आज श्री राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट में 40 दिनों तक चली मैराथन सुनवाई बुधवार को पूरी हो गई है। हम सभी जानते है कि सुप्रीम कोर्ट अपना फ़ैसला 17 नवंबर से पूर्व सुनाएगा क्योंकि मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। रिटायरमेंट से पूर्व श्री राम जन्मभूमि पर फैसला
सुनाकर ही रिटायर होना चाहते है वर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई। यदि
ऐसा नहीं होता है तो नई बेंच बनेगा और फिर से सुनवाई होगी क्योकि मुख्य न्यायाधीश ही फैसला सुनायेगे या फिर भारतीय संविधान के अनुसार धारा 128 के अंर्तगत
राष्ट्रपति महोदय द्वारा इस मामले दिया जा सकता है।
श्री राम जन्मभूमि पर ऐतिहासिक फ़ैसला होगा। भारतीय
राजनीतिक में बेहद संवेदनशील श्री राम जन्मभूमि और विवादित ढाचा की ज़मीन के
मालिकाना हक़ पर विवाद है। एक दिन पहले जस्टिस गोगोई ने कहा था कि बुधवार की शाम पाँच बजे तक सुनवाई
पूरी हो जाएगी लेकिन बुधवार को एक घंटे पहले ही सुनवाई पूरी करने की घोषणा कर दी
गई। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर दलीलें बाक़ी हों तो संबंधित पक्ष तीन दिन
के भीतर लिखित रूप में दे सकते है।
श्री राम जन्मभूमि और विवादित ढाचा पर ज़मीन विवाद को सुनने वाली
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के मुख्य न्यायधीश जस्टिस माननीय राजन गगोई दूसरे
चार माननीय न्यायाधीशों के नाम जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर है। देश की सर्वोच्च अदालत ने श्री राम जन्मभूमि और
विवादित ढाचा के मामले पर 6 अगस्त से लेकर 40 दिन तक प्रति दिन सुनवाई की थी। अब
पांचो जजों को अपना फैसला लिखना है, और यह सरल भी नहीं 30,000 पेज का अध्ययन तथा इस संबध में वेद पुराण का अध्ययन भी दुनिया इस तरह का कोई मामला हुआ है तो उस पर निर्णय क्या हुआ था। इन सभी बिन्दुओ पर अध्ययन कर माननीय जजों को पहले अपना फैसला लिखना होगा। अब 23 दिनों के अन्दर फैसला सुनना है, यह एक चमत्कार से कम नहीं है। चीफ जस्टिस रंजन गोंगोई यह बात कह चुके है।
मुझे स्मरण है कि 6 दिसम्बर 1992 में
विवादित ढांचा गिर जाने के बाद मिले कुछ धार्मिक चिन्ह के आधार पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय
महामहिम शंकर दयाल शर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय को संविधान की धारा 143 के अन्तर्गत अपना एक प्रश्न
प्रस्तुत किया। प्रश्न था कि ‘‘क्या ढांचे वाले स्थान पर
1528 ईसवी के पहले कोई हिन्दू मंदिर था?’’ सर्वोच्च न्यायालय
ने अधिग्रहण से संबंधित याचिकाओं तथा महामहिम राष्ट्रपति महोदय के प्रश्न पर लम्बी
सुनवाई की। सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार के सालीसीटर जनरल से
पूछा कि राष्ट्रपति महोदय के प्रश्न का मन्तव्य और अधिक स्पष्ट कीजिए। तब सालीसीटर
जनरल श्री दीपांकर गुप्ता ने भारत सरकार की ओर से दिनांक 14 सितम्बर 1994 को
सर्वोच्च न्यायालय में लिखित रूप से सरकार की नीति स्पष्ट करते हुए कहा कि यदि
राष्ट्रपति महोदय के प्रश्न का उत्तर सकारात्मक आता है अर्थात् ढांचे वाले स्थान
पर 1528 ईस्वी के पहले एक हिन्दू मंदिर/भवन था तो सरकार हिन्दू भावनाओं के अनुरूप
कार्य करेगी और यदि उत्तर नकारात्मक आता है तो मुस्लिम भावनाओं के अनुरूप कार्य
करेगी।
अक्टूबर 1994 में न्यायालय ने अपना फैसला दिया और
राष्ट्रपति महोदय का प्रश्न अनावश्यक बताते हुए सम्मानपूर्वक अनुत्तरित राष्ट्रपति
महोदय को वापस कर दिया। विवादित 12000 वर्गफुट भूमि के अधिग्रहण को रद्द कर दिया, शेष भूमि के
अधिग्रहण को स्वीकार कर लिया और कहा कि महामहिम राष्ट्रपति महोदय के प्रश्न का
उत्तर तथा विवादित भूखण्ड के स्वामित्व का फैसला न्यायिक प्रक्रिया से उच्च
न्यायालय द्वारा किया जायेगा। इस प्रकार सभी वादों का
निपटारा करने तथा राष्ट्रपति महोदय के प्रश्न का उत्तर खोजने का दायित्व इलाहाबाद
उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खण्डपीठ पर आ गया। (सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय
24 अक्टूबर, 1994 को घोषित हुआ और इस्माइल फारूखी बनाम भारत
सरकार के नाम से प्रसिद्ध है जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रकाशित किया जा चुका
है।)
इससे पूर्व 30 सितम्बर 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नौ साल
पूर्व अपने फ़ैसले में अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ ज़मीन को तीन बराबर के हिस्सों में
बांटने का फ़ैसला सुनाया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रामलला, इलाहाबाद सुन्नी
वक़्फ़ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के बीच बराबर-बराबर बाँटने का फ़ैसला सुनाया था। 90 दिनों की सुनवाई के बाद तीनों जजों ने अपना फैसला सुनाया। इस मामले के तीनों पक्षकारों यानी
निर्मोही अखाड़ा, सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड और राम लला ने
इलाहाबाद हाई कोर्ट के फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए, इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था।
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