सोमवार, 28 अक्तूबर 2019

कुत्ते की मौत मारा गया बगदादी


अमेरिका के राष्ट्रपति श्री डोनाल्ड ट्रंप ने दीपावली की शाम दीपावली का त्यौहार मनाकर दुनिया के लिए शान्ति का संदेश दिया। उन्होंने रात में ट्वीट कर सीरिया में कुछ बड़ा हो रहा है। किसी ने भी नही अंदाजा लगाया कि ISIS का सरगना बगदादी को अमेरिका की सेना ने मौत के घाट उतार दिया है। जो व्यक्ति दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकी संगठन ISIS बनाकर लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। वह भी अपने मौत को देखकर कुत्ते के जैसे जान बचाने के लिए भाग रहा है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि सीरिया के इदलिब प्रांत के गाँव बारिशा को अमरीका के स्पेशल फ़ोर्स ने निशाने पर लिया। यह तुर्की की दक्षिणी सीमा से महज़ पाँच किलोमीटर दूर है। अमेरिका इंटेलिजेंस के द्वारा मिले इनपुट  ( सूचना) के आधार पर अमेरिका स्पेशल फोर्स के 70 जवान 8 हेलीकॉप्टर से बारिशा में हमला किया। 30 मिनट में बगदादी के सही लोकेशन पता चलते ही अमेरिकी फोर्स ने पीछा करना शुरू किया। तो आतंकी बगदादी भागने लगा अपनी जान बचाने के लिए रोने लगा। अपने तीन बच्चों को लेकर गुफा में भागने लगा। सपेशल फोर्स के साथ कुत्तों को छोड़ दिया। जब बगदादी गुफा में फंस गया, तो कमर बमों से बंधा हुआ बेल्ट पहना था। उसी से आत्महत्या कर लिया साथ में तीन बच्चों के साथ मर गया। 

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि कुत्ते 
वह एक तरफ से बंद सुरंग में भागते हुए गया। इस दौरान वह पूरे समय रोता और चिल्लाता रहा। जिसने दूसरों के मन में डर पैदा किया, उसके जीवन के अंतिम क्षण अमेरिकी सेना के खौफ में बीते। इस अभियान में एक भी अमेरिकी सैनिक हताहत नहीं हुआ, लेकिन बगदादी के कई समर्थक मारे गए और कई को पकड़ लिया गया।


शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

छत्तीसगढ़ भाजपा क्यों हार पर मंथन क्यों नहीं ?



छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की रमन सरकार 15 वर्षों में जिस तरह का कुशासन व्यवस्था कियाउसका परिणाम यह हुआ है कि भारतीय जनता पार्टी का पूरा संगठन समाप्त हो गया है। पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव में 90 सीटों में से 15 सीटों जीते थे, लेकिन 2019 के उपचुनाव में दंतेवाडा सीट ( विधायक भीमा मंडावी की नक्सली हमले में हत्या किया गया था) पर से हार जाने के बाद भाजपा की संख्या कुल 14 सीट हो गए है। लोकसभा चुनाव 2019 में भारतीय जनता पार्टी मोदी सरकार के नाम से 11 सीटों में से 9 सीटें जीती। लेकिन विधानसभा उपचुनाव में फिर से अपना बुरा परिणाम दोहराया है, दंतेवाड़ा विधानसभा सीट हारने के बाद, अब चित्रकूट विधानसभा भी भारतीय जनता पार्टी हार गई है। आज मिले जो परिणाम से यह बताता है कि भारतीय जनता पार्टी का संगठन अब बिल्कुल खोखला हो गया है। भाजपा के कार्यकर्ताओं में दबे जुबान में प्रदेश नेतृत्व पर परिवर्तन की आस हो रही है।
विधानसभा चुनाव 2003 में मिले भारी बहुमत के बाद भारतीय जनता पार्टी ने पीछे मुड़कर देखा ही नहीं। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ रमन सिंह को पार्टी ने प्रदेश का मुखिया बनाया और विगत 15 वर्षों तक उन्होंने छत्तीसगढ़ में भाजपा का शासन किया। डॉ रमन सरकार शुरुआत के 5 साल भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ताओं को सुनते हुए, कार्यकर्ताओं के अनुसार योजना बनाकर जनहित में कार्य करती रही। लेकिन 2008 के चुनाव के बाद रमन सिंह धीरे धीरे अधिकारियों और उनके जो खास समर्थक और चापलूसी हैं उनके 30 अधिकारियों व नेताओं आसपास घिर के रह गई। जिसका परिणाम 2013 के चुनाव में पार्टी हारते हारते चुनाव जीत पाई लेकिन जीत पर डॉक्टर रमन सिंह के घमंड और अहंकार के साथ अधिकारी भी सभी पर हावी हो गये। मुझे कई कैबिनेट मंत्री बताया करते थे, कि कोई भी अगर डॉक्टर रमन सिंह से फाइल में हस्ताक्षर कराने हैं, तो वह पहले अमन सिंह जैसे बड़े नौकरशाह के आंख के नीचे से गुजरते है। किसी विभाग के अधिकारी का ट्रांसफर भी करना होता था तो वह अमन सिंह के पास फाइल जाता। उसके बाद मुख्यमंत्री के पास जाता था। इसी बहाने उस अधिकारी को सूचित कर देते थे, तथा जरूरत के हिसाब से दक्षिण ले लेते थे। विभागीय कैबिनेट मंत्री केवल हाथ मलता रहा। मंत्री अपने क्षेत्र में अपने मंत्रालय में अपने विभाग में ठीक से काम नहीं कर पाता था। वही करता कोई शिकायत लेकर जाता तो उसे उस अधिकारी के खिलाफ पहले ही सूचना मिल जाती थी। 2013 के बाद अफसरशाही इतना बेलगाम हो गया कि वह स्थानीय कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ता से दूर होकर आम जनता से दूर होकर केवल मुख्यमंत्री की झूठी तरफ करते थे।अपने ही सरकार के सामने बारे में उलझ गये। आप सभी को जानते हैं बोनस तिहार मोबाइल तिहार जैसे बेहिसाब खर्चों में अनाप-शनाप खर्च किया गया जिससे जनता को लगने लगा कि सरकार गलत करेंगे। 
उसी प्रकार 2003 में सत्ता में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने रमन सिंह को स्टेबल इस करने के लिए उस समय की सरकार को देने के लिए जो स्थानीय स्तर पर आदिवासी लीडरशिप था उसको एक-एक करके खत्म करना शुरू किया जिस लीडरशिप में शिकार हुए शिवप्रताप सिंह, गणेशराम भगत, नंदकुमार साय, बलीराम कश्यप और ननकीराम नेताम जैसे अनेक आदिवासी नेता नेताओं का एक तरीके से राजनीति से किनारे किया गए। उन्हें चुनाव में टिकट नहीं दिया गया या फिर चुनाव में हरवा दिया गया। इसका शिकार गणेश राम भगत और ननकी राम नेताम आदि हुए हैं। वैसे ही वीरेंद्र पांडेय और तारा चन्द्र साहू आदि नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया गया। 2003 में सरगुजा संभाग और बस्तर संभाग से भाजपा की सरकार बनी डॉ रमन सिंह मुख्यमंत्री बने थे उन सभी स्थानों पर भारतीय जनता पार्टी के विधायक शून्य हो गए हैं। 2003 के चुनाव परिणाम देखेंगे तो सबसे पहले जो बिलासपुर रायपुर और दुर्ग में और सीटें जीती गई थी लेकिन सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाले आदिवासी बहुल क्षेत्रों में अब बीजेपी नेता की गई है उसका कारण है कि जो मजबूत आदिवासी लीडरशिप था भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ताओं के एक प्रकार से राजनीतिक हत्या कर दिया उसका परिणाम भारतीय जनता पार्टी को मिल रहा है दूसरी तरफ हम देखें तो भूपेश सरकार स्थानीय स्तर पर


शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

विनायक दामोदर सावरकर और भारतरत्न



विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के प्रखर राष्ट्रवादी हिन्दू नेता थे। उन्हें प्रायः स्वातंर्त्यवीर , वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा को एक राजनीतिक विचारधारा से हिन्दुत्व को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। भारतीय स्वाधीनता-संग्राम के एक महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता, वकील, नाटककार, राजनीतिज्ञ तथा दूरदर्शी राजनेता के साथ युगदृष्टा भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी थे, जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढंग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने १८५७ के प्रथम स्वातंर्त्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था।

जब वीर सावरकर जी ने 1907 में ‘1857 का स्वातंर्त्य समर’ लगभग 1000 पेज के ग्रंथ लिखना शुरू किया। ब्रिटिश सरकार ने प्रकाशन से पूर्व जब्त कर लिया था जिसके बाद प्रथम भारतीय, नागरिक जिन पर हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाया गया। प्रथम क्रांतिकारी, जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा दो बार आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई। भारत सरकार के वर्तमान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज ही कहा कि वीर सावरकर न होते तो 1857 की क्रांति इतिहास न बनती और उसे भी हम अंग्रेजों की दृष्टि से ही देखते। कहने का अर्थ यह है कि  ‘‘वीर सावरकर ने ही 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम देने का काम किया वरना आज भी हमारे बच्चे उसे अंग्रेजों की सरकार के खिलाफ सैनिक विद्रोह ( विप्लव ) के नाम से जानते। 

प्रथम साहित्यकार, जिन्होंने लेखनी और कागज से वंचित होने पर भी अंडमान जेल की दीवारों पर कीलों, काँटों और यहाँ तक कि नाखूनों से 6000 कविताएँ लिखकर विपुल साहित्य का सृजन किया ऐसी सहस्रों पंक्तियों को वर्षों तक कंठस्थ कराकर अपने सहबंदियों द्वारा देशवासियों तक साहित्य गंगा पहुँचाया। प्रथम भारतीय लेखक, जिनकी पुस्तकें मुद्रित व प्रकाशित होने से पूर्व ही दो-दो सरकारों ने जब्त कीं। वे जितने बड़े क्रांतिकारी उतने ही बड़े साहित्यकार भी थे। अंडमान एवं रत्ना गिरि की काल कोठरी में रहकर कमला’, ‘गोमांतकएवं विरहोच्छ्वासऔर हिंदुत्व’, ‘हिंदू पदपादशाही’, ‘उरूश्राप’, ‘उत्तरक्रिया’, ‘संन्यस्त खड्गआदि ग्रंथ लिखे।

उन्होंने परिवर्तित धर्मातरित हिंदुओं के हिंदू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं आंदोलन चलाये। सावरकर ने भारत के एक सार के रूप में एक सामूहिक हिन्दुओ के पहचान बनाने के लिए हिंदुत्व का शब्द गढ़ा। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद और सकारात्मकवाद, मानवतावाद और सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे। सावरकर एक नास्तिक और एक कट्टर तर्कसंगत व्यक्ति थे जो हिन्दू  धर्मों में रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था, 'स्वदेशी' का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी, जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।

ऐसे महान क्रांतिकारी व्यक्तित्व को भारतरत्न नहीं दिया गया है यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात है। सन 2000 तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने भारतरत्न देने के लिए प्रयास किये, राष्ट्रपति ने मना कर दिया लेकिन सेलुलर जेल में सावरकर के स्मृति में पट्टिका लगाई गई, जिसे बाद में कांग्रेस सरकार ने हटा दिया गया कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वीर सावरकर को महान क्रांतिकारी बताया था। इंदिरा गांधी ने महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के योगदान को पहचाना था। उन्होंने 1970 में वीर सावरकर के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। इसके साथ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सावरकर ट्रस्ट में अपने निजी खाते से 11,000 रुपए दान किए थे। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी ने साल 1983 में फिल्म डिवीजन को आदेश दिया था कि वे महान क्रांतिकारी सावरकर के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाएं। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस पार्टी के नेता सावरकर के जीवन पर प्रश्न खड़ा कर रही है। कांग्रेस पार्टी के नेता महात्मा गाँधी की हत्या शामिल होने का आरोप लगा रही है।

लेकिन न्यायालय ने जो फैसला दिया है, उसमें गांधी हत्या के केस में सावरकर निर्दोष बाहर आए हैं। सावरकर एक प्रकार के देशभक्त हैं, उनका जीवन और उनके परिवार के लोगों ने पूरा जीवन देश के लिए समर्पित किया है। सावरकर जैसा त्याग बलिदान किसी ने नहीं किया। इसलिए सावरकर जी का अपमान होगा। एक देशभक्त, एक क्रांतिकारी के अपमान का काम किसी को नहीं करना चाहिए। उनके विचारों के बारे में मतभेद हो सकते हैं। लेकिन मेरे जैसे लोगों के लिए सावरकर हमारे प्रेरणा स्रोत हैं। इसलिए स्वातंर्त्यवीर सावरकर को भारत रत्न देना चाहिए। 



बुधवार, 16 अक्तूबर 2019

आज श्री राम मंदिर पर सप्रीमकोर्ट में सुनवाई पूरी हुई, अब फैसला..

आज श्री राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट में 40 दिनों तक चली मैराथन सुनवाई बुधवार को पूरी हो गई है हम सभी जानते है कि सुप्रीम कोर्ट अपना फ़ैसला 17 नवंबर से पूर्व सुनाएगा क्योंकि मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। रिटायरमेंट से पूर्व श्री राम जन्मभूमि पर फैसला सुनाकर ही रिटायर होना चाहते है वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई। यदि ऐसा नहीं होता है तो  नई बेंच बनेगा और फिर से सुनवाई होगी क्योकि मुख्य न्यायाधीश ही फैसला सुनायेगे या फिर भारतीय संविधान के अनुसार धारा 128 के अंर्तगत राष्ट्रपति महोदय द्वारा इस मामले दिया जा सकता है।

श्री राम जन्मभूमि पर ऐतिहासिक फ़ैसला होगा। भारतीय राजनीतिक में बेहद संवेदनशील श्री राम जन्मभूमि और विवादित ढाचा की ज़मीन के मालिकाना हक़ पर विवाद है एक दिन पहले जस्टिस गोगोई ने कहा था कि बुधवार की शाम पाँच बजे तक सुनवाई पूरी हो जाएगी लेकिन बुधवार को एक घंटे पहले ही सुनवाई पूरी करने की घोषणा कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर दलीलें बाक़ी हों तो संबंधित पक्ष तीन दिन के भीतर लिखित रूप में दे सकते है।

श्री राम जन्मभूमि और विवादित ढाचा पर ज़मीन विवाद को सुनने वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के मुख्य न्यायधीश जस्टिस माननीय राजन गगोई दूसरे चार माननीय न्यायाधीशों के नाम जस्टिस शरद अरविंद बोबडेजस्टिस अशोक भूषणजस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर है। देश की सर्वोच्च अदालत ने श्री राम जन्मभूमि और विवादित ढाचा के मामले पर 6 अगस्त से लेकर 40 दिन तक प्रति दिन सुनवाई की थी। अब पांचो जजों को अपना फैसला लिखना है, और यह सरल भी नहीं 30,000 पेज का अध्ययन तथा इस संबध में वेद पुराण का अध्ययन भी दुनिया इस तरह का कोई मामला हुआ है तो उस पर निर्णय क्या हुआ था इन सभी बिन्दुओ पर अध्ययन कर माननीय जजों को पहले अपना फैसला लिखना होगा। अब 23 दिनों के अन्दर फैसला सुनना है, यह एक चमत्कार से कम नहीं है। चीफ जस्टिस रंजन गोंगोई यह बात कह चुके है   

मुझे स्मरण है कि 6 दिसम्बर 1992 में विवादित ढांचा गिर जाने के बाद मिले कुछ धार्मिक चिन्ह के आधार पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय महामहिम शंकर दयाल शर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की धारा 143 के अन्तर्गत अपना एक प्रश्न प्रस्तुत किया। प्रश्न था कि ‘‘क्या ढांचे वाले स्थान पर 1528 ईसवी के पहले कोई हिन्दू मंदिर था?’’ सर्वोच्च न्यायालय ने अधिग्रहण से संबंधित याचिकाओं तथा महामहिम राष्ट्रपति महोदय के प्रश्न पर लम्बी सुनवाई की। सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार के सालीसीटर जनरल से पूछा कि राष्ट्रपति महोदय के प्रश्न का मन्तव्य और अधिक स्पष्ट कीजिए। तब सालीसीटर जनरल श्री दीपांकर गुप्ता ने भारत सरकार की ओर से दिनांक 14 सितम्बर 1994 को सर्वोच्च न्यायालय में लिखित रूप से सरकार की नीति स्पष्ट करते हुए कहा कि यदि राष्ट्रपति महोदय के प्रश्न का उत्तर सकारात्मक आता है अर्थात् ढांचे वाले स्थान पर 1528 ईस्वी के पहले एक हिन्दू मंदिर/भवन था तो सरकार हिन्दू भावनाओं के अनुरूप कार्य करेगी और यदि उत्तर नकारात्मक आता है तो मुस्लिम भावनाओं के अनुरूप कार्य करेगी।

अक्टूबर 1994 में न्यायालय ने अपना फैसला दिया और राष्ट्रपति महोदय का प्रश्न अनावश्यक बताते हुए सम्मानपूर्वक अनुत्तरित राष्ट्रपति महोदय को वापस कर दिया। विवादित 12000 वर्गफुट भूमि के अधिग्रहण को रद्द कर दिया, शेष भूमि के अधिग्रहण को स्वीकार कर लिया और कहा कि महामहिम राष्ट्रपति महोदय के प्रश्न का उत्तर तथा विवादित भूखण्ड के स्वामित्व का फैसला न्यायिक प्रक्रिया से उच्च न्यायालय द्वारा किया जायेगा। इस प्रकार सभी वादों का निपटारा करने तथा राष्ट्रपति महोदय के प्रश्न का उत्तर खोजने का दायित्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खण्डपीठ पर आ गया। (सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय 24 अक्टूबर, 1994 को घोषित हुआ और इस्माइल फारूखी बनाम भारत सरकार के नाम से प्रसिद्ध है जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रकाशित किया जा चुका है।) 
  
इससे पूर्व 30 सितम्बर 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नौ साल पूर्व अपने फ़ैसले में अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ ज़मीन को तीन बराबर के हिस्सों में बांटने का फ़ैसला सुनाया था इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रामललाइलाहाबाद सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के बीच बराबर-बराबर बाँटने का फ़ैसला सुनाया था 90 दिनों की सुनवाई के बाद तीनों जजों ने अपना फैसला सुनाया इस मामले के तीनों पक्षकारों यानी निर्मोही अखाड़ासुन्नी वक़्फ़ बोर्ड और राम लला ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुएइसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। 


मंगलवार, 8 अक्तूबर 2019

भारत को अपना राफेल RB001 मिलगा, रक्षामंत्री ने राफेल की शस्त्र पूजन किया






आज भारत के लिए ऐतिहासिक दिन हैभारतीय वायुसेना को 17 वर्ष बाद नई लड़ाकू विमान राफेल मिल ही गया अपने भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने विजयादशमी के शुभ दिन पर दुनिया के शक्तिशाली लड़ाकू विमानों में से एक राफेल RB001 भारत की वायुसेना में शामिल शस्त्र पूजन कर किया  है। फ्रांस के एयरबेस पर ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राफेल लड़ाकू विमान की की विधिवत शस्त्र पूजा भी की। उन्होंने राफेल जेट पर 'ऊं' लिखा।


कारगिल युद्ध के बाद अटल बिहारी की सरकार ने अपने भारतीय वायुसेना को मजबूत करने के लिए नए अस्त्र शस्त्र और नये लड़ाकू विमान की जररूत महसूस किया गया था। इसके लिए सेना के लिए नई तकनीक के साथ अपग्रेट तथा नवीनतम मिसाइलों से युक्त नई विमान पर कमीशन बना था। 2001 में भारतीय वायुसेना ने नई तकनीक की नई लड़ाकू विमान की मांग की। लेकिन 2003 में अटल विहारी बाजपेयी की सरकार की विदाई हो गई यह पूरी योजना ठंडे बसते में चली है। फिर 2007 में बार बार रक्षा मंत्रालय ने लड़ाकू विमानों की मांग की जिसके बाद कांग्रेस की मनमोहनसिंह की सरकार ने जागा और तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद ने वास्तविक खरीद प्रक्रिया 2007 में शुरू की। अगस्त 2007 में रक्षामंत्री एके एंटनी की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद ने 126 विमान खरीदने के प्रस्ताव पर को सहमति दी। इसके लिए दुनिया की सभी कम्पनियों को बुलाया गया इस में 6 कम्पनियों में जिसमे लॉकहेड मार्टिन का एफ-16, बोइंग एफ/ए -18 एस, यूरोफाइटर टाइफून, रूस का मिग -35, स्वीडन की साब की ग्रिपेन और राफेल शामिल थे। भारतीय वायुसेना ने विमानों के परीक्षण और उनकी कीमत के आधार पर राफेल और यूरोफाइटर को शॉर्टलिस्ट किया। यूरोफाइटर टायफून काफी महंगा है। इस कारण भी डलास से 126 राफेल विमानों को खरीदने का फैसला किया गया है।
इस सौदे की शुरुआत 10.2 अरब डॉलर यानी 5,4000 करोड़ रुपये में होनी थी। जिसमें 126 विमानों में 18 विमानों को तुरंत देने और अन्य की तकनीक भारत को सौंपने की बात थी। लेकिन 10 सालों में कांग्रेस की सरकार ने तब तक विमान खरीदी का कोई भी समझौता नहीं कर सकी।