शुक्रवार, 14 मई 2021

14 मई 1948 को दुनिया का पहली यहूदी देश इजराइल अस्तित्व में आया

 

वास्तव में इजराइल का इतिहास 4000 वर्ष पुराना है, यहाँ पर यहूदियों का राज था। 2000 वर्षो में पूरी दुनिया में यहूदी भटकते रहे। 14 मई 1948 में इजराइल ने खुद को संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से आजाद राष्ट्र घोषित किया था। इजराइल वो देश अपने दुश्मन अरबों से घिरे होने के बाद भी उनकी नाक में दम कर रखा है। 1967 में 6 देशों की मिश्रित सेना को 6 दिन में हरा दिया था क्षेत्रफल में भारत के केरल से भी छोटा ये देश, आज हर मामले में दुनिया के बड़े-बड़े देशों से आगे है। इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद का जिक्र होते ही दुश्मनों के पसीने छूट जाते हैं। आज भी अरबों से अपने को जीवित रखने के लिए युद्ध कर रहा है।   

आज दुनिया के नक्शे में इजराइल जिस आकार में है, इसके पीछे सालों पुराना इतिहास है। कभी इजराइल की जगह तुर्की का ओटोमान साम्राज्य हुआ करता था। लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध में अग्रेजों के तरफ से यहूदियों ने लड़ा था। इस युद्ध में तुर्की की हार के बाद इस इलाके में ब्रिटेन का कब्जा हो गया। यहूदियों ने अग्रेजों से अपने देश इजराइल को स्वत्रंत करने की मांग किया था। इस पर अंग्रेजों ने सहमति दिया ब्रिटेन उस समय एक बड़ी शक्ति था। आर्थर बालफ़ोर ब्रिटिश विदेश मंत्री थे, जिन्होंने 2 नवम्बर सन् 1917 को ब्रिटिश  संसद  में यह घोषणा की कि इज़रायल को ब्रिटिश सरकार यहूदियों का धर्मदेश बनाना चाहती है 1926 में जब आर्थर बाल्फोर प्रधानमंत्री बने तो उनकी यह घोषणा बाल्फोर घोषणापत्र के नाम से जाना जाता है जिसमें सारे संसार के यहूदी यहाँ आकर बस सकें। ब्रिटिस के मित्रराष्ट्रों ने इस घोषण की पुष्टि की। इस घोषणा के बाद से इज़रायल में यहूदियों की जनसंख्या निरंतर बढ़ती गई। लगभग 21 वर्ष के पश्चात् मित्रराष्ट्रों ने सन् 1948 में एक  इज़रायल  नामक यहूदी राष्ट्र की विधिवत् स्थापना की। 

द्वितीय विश्वयुद्ध तक ये इलाका ब्रिटेन के कब्जे में ही रहा। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ दो नई ताकत बनकर उभरे। ब्रिटेन को इस युद्ध में काफी नुकसान उठाना पड़ा। 1945 में ब्रिटेन ने इस इलाके को यूनाइटेड नेशन को सौंप दिया। 1947 में यूनाइटेड नेशन ने इस इलाके को दो हिस्सों में बांट दिया। एक अरब राज्य फिलीस्तीन और एक इजराइल। यरुशलम शहर को अंतरराष्ट्रीय सरकार के प्रबंधन के अंतर्गत रखा गया। अगले ही साल इजराइल ने अपनी आजादी का ऐलान किया। इसी के साथ आज ही के दिन 1948 में दुनिया के एक शक्तिशाली देश का गठन हुआ। इजराइल ने जैसे ही अपनी आजादी का ऐलान कियाइसके महज चौबीस घंटे के अंदर ही अरब देशों की संयुक्त सेनाओं ने उस पर हमला कर दिया। इजराइल के लिए ये लड़ाई कठिन जरूर थीलेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। करीब अगले एक साल तक ये लड़ाई चलती रही। नतीजा ये हुआ कि अरब देशों की सेनाओं की हार हुई।

वैसे यहूदियों का भारत से भी बहुत पुराना सम्बन्ध रहा है। रोमन साम्राज्य के कारण उन्हें इजराइल से जान बचाकर भागना पड़ा था। उस समय के गुजरात में पहुचे थे, उस समय के राजाओं ने उन सभी का अच्छे से सत्कार किया था। यही से भारत में घुल मिल गए, आज भारत के कई हर कोने में मिल जायेगे। आज भी भारत को वे लोग सेकेण्ड होम लैड कहते है। आज भी यहूदी कहते है की भारत में उनका बहुत सम्मान मिला है। इसलिए कभी भी भारत के लिए मदद की लिए हमेशा तैयार रहते है। जब भी पाकिस्तान से युद्ध में इजराइल तुरंत मदद के लिए रहते है। भारत ने 11 मई 1998 में परमाणु परिक्षण किया था इजराइल ने भारत का खुलकर समर्थन किया था। कारगिल लड़ाई के समय भी इजराइल ने हथियार दिए थे। अभी चीन से 16 जून 2020 को सीमा विवाद पर इजराइल भारत के साथ खड़ा था  

17 सितम्बर 1950 को भारत ने इज़राइल राष्ट्र को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान की। भारत राजनयिक सम्बन्ध नहीं था इसके दो कारण है  पहला, भारत गुट निरपेक्ष राष्ट्र था जो की पूर्व सोवियत संघ का समर्थक था तथा दूसरे गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की तरह इज़राइल को मान्यता नहीं देता था। दूसरा मुख्य कारण भारत फिलिस्तीन की स्वतन्त्रता का समर्थक रहा। यहाँ तक की 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीन (उन्स्कोप) नामक संगठन का निर्माण किया परन्तु 1989 में कश्मीर में विवाद तथा सोवियत संघ के पतन तथा पाकिस्तान के गैर-कानूनी घुसपैठ के चलते राजनितिक परिवेश में परिवर्तन आया और भारत ने अपनी सोच बदलते हुए इज़राइल के साथ सम्बन्धों को मजबूत करने पर जोर दिया और 1992 से नया दौर आरम्भ हुआ। 1992 इज़राइल के साथ भारत के राजनयिक सम्बन्ध स्थापित हुए। प्रधानमन्त्री नरसिंह राव ने इज़राइल के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध शुरू करने को मंजूरी दी। भूतपूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल अवधि में इज़राइल के साथ सम्बन्धों को नए आयाम तक पहुँचने की पुरजोर कोशिश की गयी। अटल बिहारी के प्रधानमन्त्री रहते हुए ही इज़राइल के तत्कालीन राष्ट्रपति एरियल शेरोन ने भारत की यात्रा की थी। वह यात्रा भी किसी इज़राइल राष्ट्रपति की पहली यात्रा थी। 2015 पहली बार भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का इज़राइल दौरा। जुलाई 2017  पहली बार भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की इज़राइल यात्रा।

 


लिंक -

https://hi.wikipedia.org/wiki/इज़राइल_का_इतिहास

क्या नेता और शासक इजरायल से प्रेरणा लेंगे ?

https://www.aajtak.in/education/history/story/yahudis-minorities-in-india-374776-2016-06-29

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