शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2019

विनायक दामोदर सावरकर और भारतरत्न



विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के प्रखर राष्ट्रवादी हिन्दू नेता थे। उन्हें प्रायः स्वातंर्त्यवीर , वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा को एक राजनीतिक विचारधारा से हिन्दुत्व को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। भारतीय स्वाधीनता-संग्राम के एक महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता, वकील, नाटककार, राजनीतिज्ञ तथा दूरदर्शी राजनेता के साथ युगदृष्टा भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी थे, जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढंग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने १८५७ के प्रथम स्वातंर्त्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था।

जब वीर सावरकर जी ने 1907 में ‘1857 का स्वातंर्त्य समर’ लगभग 1000 पेज के ग्रंथ लिखना शुरू किया। ब्रिटिश सरकार ने प्रकाशन से पूर्व जब्त कर लिया था जिसके बाद प्रथम भारतीय, नागरिक जिन पर हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाया गया। प्रथम क्रांतिकारी, जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा दो बार आजन्म कारावास की सजा सुनाई गई। भारत सरकार के वर्तमान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज ही कहा कि वीर सावरकर न होते तो 1857 की क्रांति इतिहास न बनती और उसे भी हम अंग्रेजों की दृष्टि से ही देखते। कहने का अर्थ यह है कि  ‘‘वीर सावरकर ने ही 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नाम देने का काम किया वरना आज भी हमारे बच्चे उसे अंग्रेजों की सरकार के खिलाफ सैनिक विद्रोह ( विप्लव ) के नाम से जानते। 

प्रथम साहित्यकार, जिन्होंने लेखनी और कागज से वंचित होने पर भी अंडमान जेल की दीवारों पर कीलों, काँटों और यहाँ तक कि नाखूनों से 6000 कविताएँ लिखकर विपुल साहित्य का सृजन किया ऐसी सहस्रों पंक्तियों को वर्षों तक कंठस्थ कराकर अपने सहबंदियों द्वारा देशवासियों तक साहित्य गंगा पहुँचाया। प्रथम भारतीय लेखक, जिनकी पुस्तकें मुद्रित व प्रकाशित होने से पूर्व ही दो-दो सरकारों ने जब्त कीं। वे जितने बड़े क्रांतिकारी उतने ही बड़े साहित्यकार भी थे। अंडमान एवं रत्ना गिरि की काल कोठरी में रहकर कमला’, ‘गोमांतकएवं विरहोच्छ्वासऔर हिंदुत्व’, ‘हिंदू पदपादशाही’, ‘उरूश्राप’, ‘उत्तरक्रिया’, ‘संन्यस्त खड्गआदि ग्रंथ लिखे।

उन्होंने परिवर्तित धर्मातरित हिंदुओं के हिंदू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं आंदोलन चलाये। सावरकर ने भारत के एक सार के रूप में एक सामूहिक हिन्दुओ के पहचान बनाने के लिए हिंदुत्व का शब्द गढ़ा। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद और सकारात्मकवाद, मानवतावाद और सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे। सावरकर एक नास्तिक और एक कट्टर तर्कसंगत व्यक्ति थे जो हिन्दू  धर्मों में रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे। वे पहले भारतीय थे जिन्होंने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था, 'स्वदेशी' का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी, जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की।

ऐसे महान क्रांतिकारी व्यक्तित्व को भारतरत्न नहीं दिया गया है यह देश के लिए दुर्भाग्य की बात है। सन 2000 तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने भारतरत्न देने के लिए प्रयास किये, राष्ट्रपति ने मना कर दिया लेकिन सेलुलर जेल में सावरकर के स्मृति में पट्टिका लगाई गई, जिसे बाद में कांग्रेस सरकार ने हटा दिया गया कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वीर सावरकर को महान क्रांतिकारी बताया था। इंदिरा गांधी ने महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर के योगदान को पहचाना था। उन्होंने 1970 में वीर सावरकर के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। इसके साथ पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सावरकर ट्रस्ट में अपने निजी खाते से 11,000 रुपए दान किए थे। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी ने साल 1983 में फिल्म डिवीजन को आदेश दिया था कि वे महान क्रांतिकारी सावरकर के जीवन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाएं। लेकिन इसके बाद भी कांग्रेस पार्टी के नेता सावरकर के जीवन पर प्रश्न खड़ा कर रही है। कांग्रेस पार्टी के नेता महात्मा गाँधी की हत्या शामिल होने का आरोप लगा रही है।

लेकिन न्यायालय ने जो फैसला दिया है, उसमें गांधी हत्या के केस में सावरकर निर्दोष बाहर आए हैं। सावरकर एक प्रकार के देशभक्त हैं, उनका जीवन और उनके परिवार के लोगों ने पूरा जीवन देश के लिए समर्पित किया है। सावरकर जैसा त्याग बलिदान किसी ने नहीं किया। इसलिए सावरकर जी का अपमान होगा। एक देशभक्त, एक क्रांतिकारी के अपमान का काम किसी को नहीं करना चाहिए। उनके विचारों के बारे में मतभेद हो सकते हैं। लेकिन मेरे जैसे लोगों के लिए सावरकर हमारे प्रेरणा स्रोत हैं। इसलिए स्वातंर्त्यवीर सावरकर को भारत रत्न देना चाहिए। 



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