आज गरीबों का मजाक बनाया जा रहा है । योजना आयोग के द्वारा फिर से
यह बताया कि देsश में
गरीबी कम हो रही है। रिपोंर्ट आते ही कुछ कांग्रेसियों उत्साहित होकर कहने लगे कि 12 रूपये
या 5 रूपये
में पेट भर खाना खाया जा सकता । फिर क्या लोगों ने अपने तरीकों द्वारा विरोध प्रगट
करने लगे। मीडिया ने जगह जगह जाकर लोगों के विचार लेने लगा और नेताओं का मजाक
उडाना शुरू कर दिया।
कांग्रेस में एक नेता है, उस नेता
तक अपनी को पहॅुच सबसे महत्व रखता है क्योकि उन्हें पार्टी में महत्वपूर्ण स्थान
में चाहिए। इसलिए वे क्या बोलते है उन्हे बाद में पता चलता, जब लोग
खुब आलोचना करते है। इस श्रेणी में दिग्विजय सिह आते है, अव राजबब्बर शामिल हो गये
है।
योजना आयोग ने अभी कहा है कि देश में गरीब 22 प्रतिषत
से कम हुआ है। देश में 2004/5 में गरीब का प्रतिषत 30 था । 2010/11 में यह
घट कर 30 प्रतिषत
रह गया और सरकार ने मनरेगा के कारण अब 22 प्रतिषत
रह गया है। सरकार किस पैमाने से यह कह रही है यह स्पश्ट नही करती है। योजना आयोग
के अध्यक्ष प्रधानमंत्री है। योजना आयोग ने पिछले साल कहा था कि शहरी क्षेत्र में 33 रूपये
तथा गा्रमीण क्षे़त्र में 27 रूपये आमदनी वाले गरीबी रेखा से उपर र्है।
गरीबी के ये आंकड़े योजना आयोग द्वारा तेंदुलकर समिति के द्वारा सुझाए गए मापदंडों
पर गरीबी की नई रेखा की परिभाषा पर आधारित हैं।
ताजा सर्वे में बड़ी संख्या में अर्थ विशेषज्ञ मानते हैं कि इस काम
में बढाती मंहगाई घटते रोजगार के अवसर के बारे में विचार नही किया गया है। बीते
वर्षो में लगातार बढ़ती हुई महंगाई और रोजगार के अवसरों में अपर्याप्त होने से अनेक
लोग गरीबी से कैसे उपर आ गये समझ नही आता। भारत के अर्थ योजक यह कहा रहे है कि
गरीबी की नई रेखा से देश के वास्तविक गरीबों की संख्या मालूम नहीं हो पाएगी क्योकि
ये आंकडे बाजी दिखाया जा रहा है। यदि योजना आंयोग चाहता हैं कि गरीबी, न केवल
आंकड़ों में कम होती दिखाई दे। वास्तव में कम करना हो, गरीबी की
रेखा के निर्धारण के लिए केवल कैलोरी नहीं बल्कि बुनियादी शिक्षा, स्वास्थ्य
सुविधा सेवाओं की उपलब्धता की जरूरतों का भी ध्यान रखें।
देश के गरीबों के पास धन का एक बड़ा भाग भोजन की पूर्ति में लगता
है। कहने का मतलब गरीब के पास पैसा आने पर वह खाने के उपर ही अधिक खर्च करता है।
जो पैसा बच जाता है तो वह शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा जुटाने में व्यय करता है।
फिर घुम कर वही आ जांता है ।
इदिरा गांधी ने गरीबी हटाओं को नारा दिया लेकिन गरीबी कम नहीं हुई
और बढ गई। गरीबी देश का सबसे बड़ा अभिशाप माना जाता और बिना भ्रष्टाचार के गरीबी
हटाने का प्रयास हुआ होता आज स्थित अलग होती।