सोमवार, 26 अगस्त 2019

दामोदर गणेश बापट जी को कुष्ठ रोगियों के निस्वार्थ, सेवा भाव और समर्पण को देखते हुए भारत सरकार ने 2018 में पद्मश्री से सम्मानित किया


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक पूज्य डॉ केशव बलिराम हेडगेवार जी एक रेलवे स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। उस स्टेशन पर स्टेशन मास्टर के रूप में गणेश विनायक बापट नाम का नवयुवक था। उसने डॉक्टर हेडगेवार को पहचान गया और कहा कि आप ही नागपुर के डॉ हेडगेवार है। उन्होंने कहा मैं गणेश विनायक बापट हूं। आप ने मुझे पैसा देकर आर्थिक सहयोग किया था। आज मैं इस रेलवे स्टेशन पर नौकरी कर रहा हूँ। यह नौकरी आप के उस सहयोग से मुझे मिल गई है, आज मेरे दांपत्य जीवन का पहला दिन है। आप मेरे साथ मेरे घर चलिए और मेरा आतिथ्य स्वीकार करिए। 
डॉ हेडगेवारजी के आतिथ्य स्वीकार की है और उनके निवास स्थान पहुँचे। उनकी पत्नी श्रीमती लक्ष्मीबाई गणेश बापट ने भोजन बनाई और वह भोजन डॉक्टर हेडगेवार ने प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण किया। इन्ही दांपत्य से तीसरी संतान 29 अप्रैल 1935 जन्म लिया, जिसका नाम- श्री दामोदर गणेश बापट था, जिन्होंने अपना जीवन संघ के प्रचारक के रूप में समर्पित कर दिया। 52 वर्षों तक समाज के साथ चांपा कुष्ठ आश्रम में रहकर कुष्ठ रोग से ग्रसित रोगी की, उन्होंने निस्वार्थ भाव से सेवा किया। 18 अगस्त 2002 महामानव ने अपना देह मेडिकल कॉलेज बिलासपुर के छात्रों लिए छोड़ कर चले गए।

श्री दामोदर गणेश बापट मूल रूप से ग्राम पथरोट, जिला अमरावती, महाराष्ट्र के निवासी थे बचपन से ही उनके मन में सेवा की भावना कूट-कूटकर भरी थी। यही वजह है कि वे करीब 9 वर्ष की आयु से आरएसएस के स्वयसेवक व कार्यकर्ता बन गए। दामोदर बापट ने नागपुर से बीए और बीकॉम की पढ़ाई पूरी की। पढ़ाई पूरी करने के बाद बापट ने पहले कई स्थानों में नौकरी की, लेकिन उनका मन नहीं लगा। उन्हें पता चला की बाला साहेब देशपांडे जशपुर में वनवासियों के लिए उत्थान के लिए कार्य करते है, वे छत्तीसगढ़ के वनवासी कल्याण आश्रम जशपुरनगर पहुंचे और कल्याण आश्रम के कार्यकर्त्ता के रूप में बच्चों को पढ़ाने लगे। नागपुर जाते समय उन्हें पता चला की चाम्पा के पास कुष्ठ रोगियों का आश्रम है, वे देखने के लिए चले गए   

छत्तीसगढ़ के चांपा रेल्वे स्टेशन से आठ किलोमीटर दूर ग्राम सोठी में भारतीय कुष्ठ निवारक संघ द्वारा संचालित आश्रम में कुष्ठ रोगियों के लिए सेवाकार्य चलता है। भारतीय  कुष्ठ आश्रम की शुरुआत 1962 में कुष्ठ पीड़ित पूज्य सदाशिवराव गोविंदराव कात्रे ने की थी। 1972 में यहां वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता गणेश बापट पहुंचे और कात्रे जी के साथ मिलकर उन्होंने कुष्ठ पीड़ितों के इलाज और उनके सामाजिक आर्थिक पुनर्वास के लिए सेवा के साथ कई कार्यक्रमों की शुरुआत भी की। कुष्ठ रोग के प्रति लोगो को जागृत करने के अलावा कुष्ठ रोगियों की सेवा करने का कार्य प्रमुख रूप से दामोदर बापट ने किया है। 

दामोदर बापट जी के कुष्ठ रोगियों के निस्वार्थ सेवा भाव और समर्पण को देखते हुए भारत सरकार ने 2018 में पद्मश्री से सम्मानित किया है। भारत के राष्ट्रपति महामहिम कोविंद ने पद्मश्री से राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया


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