सोमवार, 24 जून 2019

आपातकाल- लोकतंत्र की हत्या

25 जून 1975 को देश में इंदिरा गाँधी द्वारा आपातकाल घोषित किया गया था "आपातकाल" इस दिन को भारत वर्ष में काले अध्याय के रूप में जाना जाता है भारत में लोकतंत्र के उदय के 27 वर्ष में ही, लोकतंत्र की जघन्य हत्या किया गया था इसके लिए केवल कांग्रेस पार्टी तथा श्रीमती इंदिरा गाँधी ही जिम्मेदार थी श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा अपने विरोधियों को समाप्त करने हेतु तथा संविधान द्वारा सामान्य नागरिक को मिले मौलिक अधिकार खत्म, प्रेस पर प्रतिबन्ध तथा आगामी आदेश तक सभी चुनाव स्थगित कर दिए गए थे  

शुरुआत 12 जून 1975 से हो गई, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इस दिन अपने बड़े और साहसिक फैसले में रायबरेली से सांसद के रूप में इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध करार दे दिया साथ ही हाईकोर्ट ने अगले 6 साल तक उनके किसी भी तरह के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी 'इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण' इस प्रकरण में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा को फोन द्वारा धमकी भी दी गई कि इंदिरा गाँधी के खिलाफ फैसले दिए जाने पर जान माल का खतरा रहेगा इसके बाद भी उन्होंने अपराधियों पर कानून डंडा चलाया 

1971 आम चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने रायबरेली संसदीय सीट से चुनाव लड़ा था और एक लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीती थीं लेकिन उनके प्रतिद्वंदी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार राजनारायण ने इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दे दी इंदिरा की इस जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह केस उस समय बेहद चर्चित रहा, जिसे 'इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण' के नाम से जाना गया लेकिन इस चुनाव पर फैसला 4 साल बाद 1975 में आया। इस फैसले के 11 दिन बाद 23 जून को इंदिरा ने सुप्रीम कोर्ट में इसकी चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए। 24 जून को सुप्रीम कोर्ट की ग्रीष्मकालीन अवकाश पीठ के जज जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि वे हाईकोर्ट के फैसले पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाएंगे लेकिन उन्होंने इंदिरा को प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की इजाजत दे दी. साथ ही यह भी निर्देश दिया कि वो अंतिम फैसला आने तक बतौर सांसद किसी भी तरह का मतदान नहीं कर सकेंगी

राजनारायण ने अपने केस में इंदिरा गांधी पर भ्रष्टाचार, सरकारी मशीनरी और संसाधनों के दुरुपयोग करने का आरोप लगाया राजनारायण की ओर शांतिभूषण (जो कि प्रशांत भूषण के पिता है) ने जबकि इंदिरा की ओर से नानाभाय पाल्खीवाला ने केस लड़ा शांतिभूषण ने राजनारायण का पक्ष रखते हुए कहा कि इंदिरा ने चुनाव प्रचार में सरकारी कर्मचारियों और संशाधनों तक का इस्तेमाल किया उन्होंने इसके लिए प्रधानमंत्री के सचिव यशपाल कपूर का उदाहरण दिया जिन्होंने राष्ट्रपति की ओर से इस्तीफा मंजूर होने से पहले ही इंदिरा के लिए काम करना शुरू कर दिया था यही दलील इंदिरा के खिलाफ गई और कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून के आधार पर उनके चुनाव को खारिज कर दिया

देश में कांग्रेस पार्टी के द्वारा भ्रष्टाचार तथा आम जनता और छात्रों पर हो रहे अत्याचार के कारण इस बीच गुजरात और बिहार में छात्र आंदोलनों के कारण विपक्ष एकजुट होता जा रहा था 'लोकनायक' जयप्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में विपक्ष एकजुट हो चुका था और केंद्र सरकार पर लगातार हमलावर थे हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष और हमलावर हो गया

इस बीच दिल्ली की रैली में जेपी ने प्रख्यात कवि रामधारी सिंह दिनकर की एक कविता का अंश 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' को अपना नारा बनाया और इसी को आधार बनाकर इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 की आधी रात देश में आपातकाल लगाने का फैसला लिया राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की ओर से हस्ताक्षर किए जाने के बाद देश में आपातकाल लगा दिया गया

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