सोमवार, 14 जून 2021

सुशांत सिंह की मौत को एक वर्ष हो गए , लेकिन सीबीआई ने अभी पता नहीं लगा पाई की सुशांत केस में आत्महत्या या हत्या

 


आज सुशांत सिंह की पहली बरसी पर उनके समर्थकों ने #SushantSinghRajputDeathAnniversary पर याद किया है  आज सुबह से सोशल मिडिया ट्विटर पर #SushanthSinghRajput  पर ट्रेंड कर रहा था और फैंस ने #JusticeForSushantSinghRajput की मांग भी किये है  बीते साल आज के दिन की ये तारीख एक मनहूस खबर लेकर आई कि #सुशांत_सिंह_राजपूत इस दुनिया में नहीं रहे। 14 जून, 2020 उनके तमाम चाहने वालों को ऐसा सदमा दे गया, जिससे लोग आज भी उबर नहीं पाए हैं। वही उनके वकील विकास सिंह कहते है एक साल को गए है, अभी तक सीबीआई पता नहीं लगा पाई की हत्या है या आत्महत्या ?  

भारत के फिल्मी दुनिया या मुंबई फिल्मी दुनिया के एक होनहार अभिनेता सुशांत सिंह की संधिग्ध मौत ने पुरे देश को हिला दिया था। इसके बाद मुंबई फिल्मी दुनिया की काली सचाई जिसमें नशा खोरी, भाई भतीजावाद, नग्नता, हिंदुत्व और राष्ट्र विरोधी उनकी गतिविधियों देश के सामने आ गया। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद कंगना रनोट ने बॉलीवुड में भाई भतीजावाद (नेपोटिज्म) का मुद्दा उछाला था। इससे देशभर में नेपोटिज्म पर जमकर बहस हुई। बॉलीवुड में स्टार किड्स को मिलने वाले काम को लेकर बवाल हुआ, कई सितारों का सुशांत के फैंस ने बहिष्कार भी कर दिया। आलिया भट्ट की सड़क-2 का इस पर सबसे ज्यादा असर हुआ। बॉलीवुड दो हिस्सों में बंट गया था, लेकिन समय गुजरने के साथ नेपोटिज्म का मुद्दा भी हवा होता जा रहा है। 

सुशांत सिंह की मौत के बाद लोगों के भावना के अनुरूप मुंबई पुलिस ने सही दिशा में जाँच नहीं की। सुप्रीमकोर्ट के आदेश के बाद सी बी आई ने जाँच शुरू किया। लेकिन अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया की सुशांत की हत्या या आत्महत्या। अब  सुशांत सिंह की मौत पर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो भी नशीले पदार्थ ( Durg angle ) उपयोग सेवन करने की भी जाँच भी कर रही है।वही NCB ने सिद्धार्थ पिठानी को अचानक से हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया उसे कड़ाई से पूछताछ किया गया है सुशांत सिंह का शव बांद्रा के जिस फ्लैट में लटका मिला था, उस वक्त चार लोग थे। जिसमें सिद्धार्थ पिठानी (सुशांत के फ्लैट-मेट), दीपेश सावंत (सुशांत के दोस्त), नीरज सिंह (हाउस कीपर), केशव (कुक)। नीरज ने मीडिया से बातचीत में सुशांत की मौत से पहले की कहानी सुनाई थी। उसने बताया था कि सुशांत ने सुबह नाश्ता किया था। लेकिन जब 10:00 से 10:30 बजे स्टाफ उनसे यह पूछने गया कि लंच में क्या बनाना है, तो उन्होंने दरवाजा नहीं खोला।

14 जून 2020 को सुशांत सिंह  का शव उनके बांद्रा स्थित प्लैट में पंखे से लटका मिला था। मुंबई पुलिस ने प्राथमिक रिपोर्ट भी दर्ज करने से बच रही थी। मुंबई पुलिस का कहना था कि सुसाइड नोट भी नहीं मिला , सुशांत सिंह 6 महीने डिप्रेशन में था। मुंबई पुलिस ने सही दिशा में जाँच नही करने पर देश के लोगों में आक्रोश का संदेश गया हत्या या आत्महत्या। फिर सुशांत की मौत के दो महीने बाद उनके पिता ने पटना में बिहार पुलिस में केस दर्ज कराया था। उन्होंने कहा कि रिया चकवर्ती जहर देकर मार दिया तथा मेरे बेटे के 17 करोड़ रुपये ले ली है पटना पुलिस के अधिकारियों को मुंबई पुलिस के द्रारा सहयोग नहीं किया। बल्कि उनके अधिकारियों को 15 दिनों के लिए क्वरटाइन कर दिया। जिसके बाद बिहार पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में मामला लेकर गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वतंत्र विभाग CBI के द्वारा जाँच किया जाए। 

सुशांत सिंह की मौत पर मुंबई में हो रहे राजनीति में कुछ फोटो और वीडियो भी दिखी जिसमें नशा में दिखे। सुप्रीमकोर्ट ने यह केस  जब सीबीआई को सौंप दिया था। तो यहीं से प्रवर्तन निदेशालय (ED) की एंट्री इस केस में हुई और रिया के वॉट्सऐप चैट की जांच से ड्रग्स का एंगल सामने आया। ड्रग्स से जुड़ी चैट मिलने के बाद नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की एंट्री हुई और बॉलीवुड में चल रहे बड़े ड्रग्स का रैकेट का भंडाफोड़ हुआ। देश ने देखा की किस तरह सफ़ेद पर्दे के पीछे कितना घिनौना खेल होता है देश में प्रतिभावान लोगों को कैसे पीछे कर अभिनेतायो के निक्कमे लड़के या लड़की को काम मिल जाता है लेकिन प्रतिभावान लोगों को किनारे कर दिया जाता है 

सुशांत सिंह राजपूत एक प्रतिभावान व्यक्तित्व था दिल्ली में पढाई हुई है वही से इंजीयरिंग करने के बाद टीवी सीरियल में काम करना शुरू किया अपनी प्रतिभा के दम पर फिल्मों में काम करना शुरू किया सुशांत सिंह अपने मेहनत से मुंबई फ़िल्मी दुनिया में स्थान बनाया अब वह खत्म हो गया ......

 




शनिवार, 12 जून 2021

छत्तीसगढ़ के घोर नक्सली क्षेत्र में पुलिस सिलगेर कैम्प का विरोध | 28 दिनों से चल रहा आन्दोलन खत्म, कही छत्तीसगढ़ शासन के लिए नासूर न बनजाये


छत्तीसगढ़ के घोर नक्सली क्षेत्र सुकमा और बीजापुर के बीच में सिलगेर कैंप में 17 मई को हुई, फायरिंग में 3 लोग मारे गए थे। जब 40 गाँव से लगभग 3 हजार ग्रामीण सिलगेर में स्थापित किए जा रहे, पुलिस कैंप का विरोध करने पहुंचे थे। छत्तीसगढ़ के सुरक्षाबल लगातार बस्तर के हार्डकोर नक्सली इलाकों में कैंप स्थापित कर रहे हैं। पुलिस की बाते मानें तो नक्सलियों के दबाव में ग्रामीण इन कैंप का विरोध कर रहे हैं, यह बात सत्य भी है। 17 मई को भी इसी तरह 3 हजार के लगभग ग्रामीण सिलगेर में स्थापित हो रहे कैंप का विरोध करने पहुंचे थे। इसी बीच अचानक आंदोलन उग्र हुआ और ग्रामीण कैंप के अंदर घुसने की कोशिश करने लगे। ग्रामीणों ने कैंप पर पत्थरबाजी शुरू कर दी, साथ ही तीर भी बरसाने लगे। वहा पर उपस्थिति पुलिस के अनुसार ग्रामीण इतने आक्रामक हो गए थे कि उन्होंने कैंप के बेरिकेड को तोड़ने की कोशिश की। इसी दौरान ग्रामीणों के बीच में छुपे नक्सलियों ने पुलिस पर फायरिंग किये जाने के बाद, फिर दोनों ओर से गोलीबारी हुई थी। इस गोलीबारी में तीन ग्रामीण की मौत हुई,  तथा मचे भगदड़ में एक महिला घायल हो गई, जिसकी बाद में मौत हो गई, 5 अन्य ग्रामीण घायल भी हुए। इसके अलावा 13 डीआरजी और 6 सीआरपीएफ के जवान भी घायल हुए थे मामले में 8 लोगों को हिरासत में लिया गया है।



छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग पिछले 40 वर्षो से नक्सलियों का दंस झेल रहा है। भारत सरकार और छत्तीसगढ़ की सरकार ने कई विकास योजनाओं के कारण अब नक्सली गतिविधि ठंडा पड़ रहा है पहले जैसे लोग अब नक्सलियों से दूर हो रहे है इस कारण पिछले छ महीनों में नक्सली आक्रामक हो गए है वहा पर सुरक्षा बलों पर बार बार हमला कर रहे है इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अन्य स्थानों पर पुलिस कैप खोलना शुरू किया है नये पुलिस कैप खुलने से नक्सलियों गतिविधियों में लगाम लग रहा है इसलिए नक्सलियों ने ग्रामीणों को आगे कर अपना कैप विरोधी अभियान चल रहे है।    

छतीसगढ़ से 500 किमी दूर सुकमा जिले के कोंटा ब्लाक का सिलगेर पंचायत घोर नक्सल प्रभावित है। वहां जाने के लिए सड़क तक नहीं है। जगरगुड़ा थाने से जाना काफी मुश्किल होता है, जगरगुड़ा से करीब 16 किमी. दूर स्थित सिलगेर कैंप हैं। इसलिए वहां पर बीजापुर के पुलिस के जवानों द्वारा कैंप स्थापित किया गया है। साथ ही तर्रेम से सिलगेर तक सड़क बनाने का भी काम पुलिस कर रही है, जिसको नक्सलियों ने खोदने की कोशिश की थी, लेकिन पुलिस ने असफल कर दिया। मुख्यमार्ग से अंदर तक जाने के लिए सड़क बनाया जा रहा है। नक्सली सड़क में बम लगाना चाहते थे। सड़क पुलिस के देखरेख में बन रहा है। इस सड़क से पुलिस की पहुँच घोर नक्सली क्षेत्र में पुलिस तुरंत पहुच सकती है। नक्सलियों को इन सब बातोँ से ज्यादा डर लग रहा है कोरोना महामारी के कारण नक्सलियों की संख्या कम हो रही है  

अब घोर नक्सलियों क्षेत्रों में पुलिस सीआरपीएफ के साथ मिलकर नये पुलिस कैंप स्थापित कर रही है। इसी क्रम में सिलगेर पंचायत में नए पुलिस कैप बनाया गयाजिसका काम यह है कि पिछले 2003 से बंद बीजापुर और सुकमा राज्य मार्ग को फिर से शुरू किया जाये। इस मार्ग शुरू होने से घोर नक्सली क्षेत्र में पुलिस की गतिविधि तुरंत शुरू हो जाएगी जिसके बाद नक्सलियों द्वारा लगातार ग्रामीणों को गुमराह कर विरोध कराया जा रहा था। 13 मई से कैंप का विरोध ग्रामीण कर रहे है। ग्रामीणों का कहना है कि कैंप यहां पर नही खोला जाऐ। क्योंकि कैंप खुलेंगें तो ग्रामीणों के साथ मारपीट करेंगें और फर्जी केस में जेल भेज देंगें। इसलिए ग्रामीण यहां पर कैंप का विरोध कर रहे है। इसके अलावा जिले के अन्य नए कैंपों का विरोध ग्रामीण कर रहे है। यह सब बातें ग्रामीण नक्सलियों के डर से बोलते है। यदि ग्रामीण पुलिस कैप का विरोध नहीं करे तो उन्हें गाँव में जाकर 500 रूपये दंड या फिर उनकी सभा में मारपीट का सामना करना पड़ता है  


13 मई से यहां पर कैंप का विरोध आसपास के 40 गांवों के ग्रामीण कर रहे थे। रविवार को ग्रामीण वहां से चले गए थे,  लेकिन सोमवार सुबह से और ज्यादा संख्या में ग्रामीण जुटे जिनके हाथों में लाठी, डंडा, तीर धनुष व पारंपरिक हथियार थे। पुलिस का कहना है कि हिंसा पर उतारू लोगों ने सोमवार दोपहर करीब 12 बजे पत्थरबाजी शुरू कर दिया, फिर सुरक्षा में तैनात जवानों पर तीर बरसाए। इस बीच जंगल की ओर से भी गोलीबारी हुई, जिसके बाद पुलिस भी गोलीबारी की इसमें तीन लोग मारे गए। इनमें ग्राम चुटवाही थाना बासागुड़ा निवासी कवासी वेगा, सुकमा जिले के ग्राम तिप्पापुरम थाना चिंतलनार निवासी उइका मुरली और ग्राम गुंडम थाना बासागुड़ा निवासी उरसा भीमा शामिल हैं। गोलीबारी में मचे भगदड़ में एक महिला सोमाली घायल हो गई थी, लेकिन ईलाज के दौरान 25 मई को उसकी मौत हो गई। इस घटना के बाद तीनों शवों को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया। बीजापुर जिला अस्पताल में मंगलवार को पोस्टमार्टम किया गया। पुलिस ने मारे गए तीन लोगों को नक्सली बताया  जबकि ग्रामीण किसान बता रहे हैं। सूत्र से मिली जानकारी में 18 लोग हिंसक झड़प में जख्मी हुए हैं। इनमें तीन गोली लगने से घायल हुए हैं। 18 में से सात लोगों को बासागुड़ा में दाखिल किया गया है, जबकि जिला अस्पताल में 11 लोगों का इलाज चल रहा है। 



छत्तीसगढ़ सरकार भी सिलगेर कैप में झुकाने वाली नहीं लगा रही है मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा है कि 6 कैप और शुरू किये जायेगा हम नक्सलियों के उन्मूलन से पीछे नहीं हटेगे ग्रामीणों को आगे कर नक्सली अपना एजेंडा आगे बड़ा रहे। ट्विट्टर पर #बस्तर_में_जनसंहार_बंद_करो ट्रेंड होने पर भूपेश सरकार आंदोलनकारियो से बातचित शुरू किया जाये इस पर आंदोलन को खत्म कराने बस्तर के आईजी, कमिश्नर, कलेक्टर और एसपी स्तर के वरिष्ठ अधिकारी भी आंदोलनकारियो से मिलने पहुंचे पर बात नहीं बनी छत्तीसगढ़ सरकार ने ग्रामीणों को समझाने के लिए बस्तर के 5 विधायकों को सांसद दीपक बैच के नेतृत्व में भेजा। इस पर ग्रामीणों ने सीधे मुख्यमंत्री से चर्चा करने की मांग की अंत में आंदोलनकारी ग्रामीणों ने सीएम से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बात कर तब जाकर आंदोलन खत्म हुआ। आन्दोलन खत्म होने के बाद आंदोलन के नेताओं का मानना था कि आंदोलन में बढ़ते कोरोना और बारिश के वजह से आंदोलन को विराम दिया गया है भूपेश बघेल ने बीजापुर सुकमा जिले के इस सिलगेर में हुई घटना को दुर्भाग्यपूर्ण तथा परिस्थितिजन्य घटना थी उन्होंने कहा कि इस घटना की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए गए हैं।



छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले, 22 जवान शहीद, गृहमंत्री अमित शाह ने टॉप लेवल मीटिंग बुलाई

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रविवार, 6 जून 2021

हिन्दवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवा जी महाराज राज्याभिषेक | हिन्दू साम्राज्य उत्सव


पीरा पयगम्बरा दिगम्बरा दिखाई देत, सिद्ध की सिधाई गई, रही बात रब की।

कासी हूँ की कला गई, मथुरा मसीत भई, शिवाजी न होतो तो सुनति होती सबकी॥

काशी कर्बला होती, मथुरा मदीना होती, शिवाजी न होते तो सुन्नत होती सब की ॥

यह कविता वीर रस के कवि भूषण के द्वारा हिन्दूपदशाही छत्रपति शिवाजीराजे के यशस्वी राज्य तथा भारत वर्ष में उनके प्रभाव को बताता है, की यदि शिवाजीराजे ना होते तो भारत का क्या होता।  

6 जून 1674 को वीर छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ था। शिवाजी के सिंघासन आरोहण का प्रभाव अगली एक शताब्दी तक हम पूरे भारत में देखते है, जब मराठा शक्ति पूरे भारत पर छा गई। आज हिन्दवी स्वराज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्धवीरता, दानवीरता, दयावीरता व धर्मवीरता राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में यह ऐतिहासिक लेख हैं। 

500 वर्षो में बाद इतना भव्य और दिव्य रूप से शिवाजीराजे का राज्याभिषेक हुआ, दुनियाभर देशों के प्रतिनिधि उपस्थिति थे। शिवाजी एक स्वतंत्र स्वराज्य चाहते थे। इसकी औपचारिक घोषणा के लिए शिवाजी ने अपने राज्याभिषेक का एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया। जिसमें अंग्रेज, फ्रेंच, स्पेनिश अन्य यूरोपीय देश यहां तक की रसिया के राज्य का प्रतिनिधित्व हुआ था। ऐसे सारे लोग राज्याभिषेक कार्यक्रम में उपस्थित थे इतना भव्य था, कि सैकड़ों वर्षो बाद ऐसा राज्याभिषेक हुआ था। 

उस समय के सभी राज्य राज्य थे लेकिन शिवाजी महाराज जी का स्वराज्य था अपना राज्य यहां के मूलभूत रहने वाले लोगों का राज्य था शिवाजी ने जो राज्य स्थापित किया, वह अपना स्वराज्य था अपने लोगों के द्वारा बनाया हुआ स्वाभिमान के साथ रहने वाला राज्य था हनी लोगों का राज यहां की समुदाय जाति धर्म के भेदभाव से ऊपर यह वास्तव में सही अर्थों में धर्मनिरपेक्षता का स्वरूप देश को शिवाजी महाराज ने ही दिया था।

उस समय हिंदुस्तान के जो राज्य थे वह केवल राज्य मात्र से शिवाजी ने जो राज्य की स्थापना किया था वह अपना राज्य जिसे स्वराज्य और अपने स्वाभिमान के साथ अपना राज्य कर सके वह हिंदुस्तान के भूमि पुत्रों का राज यह राज उनका था जो 10 वर्षों से रह रहे थे वह जाति समुदाय धर्मों के भेदभाव से अलग धर्म और लोकतांत्रिक तरीकों से चलने वाला राज्य हिंदी स्वराज स्थापित किया था श्रेष्ठ विचार शिवाजी महाराज ने हमें दिया शिवाजी महाराज ने सभी धर्मों पर सभी धर्मों के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया किसी भी स्त्री पर अत्याचार किसी भी प्रकार कहीं भी नहीं होना चाहिए। शिवाजी महाराज ने धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार से भेदभाव नहीं किया था किसी भी स्त्री पर अत्याचार किसी भी स्थान पर, कहीं पर भी, नहीं होना चाहिए। वह किसी भी धर्म की क्यों ना हो, स्त्री सदैव बंदनी है, क्योंकि स्त्री सम्मान माता की तरह होना चाहिए।

इस घटना के बाद 1674 तक शिवाजी ने उन सभी इलाकों को फिर से अपने अधिकार में ले लिया जो उन्होंने पुरंदर की संधि में गंवाए थे. लेकिन उन्हें मराठाओं से वह समर्थन और एकता नहीं मिली जिसकी उन्हें जरूरत थी. उन्हें महसूस हुआ कि राज्य को संगठित कर शक्तिशाली बनने के लिए उन्हें पूर्ण शासक बनना होगा  और इसके लिए बड़े आयोजन के साथ राज्याभिषेक होना बहुत जरूरी है. अपने विश्वस्तजनों से सलाह लेने के बाद उन्होंने राज्याभिषेक करवाने का फैसला लिया.

उस दौर में कई मराठा सामंत ऐसे थे, जो शिवाजी को राजा मानने को तैयार नहीं थे. इन्हीं सब चुनौतियों पर काबू पाने के लिए उन्होंने राज्याभिषेक की करवाने का फैसला लिया और इस आयोजन की कई महीने पहले से तैयारी शुरू कर दी थी. उस समय का रूढ़िवादी ब्राह्मण शिवाजी को राजा मानने के लिए राजी नहीं थे. उनके अनुसार क्षत्रिय जाति से ही कोई राजा बन सकता था.

शिवाजी भोंसले समुदाय से आते थे जिन्हें ब्राह्मण क्षत्रिय नहीं मानते थे, जबकि भोंसले दावा करते हैं कि वे सिसोदिया परिवार के वंशज हैं. शिवाजी ने इसका भी हल निकाला और उत्तर भारत में काशी के गागा भट्ट के परिवार से इसकी पुष्टि करवाई जिन्होंने मराठवाड़ा के ब्राह्मणों को राज्याभिषेक के लिए मनाया. कहा जाता है कि इस समारोह में 50 हज़ार से ज़्यादा लोग शामिल हुए थे. राज्याभिषेक में शामिल हुए लोगों ने 4 महीने शिवाजी के आथित्य में बिताए. पंडित गागा भट्ट को लाने के लिए काशी विशेष दूत भेजे गए.

इसके बाद पूरे रीति रिवाज और धूमधाम से शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक समारोह संपन्न हुआ जिसे आज भी महाराष्ट्र में एक उत्सव की तरह मनाया जाता है. हर साल रायगढ़ में यह समारोह विशेष तौर पर मनाया जाता है. इस राज्याभिषेक के बाद ही शिवाजी महाराज को छत्रपति कहा जाने लगा

 




शुक्रवार, 4 जून 2021

6 दिनों की महायुद्ध | 6 अरब देशों को हरा कर युद्ध जीता था इजराइल



14 मई 1948 को इजराइल ने खुद को आजाद राष्ट्र घोषित किया था। इजराइल वो देश अपने दुश्मन अरबों से घिरे होने के बाद भी उनकी नाक में दम कर रखा है। अपने आजादी के दुसरे दिन ही अरबों ने हमला कर दिया था इस अचानक हुए हमला में इजराइल पूरी तैयारी के साथ लड़ाई लड़ा।अकेले ही इस लड़ाई में वह फिर से जीत गया। अब वह फिलिस्तीन के बहुत बड़े भूभाग में कब्जा कर लिया। 1967 में 6 देशों की मिश्रित सेना को 6 दिन में हरा दिया था।क्षेत्रफल में भारत के केरल से भी छोटा ये देश,  आज हर मामले में दुनिया के बड़े-बड़े देशों से आगे है। इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद का जिक्र होते ही दुश्मनों के पसीने छूट जाते हैं। आज भी अरबों से अपने को जीवित रखने के लिए युद्ध कर रहा है।   

इजरायल की मान्यता को लेकर अरब देश हमेशा से संघर्ष की स्थिति में रहे। शुरू में अरब देश इजरायल के वजूद पर सवाल उठाते रहते हैंवहीं इजरायल ने 1948 और 1967 की लड़ाई में अरब देशों को जबरदस्त मात देकर अतंरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की। आज भी इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष जारी है। 

अरब-इजरायल युद्ध जून 1967 को शुरु हुआ। इजरायली विमानों ने सुबह सुबह मिस्र की राजधानी काहिरा के नजदीक स्वेज के रेगिस्तान में सैन्य हवाई अड्डे पर जबरदस्त बमबारी की। कुछ घंटों के अंदर ही मिस्र के करीब सभी विमान मार गिराए गए। मिस्र के वायुक्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित कर पहले ही दिन इजरायल ने एक लड़ाई अपने नाम कर ली। मिस्र के सरकारी रेडियो ने इजरायल द्वारा हमला किए जाने की घोषणा की।  इजरायली विमानों ने काहिरा पर हवाई हमला कर दिया था। काहिरा में कई जगहों पर धमाकों के बीच एयरपोर्ट को बंद कर दिया गया और आपातकाल की घोषणा की गई। सीरिया रेडियो से ये खबर प्रसारित हुई कि इजरायल ने उनके देश पर हमला कर दिया है। जॉर्डन ने भी मॉर्शल लॉ लगा दिया। इजरायल के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने से पहले सीरिया ने अपनी सेना तो मिस्र के कमांड में देने का फैसला किया। सीरिया के साथ साथ इराककुवैतसूडान अल्जीरियायमन और फिर सऊदी अरब भी मिस्र के समर्थन में कूद पड़े।

अरब देशों के लड़ाई में कूदने के बाद मामला और गहरा गया। इजराएल-जॉर्डन मोर्चे पर जबरदस्त लड़ाई चल रही थी। सीरियाई विमानों ने तटीय शहर हैफा को निशाना बनाया। तो जवाब में इजरायल ने दमिश्क एयरपोर्ट को निशाना बनाया। मिस्र और इजरायल लड़ाई में अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थे। अरब देशों को यकीन था कि वो इस लड़ाई में इजरायल को जबरदस्त हार देंगे। लेकिन विश्व के नेता परेशान थेपोप पॉल छठे ने कहा कि यरुशलम को मुक्त शहर घोषित कर देना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाई गई। अमेरिका के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन ने सभी पक्षों से लड़ाई रोकने की अपील की। इजरायली सैनिकों ने गाजा के सरहदी शहर खान यूनिस पर हमला कर मिस्र और फिलिस्तीन के सैनिकों पर कब्जा कर लिया। इजरायल ने कहा कि उसने पश्चिमी सरहद को सुरक्षित कर लिया है। और उसकी सेनाएं दक्षिण हिस्से में मिस्र की सेना से मुकाबला कर रही हैं।

इजरायल ने कहा कि उसने मिस्र की वायुसेना को तबाह कर दिया है। लड़ाई के पहले ही दिन 400 लड़ाकू विमान मार गिराए गए जिसमें 300 विमान मिस्र के थे जबकि सीरिया के 50 लड़ाकू विमान शामिल थे। इस तरह लड़ाई के पहले दिन इजरायल ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी। इजरायली संसद नेसेट की बैठक में पीएम लेविस एशकोल ने बताया कि सभी लड़ाई मिस्र में और सिनाई प्रायद्वीप में चल रही है। उन्होंने कहा कि मिस्रसीरियाजार्डन और सीरिया की सेनाओं को गंभीर नुकसान पहुंचाया गया है।


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जून को युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर हुए और लड़ाई खत्म हो गई। लेकिन इस जीत ने दुनिया को हैरान कर दिया था। इजरायली नागरिकों का मनोबल बढ़ा और अंतरराष्ट्रीय जगत में इजरायल की प्रतिष्ठा में इजाफा हुआ। दिन तक चली लड़ाई में इजरायल के सिर्फ एक हजार सैनिक मारे गए लेकिन अरब देशों को करीब 20 हजार सैनिकों को खोना पड़ा। लड़ाई के दौरान इजरायल ने मिस्र से गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीपजार्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलमसीरिया से गोलन हाइट की पहाड़ियों को छीन लिया। मौजूदा समय में सिनाई प्रायद्वीप मिस्र का हिस्सा हैजबकि वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी फिलिस्तीन के इलाके मे हैं।हाल ही में अमेरिका द्वारा यरुशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दिए जाने पर मध्य पूर्व तनाव के ढेर पर खड़ा है। अमेरिका के इस कदम की दुनिया भर में आलोचना हुई

इन दोनों देशों के बीच जंग की एक प्रमुख वजह यरुशलम भी है। यरुशलम को दोनों देश अपनी राजधानी मानते हैं। पहले यह ईस्ट और वेस्ट यरुशलम के नाम से जाना जाता था लेकिन साल 1967 में इजरायल ने यरुशलम के काफी हिस्से पर कब्जा कर लिया। तब से लेकर आज तक इजरायल ने यरुशलम के लगभग पूरे हिस्से पर कब्जा कर लिया है। यरुशलम की अल अक्सा मस्जिद इस्लाम धर्म के लोगों के लिए तीसरी सबसे पवित्र जगह है। इसके आलावा यरुशलम में मौजूद टेम्पल माउंट को यहूदी और ईसाई दोनों धर्म के लोग अपने लिए एक पवित्र जगह मानते हैं।


अरब देशों की सेना ने अपने संख्या बल पर अतिआत्मविश्वास ले डूबा। जबकि इसके उलट इजरायली सेना कड़े अभ्यास और वास्तविकता में विश्वास करती थी। इजरायल के चीफ ऑफ स्टाफ यित्जाक राबिन को दौरा पड़ा और अरब देशों के नेता भी खुश हो गये। सीरिया के एक जनरल ने तो यहां तक कह दिया कि अधिक से अधिक चार दिनों के अंदर वो इजरायल को परास्त कर देंगे। इसके साथ ही मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नसीर फिक्रमंद नहीं थे। वो ये मानकर चल रहे थे कि इजरायली वायु हमला करने में सक्षम नहीं हैं। मिस्र के कुछ अधिकारी अपनी हार के बारे में कहते थे कि उनके शीर्ष कमांडरों का मानना था कि इजरायल को मटियामेट करना बच्चों के खेल की तरह है। ओरेन का कहना है कि इजरायल से ज्यादा अमेरिकी लड़ाई के परिणाम को लेकर ज्यादा आशान्वित थे। उन्हें लगता था कि अगर इजरायल की तरफ से लड़ाई की पहल हुई तो मुश्किल से उसे अपने शत्रुओं को परास्त करने में सात दिन का समय लगेगा। अगर इजरायल-अरब देशों की लड़ाई को देखें तो महज दिनों में अरब देशों को घुटने टेकने पड़े।

माइकल ओरेन द्वारा लिखी गई किताब Six Days of War: June 1967 and the Making of the Modern Middle East में बताया गया है कि 1967 के युद्ध के पीछे खास वजह क्या थी। इसके अलावा ये बताने की कोशिश की गई कि 1967 की लड़ाई ने वैश्विक राजनीति को किस तरह से प्रभावित की। 


अलग से -

14 मई 1948 को दुनिया का पहली यहूदी देश इजराइल अस्तित्व में आया

इसराइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष ...