कश्मीर में सुरक्षा बल और प्रदर्शनकारियों
के बीच अब तक सैकड़ों दफा हिंसक झड़पें हो चुकी हैं। कई दफा भीड़ को तितर-बितर
करने के लिए सुरक्षा बल पैलेट गन का इस्तेमाल करते हैं। इसके इस्तेमाल से हजारों
घायल हो गए। अब तक पत्थरबाजी करने वाले मुह पर कपडा बांधकर सुरक्षा बल और
पुलिस पर हमला करने वाले कि पहचान नहीं हो पा रही थी। पैलेट गन से दहशतगर्दी के होसले पस्त हो रहे है।
जब
सुरक्षाबलों के अधिकारियों से पूछा तो उनका जवाब था कि ये नॉन लीथल हथियार है यानी
गैर-जानलेवा हथियार जिससे जान नहीं जाती है। जब आपकी खुद की जान अटकी हो और कोई
दूसरा उपाय न हो तो विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों पर और क्या इस्तेमाल किया जाए। कुछ लोग ये तर्क दे रहे हैं कि बंदूक की गोली से तो आदमी को एक
बार दर्द होता है, लेकिन इससे तो जिंदगी भर का दर्द रह जाता
है। अब सवाल उठता है कि सुरक्षाबल उग्र भीड़ से निपटने के लिए क्या करें ?
पुलिस
और सीआरपीएफ के पास पैलेट गन ही बचती है। इसके एक बार फायर होने से सैकड़ों छर्रे
निकलते हैं जो रबर और प्लास्टिक के होते हैं। ये जहां-जहां लगते हैं उससे शरीर के
हिस्से में चोट लग जाती है। लेकिन आंख में लग जाए तो वह सबसे ज्यादा घातक होता है। इसकी
रेंज 50 से 60 मीटर होती है। छर्रे
जब शरीर के अंदर जाते हैं तो काफी दर्द तो होता है। पूरी तरह ठीक होने में कई दिन
लग जाते हैं। बताया जा रहा है कि
जिन सैकड़ों लोगों को आंख में इसके छर्रे लगे हैं, उनकी
आंखों से अब दिखाई नहीं पड़ रहा है। दिल्ली से गए आंखो के सर्जन डॉक्टर और स्थानीय
डॉक्टरों ने कइयों के रेटिना
के ऑपरेशन किए हैं और अब सबको इंतजार है उनकी आंखों की रोशनी आने का।
सुरक्षाबल की मानें तो इसका इस्तेमाल वे
अंतिम हथियार के तौर पर ही करते हैं। भीड़ इनके ऊपर ग्रेनेड, पत्थर फेंक रही है। अब तक केवल सीआरपीएफ
के 300 से ज्यादा जवान पत्थर से घायल हो गए हैं।
कई पुलिस वालों के सिर फट गए हैं। एक बार तो भीड़ ने जीप सहित पुलिसकर्मी को नदी
में फेंक दिया, इससे पुलिस वाले डूबकर मर भी गए। ऐसे में अब ये न करें तो क्या करें?
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