राहुल गाँधी ने 29 अक्तूबर 2017 को अपने
पालतू कुत्ता पीडी के साथ ट्विट्टर पर वीडियो को साझा किया था। उसी वीडियो पर
हेंमत शर्मा ने कमेन्ट किया कहा कि Sir @OfficeOfRG,who knows him better
than me.Still remember you busy feeding biscuits 2 him while We wanted to
discuss urgent Assam's issues..
उसके बाद लोगों ने हेमंत दा शर्मा को बारे
में जानने लगे। उनके बारे में देश की मीडिया में छापने लगा। तब जाकर लोगों को पता
चला की राहुल गाँधी कैसे नेता है ? हेमंत बताते है कि एक बार राहुल गाँधी से
मिलने गए थे। असम राज्य के बिषय पर उनके साथ राजस्थान के नेता सीपी जोशी और तत्कालीन
असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई थे। लेकिन राहुल गाँधी अपने पालतू कुत्ता पीडी के
साथ खेल रहे थे, कहा कि - “मैं, सीपी जोशी, तरुण गोगोई, हमारे प्रदेश का अध्यक्ष बात करते हुए सीपी
जोशी और गोगोई जी के बीच थोड़ा झगड़ा जैसा हो गया। तो वो कुत्ता टेबल पर आया, उसी समय और जो कॉमन प्लेट में बिस्कुट था, उससे बिस्कुट उठाया, मैं उम्मीद कर रहा था कि राहुल इस झगड़े में
कुछ बोलेंगे कि आप लोग झगड़ा मत करो। उन्होंने मुझे देखा और हंसे कि भाई कुत्ता
उठाकर के ले गया३ तो ठीक है। मैं चाहता था कि वो किसी को बेल मार कर के बुलाएगा कि
प्लेट चेंज करो। ये तो हमको एसपेक्टेशन था। प्लेट भी चेंज नहीं हुआ और फिर उसी
प्लेट से उठाकर दो एक बिस्किट भी खाया। मैं तो हैरान हो गया भाई, ऐसे कैसे देश चलेगा, उसी समय हेमन्त ने तय कर लिया की ऐसा तो
नहीं चलेगा अब कांग्रेस में काम करने से जनहित में नहीं है उसी समय राहुल गाँधी को
कह दिया कि उन्हें बोल कर के आया कि राहुल जी धन्यवाद आपने मुझे इतना काम करने का
मौका दिया।” हिमंत बिस्व सरमा ने कहा कि इसके बाद
उन्होंने राम माधव को फोन किया। राम माधव आरएसएस से बीजेपी में आए थे। दोनों लोग इस घटना पर काफी हंसे।
साल 2011 में तरुण गोगोई को जीत दिलाने में हेमंत बिस्वा शर्मा की अहम भूमिका थी।असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई से उनका काफी समय से चिक-चिक चल रहा था। तरुण गोगोई अपने बेटे गौरव को आगे लाना चाहते थे। लेकिन हेमंत शर्मा कांग्रेस पार्टी के मेहनत करते थे।इस तरुण गोगोई सरकार में उन्हें ज्यादा तवज्जों नहीं दी गई। जिसके बाद मनमुटाव की खबरें मीडिया के सामने लगातार आने लगी और हेमंत बिस्वा शर्मा राहुल गांधी से मिलने के प्रयास में जुट गए। लेकिन इस बीच राहुल गांधी हेमंत से नहीं मिले। इसे बाद पार्टी में अपने कद में आई कमी को देख हेमंत बिस्वा सरमा ने पार्टी से किनारा कर लिया। कांग्रेस को छोड़ने के बाद हेमंत बिस्वा शर्मा ने बताया कि उन्होंने राहुल गांधी को कई बार मिलने को लेकर फोन किया लेकिन राहुल गांधी की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। लेकिन अमित शाह को एक बार फोन करने पर ही वे मिलने को राजी हो गए। इसके बाद ही हेमंत बिस्वा सरमा ने भाजपा में शामिल होने का फैसला किया और भाजपा में शामिल हो गए। इसी वजह 21 जुलाई 2014 को हिमांता ने कांग्रेस के सभी पोस्ट से इस्तीफा दे, उन्होंने अपने समर्थक 10 विधायक सहित 23 अगस्त 2015 को अमित शाह के घर पर शर्मा ने बीजेपी प्रवेश किया। उस समय मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने उनके बाहर निकलने पर तीन शब्दों की प्रतिक्रिया दी थी की ‘ अच्छा छुटकारा मिला’। उसी समय 2016 में होने वाले चुनाव के लिए उन्हें भारतीय जनता पार्टी का संयोजक बनाया गया। 2016 में असम में चुनाव हुए जहां कांग्रेस के हिस्से आई हार और बीजेपी की बनी सरकार। कांग्रेस 26 सीटों पर सिमट गई, जबकि बीजेपी के खाते में 60 सीटें आईं।
माना जाता है कि उस वक्त हेमंत बिस्वा शर्मा के पॉलिटिकल मैनेजमेंट स्किल्स से अमित शाह काफी प्रभावित हुए थे। नॉर्थ-ईस्ट में बीजेपी के विस्तार में भी बिस्वा की अहम भूमिका मानी जाती है। अमित शाह ने भी इस बात को माना था। बिस्वा नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के संयोजक भी हैं। इस नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस का गठन क्षेत्रीय दलों को बीजेपी की अगुआई में लाने के लिए किया गया था। नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक (नेडा) के संयोजक के तौर पर उनके कार्यकाल के दौरान एक व्यापक जनाधार वाले नेता के रूप में उनका कद और भी बढ़ गया। उन्होंने अरुणाचल प्रदेश में पार्टी की सरकार बनने में मदद की और मणिपुर में भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई। 2018 में भाजपा के त्रिपुरा प्रभारी सुनील देवधर के साथ मिलकर सरमा राज्य के शीर्ष तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस नेतृत्व को तोड़ने और उन्हें भाजपा में शामिल होने को राजी करने में सफल रहे। सरमा की मदद से भाजपा पूर्वोत्तर के छह राज्यों में सत्ता में आने में कामयाब रही, चाहे तो चुनाव जीतकर या फिर गठबंधन करके।
70 के दशक में पाकिस्तानी सेना द्वारा आज के बांग्लादेश के जनता पर नरसंहार किया जा रहा था। उसी समय से असम में अवैध रूप से बांग्लादेश से आकर बसे लोगों के ख़िलाफ असमिया लोगों ने एकजुट होना शुरू कर दिया था। असम में अधिक संख्या में आते ही जनसंख्या असंतुलन होने से देखते-देखते इस मुहिम ने जनांदोलन का रूप लेना शुरू कर दिया जिसे असम आन्दोलन के नाम से जाना जाता है। 1980 तक आते असम गण परिषद् का गठन हुआ, 6 वर्ष लंबे बंगलादेशी घुसपैठियों के खिलाफ चलाये गए असम आन्दोलन की देन है। आन्दोलन के फलस्वरूप राजीव गाँधी तथा अखिल असम छात्र संघ के बीच ऐतिहासिक असम समझौता हुआ। इसके बाद ही असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) बनाया गया है।भारत का पहला राज्य असम राज्य है, जिसके पास राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) है। नागरिकता हेतु प्रस्तुत लगभग दो करोड़ से अधिक दावों की जाँच पूरी होने के बाद न्यायालय द्वारा एन.आर.सी. के पहले मसौदे को 31 दिसंबर 2017 तक प्रकाशित करने का आदेश दिया गया था। 31 दिसंबर 2017 को बहु-प्रतीक्षित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का पहला ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया। इसी आधार पर 20 नवम्बर 2019 को भारत के गृहमन्त्री अमित शाह ने संसद में कहा कि इस पंजी का पूरे भारत में विस्तार किया जाएगा। इसे भारत की जनगणना 1951 के बाद 1951 में तैयार किया गया था।
हेमंत बिस्वा शर्मा ने इसी अखिल असम छात्र संघ के तले छात्र राजनीति में रहकर काम करना शुरू किया दूर से राजनीतक गणितो को देखकर सीखना शुरू किया। 1985 तक ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में असमिया अस्मिता के आंदोलन में हिस्सा लिया था।हेमंत एक जमीनी स्तर के धैर्यवान कार्यकर्ता रहे हैं, जिन्होंने अपने काम के सरल स्वभाव बलबूते यह उचाई हासिल किया है। उन्होंने प्रफुल्ल कुमार महंत, जो आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे और चुनाव के बाद में असम के मुख्यमंत्री बने थे। उनके सहयोगी भृगु कुमार फुकन के साथ मिलकर काम किया और असम की राजनीति की बारीकियों को सिखा।1990 में कांग्रेस में शामिल होने के बाद सरमा ने पहली बार 2001 में गुवाहाटी के जलुकबाड़ी से चुनाव लड़ा और फुकन को हराया जो महंत के असम गण परिषद के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव मैदान में थे।वह तब से ही जलुकबरी सीट पर काबिज हैं। 2001 में पहली बार विधायक बनने से लेकर 2016 तक, चार बार विधायक रहे हिमंत चारो बार सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। लेकिन 5 वी बार जीतकर मुख्यमंत्री बने है असम में पहली बार अब तक गैर कांग्रेसी सरकार दूसरी बार लगातार सरकार बनी है। राजनीति में स्पष्ट महत्वाकांक्षी रखनेवाले है।
उन्हें लगातार काम करने के लिए जाना जाता है, जो रात में 12 बजे भी बैठक ले सकते हैं।उनके साथ काम करने वाले सिविल सेवकों का कहना है कि सरमा उन विषयों के बारे में गहरी समझ रखते हैं। जिन पर वह काम कर रहे होते हैं और बैठकों और चर्चाओं के लिए पूरी तरह तैयार होकर आते हैं।
असम की राजनीति के कद्दावर हेमंत की गिनती उन नेताओं में होती है। जिनकी दांत विरोधी भी देते हैं। अभी कुछ दिनों पहले दी लल्लनटॉप को दिए इंटरव्यू में कांग्रेस की गठबंधन सहयोगी यू डी ए आई के बदरुद्दीन अजमल ने भी हेमंत के दाद देते हुए कहा था कि उस आदमी में कोई तो खास बात है। कांग्रेस की सरकार में भी कैबिनेट मंत्री रहा और बीजेपी की सरकार में भी कैबिनेट मंत्री है। उन्होंने कहा था कि हेमंत के पास जो भी कोई जाता है, खाली हाथ नहीं आता।
वह दोस्तों के दोस्त हैं। दुश्मनों के दुश्मन है.....
https://himantabiswasarma.com/
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