आज भारत के लिए ऐतिहासिक दिन है, भारतीय
वायुसेना को 17 वर्ष
बाद नई लड़ाकू विमान राफेल मिल ही गया। अपने भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने विजयादशमी के शुभ दिन पर दुनिया के शक्तिशाली लड़ाकू विमानों में से एक
राफेल RB001 भारत की वायुसेना में शामिल शस्त्र पूजन कर किया है। फ्रांस के एयरबेस पर ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने
राफेल लड़ाकू विमान की की विधिवत शस्त्र पूजा भी की। उन्होंने राफेल जेट पर 'ऊं' लिखा।
कारगिल
युद्ध के बाद अटल बिहारी की सरकार ने अपने भारतीय वायुसेना को मजबूत करने के लिए
नए अस्त्र शस्त्र और नये लड़ाकू विमान की जररूत महसूस किया गया था। इसके लिए सेना के लिए नई तकनीक के साथ अपग्रेट तथा नवीनतम मिसाइलों
से युक्त नई विमान पर कमीशन बना था। 2001 में भारतीय
वायुसेना ने नई तकनीक की नई लड़ाकू विमान की मांग की। लेकिन 2003 में अटल विहारी बाजपेयी
की सरकार की विदाई हो गई। यह पूरी योजना ठंडे बसते में चली है। फिर 2007 में बार बार रक्षा मंत्रालय ने लड़ाकू विमानों की मांग की जिसके बाद
कांग्रेस की मनमोहनसिंह की सरकार ने जागा और तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी की
अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद ने वास्तविक खरीद प्रक्रिया 2007 में शुरू की। अगस्त 2007 में
रक्षामंत्री एके एंटनी की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद ने 126 विमान खरीदने के प्रस्ताव पर को सहमति दी। इसके लिए दुनिया की सभी कम्पनियों
को बुलाया गया इस में 6 कम्पनियों में जिसमे लॉकहेड मार्टिन का एफ-16, बोइंग एफ/ए -18 एस, यूरोफाइटर टाइफून, रूस
का मिग -35, स्वीडन की साब की ग्रिपेन और राफेल शामिल थे। भारतीय
वायुसेना ने विमानों के परीक्षण और उनकी कीमत के आधार पर राफेल और यूरोफाइटर को
शॉर्टलिस्ट किया। यूरोफाइटर टायफून काफी महंगा है। इस कारण भी डलास से 126 राफेल विमानों को खरीदने का फैसला किया गया है।
इस सौदे की शुरुआत 10.2 अरब डॉलर यानी 5,4000 करोड़ रुपये में होनी थी। जिसमें 126 विमानों में 18 विमानों
को तुरंत देने और अन्य की तकनीक भारत को सौंपने की बात थी। लेकिन 10 सालों में कांग्रेस
की सरकार ने तब तक विमान खरीदी का कोई भी समझौता नहीं कर सकी।
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