रविवार, 21 फ़रवरी 2021
मालाबार दंगा या मोपला विद्रोह 1921 की
शनिवार, 13 फ़रवरी 2021
पुलवामा का बदला, बालाकोट से
जब से केंद्र में भारतीय जनता
पार्टी की नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी है। ऐसे में जम्मू कश्मीर सहित देश अन्य भागों
में आतंकिवादियों लोगों की खैर नहीं है। ऐसे में चाहे पुर्वोत्तर भारत में म्यांमार से
संचालित आतंकी हो या माओवादी हो और कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकिय क्यों न हो। 2014 से ही
इन आतंकियों लोगों दमन की करवाई बहुत तेज हो गया। कश्मीर में आये दिन कोई न कोई
आतंकी मारा जाता वहा पर तैनात सुरक्षा बलों ने लिस्ट बनाकर आतंकवाद का सफाया किया
जा रहा था। लेकिन इसी बीच 14 फरवरी 2019 कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर पाकिस्तानी
आतंकियों ने हमले किया। पुलवामा आतंकी हमला की आज दूसरी बरसी है इस हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे। इसके बाद भारतीय सेना ने ऐसा बदला लिया कि उसे
याद करते ही आज तक पाकिस्तान कांप उठता है।
पुलवामा आतंकी हमला 14 फरवरी
2019 को हुआ था जब 78 वाहनों का काफिला 2500 जवानों को लेकर जम्मू से श्रीनगर जा
रहा था। ये काफिला अवंतीपोरा के पास लेथीपोरा में नेशनल हाइवे 44 से गुजर रहा था।
दोपहर करीब 3.30 बजे 350 किलो विस्फोट से भरी एक एसयूवी काफिले में घुसी और भयंकर
धमाका हुआ। जिस बस से एसयूवी टकराई उसके परखच्चे उड़ गए। उस बस में सवार ब्त्च्थ्
के 40 जवान शहीद हो गए थे। इस खबर से पूरा देश दहल गया। सभी राजनीतिक दलों के
नेताओं और सिविल सोसायटी के सदस्यों ने इस हमले की निंदा की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने
लोगों की भावनाओं से खुद को जोड़ते हुए कहा था कि जैसी आग आपके भीतर जल रही है, वैसी ही मैं भी अपने सीने में महसूस कर रहा हूं।
उन्होंने पाकिस्तान को कठोर चेतावनी दी कि हर आंसू का बदला लिया जाएगा। उन्होंने
भारतीय सेनाओं को कार्रवाई के लिए खुली छूट दे दी। अमेरिका समेत दुनिया के कई
देशों ने इस हमले की आलोचना की थी।
गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021
भारत सरकार की कूटनीति ... चीनी सेना अब पैंगोंग झील से भागना पडा
आज भारत सरकार की कूटनीति और कठिन हालात लदाख सीमा के बार्फिले क्षेत्र में डटे भारतीयों सेना के जवानों के शौर्य की बदौलत पिटे मुह से चीनी सेना अब पैंगोंग झील से उल्टे पैर वापस लौटने लगा है। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को राज्यसभा में यह बड़ी जानकारी देते हुए कहा कि बुधवार से सेना की वापसी शुरू हो गई है। भारत ने इस बातचीत में कुछ भी नहीं खोया है। हम अपनी एक इंच जमीन किसी को भी नहीं लेने देंगे हमारे संकल्प के कारण यह फल मिला है कि चीनी सेना पैगॉन्ग लेक के दक्षिणी और उत्तरी इलाके से हटने लगी है। चीनी सरकार ने भी कहा है कि बुधवार से कि पैगॉन्ग लेक के दक्षिणी और उत्तरी इलाके से भारत-चीन की सेना ने डिसइंगेजमेंट की प्रोसेस शुरू कर दी है। चीन की सरकार मीडिया ने बुधवार को दावा किया कि लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर भारत के साथ 10 महीने से चल रहा टकराव खत्म हो गया है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने जब देश को यह जानकारी दी उस समय सदन में पीएम नरेंद्र मोदी और गैलरी में आर्मी चीफ मुकुंद नरवणे भी मौजूद थे। भारत और चीन के बीच 24 जनवरी को 9वें राउंड की बातचीत 15 घंटे चली थी। उन्होंने बताया कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन और भारत के बीच सेना की वापसी का समझौता हुआ है। चीन की मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस के स्पोक्सपर्सन वू कियान ने बताया कि चीन और भारत के बीच हुई कमांडर लेवल की 9वें दौर की बातचीत में डिसइंगेजमेंट पर सहमति बनी थी। इसके तहत ही दोनों देशों ने अपने सैनिकों को पैंगॉन्ग हुनान और नॉर्थ कोस्ट से पीछे हटाना शुरू कर दिया है। इसके बाद चीनी विदेश मंत्रालय का बयान आया। स्पोक्सपर्सन वांग वेनबिन ने कहा कि रूस में हुई बैठक में दोनों देशों के विदेश मंत्री इस मसले का हल निकालने पर राजी हुए थे।
भारत और चीन के बीच 24 जनवरी को 9वें राउंड की बातचीत 15 घंटे चली थी। इसमें भारत ने कहा था कि विवाद वाले इलाकों से सैनिक हटाने और तनाव कम करने के प्रोसेस को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अब चीन पर है। इस दौरान दोनों पक्ष कोर कमांडरों की 9वें दौर की बातचीत जल्द करने पर भी सहमत हुए थे, ताकि सैनिकों की वापसी का काम तेज हो सके। पेंगोंग झील क्षेत्र में चीन के साथ हुए समझौतों में चीन की सेना उत्तरीय किनारे में फिगर 8 के पूर्व दिशा की ओर रहेगा। वही भारत की सेना फिगर 3 के पास अपने धन सिंह थापा पोस्ट पर रहेगा। चीनी सेना इस दौरान जो भी निर्माण किया है, उसे भी हटाना होगा। इन सारी कारवाही के 48 घंटे बाद पुनः वरिष्ठ कमांडर स्तरीय बातचीत होगी जो बचे हुए मुद्दें पर बातचीत होगी।
2019 में चीन से फैला करोना वाइरस पूरी दुनिया को अपने चपेट में ले लिया। इसी समय पूरी दुनिया में चीन का विरोध होने लगा। कई देशों में दिनदिनों में करोना वाइरस के कारण जन और आर्थिक हानि होने लगी। भारत सहित कई देशों में लाकडाउन लगाना पड़ा था। इसी समय कई देश मांग करने लगे की कोरोना वाइरस की जाँच हो की इस वाइरस को फैलाने में चीनियों का हाथ है। इस मुद्दे पर भारत सरकार भी सहमत है, की WHO कोरोना वायरस की जाँच करे। चीन इस मौका का फायदा उठाकर भारत के कुछ क्षेत्र में घुसने की कोशिश किया। चीन और भारत की सेनाएं पूर्वी लद्दाख में पिछले साल अप्रैल-मई से आमने-सामने हैं। 15 व 16 जून 2020 को गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हो गए थे तथा चीन के भी 80 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे, लेकिन अब चीन ने स्वीकार नहीं किया की उसके भी सैनिक मारे गए है। अमेरिका द्वारा लिए गए सेटेलाइट से चित्र से पता चला की कई बार चीनी सेनाओं से वहा से घायलों को ले जाने के लिए गाड़ी और एयरलिप्त किया गया है।
चीन और भारत की सेना कई बार बातचीत हुई लेकिन सहमति नहीं बनी। वही भारत ने धीरे धीरे चीन के साथ आर्थिक प्रतिबन्ध लगाने शुरू किये। चीन के सामानों का भारत में जोरदार विरोध होने लगा, जनता के मांग को भारत सरकार ने माना और चीनी APP को प्रतिबन्ध लगा दिया, इससे चीन को बहुत ही आर्थिक नुकसान होने लगा। कोरोना वायरस के कारण जापान और अमेरिका की कई कम्पनी चीन से अपना कारोबार बंद कर भारत तथा कई देशों में जाने लगे। इससे चीन को बहुत ही आर्थिक नुकसान होने लगा है। भारत ने चीनी सामानों पर प्रतिबन्ध काम आया चीन भारत के सामने घुटने के बल पर आ गया है।
शनिवार, 6 फ़रवरी 2021
एक समय ऐसा आया की लड़ाकू विमान तेजस को फाइलों में बंद करने नौबत आ गई थी -
आज प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा कि एक समय था जब हमारे अपने लड़ाकू विमान तेजस को फाइलों में बंद करने नौबत आ गई थी लेकिन हमारी सरकार ने अपने इंजीनियरों, वैज्ञानिकों और तेजस की क्षमताओं पर भरोसा किया और तेजस आज शान से आसमान में उड़ान भर रहा है। कुछ सप्ताह पहले ही तेजस के लिए ही 48 हजार करोड़ रुपए का आर्डर दिया गया है।एचएएल को भारतीय वायुसेना से 83 नए स्वदेशी एलसीए तेजस एमके1ए के निर्माण का अनुबंध मिला है, जिसकी अनुमानित लागत 48,000 करोड़ रुपये से अधिक है।
तेजस का नाम 4 मई 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रखा था। तेजस एक संस्कृत शब्द है, जिसका मतलब होता है अत्यधिक ताकतवर ऊर्जा। तेजस के तेज का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब बहरीन इंटरनेशनल एयर शो के लिए तेजस का नाम प्रस्तावित हुआ था तब पाकिस्तान और चीन ने अपना थंडरबर्ड का नाम इस एयर शो से वापस ले लिया था। यह भारत के हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा विकसित एक सीट और एक जेट इंजन वाला एक हल्का व कई तरह की भूमिकाओं वाला जेट लड़ाकू विमान है। यह एचएएल इंजीनियरिंग द्वारा, अनेक भूमिकाओं को निभाने में सक्षम एक हल्का युद्धक विमान है तथा यह बिना पूँछ का, कम्पाउण्ड-डेल्टा पंख वाला विमान है। इसका विकास 'हल्का युद्धक विमान' या (एलसीए) नामक कार्यक्रम के अन्तर्गत हुआ है, जो 1980 के दशक में शुरू हुआ था। यह विमान पुराने पड़ रहे रसियन मिग-21 का स्थान लेने के लिए बनाया गया है। इसे 1994 में बनकर तैयार हो जाना था लेकिन ऐसा नहीं हो सका। जब पूरी दुनिया पोकरण के बाद प्रतिबन्ध लगाया तब ही 4 जनवरी 2001 दो प्रोटोटाईप तेजस तैयार हुआ। इसे भारतीय वायु सेना में कमीशन होने में 35 वर्ष लग गये। यह कहा जाये तो कि तेजस के मिशन में बहुत देर किया गया है।
यह हमारे देश की राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी तथा विदेश पर निर्भर रहना तथा देश
में नेता व अधिकारियों की कमीशन खोरी के कारण यह देरी हुई है। 1 जुलाई 2016 को भारतीय वायुसेना की पहली तेजस यूनिट
का निर्माण किया गया, जिसका नाम 'नम्बर
45 स्क्वाड्रन आई ए एफ फ्लाइंग ड्रैगर्स' है।
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021
चौरी चौरा शताब्दी समारोह की शुरूआत
भारतीय स्वत्रन्त्रता आन्दोलन के इतिहास के
पन्नों में दर्ज है 4 फरवरी, 1922 को चौरीचौरा से सटे भोपा बाजार में सत्याग्रही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ
जुलूस निकाल रहे थे। चौरीचौरा थाने के सामने तत्कालीन थानेदार गुप्तेश्वर सिंह ने
उन्हें रोका तो झड़प हो गई। एक पुलिसकर्मी ने किसी सत्याग्रही की टोपी पर बूट रख
दिया तो भीड़ बेकाबू हो गई। पुलिस की फायरिंग में 11 सत्याग्रही
शहीद हो गए और कई जख्मी भी हुए। इससे सत्याग्रही भड़क उठे और उन्होंने चौरीचौरा
थाना फूंक दिया। इसमें 23 पुलिसवाले जिंदा जल गए। इसके बाद
अंग्रेजी हुकूमत ने सैकड़ों सत्याग्रहियों पर मुकदमे चलाए, 19 सत्याग्रही फांसी पर चढ़ा दिए गए। घटना से व्यथित महात्मा गांधी ने असहयोग
आंदोलन वापस ले लिया था।
घटना में मारे गए पुलिसवालों की याद में 1924 में अंग्रेज अफसर विलियम मौरिस ने
थाना परिसर में शहीद स्मारक बनवा दिया। देश आजाद होने के बाद
भी वर्षों तक किसी ने कोई पहल नहीं की। करीब 60 साल बाद बाबा
राघवदास जैसे मनीषी जब आगे आए और इस स्मारक को खुद ही तोड़ने निकले तब बहस और तेज
हुई। बाद में 1993 में तब के प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव
ने अमर शहीदों की याद में स्मारक का लोकार्पण किया। तब से यहां शहीदों की याद में
कार्यक्रम होते हैं।