छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के कोंटा और आसपास के क्षेत्र के पोलावरम परियोजना के डुबान में आने की आशंका से स्थानीय लोगों में बने दहशत के माहौल बना हुआ है। आंधप्रदेश के गोदावरी नदी पर निर्माणाधीन पोलावरम राष्ट्रीय परियोजना जिसका मुख्य उदेश्य कृषि कार्य हेतु है। देश की सबसे बड़ी बहुउदेश्यीय पोलावरम बांध परियोजना का निर्माण 1978 से शुरू हुआ है। छत्तीसगढ़ की सीमा से 130 किलोमीटर दूर बन रही है लेकिन छत्तीसगढ़ के 18 ग्राम पंचायत डूबने वाला है तो वही दोरना जनजाति का अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। छत्तीसगढ़ में पोलावरम परियोजना से जुड़े अधिकारियों के साथ बैठक करके बांध के बैक वाटर से सबरी नदी में आने वाली बाढ़ से कोंटा तहसील के डुबान क्षेत्र का नक्शा मांगा गया है। दहशत का माहौल तब निर्मित हुआ जब पता चला कि पोलावरम बांध का निर्माण लगभग पूरा होने की स्थिति में आ चुका है।
डूबेंगे सुकमा जिले के अठारह गांव-
पोलावरम
परियोजना की उंचाई 45.75 मीटर से अधिक होनें पर सुकमा जिले के अठारह बसाहट क्षेत्र, राष्ट्रीय राजमार्ग का एर्राबोर से
कोंटा के बीच 13 किलोमीटर का हिस्सा, पांच हजार हेक्टेयर से
अधिक जमीन डूब जाएगी। डूबने वाले गांवों में कोंटा और वेंकटपुरम के अलावा ढोढरा,
सुन्नमगुड़, चिंताकोंटा, मंगलगुड़ा,
इंजरम, फंदीगुड़ा, इरपागुड़ा,
आसीरगुड़ा, पेदाकिसोली, बोजरायगुड़ा,
जगावरम, बंजामगुड़ा, मेटागुड़ा,
राजपेंटा, दरभागुड़ा शामिल हैं। उपरोक्त 18
गांव पांच ग्राम पंचायत और एक नगरपंचायत के तहत है। इसमें अधिकाश जनजाति की
जीविकापार्जन वनौपाज पर निर्भर है तथा कुछ खेतीबाड़ी करते है। वे वनभूमि पर काबिज
है लेकिन राज्यस्व विभाग के जानकारी नहीं है विस्थापित होने पर मुवाबजा और
विस्थापन कैसे हो गया अभी तक सरकार की नीति नहीं बनी है।
दोरला जनजाति के विलुप्त होने का खतरा
तहसीलदार कोंटा की राज्य शासन को भेजी गई रिपोर्ट के अनुसार पोलावरम् परियोजना के डूबान से दक्षिण बस्तर में रहने वाली दोरला जनजाति के विलुप्त होने का खतरा है, और ऐसा होने पर दोरला संस्कुति भी नष्ट हो जाएगी। दोरला जनजाति बस्तर में गोड जनजाति की उपजाति है। दोरला गोंड जाति की 56 शाखाओं में से एक है। यह जनजाति देश में सिर्फ दक्षिण बस्तर के विशेषत: कोंटा सुकमा क्षेत्र में निवास करती है। वर्ष 2010 में राजस्व विभाग द्वारा कराए गए। सर्वेक्षण के अनुसार कोंटा, ढोढरा, बंडा इंजरम, मूलका,किमोली, राजपेण्टा, बेंकुटपुरम, सुन्नमुंगडा, फंदीगुड़ा, इरपागुड़ा,आसीरगुड़ा, पेटा किसाली, बोजरायगुड़ा, डुबान प्रभावित गांवों मिलाकर यहां निवासरत लगभग 13 हजार आदिवासियों में अकेले 12,700 के आसपास दोरला जाति की आबादी है। नक्सलियों प्रभावित क्षेत्र होने के कारण कुछ लोग आन्धप्रदेश के कुछ जिले में सुरक्षित रहने हेतु चले गये है।
जिस
सर्वेक्षण की बात आंध्रप्रदेश सरकार द्वारा कही गई है। तत्कालीन कलेक्टर
के.आर.पिस्दा द्वारा प्रमुख सचिव जल संसाधन विवेक ढांढ को पत्र लिखकर (21 अप्रैल 2006) भेजकर संदेहास्पद करार दिया जा चुका है। इधर दोरला जाति
के विलुप्त होने की आशंका जताते हुए दंतेवाड़ा जिला प्रशासन ने 23 अगस्त
को राय शासन को एक रिपोर्ट प्रेषित किया है। यह रिपोर्ट 25 अगस्त
को मुख्य सचिव छ.ग. शासन की अध्यक्षता में पोलावरम् मुद्दे पर राजधानी रायपुर में
हुई बैठक में भी रखी गई थी। दोरला जनजाति के विलुप्त होने की आशंका के बारे में उप
क्षेत्रीय केन्द्र मानव विज्ञान सर्वेक्षण की मानव विज्ञानी डॉ. रंजूहासिनी साहू
का कहना है कि दोरला ही नहीं वन क्षेत्रों में निवास करने वाली कोई भी जनजाति
आसानी से विस्थापन स्वीकार नहीं कर सकती। यह उनका स्वभाव है।
छत्तीसगढ़ राज्य ने अभी तक नुकसान का विस्तृत आंकलन नहीं
किया-
बस्तर
सीमा के नजदीक आंध्रप्रदेश में गोदावरी नदी पर निर्माणाधीन पोलावरम परियोजना के
डूबान प्रभावित बस्तर संभाग के सुकमा जिले में सर्वे का कार्य अभी तक शुरू नहीं
हुआ है। सर्वे से डुबान क्षेत्रों में पड़ने वाले प्रभाव का वन जीव जंतुओं पर होने
वाले प्रभावों का भी अध्ययन होना चाहिए । साथ ही बांध के डुबान से जलमग्न होने
वाले खनिज भंडारों के बारे में रिपोर्ट तैयार करने का कार्य सर्वे से होना चाहिए। विदित हो कि बांध के डूबान से
सुकमा जिले के प्रमुख कस्बा कोंटा सहित अठारह बसाहट क्षेत्र आ रहे हैं। जहां की 50
हजार से अधिक की आबादी के भी प्रभावित होने की संभावना है।
सिविल सूट
निर्माणाधीन
इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना में सुप्रीम कोर्ट में दायर सिविल सूट में भाजपा
सरकार संशोधन करेगी। सिविल सूट में संशोधन का फैसला 19 मई को ही राज्य सरकार ने ले
लिया था। छत्तीसगढ़ शासन ने 20 अगस्त 2011 को
सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार के अधीन काम करने वाली संस्था केन्द्रीय जल आयोग
और आंध्रप्रदेश सरकार को पार्टी बनाया है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में दायर सिविल
सूट में संशोधन प्रस्ताव पिछले एक साल से लटका पड़ा था।
सबरी का बैक वॉटर मचाएगा तबाही-
पोलावरम
बांध से सबरी और इसके सहायक नालों में आने वाले बैक वॉटर से सुकमा जिले के एक बड़े
भू-भाग के डूबने की आंशका बनी रहेगी। परियोजना का निर्माण छग के कोंटा क्षेत्र में
डूबान का अधिकतम स्तर आरएल प्लस 150 फीट अर्थात 45.75 मीटर रखने पर सहमति हुई थी
पर वर्तमान स्थिति में आरएल 177 तक पहुंचने की बात कही जा रही है और यदि ऐसी
स्थिति बनती है तो सुकमा जिले के अठारह बसाहट क्षेत्र के डूबने का खतरा है। छग
सरकार ने बांध की उंचाई समझौते के अनुरूप आरएल 150 फीट रखने की मांग को लेकर
सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर कर रखी है। छग शासन का आरोप है कि परियोजना का
निर्माण समझौते का उल्लंघन करके किया जा रहा है। लेकिन इस बिंदु पर भूपेश बघेल सरकार कुछ
भी नहीं करती दिख रही है।