2021 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहा है। इन विधानसभा चुनावों
में पश्चिम बंगाल का चर्चा ज्यादा हो रहा है। विधानसभा चुनाव से चंद माह पहले एक
बार फिर बंगाल की राजनीति में ‘नंदीग्राम’ सुर्खियों में है। पिछले तीन दशकों की राजनीति में 2007 की नंदीग्राम
आंदोलन को हथियार बना कर ही वर्तमान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 2011 में लेफ्ट पार्टी को अपदस्थ करने में सफलता
पाई थी।
पश्चिम बंगाल की
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पूर्व मंत्री नंदीग्राम आंदोलन के नायक रहे शुभेंदु
अधिकारी के टीएमसी छोड़ कर बीजेपी में शामिल होने के बाद लगातार नंदीग्राम की
चर्चा में है। नंदीग्राम के लिए टीएमसी और बीजेपी में लगातार संघर्ष की घटनाएं हो
रही हैं और वहां से लगातार झड़पें की खबरें आ रही हैं।
पश्चिम बंगाल के राजनीतिक इतिहास में नंदीग्राम का एक महत्वपूर्ण स्थान है। स्वतंत्रता के पहले भी नंदीग्राम ने अपने उग्र आंदोलन के कारण ब्रिटिश शासन को झुकाने में सफल रहा था. 1947 में देश की स्वतंत्रता से पहले, “तामलुक” को अजय मुखर्जी, सुशील कुमार धारा, सतीश चन्द्र सामंत और उनके मित्रों ने नंदीग्राम के निवासियों की सहायता से अंग्रेजों से कुछ दिनों के लिए मुक्त कराया था और ब्रिटिश शासन से इस क्षेत्र को मुक्त करा लिया था। भारत का यही एकमात्र क्षेत्र है, जिसे दो बार स्वतंत्रता मिली है।
1975 आपातकाल के बाद कम्युनिस्ट के पास पश्चिम बंगाल की सत्ता
कांग्रेस से छीन लिया था
लेकिन तब तक बंगाल से
उघोगपति बाहर जा चुके थे। कम्युनिस्ट का जन्म ही पूजीपतियों के विरुद्ध हुआ है। 1968 नक्सलवादी से
निकले नक्सलियों ने बंगाल को हिंसा आंदोलन, धरना, प्रदर्शन, मिलों और कारखानों में हड़ताल कर उघोगों को
बंगाल से बाहर अन्य राज्यों में जाने के लिए मजबूर कर दिया। बंगाल में कुछ समय बाद चीनी माओवादियों के अनुसार बंदूक की
नोंक से सत्ता प्राप्त करने की प्रयोग सफल होने के बाद, यह अन्य राज्यों में शुरू
की, लेकिन सफलता नही मिली। 1999 में
बंगाल में परिवर्तन की लहर दौड़ पड़ी ज्योति बसु ने समझदारी दिखाते हुए बुद्धदेव
भट्टाचार्य को नया मुख्यमंत्री का पद दिया। बेहाल बंगाल को फिर संवृद्धि बनाने के
लिए उघोगपतियों को राज्य में निवेश करने के लिए बुलाया। लेकिन हड़ताल, बंद, लेवी, मजदूर यूनियन के
कारण कोई भी नहीं आया।
2007 में मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने SEZ तहत स्पेशल इकोनॉमिक्स जोन जिसे आर्थिक गलियारा बनाकर काम शुरू करने की कोशिश की लेकिन 25 वर्षो से उघोगों का विरोध करना मँहगा पड़ा लेफ्ट सरकार को। पश्चिम बंगाल की लेफ्ट सरकार ने ‘स्पेशल इकनॉमिक जोन’ नीति के तहत नंदीग्राम में एक केमिकल हब की स्थापना करने की अनुमति प्रदान करने का फैसला किया था। राज्य सरकार की योजना को लेकर उठे विवाद के कारण विपक्ष की पार्टियों ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आवाज उठाई। टीएमसी, SUCI,जमात उलेमा-ए-हिंद और कांग्रेस के सहयोग से भूमि उच्छेद प्रतिरोध कमिटी (BUPC) का गठन किया गया और सरकार के फैसले के खिलाफ आंदोलन शुरू किया गया। इस आंदोलन का नेतृत्व तत्कालीन विरोधी नेत्री ममता बनर्जी कर रही थीं और इसके नायक शुभेंदु अधिकारी थे।
सत्तारूढ़ पार्टी के वरिष्ट नेताओं ने सभी विपक्षियों की उपेक्षा
करते हुए इस आन्दोलन को ‘औद्योगीकरण के खिलाफ’ करार घोषित किया और हालात तब बिगड़े जब समीप के हल्दिया के तात्कालीन एमपी
लक्ष्मण सेठ के नेतृत्व में ‘हल्दिया डेवलपमेंट अथॉरिटी’
ने भूमि अधिग्रहण के लिए नोटिस जारी कर दिया.।इसके परिणाम स्वरूप CPI(M)
और BUPC दोनों के समर्थकों के बीच हिंसात्मक
संघर्ष की घटना घटी। सत्तारूढ़ पार्टी ने अपना पिछला प्रभुत्व जमाने की कोशिश की
तो उसने नाकेबंदी को हटाने और परिस्थिति को “सामान्य”
बनाने के बहाने अपने प्रशासन को कार्यप्रवृत्त किया. 14 मार्च 2007 की रात को पार्टी के कार्यकर्ताओं ने
अपराधियों की सहायता से राज्य पुलिस के साथ मिलकर एक ‘जॉइंट
ऑपरेशन’ किया और कम से कम 14 लोगों की
हत्या कर दी गई। ममता बनर्जी के नेतृत्व में कई लेखकों, कलाकारों,
कवियों और शिक्षा-शास्त्रियों ने पुलिस फायरिंग का कड़ा विरोध किया,
जिससे परिस्थिति पर अन्य देशों का ध्यान आकर्षित हुआ
अंततः यह आंदोलन के दौरान सरकार को अपना फैसला
बदलना पड़ा, लेकिन इस आंदोलन का
राजनीति पर असर पड़ा और ममता बनर्जी ने जनमानस में अपनी छवि बनाने में सफल रही और
इसका परिणाम हुआ कि साल 2011 के विधानसभा चुनाव में लेफ्ट की
34 वर्षों के शासन को समाप्त करने में सफल रही और राज्य में
मां, माटी, मानुष की सरकार की स्थापना
की।
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