सोमवार, 17 मई 2021

इसराइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष ...


यदि आप बाईबिल पढ़ते हैं, तो बाईबिल में पहले ओल्ड टेस्टामेंट आता है। उसके बाद न्यू टेस्टामेंट आता है, न्यू टेस्टामेंट में ईसा मसीह के जीवन और उनके उपदेशों का संग्रह है।  कहने का मतलब यह है कि ओल्ड टेस्टामेंट ही यहूदियों का पवित्र ग्रंथ का अंश है। ईसा मसीह के जीवन के पूर्व यदि इस धरती पर यहुदियो का स्थान था। इसे यूं ही कहा जाता था इजराइल में तीन धर्मों का पवित्र स्थान है, जिसमें यहूदी, ईसाई और मुसलमानों का भी यही ओल्ड टेस्टामेंट में यहुदियों के बारे में सभी धर्मों ओल्ड टेस्टामेंट ही का आधार है। जिसमें कुरान, बाईबिल अब समस्या समझ में आएगा। ईसाई और मुस्लिम से पहले यहां पर यहूदी लोग थे। ईसा मसीह के जन्म के बाद ईसाई पंथ शुरू हुआ। ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाए जाने के बाद ईसाई पंथ का शुरुआत हुआ। वैसे तो मोहम्मद साहब ने भी इस्लाम पंथ की शुरूआत किया थे।

वर्तमान में इजराइल का राजधर्म दुनिया के प्राचीन धर्मों में से यहूदी (Jewish) भी एक है। यहूदियों से ही ईसाई और इस्लाम की उत्पत्ति हुई। यदि एक ईश्वर पर विश्वास करते हैं,  मूर्ति पूजा को पाप समझते हैं। ईसा से 2000 वर्ष पूर्व यहूदियों के धर्म के शुरुआत पैगंबर अब्राहम से मना जाती है। पैगंबर इब्राहिम के पहले बेटे का नाम हजरत इस्साक और दूसरे का नाम हजरत इस्माइल था दोनों के पिता एक थे। किंतु मां अलग अलग थी, हजरत ईसा की मां का नाम सराहा था और पैगंबर अब्राहम के पोते का नाम हजरत याकूब था याकूब का दूसरा भी नाम इसराइल था। याकूब ने यहूदियों के 12 जाति को मिलाकर एक मिश्रित सम्मिलित राष्ट्र इजराइल बनाया था। याकूब के एक बेटे का नाम यहूदा (जूविस) था। यहूदा के नाम पर ही उसके वंशज यहूदी कहलाए और उनका धर्म यहूदी धर्म कहलाया। हजरत इब्राहिम को यहूदी, मुसलमान और ईसाई तीनों धर्म को लोग अपना पितामाह मानते हैं। आदम से अब्राहम और अब्राहम से मूसा तक यहूदी,  ईसाई और इस्लाम सभी के पैगंबर एक ही है किंतु मूसा के बाद यहूदियों को अपने अगले पैंगबर के आने का अब भी इंतजार है। यहूदी अपने ईश्वर को यहोवा कहते हैं। यहूदी मानते हैं कि सबसे पहले ये नाम ईश्वर ने हजरत मूसा को सुनाया था। ये शब्द ईसाईयों और यहूदियों के धर्मग्रंथ बाइबिल के पुराने नियम में कई बार आता है। ईसा से लगभग 1500 वर्ष पूर्व अब्राहम के बाद यदि इतिहास में सबसे बड़ा पैगंबर मूसा का है, मूसा ने यहूदियों के जाति प्रमुख व्यवस्था दिये थे। मूसा से पहले चली आ रही परंपरा को स्थापित करने के कारण यदि के धर्म संस्थापक माने जाते हैं।

इस्राएल में यहूदियों पर रोमन साम्राज्य ने कब्जा कर लिया। कहना उनका यही था, ईसा मसीह पर जो अत्याचार किए उन्हें जो सूली पर चढ़ाया गया। वह सारे यहूदियों के कारण थे इसलिए रोमन साम्राज्य ने उसका बदला लेने के लिए यहूदियों पर इजराइल में हमला कर दिया। तभी होती अपनी जान बचाकर इजराइल से अन्य देशों में जल मार्ग हल मार्ग से चले गए। जिसमें यूरोप और वैसे ही कुछ भारत में भी आए भारत में जो लोग आए हैं। उनके बारे में मैंने अपने ब्लॉग में लिखा है समुद्र के मार्ग से गुजरात पहुंचे थे गुजरात के तत्कालीन राजाओं ने इन नदियों का बहुत ही सम्मान किया तथा इनके रहने की भोजन की और इनके समाज की सुरक्षा।

प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों के तरफ से यहूदियों ने ऑटोमन साम्राज्य के विरुद्ध अंग्रेजों के साथ दिया था। अंग्रेजों से उन्होंने युद्ध में जीतने के बाद विरोधियों ने अंग्रेजों से अपने देश इजराइल की स्वतंत्रता की मांगU की। इस पर अंग्रेजों ने स्वीकृति दी और इस संबंध में 1917 में इंग्लैंड के विदेश मंत्री आर्थर ने इजराइल के बाद को स्पष्ट करते हुए। संसद में कहा इसके बाद योग्य ने पूरे दुनिया में इसकी लॉबिंग करने लगे इस संबंध में लोगों को जागरूक करने लगे के लिए इजराइल देश के समर्थन के लिए दुनिया के देशों से समर्थन मांगने लगे और कुछ यह होती वापस इसराइल में आकर जमीन खरीदना शुरू किए। अरब लोगों ने जिसको फिलिस्तीन कहेंगे बहुत ही ऊँचे दामों में इन जमीनों को यहूदियों को बेचा। 

द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गयाद्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन की बहुत बुरी हार हुई। ब्रिटेन ने इस कब्जे वाले क्षेत्र फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र को 1945 में सौंप दिया था। हिटलर ने 70 लाख यहूदियों को हत्या करवाया दिया था। जर्मन में हुए यहूदियों के नरसंहार से दुनिया के लोगों में सहानुभूति मिला। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस स्थान पर दो देशों को बांट दिया।लेकिन तत्कालीन फिलिस्तीनियों ने अस्वीकार कर दिया। यदि फिलिस्तीनी ने स्वीकार किया होता तो आज यह समस्या नही होती। तब 14 मई 1948 में इजराइल स्वतंत्र देश बना। फिलिस्तीन ने इसे अस्वीकार कर दिया। आज फिलिस्तीनियों की ऐतिहासिक गलती सिद्ध है। आज इजरायल ने गाजा में जो हवाई हमले हो रहे हैं, रक्तपात हो रहे हैं वह शायद नहीं होते यह फिलिस्तीन बहुत बड़ी गलती थी।

इजराइल के स्वतंत्र होने के 24 घंटे के अंदर फिलिस्तीन और 7 अरब देशों ने मिलकर इसराइल पर हमला कर दिया। इस अचानक हुए हमला में इजराइल पूरी तैयारी के साथ लड़ाई लड़ाअकेले ही इस लड़ाई में वह फिर से जीत गया। अब वह फिलिस्तीन के बहुत बड़े भूभाग में कब्जा कर लिया। उसका भूभाग 78 % हो गया फिलिस्तीन की जो जमीन मिल रही थी। 45% उसमें से उसके पास 22% बचा उसे इतना हीं संतोष करना पड़ा। इसे लेकर दुनिया में फिलिस्तीन की स्वतंत्रता की मांग करने लगा। 5 जून 1967 को फिर से इजरायल पर 6 अरब दोस्तों ने मिलकर 6 जून को हमला करने वाले थे।  लेकिन इसराइल को पता चल गया और 1 दिन पूर्व ही हो 5 जून को जॉर्डन, मिश्र पर हमला करके उनके एयर फोर्स को तबाह कर दिया। 6 दिन चले इस युद्ध में इसराइल ने पूरे फिलिस्तीन पर कब्जा कर लिया तथा अन्य अरब देशों को भी हरा दिया। यह हार फिलिस्तीन सहित अरब देशों को आज भी महंगी पड़ रही है। तब से इजरायल इन अरब देशों पर भारी पड़ता है। आज भी फिलिस्तीन पर जिस प्रकार से हम आज आतंकवादी संगठन आज भी इसराइल पर फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन हमास राकेट के द्वारा हमला कर रहा है।  इजराइल  भी जबावी कार्यवाही में फिलिस्तीनी लोग भी मर रहे हैं, इजराइल के लोग भी मर रहे हैं। दुनिया भी केवल तमाशा देख रही है। 

भारत सरकार भी बातचीत से शांति समाधान निकालने के पक्ष में है। भारत सरकार ने इजराइल को मान्यता तो दे दिया था। लेकिन राजनीतिक संबंध स्थापित नहीं किया था। उसका कारण था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू गुटनिरपेक्ष देश का समूह बनाए थे। जो शीत युद्ध में रूस घुटने पर एक देश बनाया था ना वह मेरे का केस गुट में थे ना सोवियत संघ के गुट में थे।  इसलिए गुटनिरपेक्ष देशों ने इजराइल को मान्यता नहीं दिया था। इसके कारण भारत में भी इजरायल को राजनीतिक संबंध स्थापित नहीं किया। लेकिन 1989 में सोवियत संघ टूट गया और दुनिया की राजनीति बदल गई। सोवियत संघ के टूटने से शीत युद्ध खत्म हो गया। इस बदली हुई परिस्थिति ने 1992 में भारत के उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने इजराइल को मान्यता दे दिया। इसराइल से राजनयिक संबंध शुरू हो गए और तब से राजनीतिक रूप से इजराइल हम लोग संबंध में भारत फिलिस्तीन और इजराइल के बीच में शांतिपूर्ण वार्ता से समस्या का हल निकालना चाहता है। लेकिन फिलिस्तीन की जो आतंकवादी संगठन हमास है यह नहीं चाहता कि शांतिपूर्वक बात हो। 

कोई टिप्पणी नहीं: