शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

छत्तीसगढ़ भाजपा क्यों हार पर मंथन क्यों नहीं ?



छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की रमन सरकार 15 वर्षों में जिस तरह का कुशासन व्यवस्था कियाउसका परिणाम यह हुआ है कि भारतीय जनता पार्टी का पूरा संगठन समाप्त हो गया है। पिछले 2018 के विधानसभा चुनाव में 90 सीटों में से 15 सीटों जीते थे, लेकिन 2019 के उपचुनाव में दंतेवाडा सीट ( विधायक भीमा मंडावी की नक्सली हमले में हत्या किया गया था) पर से हार जाने के बाद भाजपा की संख्या कुल 14 सीट हो गए है। लोकसभा चुनाव 2019 में भारतीय जनता पार्टी मोदी सरकार के नाम से 11 सीटों में से 9 सीटें जीती। लेकिन विधानसभा उपचुनाव में फिर से अपना बुरा परिणाम दोहराया है, दंतेवाड़ा विधानसभा सीट हारने के बाद, अब चित्रकूट विधानसभा भी भारतीय जनता पार्टी हार गई है। आज मिले जो परिणाम से यह बताता है कि भारतीय जनता पार्टी का संगठन अब बिल्कुल खोखला हो गया है। भाजपा के कार्यकर्ताओं में दबे जुबान में प्रदेश नेतृत्व पर परिवर्तन की आस हो रही है।
विधानसभा चुनाव 2003 में मिले भारी बहुमत के बाद भारतीय जनता पार्टी ने पीछे मुड़कर देखा ही नहीं। तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ रमन सिंह को पार्टी ने प्रदेश का मुखिया बनाया और विगत 15 वर्षों तक उन्होंने छत्तीसगढ़ में भाजपा का शासन किया। डॉ रमन सरकार शुरुआत के 5 साल भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ताओं को सुनते हुए, कार्यकर्ताओं के अनुसार योजना बनाकर जनहित में कार्य करती रही। लेकिन 2008 के चुनाव के बाद रमन सिंह धीरे धीरे अधिकारियों और उनके जो खास समर्थक और चापलूसी हैं उनके 30 अधिकारियों व नेताओं आसपास घिर के रह गई। जिसका परिणाम 2013 के चुनाव में पार्टी हारते हारते चुनाव जीत पाई लेकिन जीत पर डॉक्टर रमन सिंह के घमंड और अहंकार के साथ अधिकारी भी सभी पर हावी हो गये। मुझे कई कैबिनेट मंत्री बताया करते थे, कि कोई भी अगर डॉक्टर रमन सिंह से फाइल में हस्ताक्षर कराने हैं, तो वह पहले अमन सिंह जैसे बड़े नौकरशाह के आंख के नीचे से गुजरते है। किसी विभाग के अधिकारी का ट्रांसफर भी करना होता था तो वह अमन सिंह के पास फाइल जाता। उसके बाद मुख्यमंत्री के पास जाता था। इसी बहाने उस अधिकारी को सूचित कर देते थे, तथा जरूरत के हिसाब से दक्षिण ले लेते थे। विभागीय कैबिनेट मंत्री केवल हाथ मलता रहा। मंत्री अपने क्षेत्र में अपने मंत्रालय में अपने विभाग में ठीक से काम नहीं कर पाता था। वही करता कोई शिकायत लेकर जाता तो उसे उस अधिकारी के खिलाफ पहले ही सूचना मिल जाती थी। 2013 के बाद अफसरशाही इतना बेलगाम हो गया कि वह स्थानीय कार्यकर्ता भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ता से दूर होकर आम जनता से दूर होकर केवल मुख्यमंत्री की झूठी तरफ करते थे।अपने ही सरकार के सामने बारे में उलझ गये। आप सभी को जानते हैं बोनस तिहार मोबाइल तिहार जैसे बेहिसाब खर्चों में अनाप-शनाप खर्च किया गया जिससे जनता को लगने लगा कि सरकार गलत करेंगे। 
उसी प्रकार 2003 में सत्ता में आने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने रमन सिंह को स्टेबल इस करने के लिए उस समय की सरकार को देने के लिए जो स्थानीय स्तर पर आदिवासी लीडरशिप था उसको एक-एक करके खत्म करना शुरू किया जिस लीडरशिप में शिकार हुए शिवप्रताप सिंह, गणेशराम भगत, नंदकुमार साय, बलीराम कश्यप और ननकीराम नेताम जैसे अनेक आदिवासी नेता नेताओं का एक तरीके से राजनीति से किनारे किया गए। उन्हें चुनाव में टिकट नहीं दिया गया या फिर चुनाव में हरवा दिया गया। इसका शिकार गणेश राम भगत और ननकी राम नेताम आदि हुए हैं। वैसे ही वीरेंद्र पांडेय और तारा चन्द्र साहू आदि नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया गया। 2003 में सरगुजा संभाग और बस्तर संभाग से भाजपा की सरकार बनी डॉ रमन सिंह मुख्यमंत्री बने थे उन सभी स्थानों पर भारतीय जनता पार्टी के विधायक शून्य हो गए हैं। 2003 के चुनाव परिणाम देखेंगे तो सबसे पहले जो बिलासपुर रायपुर और दुर्ग में और सीटें जीती गई थी लेकिन सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाले आदिवासी बहुल क्षेत्रों में अब बीजेपी नेता की गई है उसका कारण है कि जो मजबूत आदिवासी लीडरशिप था भारतीय जनता पार्टी कार्यकर्ताओं के एक प्रकार से राजनीतिक हत्या कर दिया उसका परिणाम भारतीय जनता पार्टी को मिल रहा है दूसरी तरफ हम देखें तो भूपेश सरकार स्थानीय स्तर पर


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