रियो के बाद जागे मोदी, ओलंपिक के लिए
टास्कफ़ोर्स
रियो ओलंपिक में भारत के खिलाड़ियों के
खराब प्रदर्शन की कहानी अब आगे में न दोहराई जाए। इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
अब जाग कर एक स्पेशल टास्क फोर्स गठित करने का ऐलान किया है। यह टास्क फोर्स टोक्यो
2020, 2024 तथा 2028 में होने वाले अगले ओलंपिक की तैयारियों पर भी नजर रखेगी। भारतीय
खिलाड़ियों को ज्यादा से ज्यादा मेडल लाने के लिए रणनीति बनाएगी। जहा केवल एक खेल क्रिकेट ही खेला जाये और देश में २७ खेल संघ है। लेकिन खेलों को नेताओं
से दूर रखने पर कुछ नहीं किया जायें तो हालात ऐसे ही रहने वाले।
रियो ओलंपिक में भारत का प्रदर्शन पिछली
बार की तुलना में बेहद खराब रहा है। पिछली बार 2 रजत और 4 कांस्य पदकों की तुलना में
हमें इस बार केवल एक रजत और एक कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा है। ऐसे में भारतीय दल के प्रदर्शन की समीक्षा
करने की आवश्यकता है, रजत, कांस्य
पदकों के अलावा एक गोल्ड आ गया होता तो क्या होता ?
रियो में सिल्वर मेडल जीतने वाली बैडमिंटन
खिलाड़ी पीवी सिंधू और कुश्ती में कांस्य पदक जीतने वाली साक्षी मलिक करोड़पति बन गई
हैं। इसके अलावा सरकारी नौकरियों, घर, जमीन और महंगी कार के ऑफर भी मिले हैं। ओलंपिक
में मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को मिलने वाली इनाम की राशि खेलों के इस महाकुंभ के
आयोजन के लिए तैयारियों पर की जाने वाली रकम से ज्यादा होती है। इनपर इनामों की जितनी
धनवर्षा होती है उतने पैसे तो इनके ट्रेनिंग में भी नहीं खर्च किए जाते। अगर ट्रेनिंग
पर और ध्यान दिया जाए और खेल संघों को राजनीति से मुक्त कर दिया जाए तो स्थिति बेहतर
होती और एक-एक पदक के लिए तरसना नहीं पड़ता। यह अच्छी बात है लेकिन इतना ही खर्च सरकार
केवल खिलाडी पर करे तो और अधिक मैडल मिल सकता था। इसमें सबसे बड़ा रोड़ा है अधिकारी, नेता और प्रशिक्षक है।
वर्षो से ओलोम्पिक में अधिकारयों और नेताओं
के रिश्तेदार मौज मस्ती करने जाते है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। रियो की यात्रा 36 घंटे की
है। खिलाडी इकॉमिक क्लास में थे लेकिन अधिकारी बिजनेस क्लास में गए। रास्ते में ब्रेक
पर जहाँ खिलाडी एयरपोर्ट के लॉजिंग में बैठे रहे तो अधिकारी होटलों में मौज किये। अधिकारी इतने मौज मस्ती में जुटे रहे कि जहाँ दीपा को थोड़ी मदद मिलती तो कांस्य मैडल मिल सकता
था। ऐसे ही मैराथन दौड़ में
हिस्सा लेने वाली भारतीय धाविका ओपी जैशा ने रियो में वह मैराथन दौड़ पूरी करने के बाद बेहोश हो कर गिर पड़ी तिन घंटो तक बेहोश
थी, उनकी मौत भी हो सकती थी, क्योंकि किसी भी भारतीय अधिकारी ने रेस के
दौरान उन्हें पानी या जूस देने नहीं पंहुचा। ऐसे ही कितने रोचक खबरे मिलते की आप कैसे
सोचे की भारतीय खिलाड़ी पदक जीते, लेकिन भारतीयों खिलाड़ियों पर भगवान की
बहुत कृपा है। लेकिन अधिकारियो की इतनी मोटी चर्बी है कि इसका कोई असर नहीं है। चाहे
सरकार कांग्रेस की हो या भाजपा का क्यों की भरस्टाचार सभी जगह है।
जहां खेल मंत्रालय के वजूद का सवाल है
तो इसके रहने या न रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता। सबसे बड़ा उदाहरण अमेरिका है। जहां
खेल मंत्रालय नाम की कोई चीज नहीं है जबकि वो ओलंपिक की पदक तालिका में टॉप पर रहता
है। भारत में केवल 2 मेडल आए तो जश्न का माहौल है जबकि चीन पदक तालिका में दूसरे पायदान
से खिसककर तीसरे पर आ गया तो उसे निराशा हो रही है। चीनी मीडिया ने ओलंपिक में भारत
के प्रदर्शन को लेकर तंज भी कस दिया है। चीन की मीडिया का कहना है कि भारत खेलकूद की
बुनियादी सुविधाओं पर बहुत कम खर्च करता है इसलिए यह बड़े और प्रतिस्पर्धात्मक खेलों
में पीछे रहता है।
भारत को इनसे सीख लेने की जरूरत है। ओलंपिक
के लिए मिशन की शुरुआत क्यों नहीं की जा सकती। अगर भारतीय खेल प्रशासन अभी से जाग जाता
है तो 2020 के टोक्यो ओलंपिक में तो नहीं लेकिन उसके बाद 2024 में होने वाले ओलंपिक
खेलों में पदकों की बारिश होना तय है।