मंगलवार, 30 मार्च 2021

भारत का गौरवशाली इतिहास


 

भारत का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है लेकिन अंग्रेजों के गुलामी के कारण उन इतिहासों को भारतीयों के सामने तोड़ मरोड़ कर पढाया जा रहा है। 1947 में भारत की आजादी मिलने के बाद हमारे गुलामी के इतिहास को ही बताकर पढाया जाता रहा है। अंग्रेज नहीं आते तो भारत का इतिहास खोजा नहीं जाता यहाँ तक कहा जाता रहा कि भारत के लोगों को इतिहास नहीं लिखने आता है। भारत एक टुकड़े टुकड़े में बाँट था अंग्रेजों ने आकर एक किया है। आज भी ऐसे बहुत सी बातों से हमारा इतिहास भरा हैं। किसी भी देश की आने वाले पीढ़ी को उनके पूर्वजों के इतिहास से वंचित कर दिया जाय। वह नई पीढ़ी अपने इतिहास को भूल जाते है, ऐसा ही भारत में भी हुआ। आजादी के बाद भारत में कई शिक्षा मंत्री मुस्लिम थे। इस कारण स्वतंत्र भारत के शिक्षा व्यवस्था अपने भारत के अनुसार लिखा जाना चाहिए, नहीं हो सका  लेकिन अब जाकर UGC ने शुरुआत किया है। 

यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (UGC) अब स्नातक स्तर पर इतिहास के पाठ्यक्रम में बदलाव पर विचार कर रहा है। अभी तुरंत ही विश्वविद्यालय आयोग ने पाठ्यक्रम के लिए एक ड्राफ्ट तैयार किया। जिसमे बीए प्रथम वर्ष के इतिहास पाठ्यक्रम में नए सुधार किये है, अब आडिइया ऑफ भारत नाम से जोड़ा गया है,  जिसे ( Learning Outcomes based Curriculum Framework (LOCF) For B.A. History Undergraduate Programme 2021 ) कहा जा रहा है। हिंदू पौराणिक कथाओं और धार्मिक परम्पराओ का ज्यादा उल्लेख किया गया है, फिर भी मुस्लिम शासन के महत्वपूर्ण बिंदुओं को शामिल किया गया है, लेकिन काल्पनिक गुणगानो को हटा दिया गया है। मुस्लिम आक्रान्ताओ जिन्होंने भारत में आकर हिन्दुओं की नरसंहार, धर्मांतरण किया गया, हमारी परम्परा और पवित्र स्थानों मंदिरों, मठो, पाठशालाओं व विश्वविद्यालयों को नष्ट कर,  मुस्लिम परम्पराओ को स्थापित किया गया था।    

अब 1947 के बाद पहली बार वामपंथियों लेखकों और इतिहासकारों के यूजीसी ने पाठ्यक्रम से उनके सन्दर्भ किताबें हटा दी हैं। जिन्होंने बड़े बड़े इतिहासकारों की रूप में वामपंथियों विचार धारा के लोगों को स्थापित किया था। उनमें से कुछ प्रमुख लोगों के किताबें को हटा दिया गया है, जैसे की प्राचीन भारत पर आरएस शर्मा, रोमिला थापर, रामचन्द्र गुहा, पीसी जोशी और मध्यकालीन भारत पर इरफान हबीब की सन्दर्भ किताबें भी शामिल हैं। इनकी जगह पर राष्ट्रीय विचारकों और भारतीय इतिहास की मान्यताओं को मानने वालों से जुड़े करीबी लेखकों की किताबें शामिल की गई है। जैसे आर एस त्रिपाठी, बी पी सरकार, आर सी मजुमदार, विपिनचंद्र जैसे कई प्रसिद्ध इतिहासकारों को शामिल किया गया है। जिन्हें वामपंथियों, मिशनरी, मुस्लिम मानसिकता के लोगों ने भारत के इतिहास में घुसने नहीं दिया था। अब यूजीसी ने जो ड्राफ्ट तैयार किया हैउसे इसके जरिए भारत के गौरवशाली इतिहास को बड़े स्तर पर नई पीढियों के सामने लाया जा रहा है।

अब वेदउपनिषदपुराण भी पढ़ेंगे इतिहास के छात्र, यूजीसी ने पाठ्यक्रम में शामिल किया हैउसमे इतिहास (ऑनर्स) के पहले पेपर को आइडिया ऑफ भारत नाम किया गया है। इसमें भारतवर्ष की अवधारणा के साथ-साथ वेदवेदांगउपनिषदमहाकाव्यजैन और बौद्ध साहित्यस्मृति और पुराण पढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया है। इतना ही नहीं एक चैप्टर में भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति, अंतरीक्ष, विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, आयुर्वेद और योग तक के भारतीय विचारों को रखा गया है। मै जब कक्षा छठवी में मोहन जोदड़ो और हडप्पा पर इतिहास पढ़ा तो मेरी दिमाग हिल गया की, अब तक मै भारत में राम, कृष्ण, अयोध्या, मथुरा, विष्णु, शिव भगवान आदि के जगह क्या पढ़ा रहा हूँ। हम अपने नित्यकर्म पूजा पाठ में कहते है जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते .... यहाँ तो सब कुछ बदल गया  अब तीसरे पेपर में ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ ( The Indus – Saraswati Civilization ) के नाम से एक बिषय जोड़ा गया है। इसमें सिंधुसरस्वती सभ्यता और वैदिक सभ्यता के संबंधों पर बहस का वर्णन किया गया है। अंग्रेजो ने भारत की गुरुकुल शिक्षा को बदल कर स्कुल व्यवस्था लागु किया और भारत के इतिहास को बदल दिया इसमें मैक्समूलर, विलियम हंटर और लॉर्ड टॉमस, मैकॉले इन चारों लोगों के कारण भारत के इतिहास को बदलकर विकृतिकरण किया। अंग्रेंजों द्वारा लिखित इतिहास में चार बातें प्रचारित की जाती है। पहली यह की भारतीय इतिहास की शुरुआत सिंधु घाटी की सभ्यता से होती है। दूसरी यह की सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ थे। तीसरी यह कि आर्यो ने बाहर से आकर सिंधु सभ्यता को नष्ट करके अपना राज्य स्थापित किया था। चौथी यह कि आर्यों और दस्तुओं के निरंतर झगड़े चलते रहते थे। आर्य बाहर से आए थे लेकिन कहां से आए हैं उसका कोई सटीक जवाब किसी इतिहासकार के पास नहीं है। कोई सेंट्रल एशिया कहता है, तो कोई साइबेरिया, तो कोई मंगोलिया मतलब यह कि किसी के पास आर्यों का सुबूत नहीं है लेकिन इस थ्योरी को सबसे बड़ी चुनौती 1921 में मिली। लेकिन अंग्रेजों की मानसिकता के इतिहाकारों ने धीरे धीरे यह प्रचारित करना शुरु किया कि सिंधु लोग द्रविड़ थे और वैदिक लोग आर्य थे। सिंधु सभ्यता आर्यों के आगमन के पहले की है और आर्यों ने आकर इस नष्ट कर दिया। अमेरिका मूल के डॉ डेविड फ्रॉले उर्फ वामदेव शास्त्री  ने कई बार भारत में व्याखान में कहा है कि पूरी दुनिया में आर्य यहाँ से बाहर गए है, आये नहीं है लेकिन आज भी भारत में यही पढाया जाता है कि आर्य बाहर से आये थे। विदेशियों ने अगर आपकी पाठ्य पुस्तकों में इतिहास  के नाम से कुछ भी लिख दिया हो, अपने फायदे के वह अंतिम कैसे हो सकता है भारतीयों को नहीं भूलना चाहिए की उनका इतिहास उसके औपनिवेशिक काल में लिखा गया है जितने भी देश औपनिवेशिक काल के अंर्तगत थे, उन्होंने अपना इतिहास बदल दिया जैसे की चीन ने भी किया  सभी भारतीयों से अपने अतीत को अपने नजरों से देखे और उसपर गर्व करे 

हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में हुई, हड़प्पाकालीन सभ्यता की खोदाई में मिले 5000 साल पुराने कंकालों के अध्ययन के बाद जारी की गई रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि आर्य यहीं के मूल निवासी थे, बाहर से नहीं आए थे। भारत के लोगों के जीन में पिछले हजारों सालों में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। डेक्कन कॉलेज के पूर्व कुलपति और इस प्रोजेक्ट के मुखिया डॉ वसंत शिंदे और बीरबल साहनी पुरानीविज्ञानी संस्थान, लखनऊ के डॉ. नीरज राय (डीएनए वैज्ञानिक) भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट में चल रही अयोध्या मामले की 40 दिन की सुनवाई के दौरान भारत में आर्यों का अस्तित्व पर फिर से चर्चा में आया। हिंदू पक्षकार के वकील के पाराशरण ने कहा कि आर्य यहां के मूल निवासी थे, क्योंकि रामायण में भी सीता माता अपने पति श्रीराम को आर्य कहकर संबोधित करती हैं। ऐसे में आर्य कैसे बाहरी आक्रमणकारी हो सकते हैं

मुगलों के इतिहास को जरुरत से ज्यादा पढाया जाता रहा है उसे अब कमतर की गई है। इतिहास के सातवें पेपर में भारत पर बाबर के आक्रमण को लेकर नया बिषय जोड़ा गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालय अबतक अपने पाठ्यक्रम इसे आक्रमण नहीं मानता। भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को जरूर आक्रमण माना गया है। अब अफगान, मुग़ल, हेम विक्रमादित्य, राणा प्रताप, रानी दुर्गावती, चाँद बीबी, मराठा साम्रराज्य के संस्थापक शिवा जी महाराज हिन्दू पद पादशाही के साथ मेवाड, सिख, बुंदेला सहित अन्य लोगों का गौरवशाली इतिहास को पढाया जायेगा। इसी काल मध्यकालीन दौर में हिंदू और मुस्लिम समाज को लेकर दो अलग-अलग बिषय भी जोड़ा गया है। हालांकि जानकारों का मानना है है कि ऐसा ये दिखाने के लिए किया गया है कि किस तरह उस समय मुसलमान और हिंदू अलग-थलग थे। वामपंथी इतिहासकारों का कहना है कि ऐसा पहले कभी नहीं हुआहमेशा से यही पढ़ाया जाता रहा है कि किस तरह मध्यकालीन इतिहास में हिंदू और मुसलमान साथ रह रहे थे। इसके साथ ही 13वीं से 18वीं शताब्दी के बीच के मुस्लिम इतिहास को भी दरकिनार कर दिया गया है। भारतीय विचारकों का कहना है कि मुस्लिम इतिहास को किनार नहीं किया गया हैबल्कि इसमें सुधार के साथ भारत के अन्य राजाओं को भी जगह दी गई है।

1857 का प्रथम स्वंतन्त्रता समर वीर सावरकर ने कहा था। उन्होंने 1857 के आन्दोलन को भारत का प्रथम स्वंतत्रता संग्राम नाम पर खोजपूर्ण, सटीक, तथात्मक पुस्तक लिखा, इनके इस प्रयास का परिणाम था की आज की नये पीढ़ी सैनिक विप्लव नाम से नहीं जानती है इस पर उन्होंने पुस्तक 1857 का प्रथम स्वंतन्त्रता समर भी लिखी है, उन्हें आजीवन उम्र कैद की सजा दिया गया था। लेकिन अंग्रेजो के मानस पुत्रो ने 1857 भारतीयों का विद्रोह कहा जाता रहा है। वैसे भी विनायकदामोदर सावरकर ने भारतीय इतिहास के छ: स्वणिम पृष्ट नाम पुस्तक लिखे है, हम सभी लोगों को एक बार जरुर पढ़ना चाहिए। 

वर्षो से भारत के इतिहास के साथ जो अन्याय हुआ है इसे सुधारकर कर तथ्यों के अनुसार पुनः लिखन की आवश्कता है इसी क्रम में अभी UGC ने केवल 30% ही संसोधन किया है। अब तक कई विश्वविद्यालय इतिहास के बिषय पर कहा करती है, की इस पर विश्वविद्यालय आयोग कोई भी गाइड लाईन नहीं दिया।  उनके लिए यह गाइड लाईन ही है।  अब NCRTE के पास अब पासा है, जब 6वीं कक्षा से लेकर 12 वीं कक्षा के इतिहास में शामिल होना चाहिए।  तब जाकर आने वाली पीढियों तक भारत का गौरवशाली इतिहास की जानकारी होगी।







 

 


बुधवार, 24 मार्च 2021

एक वर्ष पूर्व - लॉकडाउन 24 मार्च 2020 से अब तक

 


आज रात 12 बजे से सम्पूर्ण देश में सम्पूर्ण लॉकडाउन लगाने जा रहा है घरों से निकलने पर पूरी तरह पाबन्दी लगाया जा रहा है देश के हर राज्य को, जिले को, जनता कर्फ्यू से भी जरा  ज्यादा सख्त, करोना महामारी से बचने के लिए, हिंदुस्तान को बचने के लिए, हिंदुस्तान के नागरिकों को बचाने के लिए, एक एक भारतीय को बचाना, आपके परिवार को बचाना हैइसके लिए बड़ी आर्थिक कीमत चुकाना होगा आप देश में कही भी रहे, वही रहेयह लॉकडाउन 21 दिनों का होगा, यदि यह 21 दिन नहीं संभले, तो ये देश आपका परिवार 21 साल पीछे चला जायेगा।  अपने घरों में रहे। एक ही काम करे, अपने घर में ही रहे ... यह शब्द अपने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के है 

लॉकडाउन यह शब्द का परिचय देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च 2020 आम लोगों को कराया था। इसका कारण यह है कि चीन के वुहान शहर से फैले कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए किया गया अंतिम प्रयास था इसके पूर्व में भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च 2020 को 14 घंटे के जनता कर्फ्यू की अपील की। दो दिन बाद यानी 24 मार्च 2020 की रात अगले दिन से देशभर में 21 दिनों के लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई।

देश के इतिहास में पहली बार पब्लिक और प्राइवेट ट्रांसपोर्ट पूरी तरह से बंद कर दिया गया। सम्पूर्ण बंद, इतना तो 1947 में आजादी मिलने के बाद या 1975 आपातकाल में भी नहीं हुआ था आसमान में न हवाई जहाज थे, न सड़कों पर गाड़ियां, पटरियों पर धड़धड़ाती ट्रेनें भी थम गईं, ऐसा पहली देश में हुआ। यह लॉकडाउन उन करोड़ों मजदूरों के लिए एक सजा के ऐलान सा हो गया जो रोटी के लिए अपने घरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर प्रवास पर थे। इन लाखों मजदूरों ने पैदल ही अपने घरों की राह पकड़ ली। किसी ने बीवी को कंधे पर बैठाया तो किसी ने बच्चे को सूटकेस पर लेटाया और निकल पड़े अपने सफर पर। किसी ने एक हफ्ते में अपना सफर पूरा कर लिया तो कोई महीने भर चलता ही चला गया। सैकड़ों मजदूर ऐसे भी थे जो घरों के लिए निकले जरूर, लेकिन कभी पहुंच नहीं सके। 


मंगलवार, 23 मार्च 2021

भगत सिंह की फाँसी को, महात्मा गाँधी ने नही रोका...

 


आज शहीदी दिवस है। आज से 90 वर्ष पूर्व 23 मार्च 1931 को भगत सिंहराजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। कोर्ट ने तीनों को फांसी दिए जाने की तारीख 24 मार्च तय की थीलेकिन ब्रिटिश सरकार को माहौल बिगड़ने का डर था,  उस शाम 7:30 बजे ही तीनों क्रांतिकारियों को चुपचाप लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ा दिया गया। इन तीनों पर अंग्रेज अफसर सांडर्स की हत्या का आरोप था। महात्मा गांधी उसी समय तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन के साथ बैठक कुछ बिंदुओं पर समझौता करने वाले थे। उन्होंने इरविन से भगतसिंह के फाँसी के बारे में कोई भी बात ही नही किये। इतिहासकार यह भी मानते हैं कि गांधीजी चाहते तो भगत सिंह की फांसी रोकने के लिए वायसरॉय पर दबाव बना सकते थे, उन्होंने ऐसा किया नहीं। भगत सिंह खुद अपनी सज़ा माफ़ी की अर्जी देने के लिए तैयार नहीं थे जब उनके पिता ने इसके लिए अर्ज़ी लगाई तो उन्होंने बेहद कड़े शब्दों में पत्र लिखकर इसका जवाब दिया था भगत सिंह कहा करते थे कि एक भगत सिंह को फांसी होगी लेकिन हजार भगत सिंह भारत माता की आजादी के लिए पैदा होगे ... भगत सिंह सही सोचते थे

महात्मा गांधी तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड इरविन के बीच ऐतिहासिक समझौता हुआ था। पहली बार अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ समान स्तर पर समझौता किया था। इस समझौते की पृष्ठभूमि 1930 की है। अंग्रेजी हुकूमत ने भारतीयों पर नमक बनाने और बेचने की पाबंदी लगा दी थी। इसके खिलाफ महात्मा गांधी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से दांडी तक मार्च निकालाजिसे दांडी मार्च भी कहते हैं। यह सविनय अवज्ञा आंदोलन की ओर पहला कदम था। गांधीजी ने समुद्र तट पर पहुंचकर खुद यह नमक कानून तोड़ा था। इस पर उन्हें जेल में डाल दिया गया था। नमक आंदोलन ने पूरी दुनियाभर में सुर्खियां हासिल कीं और इस कारण लॉर्ड इरविन की मुश्किलें बढ़ गई थीं। तब उन्होंने पांच दौर की बैठक के बाद महात्मा गांधी के साथ मार्च 1931 को समझौता कियाजिसे गांधी-इरविन पैक्ट कहा जाता है। 

देश चाहता था कि गांधीजी, लॉर्ड इरविन से होने वाली संधि में युवा क्रांतिकारियों की फांसी की सजा को माफ करवाएं किंतु गांधीजी तो जैसे स्वयं ही जिद पर अड़े थे कि भगतसिंह तथा उनके साथियों को फांसी अवश्य दी जाए। तत्कालीन वायसरय लॉड इरविन ने लिखा है कि मुझे पूरी उम्मीद थी कि गांधीजी, भगतसिंह तथा उसके साथियों की फांसी की सजा माफ करने की मांग करेंगे किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। जब भगतसिंह और उनके साथियों को फांसी हो गई तब पूरा देश गांधीजी के खिलाफ गुस्से से उबल पड़ा जिसका सामना कांग्रेस को लाहौर अधिवेशन में करना पड़ा। 

इसमें हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करने पर सहमति बनी थी। उस समय पूरा देश 23 साल के भगत सिंह की चर्चा कर रहा थाजिन्हें 17 अक्टूबर 1930 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। गांधी जी पर कांग्रेस के साथ-साथ देश का दबाव था कि वे भगत सिंह की फांसी को रुकवाएंपर गांधी-इरविन समझौते में इस मुद्दे पर बात भी नहीं किये। गांधी ने अपने पत्र में इतना ही लिखा कि भगत सिंहसुखदेव और राजगुरु को फांसी न दी जाए तो अच्छा है।  वे भगत सिंह के संघर्ष को राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा नहीं मानते थे। वहीं देश के नेता सुभाषचंद्र बोस ने कांग्रेस में रहते हुए भी 20 मार्च 1931 को फांसी के विरोध में दिल्ली में एक बड़ी जनसभा की थी।

28 सितंबर, 1907 को पंजाब के लायलपुर में बंगा गांव (जो अभी पाकिस्तान में है) में जन्मे भगत सिंह महज 12 साल के थे, 13 अप्रैल 1919 जब जलियांवाला बाग कांड हुआ। इस हत्याकांड ने उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा भर दिया था।

काकोरी कांड के बाद क्रांतिकारियों को हुई फांसी से उनका गुस्सा और बढ़ गया। इसके बाद वो चंद्रशेखर आजाद के हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए। 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजों ने लाठीचार्ज कर दिया। इस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय को गंभीर चोटें आईं। उन्होंने कहा था कि मेरे शरीर पड़ी एक एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक एक कील होगी 20 वर्ष बाद ब्रिटिशों को भारत छोड़ना पड़ा 17 नवम्बर 1928 को गंभीर रूप से घायल लाला लाजपत राय का देहांत हो गए, ये चोटें उनकी मौत का कारण बनीं। 

इसका बदला लेने के लिए क्रांतिकारियों ने पुलिस सुपरिटेंडेंट स्कॉट की हत्या की योजना तैयार की। 17 दिसंबर 1928 को स्कॉट की जगह अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स पर हमला हुआजिसमें उसकी मौत हो गई। अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश भारत की सेंट्रल असेंबली में बम फेंके। ये बम जानबूझकर सभागार के बीच में फेंके गएजहां कोई नहीं था। बम फेंकने के बाद भागने की जगह वो वहीं खड़े रहे और अपनी गिरफ्तारी दी। करीब दो साल जेल में रहने के बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया। वहींबकुटेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा मिली।

बकुटेश्वर दत्त को अंडमान-निकोबार की जेल में भेज दिया, जिसे कालापानी की सज़ा भी कहा जाता है। देश आज़ाद होने के बाद बटुकेश्वर दत्त भी रिहा कर दिए गए। लेकिन दत्त को जीते जी भारत ने भुला दिया। इस बात का खुलासा नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किताब बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह के सहयोगीमें किया गया। बटुकेश्वर दत्त ने एक सिगरेट कंपनी में एजेंट की नौकरी कर ली। बाद में बिस्कुट बनाने का एक छोटा कारखाना भी खोला, लेकिन नुकसान होने की वजह से इसे बंद कर देना पड़ा। भारत में उनकी उपेक्षा का एक किस्सा इस किताब में दर्ज है जब बसों के लिए परमिट बनवाने के लिए आवेदन देने गए बटुकेश्वर दत्त से स्वतंत्रता सेनानी होने का सबूत मांगा गया और स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लाने को कहा गया। अपनी जिंदगी की जद्दोजहद में लगे बटुकेश्वर दत्त 1964 में बीमार पड़ गए। उन्हें गंभीर हालत में पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। 20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर पचास मिनट पर भारत के इस महान सपूत ने दुनिया को अलविदा कह दिया।

 


गुरुवार, 18 मार्च 2021

बांग्लादेश के उदय के 50 साल पूरे होने पर आयोजित होने वाले समारोहों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 'मुजीब जैकेट' के साथ शामिल होगें



बांग्लादेश की पाकिस्तान से (मुक्ति दिवस ) आजादी के 50 साल पूरे होने के अवसर पर इस माह आयोजित होने वाले समारोहों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नेपाल, श्रीलंका, भूटान और मालदीव की सरकारों के प्रमुखों सहित विश्व के कई नेता हिस्सा लेंगे। वर्ष 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के बाद पाकिस्तान से देश को आजादी मिलने की 50 वीं वर्षगांठ पर 17 से 27 मार्च तक विभिन्न समारोहों का आयोजन किया जाना है। आजादी की 50 वीं वर्षगांठ और राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की जन्म शताब्दी साथ-साथ मनाई जायेगी। बांग्लादेश सरकार के प्रधान सूचना अधिकारी सुरथ कुमार सरकार ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी और नेपाल, श्रीलंका, भूटान और मालदीव के राष्ट्राध्यक्ष या शासनाध्यक्ष अलग-अलग कार्यक्रमों में शिरकत करने वाले विशिष्ट विदेशी मेहमानों में शामिल होंगे।

प्रधानमंत्री मोदी दो दिवसीय यात्रा पर 26 मार्च को आएंगे। भारत में खादी के मुजीब जैकेट के साथ मुख्य स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल होंगे। यह मौका बांग्लादेश-भारत के राजनयिक संबंधों के 50 साल पूरे होने का भी होगा। सरकार ने बताया कि विदेशी गणमान्य अतिथि राष्ट्रपिता की जन्म शताब्दी के मौके पर बंगबंधु संग्रहालय भी जाएंगे। बांग्लादेश ने स्वतंत्रता के 50 साल पूरे होने और बंगबंधु की जन्म शताब्दी के मौके पर भव्य समारोहों के आयोजन की योजना बनाई थी लेकिन कोरोना वायरस महामारी के कारण उसे अपनी योजना में बदलाव करना पड़ा।

ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत भारतवर्ष का जनसंख्या के अनुसार पर हिन्दू और मुस्लिम द्विराष्ट्र सिध्दांत के आधार पर  विभाजन किया जाना तय हुआ था अतः भारत देश हिन्दूओ के लिए तथा नया देश पाकिस्तान में मुस्लिमों के लिए दो देश में विभाजन किया गया, पहला भारत बना दूसरा पाकिस्तान बना। पाकिस्तान के गठन के समय भारत के पश्चिमी क्षेत्र में सिंधी, पठान, बलोचपंजाब और मुजाहिरों की बड़ी संख्या थी, इसे पश्चिम पाकिस्तान कहा जाता था। जबकि भारत के पूर्व हिस्से में बंगाली बोलने वालों का बहुमत था, इसे पूर्व पाकिस्तान कहा जाता था। पूरबी पाकिस्तान भाग में राजनैतिक चेतना की कभी कमी नहीं रही लेकिन पूर्वी हिस्सा पाकिस्तान की सत्ता में कभी भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका, हमेशा राजनीतिक रूप से उपेक्षित रहा। यहाँ तक की सभी को उर्दू पढ़ना, लिखना और बोलने का आदेश दिया गया था। बंगाली भाषा की उपेक्षा को लेकर पूर्वी पाकिस्तान में भारी विरोध हो रहा था इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों में जबर्दस्त नाराजगी थी। इसी नाराजगी के परिणाम स्वरुप उस समय 1969 में पूर्व पाकिस्तान के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग का गठन किया और पाकिस्तान के अंदर ही स्वायत्तता की मांग की। 1970 में हुए आम चुनाव में पूर्वी क्षेत्र में शेख की पार्टी ने जबर्दस्त विजय हासिल की। उनके दल ने संसद में बहुमत भी हासिल किया। उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के बजाय उन्हें जेल में डाल दिया गया। यहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नींव रखी गई। 

पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली बोलने वाले पर अत्याचार किया जाने लगा। बंगाली भाषी लोगों को पकड़कर जेल भेजना तथा गोली मार का 3 लाख लोगों का नरसंहार किया जाने लगा। उनकी महिलाओं के साथ तो सबसे बुरा बर्ताव किया गया, महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार कर हत्या किया गया खासकर हिन्दुओं के साथ तो बहुत ही जघन्य अपराध किया गया था। यह सब पाकिस्तानी सेना और वहाँ की पुलिस कर रही थीं। 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के कई हिस्से में जबर्दस्त 3 लाख नरसंहार हुआ। इससे पाकिस्तानी सेना में काम कर रहे पूर्वी क्षेत्र के निवासियों में जबर्दस्त रोष हुआ और उन्होंने अलग मुक्ति वाहिनी बना ली। पाकिस्तानी फौज का निरपराध, हथियार विहीन लोगों पर अत्याचार जारी रहा। बंगला भाषी लोग अपनी जान बचाने के लिए भारत के पश्चिम बंगाल असम त्रिपुरा में 10 लाख शरणार्थी पहुँचने लगे जिससे भारत की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी थीभारत के तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से लगातार अपील की कि पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति सुधारी जाए, लेकिन किसी देश ने ध्यान नहीं दिया। जब वहां के विस्थापित लगातार भारत आते रहे तो अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुक्ति वाहिनी को समर्थन देकर, बांग्लादेश को आजाद करवाने का निर्णय लिया। 

भारतीय सेना ने दोनों तरफ पूर्वी पाकिस्तान एवं पश्चिम पाकिस्तान पर  जबरदस्त हमला कर दिया था। 3 दिसंबर को पाकिस्तान ने कश्मीर से गुजरात के सभी हवाई अडडा पर हमला कर दिया, थोड़ी देर अगेजी  समाचार में पाकिस्तान ने हमला कर दिया। सेना को तुरन्त जबाब देना पड़ा। 

थल सेना ने पश्चिमी छोर से जबरजस्त जबाबी कारवाही शुरू किया। पाकिस्तान के पजाब सिंध कश्मीर के इलाके के 5 हजार वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर लिया था। जैसे लोंगोवाल फ्वाइत् पर पाकिस्तान की ओर से हमला हुआ द्य भारतीय सेना पहले से तैयार बैठी थी 23 पंजाबी रेजिमेंट के 120 जवानों ने मुकाबला किया द्य बहादुरी के साथ रात भर पाकिस्तानी सेना को रोक कर राखा। पाकिस्तानी सेना में 3000 सेना 58 टैक के साथ थी। सुबह होते ही भारतीय एयर र्फोर्स  से पाकिस्तानी सेना 52 टैक को उड़ दिया 6 टैक को कब्जा कर लिया। इसके हीरो ब्रिगेडियर कुलदीपसिंह थे।

इधर पूर्वी कमान प्रमुख जे स जैकब ने सीधा ढाका पहुँचकर उनके साथ मात्र 3000 सेना थी। उहोने ने कूटनीति का सहारा लेकर नियाजी के पास जाकर कहा की आप लोग समर्पण करो, आप और  आप के आदमी की सुरक्षा की गारंटी लेते है। 120 उसके बाद ऐसा नहीं किया तो सुरक्षा की गारंटी नहीं होगी और तुम्हे 30 मिनट का समय देता हूँ। स्वयं जाकर सरेंडर के कागज तैयार किया और  तीन बार पुनः पूछा और नियाज ने स्वीकार कर लिया। उस समय जिया के पास 30 हजार सेना थी। इस प्रकार 93 हजार सैनिको के साथ  आत्मसमर्पण किया।

अंत्यतः 16 दिसंबर 2971 कोनौ महीनों तक चले युद्ध के पश्चात्पूर्वी पाकिस्तान ने बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्रता घोषित कर दी।

16 दिसम्बर 1971 को भारत ने पाकिस्तान को हारकर इतिहास रचा था द्य 93 हजार पाकिस्तान की  सेना को घुटने टेकने के किए मजबूर कर दिया। उसके बाद उदय हुआ बाग्लादेश का ....


बुधवार, 17 मार्च 2021

भारतीय वायुसेना का मिग 21 उड़ता ताबूत Flying coffin MIG 21



भारतीय वायुसेना का आज बुधवार को एक फाइटर विमान मिग-21 बाइसन (MiG-21 Bison aircraft) उड़ान के दौरान बुधवार को सुबह एक्‍सीडेंट का शिकार हो गया है। इसमें एयरफोर्स के ग्रुप कैप्‍टन आशीष गुप्ता शहीद हो। इस दुर्घटना के कारण का पता लगाने के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी’ शुरू की गई है। इससे होगा क्या ?

सोवियत संघ के समय का MIG 21 सुपरसोनिक लड़ाकू जेट विमान है, जिसका निर्माण सोवियत संघ के मिकोयान-गुरेविच कम्पनी ने 1954 से निर्माण किया जाता था। मिग 21 चर्चा में जब आया 27 फरवरी 2019 को भारतीय पायलट अभिनंदन ने पाकिस्तान के F 16 को मारकर गिरा दिया था। जिसे पाकिस्तान ने आज तक स्वीकार नहीं करता कि उसका F16 को भारत का 50 वर्ष पुराना मिग 21 ने मार गिरा दिया है। भारत के आईवाकस से मील डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स सिगनेचर से जो सबूत मिले है। उसे स्पष्ट होता है कि भारत का मिग 21 ने पाकिस्तान का जो अमेरिका में निर्मित 16 को मार गिराया था।

मिग-21 अपने समय का सबसे सुपरसोनिक जेट विमान था जो उस दशक 1960 में, उस समय सबसे आधुनिक और नई तकनीक से लैस था। दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने लगभग 11496 यूनिट, 60 देशों के वायु सेना में शामिल और उड़ान भरने वाला फाईटर जेट विमान था। जिससे अमेरिका भी डरता था। अमेरिका यही कोशिश कर रहा था कि उसे देखने के लिए एक मिग 21 मिल जाए। लेकिन ऐसा एक बार हुआ की इजराइल के खुफिया एजेंसी के द्वारा इराक के मिग-21 पायलट सहित इजरायल को मिला। जो इजराइल को सैनिकों और इंजीनियरिंग ने इसकी बारीकी से निरीक्षण किया इस तरीके से तोड़ निकाला की। 1969 के युद्ध में इजरायल ने सात मुस्लिम देशों के वायुसेना को हरा कर जिसके बाद वह युद्ध जीत गया था। उसके बाद अमेरिका के भी विशेषज्ञ देखें अपने समय का सबसे एडवांस निकला था। वियतनाम युद्ध में अमेरिका को एक मिग21 से लड़ने के लिए 6 लड़ाकू विमान से लड़ना पड़ता था। अमेरिका ने मिग 21 के सामने अपना कोई भी हेलीकॉप्टर नही रखता था।

भारत ने मिग-21 खरीदने के लिए 1962 में सोवियत संघ के साथ एक समझौते हुआ। अगले साल से ये विमान भारत को मिलने शुरू हो गए। 1967 में, हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने सोवियत संघ से प्राप्त प्रोडक्शन एसेम्बल लाईन के तहत मिग 21 बनाना शुरू किया गया और 1985 तक इसका निर्माण किया जाता था। 1971 और 1999 में मिग 29 ने पाकिस्तान की छक्के छुड़ा दिया था। देश ने 2013 में मिग-21 के 50 साल पूरे होने पर जश्न मनाया गया। भारत ने मिग-21 खरीदने का जब निर्णय किया तब वह निर्णय सही था। लेकिन हमने जरूरत से ज्यादा 1200 के लगभग मिग-21 खरीदा। जो आज देश के लिए उड़ाता ताबूत साबित हो रहा है। धीरे धीरे 50 वर्षों में यह मिग 21 आउटडेटेड हो गया। समय के साथ जरूरतें भी बदल जाती है। मिग 21 को दुनिया के 60 देश की वायुसेना उपयोग किया करते थे। जिसमें रूस, चीन और उसके बाद भारत ही इसे अधिक मात्रा में उपयोग करता है। चीन ने भी मिग 21 को चेंगदू जे 7 के नाम से 2000 लड़ाकू जेट के उपयोग करता आ रहा है। चीन ने सोवियत संघ से मिग 21 का निर्माण का लाइसेंस ले लिया। चीन रिवर्स इंजीनियरिंग से सारे मिग-21 के स्पेयर पार्ट्स अपने देश में बनाने लगे (उसकी कॉपी करने) लगा लेकिन भारत ने ऐसा कुछ नहीं किया क्योंकि उस समय के राजनेताओं को दूर दृष्टि नहीं था आप जरूरत से ज्यादा सामान खरीदना भी एक प्रकार से भ्रष्टाचार है 1991  सोवियत संघ एक बहुत बड़ा देश था लेकिन आज वह विखंडन होकर अन्य 15 देशों में बट गया। उस समय मिग-21 स्पेयर पार्ट्स सोवियत संघ के अन्य राज्य में बनते थे विखंडत सोवियत संघ से रूस के पास मुख्य कंपनी थी। लेकिन स्पेयर पार्ट्स अन्य राज्य वह नया देश बन गए, वे अन्य नए देश बनाने से मिग 21 के स्पेयर्स पार्टस समस्या खड़ा हो गया। 

स्पेयर पार्ट की कमी के कारण अनेक जगह पर दुर्घटनाग्रस्त होकर गिरने लगे। भारत ने मिग 21 लगभग 1200 की संख्या में खरीदा जिसमें से लगभग 400 दुर्घटना ग्रस्त हुए, इसमे से 170 पायलटों की जान गई। जिससे देश का साथ-साथ एक जांबाज़ पायलट का भी इस देश को नुकसान उठाना पड़ रहा है। एक जहाज गिरने से पैसा तो आ सकता है। लेकिन उस ट्रेंड पायलट जो हमने प्रशिक्षित किया है उसके निधन हो जाने से एक मानव की कमी हो जाती है। जिसको एयरफोर्स बनाने में बहुत वक्त लगता है। समय लगता है व्यक्ति मिलते नहीं है ऐसे ही।

1999 कारगिल विजय के बाद अटल बिहारी सरकार ने भारतीय वायुसेना के लिए 127 नए विमान खरीदने का प्रस्ताव केबिनेट ने पास किया था। लेकिन 2004 के चुनाव में अटल बिहारी सरकार चुनाव में हार गई। केंद्र में कांग्रेस की सरकार ने दस साल में न तो तेजस को मंजूरी दी, न ही फ़्रांस की  राफेल ही खरीदी की। इन 20 वर्षो में भारत में दुर्भाग्यवश भारतीय सेना के लिए कोई जहाज नहीं खरीद किया। बल्कि सोनिया गाँधी के लिए इटली की कंपनी से हेलीकॉप्टरों ख़रीदा गया जो की भस्टाचार पर विवाद हो गया।