शनिवार, 13 जुलाई 2013

बोफोर्स दलाल क्वात्रोच्चि

        16 अप्रैल इटली के रेडियों से एक समाचार का प्रसारण किया गया। पूरे भारत में हडकम मच गया । यह समाचार था कि बोफोर्स के खरीदी में दलाली दी गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस समाचार को रोकने के लिए पूरी कोषिष श्किया । अनेक समाचार पत्र को मैनेज कर लिया गया। लेकिन इंडियनएक्प्रेस ने इस समाचार को प्रमुखता से छापा, पूरे देष इस समाचार से स्तब्ध होगा। राजीव गाधी की छवि एक सामान्य जनक थी । लोगों को विष्वास नही हुआ कि राजीव गांधी ऐसा भी कर सकते है। बोफोर्स घोटला के नाम से जाना गया और कांग्रेस का ग्राफ गिरता ही गया ।

       1986 में स्विस आर्म्स निर्माता कंपनी बोफोर्स ने हाविट्जर तोपों की सप्लाई के लिए भारत के साथ 1600 करोड़ रुपये का सौदा किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया गांधी के करीबी दोस्त माने जाने वाले क्वात्रोच्चि पर इस सौदे में एजेंट की भूमिका निभाया था। सोनिया के मित्र क्वात्रोच्चि पर आरोप था कि इस सौदे के बदले उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद को आश्वासन दिया था कि बोफोर्स तोप खरीद में कोई घोटाला नहीं हुआ है। देष ने इस घोटाले में राजीच गांधी को दोशी मानते हुए 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया ।

       इतालवी कारोबारी ओतावियो क्वात्रोच्चि बोफोर्स घोटाले का अहम किरदार माना जाता रहा है। क्वात्रोच्चि पर बोफोर्स तोप सौदे में दलाली लेने का आरोप था। क्वात्रोच्चि को भारतीय राजनीति के सबसे ताकतवर गांधी परिवार का निकट माना जाता रहा है। जब भी सत्ता में काग्रेस आई तो क्वात्रोच्चि को अनेक बार बचाया गया। गिरफतारी से बचने के लिए क्वात्रोच्चि 1993 में भारत से फरार कराया गया था। इस मामले में तोता पिजडा में बंद रहा । अनेक बार गिरफतार क्वात्रोच्चि को भारत नही लाया जा सका क्यों कि जिस देषों में  क्वात्रोच्चि गिरफतार किया जाता वहां पर प्रत्यपण संधि न होना । उसकी मौत के साथ ही इस घोटाले से जुड़े कई राज दफन हो गए। 

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