भारत का अपना गौरवशाली इतिहास
रहा है लेकिन अंग्रेजों के गुलामी के कारण उन इतिहासों को भारतीयों के सामने तोड़
मरोड़ कर पढाया जा रहा है। 1947 में भारत की आजादी
मिलने के बाद हमारे गुलामी के इतिहास को ही बताकर पढाया जाता रहा है। अंग्रेज नहीं आते
तो भारत का इतिहास खोजा नहीं जाता यहाँ तक कहा जाता रहा कि भारत के लोगों को
इतिहास नहीं लिखने आता है। भारत एक टुकड़े
टुकड़े में बाँट था अंग्रेजों ने आकर एक किया है। आज भी ऐसे बहुत सी बातों से हमारा इतिहास भरा हैं। किसी भी देश की आने
वाले पीढ़ी को उनके पूर्वजों के इतिहास से वंचित कर दिया जाय। वह नई पीढ़ी अपने
इतिहास को भूल जाते है, ऐसा ही भारत में भी हुआ। आजादी के बाद भारत में कई शिक्षा
मंत्री मुस्लिम थे। इस कारण स्वतंत्र
भारत के शिक्षा व्यवस्था अपने भारत के अनुसार लिखा जाना चाहिए, नहीं हो सका लेकिन अब जाकर UGC ने शुरुआत किया है।
यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) अब स्नातक स्तर पर
इतिहास के पाठ्यक्रम में बदलाव पर विचार कर रहा है। अभी तुरंत ही विश्वविद्यालय
आयोग ने पाठ्यक्रम के लिए एक ड्राफ्ट तैयार किया। जिसमे बीए प्रथम वर्ष के इतिहास
पाठ्यक्रम में नए सुधार किये है, अब आडिइया ऑफ भारत
नाम से जोड़ा गया है, जिसे ( Learning
Outcomes based Curriculum Framework (LOCF) For B.A. History Undergraduate
Programme 2021 ) कहा जा रहा है। हिंदू पौराणिक
कथाओं और धार्मिक परम्पराओ का ज्यादा उल्लेख किया गया है, फिर भी मुस्लिम शासन के
महत्वपूर्ण बिंदुओं को शामिल किया गया है, लेकिन काल्पनिक गुणगानो को हटा दिया गया
है। मुस्लिम आक्रान्ताओ जिन्होंने भारत में आकर हिन्दुओं की नरसंहार, धर्मांतरण किया गया, हमारी परम्परा और पवित्र स्थानों
मंदिरों, मठो, पाठशालाओं व
विश्वविद्यालयों को नष्ट कर, मुस्लिम परम्पराओ को
स्थापित किया गया था।
अब 1947 के बाद पहली बार वामपंथियों लेखकों और इतिहासकारों के यूजीसी ने
पाठ्यक्रम से उनके सन्दर्भ किताबें हटा दी हैं। जिन्होंने बड़े बड़े
इतिहासकारों की रूप में वामपंथियों विचार धारा के लोगों को स्थापित किया था। उनमें से कुछ प्रमुख लोगों
के किताबें को हटा दिया गया है, जैसे की प्राचीन भारत पर आरएस शर्मा, रोमिला थापर, रामचन्द्र गुहा, पीसी जोशी और मध्यकालीन
भारत पर इरफान हबीब की सन्दर्भ किताबें भी शामिल हैं। इनकी जगह पर राष्ट्रीय
विचारकों और भारतीय इतिहास की मान्यताओं को मानने वालों से जुड़े करीबी लेखकों की
किताबें शामिल की गई है। जैसे आर एस त्रिपाठी, बी पी सरकार, आर सी मजुमदार, विपिनचंद्र जैसे कई प्रसिद्ध
इतिहासकारों को शामिल किया गया है। जिन्हें वामपंथियों, मिशनरी, मुस्लिम मानसिकता
के लोगों ने भारत के इतिहास में घुसने नहीं दिया था। अब यूजीसी ने जो
ड्राफ्ट तैयार किया है, उसे इसके जरिए भारत
के गौरवशाली इतिहास को बड़े स्तर पर नई पीढियों के सामने लाया जा रहा है।
अब वेद, उपनिषद, पुराण भी पढ़ेंगे इतिहास के छात्र, यूजीसी ने पाठ्यक्रम में शामिल किया है, उसमे इतिहास (ऑनर्स) के पहले पेपर को आइडिया ऑफ भारत नाम किया गया है। इसमें भारतवर्ष की अवधारणा के साथ-साथ वेद, वेदांग, उपनिषद, महाकाव्य, जैन और बौद्ध साहित्य, स्मृति और पुराण पढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया है। इतना ही नहीं एक चैप्टर में भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति, अंतरीक्ष, विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, आयुर्वेद और योग तक के भारतीय विचारों को रखा गया है। मै जब कक्षा छठवी में मोहन जोदड़ो और हडप्पा पर इतिहास पढ़ा तो मेरी दिमाग हिल गया की, अब तक मै भारत में राम, कृष्ण, अयोध्या, मथुरा, विष्णु, शिव भगवान आदि के जगह क्या पढ़ा रहा हूँ। हम अपने नित्यकर्म पूजा पाठ में कहते है जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते .... यहाँ तो सब कुछ बदल गया अब तीसरे पेपर में ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ ( The Indus – Saraswati Civilization ) के नाम से एक बिषय जोड़ा गया है। इसमें सिंधु, सरस्वती सभ्यता और वैदिक सभ्यता के संबंधों पर बहस का वर्णन किया गया है। अंग्रेजो ने भारत की गुरुकुल शिक्षा को बदल कर स्कुल व्यवस्था लागु किया और भारत के इतिहास को बदल दिया। इसमें मैक्समूलर, विलियम हंटर और लॉर्ड टॉमस, मैकॉले इन चारों लोगों के कारण भारत के इतिहास को बदलकर विकृतिकरण किया। अंग्रेंजों द्वारा लिखित इतिहास में चार बातें प्रचारित की जाती है। पहली यह की भारतीय इतिहास की शुरुआत सिंधु घाटी की सभ्यता से होती है। दूसरी यह की सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ थे। तीसरी यह कि आर्यो ने बाहर से आकर सिंधु सभ्यता को नष्ट करके अपना राज्य स्थापित किया था। चौथी यह कि आर्यों और दस्तुओं के निरंतर झगड़े चलते रहते थे। आर्य बाहर से आए थे लेकिन कहां से आए हैं उसका कोई सटीक जवाब किसी इतिहासकार के पास नहीं है। कोई सेंट्रल एशिया कहता है, तो कोई साइबेरिया, तो कोई मंगोलिया मतलब यह कि किसी के पास आर्यों का सुबूत नहीं है। लेकिन इस थ्योरी को सबसे बड़ी चुनौती 1921 में मिली। लेकिन अंग्रेजों की मानसिकता के इतिहाकारों ने धीरे धीरे यह प्रचारित करना शुरु किया कि सिंधु लोग द्रविड़ थे और वैदिक लोग आर्य थे। सिंधु सभ्यता आर्यों के आगमन के पहले की है और आर्यों ने आकर इस नष्ट कर दिया। अमेरिका मूल के डॉ डेविड फ्रॉले उर्फ वामदेव शास्त्री ने कई बार भारत में व्याखान में कहा है कि पूरी दुनिया में आर्य यहाँ से बाहर गए है, आये नहीं है। लेकिन आज भी भारत में यही पढाया जाता है कि आर्य बाहर से आये थे। विदेशियों ने अगर आपकी पाठ्य पुस्तकों में इतिहास के नाम से कुछ भी लिख दिया हो, अपने फायदे के वह अंतिम कैसे हो सकता है। भारतीयों को नहीं भूलना चाहिए की उनका इतिहास उसके औपनिवेशिक काल में लिखा गया है। जितने भी देश औपनिवेशिक काल के अंर्तगत थे, उन्होंने अपना इतिहास बदल दिया जैसे की चीन ने भी किया। सभी भारतीयों से अपने अतीत को अपने नजरों से देखे और उसपर गर्व करे।
हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में हुई, हड़प्पाकालीन सभ्यता की खोदाई में मिले 5000 साल पुराने कंकालों के अध्ययन के बाद जारी की गई रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि आर्य यहीं के मूल निवासी थे, बाहर से नहीं आए थे। भारत के लोगों के जीन में पिछले हजारों सालों में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। डेक्कन कॉलेज के पूर्व कुलपति और इस प्रोजेक्ट के मुखिया डॉ वसंत शिंदे और बीरबल साहनी पुरानीविज्ञानी संस्थान, लखनऊ के डॉ. नीरज राय (डीएनए वैज्ञानिक) भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट में चल रही अयोध्या मामले की 40 दिन की सुनवाई के दौरान भारत में आर्यों का अस्तित्व पर फिर से चर्चा में आया। हिंदू पक्षकार के वकील के पाराशरण ने कहा कि आर्य यहां के मूल निवासी थे, क्योंकि रामायण में भी सीता माता अपने पति श्रीराम को आर्य कहकर संबोधित करती हैं। ऐसे में आर्य कैसे बाहरी आक्रमणकारी हो सकते हैं?
मुगलों के इतिहास को जरुरत से
ज्यादा पढाया जाता रहा है उसे अब कमतर की गई है। इतिहास के सातवें
पेपर में ‘भारत पर बाबर के
आक्रमण’ को लेकर नया बिषय
जोड़ा गया है। दिल्ली
विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालय अबतक अपने पाठ्यक्रम इसे आक्रमण नहीं मानता।
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को जरूर आक्रमण माना गया है। अब अफगान, मुग़ल, हेम विक्रमादित्य, राणा प्रताप, रानी दुर्गावती, चाँद बीबी, मराठा साम्रराज्य
के संस्थापक शिवा जी महाराज हिन्दू पद पादशाही के साथ मेवाड, सिख, बुंदेला सहित अन्य
लोगों का गौरवशाली इतिहास को पढाया जायेगा। इसी काल मध्यकालीन दौर में हिंदू और मुस्लिम समाज को लेकर दो
अलग-अलग बिषय भी जोड़ा गया है। हालांकि जानकारों का मानना है है कि ऐसा ये दिखाने
के लिए किया गया है कि किस तरह उस समय मुसलमान और हिंदू अलग-थलग थे। वामपंथी
इतिहासकारों का कहना है कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, हमेशा से यही पढ़ाया जाता रहा है
कि किस तरह मध्यकालीन इतिहास में हिंदू और मुसलमान साथ रह रहे थे। इसके साथ ही 13वीं से 18वीं शताब्दी के बीच
के मुस्लिम इतिहास को भी दरकिनार कर दिया गया है। भारतीय विचारकों का कहना
है कि मुस्लिम इतिहास को किनार नहीं किया गया है, बल्कि इसमें सुधार के साथ भारत
के अन्य राजाओं को भी जगह दी गई है।
1857 का प्रथम स्वंतन्त्रता समर वीर सावरकर ने कहा था। उन्होंने 1857 के आन्दोलन को भारत का प्रथम स्वंतत्रता संग्राम नाम पर खोजपूर्ण, सटीक, तथात्मक पुस्तक लिखा, इनके इस प्रयास का परिणाम था की आज की नये पीढ़ी सैनिक विप्लव नाम से नहीं जानती है। इस पर उन्होंने पुस्तक 1857 का प्रथम स्वंतन्त्रता समर भी लिखी है, उन्हें आजीवन उम्र कैद की सजा दिया गया था। लेकिन अंग्रेजो के मानस पुत्रो ने 1857 भारतीयों का विद्रोह कहा जाता रहा है। वैसे भी विनायकदामोदर सावरकर ने भारतीय इतिहास के छ: स्वणिम पृष्ट नाम पुस्तक लिखे है, हम सभी लोगों को एक बार जरुर पढ़ना चाहिए।
वर्षो से भारत के इतिहास के साथ जो अन्याय हुआ है। इसे सुधारकर कर तथ्यों के अनुसार पुनः लिखन की आवश्कता है। इसी क्रम में अभी UGC ने केवल 30% ही संसोधन किया है। अब तक कई विश्वविद्यालय इतिहास के बिषय पर कहा करती है, की इस पर विश्वविद्यालय आयोग कोई भी गाइड लाईन नहीं दिया। उनके लिए यह गाइड लाईन ही है। अब NCRTE के पास अब पासा है, जब 6वीं कक्षा से लेकर 12 वीं कक्षा के इतिहास में शामिल होना चाहिए। तब जाकर आने वाली पीढियों तक भारत का गौरवशाली इतिहास की जानकारी होगी।
राखीगढ़ी - एक सभ्यता की सभावना
ऐतिहासिक उथल-पुथल की साक्षी राखीगढ़ी