शनिवार, 21 जनवरी 2017

तमिलनाडू का एक उत्सव - जल्लीकट्टू

तमिलनाडू में पोंगल पर होने वाली जल्लीकट्टू को सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिबन्ध को लेकर आन्दोलन हो रहा है। यह आन्दोलन 8 जनवरी को तमिलनाडु राज्य भर से छात्र और युवा चेन्नई के मरिना ब्रज पर इकट्ठे हुए और जल्लीकट्टू पर पाबंदी के विरोध में रैली निकाली। तमिलों का यह आन्दोलन शांति पूर्वक मरीना ब्रज पर हो रहा है। इसमें सभी छात्रों, युवाओं तथा गणमान नागरिक भी शामिल हो रहे है। तमिलनाडू के मुख्यमंत्री प्रधानमत्री से मिले तथा राज्य की ताजा स्थिति से अवगत कराया हुए -एक अध्यादेश राज्य सरकार की ओर से दे दिया। प्रधानमत्री  नरेन्द्र मोदी ने कहा कि तमिलनाडू के लोगों की सांस्कृतिक आकांक्षाओ को पूरा करने के लिए हर तरह से प्रयास किया जायेगा तमिलनाडू की संस्कृति पर हमे गर्व है।

हम जिसे मकर संक्रांति कहते है तमिलनाडू में पोंगल त्यौहार कहते है, इस अवसर पर नए फसल के बाद उत्सव के रूप सैकड़ो वर्षो से बैलों को दौड़ाया जाता है, फिर उसे काबू में किया जाता है। जो व्यक्ति बैल को काबू करता उसे पुरस्कार के रूप में बैल के सिंग में बधे सोने या चाँदी सिक्के मिलते है। लेकिन 7 मई 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश का कानून खारिज करते हुए जल्लीकट्टू पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी। पाबंदी का कारण मुख्य रूप से जानवरों के प्रति क्रूरता रोकना और बैलों को संरक्षण देना है।
तमिलनाडू सरकार तथा आम जनता को भी यह समझना चाहिए कि यदि उचित रूप से जल्लीकट्टू का संचालित हो, जिससे जल्लीकट्टू प्राणियों को यंत्रणा देने का खेल नहीं होना चाहिए। इसकी वजह से पशु प्रेमियों को पूरे खेल को ही खराब नहीं समझना चाहिए। इसमें भागीदारों के घायल होने, दर्शकों के लिए सुरक्षा का ध्यान तथा अन्य आपत्तियां पर सुरक्षा का उचित व्यवस्था होनी चाहिए। यदि उचित सावधानी बरतने से खतरा को काबू किया जा सकते हैं। खतरा तो क्रिकेट में भी पिछले साल एक खिलाडी को बाल लगने से मैदान में ही मौत हो गई। क्या क्रिकेट को भी प्रतिबन्ध कर दिया जाये।
समस्या यह भी कि हिन्दू संस्कृति से सम्बधित कोई भी मामला हो तो तुरंत कोर्ट प्रतिबद्ध लगा देता है, चाहे दीपावली हो, मट्टका फोड़ या जल्लीकट्टू लेकिन बकरीद, तलाक, अन्य पशु वध पर जैसे- गौ हत्या, क्रिसमस पर गाय काटे जाते है। इस पर सभी कोर्ट मौन हो जाते है। किसी भी समस्या का हल निकला जाना चाहिए। जल्लीकट्टू पर प्रशासन को सुरक्षा का पूरा ध्यान दिया जाये। बैलों का भी मेडिकल जाँच हो, आयोजक द्वारा प्रशिक्षित बैलों हो, आयोजन के दौरान डॉक्टरों की मौजूदगी, प्रशासनिक उपायों से इसे नियंत्रण में लाया जा सकता है। 
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