बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

बोफोर्स का जिन्न अभी भी जिन्दा है -

CBI के पूर्व चीफ श्री आर. के. राघवन ने कहा है कि एक पार्टी की सरकार ने बोफोर्स की जांच में पलीता लगा दिया। राघवन ने अपनी आत्मकथा ‘अ रोड वेल ट्रैवल्ड’ में कहा कि- मामला इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि किस तरह एक पार्टी की सरकार ने एक सही मामले की जांच को पलीता लगा दिया, जिसके पास बहुत कुछ छिपाने को है। पूर्व सीबीआई चीफ ने कहा कि अदालत में मामला न टिक पाने के लिए वे लोग दोषी हैं जिन्होंने 1990 के दशक में और 2004 से 2014 तक जांच एजेंसी को नियंत्रित किया। 

बोफोर्स कांड में भ्रष्टाचार का यह मामला 24 मार्च 1986 को भारत सरकार और स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी बोफोर्स के बीच 1,437 करोड़ रुपये का सौदा हुआ। यह सौदा भारतीय थल सेना को 155 एमएम की 400 होवित्जर तोप की सप्लाई के लिए हुआ था। हॉवित्जर तोप सौदे में कथित रिश्वत से जुड़ा है जिसकी वजह से 1989 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार को सत्ता से बाहर जाना पड़ा था। आरोप था कि कंपनी ने नेताओं, कांग्रेस के नेताओं और नौकरशाहों को करीब 64 करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी। 16 अप्रैल 1987 स्वीडन के रेडियों से एक समाचार का प्रसारण किया गया। पूरे भारत में हडकम मच गया । यह समाचार था कि बोफोर्स के खरीदी में दलाली दी गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस समाचार को रोकने के लिए पूरी कोशिश किया कई समाचार पत्र को मैनेज कर लिया गया। लेकिन इंडियनएक्प्रेस ने इस समाचार को प्रमुखता से छापा, पूरे देश इस समाचार से स्तब्ध होगा। राजीव गाधी की छवि एक सामान्य जनक नेता की थी । भारत के लोगों को विश्वास नही हुआ कि राजीव गांधी ऐसा भी कर सकते है। बोफोर्स घोटला के नाम से जाना गया और कांग्रेस का ग्राफ गिरता ही गया । 

तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया गांधी के करीबी दोस्त माने जाने वाले क्वात्रोच्चि पर इस सौदे में एजेंट की भूमिका निभाया था। सोनिया के मित्र क्वात्रोच्चि पर आरोप था कि इस सौदे के बदले उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद को आश्वासन दिया था कि बोफोर्स तोप खरीद में कोई घोटाला नहीं हुआ है। देश ने इस घोटाले में राजीच गांधी को दोषी मानते हुए 1989 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें