्रबंधन स्थानीय संसाधनों पर ही निर्भर रहता है। स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन के गुर लोगों को प्रषिक्षण देने होगे । यह काम स्कूलों से शुरू किया जाय तो आने वाले समय के लिए और अच्छा रहेगा। नरेन्द्र मोदी ने जो काम किया वह एक मांडल के रूप में दिखाया है। सभी लोग निस्वार्थ भाव से आपदा प्रबंधन का कार्य करे तो देश को बडे हानि से बचाया जा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें