पीरा पयगम्बरा दिगम्बरा दिखाई देत, सिद्ध की सिधाई गई, रही बात रब की।
कासी हूँ की कला गई, मथुरा मसीत भई, शिवाजी न होतो तो सुनति होती सबकी॥
काशी कर्बला होती, मथुरा मदीना होती, शिवाजी न होते तो सुन्नत
होती सब की ॥
यह कविता वीर रस के कवि भूषण के द्वारा हिन्दूपदशाही छत्रपति शिवाजीराजे के यशस्वी राज्य तथा भारत वर्ष में उनके प्रभाव को बताता है, की यदि शिवाजीराजे ना होते तो भारत का क्या होता।
6 जून 1674 को वीर छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ था।
शिवाजी के सिंघासन आरोहण का प्रभाव अगली एक शताब्दी तक हम पूरे भारत में देखते है, जब मराठा शक्ति पूरे भारत पर छा गई। आज हिन्दवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी
महाराज की युद्धवीरता, दानवीरता, दयावीरता व
धर्मवीरता राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में यह ऐतिहासिक लेख हैं।
500 वर्षो में बाद इतना भव्य और दिव्य रूप से शिवाजीराजे का राज्याभिषेक हुआ, दुनियाभर देशों के प्रतिनिधि उपस्थिति थे। शिवाजी एक स्वतंत्र स्वराज्य चाहते थे। इसकी औपचारिक घोषणा के लिए शिवाजी ने अपने राज्याभिषेक का एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया। जिसमें अंग्रेज, फ्रेंच, स्पेनिश अन्य यूरोपीय देश यहां तक की रसिया के राज्य का प्रतिनिधित्व हुआ था। ऐसे सारे लोग राज्याभिषेक कार्यक्रम में उपस्थित थे इतना भव्य था, कि सैकड़ों वर्षो बाद ऐसा राज्याभिषेक हुआ था।
उस समय के सभी राज्य राज्य थे लेकिन शिवाजी महाराज जी का स्वराज्य था। अपना राज्य यहां के मूलभूत रहने वाले लोगों का राज्य था। शिवाजी ने जो राज्य स्थापित किया, वह अपना स्वराज्य था। अपने लोगों के द्वारा बनाया हुआ स्वाभिमान के साथ रहने वाला राज्य था हनी लोगों का राज यहां की समुदाय जाति धर्म के भेदभाव से ऊपर यह वास्तव में सही अर्थों में धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप देश को शिवाजी महाराज ने ही दिया था।
उस समय हिंदुस्तान के जो राज्य थे वह केवल राज्य मात्र से शिवाजी ने जो राज्य की स्थापना किया था वह अपना राज्य जिसे स्वराज्य और अपने स्वाभिमान के साथ अपना राज्य कर सके वह हिंदुस्तान के भूमि पुत्रों का राज यह राज उनका था जो 10 वर्षों से रह रहे थे वह जाति समुदाय धर्मों के भेदभाव से अलग धर्म और लोकतांत्रिक तरीकों से चलने वाला राज्य हिंदी स्वराज स्थापित किया था श्रेष्ठ विचार शिवाजी महाराज ने हमें दिया शिवाजी महाराज ने सभी धर्मों पर सभी धर्मों के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया किसी भी स्त्री पर अत्याचार किसी भी प्रकार कहीं भी नहीं होना चाहिए। शिवाजी महाराज ने धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार से भेदभाव नहीं किया था किसी भी स्त्री पर अत्याचार किसी भी स्थान पर, कहीं पर भी, नहीं होना चाहिए। वह किसी भी धर्म की क्यों ना हो, स्त्री सदैव बंदनी है, क्योंकि स्त्री सम्मान माता की तरह होना चाहिए।
इस घटना के बाद 1674 तक शिवाजी ने उन सभी इलाकों को फिर से
अपने अधिकार में ले लिया जो उन्होंने पुरंदर की संधि में गंवाए थे. लेकिन उन्हें
मराठाओं से वह समर्थन और एकता नहीं मिली जिसकी उन्हें जरूरत थी. उन्हें महसूस हुआ
कि राज्य को संगठित कर शक्तिशाली बनने के लिए उन्हें पूर्ण शासक बनना होगा और इसके लिए बड़े आयोजन के साथ राज्याभिषेक होना बहुत जरूरी
है. अपने विश्वस्तजनों से सलाह लेने के बाद उन्होंने राज्याभिषेक करवाने का फैसला
लिया.
उस दौर में कई मराठा सामंत ऐसे थे, जो शिवाजी को राजा मानने को तैयार नहीं थे. इन्हीं सब
चुनौतियों पर काबू पाने के लिए उन्होंने राज्याभिषेक की करवाने का फैसला लिया और
इस आयोजन की कई महीने पहले से तैयारी शुरू कर दी थी. उस समय का रूढ़िवादी ब्राह्मण
शिवाजी को राजा मानने के लिए राजी नहीं थे. उनके अनुसार क्षत्रिय जाति से ही कोई
राजा बन सकता था.
शिवाजी भोंसले समुदाय से आते थे जिन्हें ब्राह्मण क्षत्रिय
नहीं मानते थे, जबकि भोंसले दावा करते हैं कि वे सिसोदिया परिवार के वंशज
हैं. शिवाजी ने इसका भी हल निकाला और उत्तर भारत में काशी के गागा भट्ट के परिवार
से इसकी पुष्टि करवाई जिन्होंने मराठवाड़ा के ब्राह्मणों को राज्याभिषेक के लिए
मनाया. कहा जाता है कि इस समारोह में 50 हज़ार से ज़्यादा लोग शामिल हुए थे.
राज्याभिषेक में शामिल हुए लोगों ने 4 महीने शिवाजी के आथित्य में बिताए. पंडित
गागा भट्ट को लाने के लिए काशी विशेष दूत भेजे गए.
इसके बाद पूरे रीति रिवाज और धूमधाम से शिवाजी महाराज का
राज्याभिषेक समारोह संपन्न हुआ जिसे आज भी महाराष्ट्र में एक उत्सव की तरह मनाया
जाता है. हर साल रायगढ़ में यह समारोह विशेष तौर पर मनाया जाता है. इस राज्याभिषेक
के बाद ही शिवाजी महाराज को छत्रपति कहा जाने लगा
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