मंगलवार, 25 मई 2021

झीरम घाटी, छत्तीसगढ़ कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व पर नक्सली हमला


भारतीय राजनीति के इतिहास में  नक्सलियों के द्वारा राजनीतिक कांग्रेस पार्टी के नेताओं की नरसंहार झीरम घाटी में किया था। आज से 8 वर्ष पूर्व 25 मई 2013 को ऐम्बुस लगाकर नक्सलियों ने कांग्रेस पार्टी की परिवर्तनरैली पर हमला किया।

छत्तीसगढ़ में 1980 से बस्तर के क्षेत्रों में नक्सली सक्रिय थे। इन नक्सलियों ने धीरे धीरे बस्तर को अपना नया गढ़ बना लिया। छत्तीसगढ़ का एक बड़ा बस्तर संभाग है। कांग्रेस पार्टी ने नक्सलियों पर लगाम लगाने का कभी भी समुचित प्रयास नहीं किया। सन 2000 में मध्यप्रदेश से अलग नया छत्तीसगढ़ राज्य बना। अजित जोगी सरकार के समय नक्सलियों का राज्य फलाफुला। 2003 में विधानसभा चुनाव में ड्रॉ रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। नई रमन सिंह सरकार ने बस्तर की जनता के साथ मिलकर सलवा जुडूम का अभियान शुरू हुआ। इसका नेतृत्व बस्तर के टाईगर महेंद्र कर्मा किया था। इसलिए नक्सलियों के टारगेट में महेंद्र कर्मा थे। बस्तर में सलवा जुडूम अभियान से नक्सलियों को काफी नुकसान उठाना पड़ा। इसलिए नक्सलियों ताक पर बैठे थे कि मौका मिले। 


10 सालों से सत्ता से दूर कांग्रेस पार्टी 2013 के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए पूरा जोर लगा रही थी। इसलिए कांग्रेस ने नंद कुमार पटेल के नेतृत्व में पूरे छत्तीसगढ़ में परिवर्तन यात्रा निकाली थी। इसी क्रम में 25 मई के दिन कांग्रेस पार्टी ने सुकमा में परिवर्तन रैली आयोजित किया था।


रैली खत्म होने के बाद कांग्रेस नेताओं का काफिला सुकमा से जगदलपुर जा रहा था। काफिले में करीब 25 गाड़ियां थीं जिनमें 200 नेता सवार थे। सबसे आगे कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल और कवासी लखमा अपने-अपने सुरक्षा गार्ड्स के साथ थे। इनके पीछे महेन्द्र कर्मा और मलकीत सिंह गैदू की गाड़ी थी। इस गाड़ी के पीछे बस्तर के तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी उदय मुदलियार कुछ अन्य नेताओं के साथ चल रहे थे। छत्तीसगढ़ कांग्रेस के सभी टॉप नेता इस काफिले में शामिल थे।


शाम करीब 4 बजे काफिला झीरम घाटी से गुजर रहा था। यहीं पर नक्सलियों ने पेड़ों को गिराकर रास्ता बंद कर दिया। गाड़ियां रुकीं और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, पेड़ों के पीछे छिपे 200 से ज्यादा नक्सलियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। नक्सलियों ने सभी गाड़ियों को निशाना बनाया। नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश की मौके पर ही मौत हो गई। करीब डेढ़ घंटे तक फायरिंग होती रही।


शाम के करीब साढ़े 5 बजे नक्सली पहाड़ों से उतर आए और एक-एक गाड़ी चेक करने लगे। जो लोग गोलीबारी में मारे जा चुके थे, उन्हें फिर से गोली और चाकू मारे गए, कोई भी जिंदा न बचे। जो लोग जिंदा थे, उन्हें बंधक बनाया जा रहा था। इसी बीच एक गाड़ी से महेन्द्र कर्मा नीचे उतरे और कहा कि ‘मुझे बंधक बना लो, बाकियों को छोड़ दो’। नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा की थोड़ी दूर ले जाकर बेरहमी से हत्या कर दी। हमले में 30 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई। इसमें अजीत जोगी को छोड़कर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के उस वक्त के अधिकांश बड़े नेता और सुरक्षा बल के जवान शहीद हुए।


इस हमले का मुख्य टारगेट बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा थे। ‘सलवा जुडूम’ का नेतृत्व करने की वजह से नक्सली उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानते थे। नक्सलियों ने उनके शरीर पर करीब 100 गोलियां दागीं और चाकू से 50 से ज्यादा वार किए। हत्या के बाद नक्सलियों ने उनके शव पर चढ़कर डांस भी किया था।

रविवार, 23 मई 2021

आखिर में थप्पड़ वाले कलेक्टर साहब निपट गये...

छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में अब तक पदस्थ रणवीर शर्मा कलेक्टर ने घुमते हुए युवक को थप्पड़ मारा इसकी गुज ट्वीट के द्वारा पूरे देश मे सुनाई दी। सूरजपुर बड़े बड़े रईसजादों को अभी के Covid19 में अच्छी तरह से पिछवाड़ा लाल किये है। वास्तव में सूरजपुर जिले में कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए, कलेक्टर रणवीर शर्मा ने चौक पर खड़े हो कर स्वयं निगरानी करते हुए, कई बार सोशल मीडिया में दिखे है। लेकिन कुछ लोग हैं कि मानते ही नही है। कल सूरजपुर चौक में कड़ी धूप में पुलिस वालों अपनी डियूटी निभाते देखकर  रणवीर शर्मा ने उत्साहवर्धन के लिए रुके थे। तभी यह युवक स्पीड में बाईक से घूम रहा था। रोकने पर नही रुके, लेकिन पीछा कर रोका गया। रोके गए युवक को पूछने पर उसने कहा कि वैक्सीन लगवाने जा रहा हूँ। फिर दादी के लिए दवाई लेने के लिए जा रहा हूँ। इसी बात पर बार बार झूठ बोलने पर गुस्से में कलेक्टर ने थापड़ जड़ दिया और मोबाईल फोन तोड़ दिया। जबकि उसके पास दवाई का बिल भी था। लेकिन पुलिस के जवान ने दो डण्डा गया। किसी ने इस वीडियो को वायरल किया गया है। खास तौर से पूर्व में पिटाई खाये हुए लोग सक्रिय हो गए। 

वीडियो वायरल के बाद कलेक्टर साहब ने माफी मांगी। तब तक मीडिया कर्मियों ने अपने चैनलों पर न्यूज भी चला दिया गया। विपक्ष ताक में बैठा था, क़भी कभी अधिकारियों को बचाने का काम विपक्ष कर देता है। लेकिन कलेक्टर साहब ने कभी भी भाजपा को भाव नही दिया था। मुझे याद है कि सूरजपुर में रमन सिंह सरकार ने अटल हाईटेक बस स्टैड के नाम से पूर्व मंत्री ने भूमि पूजन हुआ। लेकिन कलेक्टर साहब ने अटल जी का नाम हटा दिया। इस पर भाजपा के लोगों ने कलेक्टर को ज्ञापन दिया, जिसपर रणवीर शर्मा ने अपेक्षित कार्यवाही नही किया। अभी भाजपा के लोग बहुत आक्रमक है, किसी भी मुद्दें पर सरकार को घेर रही है। टूलकिट मामले में रमन सिंह पर FIR दर्ज हो गया है। यह खबर ने सूरजपुर के भाजपा के नेताओं को भूपेश सरकार घेरने का मौका मिला गया।इन्ही भाजपाईयो ने वीडियों पर इसे राष्ट्रीय खबर बना दिया है। इसमें कलेक्टर साहब तो रायपुर चले गए। लेकिन भूपेश बघेल की सरकार और कांग्रेस पार्टी की फजीहत हो रही हैं।

रणवीर शर्मा ने वीडियो बनाकर बड़ी गलती कर दिया। उसने यही सोचा होगा कि इससे जनता में कलेक्टर की दबंग छवि बनेंगी। अमन मित्तल को मार और मोबाईल तोड़ दिया। उसने सोशल मीडिया की ताकत को युवाओं से जोड़ दिया। युवाओं ने इस पर अपनी गंभीर प्रतिक्रिया दिया, जो राज्य सरकार के लिए मुसीबत बन गया। इससे पला झाड़ने के लिए माफी और नयी मोबाईल खरीद कर देने की बात कहा गया। कलेक्टर ने अमन मित्तल को बुलाकर माफी माँगी और नया मोबाईल दिया। 
बात तो राजनीतिक गलियारों में चल चुका था। भाजपा के लोगों को उपेक्षा करना अब मंहगा पड़ा। किसी भी नौकरीशाह के लिए जनता ही देवता होते हैं भूल जाते हैं। नौकरशाह खुद को मालिक समझने लगता है।

गुरुवार, 20 मई 2021

केजरीवाल मुँह खोला तो... गोबर

भैंस पूंछ उठाएगी तो गाना नही गायेगी गोबर करेंगी। ऐसा ही हाल केजरीवाल का हुआ है। होशियार दिखाने के चक्कर में उल्लू का पट्ठा बन जाता है। नए कोरोना स्ट्रेन B.1.617 को लेकर 18 मई को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बयान दिया की सिंगापुर में आया करोना का नया रूप बच्चों के लिए बेहद खतरनाक बताया जा रहा है। भारत में तीसरे लहर की संभवना बन सकता है। सिंगापुर सरकार भारतीय दूतावास के बुलाया और अपनी आपत्ति दर्ज किया। इसके बाद भारत सरकार को  सफाई सिंगापुर को देनी पड़ी। अब ऐसा लगने लगा है कि अरविंद केजरीवाल जी जानबूझ कर बोलते की भारत की छवि खराब हो।

भारत में बोलने की आजादी है, इसका कई लोग भारत विरोध कर लाभ उठाते हैं। ऐसे ही अरविंद केजरीवाल भी है। भारत सरकार के अधिकारी रह चुके, अब नेता बनकर तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हैं। चाहे ऑक्सीजन, वैक्सीन अब covid19 की बात हो प्रधानमंत्री मोदी सरकार को नीचा दिखाने के लिए कुछ भी कह देते है। चीन के वुहान शहर से निकला कोरोना वायरस को WHO कभी नही चायना वायरस कहा है, वह उसका साइंटफिक नाम से ही कहते है। ऐसे भारत विरोधी लोग भारतीय वेरियंट्स कह रहे हैं। ऐसे लोगों को WHO ने स्पष्ट कहा था कि यह गलत बात नही कहे है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री ने 18 मई मंगलवार को कहा था कि सिंगापुर में मिला नया स्ट्रेन भारत में तीसरी लहर का कारण बन सकता है, जो बच्चों को अधिक प्रभावित कर सकता है। 

अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया था--

सिंगापुर में आया कोरोना का नया रूप बच्चों के लिए बेहद ख़तरनाक बताया जा रहा है, भारत में ये तीसरी लहर के रूप में आ सकता है। केंद्र सरकार से मेरी अपील:

1. सिंगापुर के साथ हवाई सेवाएं तत्काल प्रभाव से रद्द हों

2. बच्चों के लिए भी वैक्सीन के विकल्पों पर प्राथमिकता के आधार पर काम हो।

केंद्रीय मंत्री हरदीप पूरी ने कहा कि 23 मार्च से सिंगापुर घरेलू उड़ान बंद है। केवल आवश्यक सामग्री के लिए ही सेना की विमान उपयोग किया जा रहा है। मुख्यमंत्री कोपूरी तरह से जिम्मेदारी पूर्वक बात करनी चाहिए। लेकिन होशियारी दिखाने के चक्कर में देश और खुद की बेइज्जती करवाया अरविंद केजरीवाल ने।

इसके बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर ने खुद से ट्वीट कर सिंगापुर को स्पष्ट किया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के बयान को गैर जिम्मेदाराना बताते हुए कहा कि उन्होंने जो कहा वह भारत का पक्ष नहीं है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा, ''सिंगापुर और भारत दोनों कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। इस लड़ाई में सिंगापुर द्वारा भारत की जो मदद की गई है, उसके लिए उनका धन्यवाद। मैं साफ कर देना चाहता हूं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री का बयान भारत का नहीं है।

सिंगापुर के उच्चायुक्त सिमोन वोन्ग ने एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि सिंगापुर इस दुर्भाग्यपूर्ण चैप्टर को बंद करना चाहता है। महामारी के खिलाफ साझा जंग पर फोकस करना चाहता है। नए स्ट्रेन को सिंगापुर से जोड़ने वाले केजरीवाल के ट्वीट के बाद दक्षिण एशियाई देश के साथ कूटनीतिक संबंध प्रभावित होने की नौबत आ गई।

वोन्ग ने कहा, ''हम भारत सरकार की स्पष्ट जवाब की तारीफ करते हैं और इससे संतुष्ट हैं।'' उन्होंने कहा कि एक प्रमुख राजनीतिक शख्सियत ने नई दिल्ली में तथ्यों को परखे बिना दुर्भाग्यपूर्ण बातें कहीं, जिसपर सिंगापुर ने गहरी चिंता जाहिर की है। 

वोन्ग ने कहा, ''वास्तव में सिंगापुर में ऑनलाइन फैलाए जाने वाले झूठ को रोकने के लिए एक कानून है, POFMA  (Protection from Online Falsehoods and Manipulation Act)। यह गलत जानकारी को फैलने से रोकने के लिए बनाया गया है। हमारे पास इस मुद्दे पर माननीय मुख्यमंत्री की ओर से दिए गए बयानों और दावों पर POFMA लागू करने का अधिकार है।''

POFMA को आमतौर पर फेक न्यूज कानून के तौर पर जाना जाता है। सिंगापुर की संसद की ओर यह कानून झूठी जानकारियों को फैलने से रोकने के लिए बनाया गया है। वोन्ग ने कहा कि अहम राजनीतिक पद संभालने वाले लोगों की जिम्मेदारी है कि वे झूठ को ना फैलाएं। 

 यह B.1.617.2 वेरिएंट ही है, जो पहली बार भारत में मिला था।  

सोमवार, 17 मई 2021

इसराइल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष ...


यदि आप बाईबिल पढ़ते हैं, तो बाईबिल में पहले ओल्ड टेस्टामेंट आता है। उसके बाद न्यू टेस्टामेंट आता है, न्यू टेस्टामेंट में ईसा मसीह के जीवन और उनके उपदेशों का संग्रह है।  कहने का मतलब यह है कि ओल्ड टेस्टामेंट ही यहूदियों का पवित्र ग्रंथ का अंश है। ईसा मसीह के जीवन के पूर्व यदि इस धरती पर यहुदियो का स्थान था। इसे यूं ही कहा जाता था इजराइल में तीन धर्मों का पवित्र स्थान है, जिसमें यहूदी, ईसाई और मुसलमानों का भी यही ओल्ड टेस्टामेंट में यहुदियों के बारे में सभी धर्मों ओल्ड टेस्टामेंट ही का आधार है। जिसमें कुरान, बाईबिल अब समस्या समझ में आएगा। ईसाई और मुस्लिम से पहले यहां पर यहूदी लोग थे। ईसा मसीह के जन्म के बाद ईसाई पंथ शुरू हुआ। ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाए जाने के बाद ईसाई पंथ का शुरुआत हुआ। वैसे तो मोहम्मद साहब ने भी इस्लाम पंथ की शुरूआत किया थे।

वर्तमान में इजराइल का राजधर्म दुनिया के प्राचीन धर्मों में से यहूदी (Jewish) भी एक है। यहूदियों से ही ईसाई और इस्लाम की उत्पत्ति हुई। यदि एक ईश्वर पर विश्वास करते हैं,  मूर्ति पूजा को पाप समझते हैं। ईसा से 2000 वर्ष पूर्व यहूदियों के धर्म के शुरुआत पैगंबर अब्राहम से मना जाती है। पैगंबर इब्राहिम के पहले बेटे का नाम हजरत इस्साक और दूसरे का नाम हजरत इस्माइल था दोनों के पिता एक थे। किंतु मां अलग अलग थी, हजरत ईसा की मां का नाम सराहा था और पैगंबर अब्राहम के पोते का नाम हजरत याकूब था याकूब का दूसरा भी नाम इसराइल था। याकूब ने यहूदियों के 12 जाति को मिलाकर एक मिश्रित सम्मिलित राष्ट्र इजराइल बनाया था। याकूब के एक बेटे का नाम यहूदा (जूविस) था। यहूदा के नाम पर ही उसके वंशज यहूदी कहलाए और उनका धर्म यहूदी धर्म कहलाया। हजरत इब्राहिम को यहूदी, मुसलमान और ईसाई तीनों धर्म को लोग अपना पितामाह मानते हैं। आदम से अब्राहम और अब्राहम से मूसा तक यहूदी,  ईसाई और इस्लाम सभी के पैगंबर एक ही है किंतु मूसा के बाद यहूदियों को अपने अगले पैंगबर के आने का अब भी इंतजार है। यहूदी अपने ईश्वर को यहोवा कहते हैं। यहूदी मानते हैं कि सबसे पहले ये नाम ईश्वर ने हजरत मूसा को सुनाया था। ये शब्द ईसाईयों और यहूदियों के धर्मग्रंथ बाइबिल के पुराने नियम में कई बार आता है। ईसा से लगभग 1500 वर्ष पूर्व अब्राहम के बाद यदि इतिहास में सबसे बड़ा पैगंबर मूसा का है, मूसा ने यहूदियों के जाति प्रमुख व्यवस्था दिये थे। मूसा से पहले चली आ रही परंपरा को स्थापित करने के कारण यदि के धर्म संस्थापक माने जाते हैं।

इस्राएल में यहूदियों पर रोमन साम्राज्य ने कब्जा कर लिया। कहना उनका यही था, ईसा मसीह पर जो अत्याचार किए उन्हें जो सूली पर चढ़ाया गया। वह सारे यहूदियों के कारण थे इसलिए रोमन साम्राज्य ने उसका बदला लेने के लिए यहूदियों पर इजराइल में हमला कर दिया। तभी होती अपनी जान बचाकर इजराइल से अन्य देशों में जल मार्ग हल मार्ग से चले गए। जिसमें यूरोप और वैसे ही कुछ भारत में भी आए भारत में जो लोग आए हैं। उनके बारे में मैंने अपने ब्लॉग में लिखा है समुद्र के मार्ग से गुजरात पहुंचे थे गुजरात के तत्कालीन राजाओं ने इन नदियों का बहुत ही सम्मान किया तथा इनके रहने की भोजन की और इनके समाज की सुरक्षा।

प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों के तरफ से यहूदियों ने ऑटोमन साम्राज्य के विरुद्ध अंग्रेजों के साथ दिया था। अंग्रेजों से उन्होंने युद्ध में जीतने के बाद विरोधियों ने अंग्रेजों से अपने देश इजराइल की स्वतंत्रता की मांगU की। इस पर अंग्रेजों ने स्वीकृति दी और इस संबंध में 1917 में इंग्लैंड के विदेश मंत्री आर्थर ने इजराइल के बाद को स्पष्ट करते हुए। संसद में कहा इसके बाद योग्य ने पूरे दुनिया में इसकी लॉबिंग करने लगे इस संबंध में लोगों को जागरूक करने लगे के लिए इजराइल देश के समर्थन के लिए दुनिया के देशों से समर्थन मांगने लगे और कुछ यह होती वापस इसराइल में आकर जमीन खरीदना शुरू किए। अरब लोगों ने जिसको फिलिस्तीन कहेंगे बहुत ही ऊँचे दामों में इन जमीनों को यहूदियों को बेचा। 

द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गयाद्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन की बहुत बुरी हार हुई। ब्रिटेन ने इस कब्जे वाले क्षेत्र फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र को 1945 में सौंप दिया था। हिटलर ने 70 लाख यहूदियों को हत्या करवाया दिया था। जर्मन में हुए यहूदियों के नरसंहार से दुनिया के लोगों में सहानुभूति मिला। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस स्थान पर दो देशों को बांट दिया।लेकिन तत्कालीन फिलिस्तीनियों ने अस्वीकार कर दिया। यदि फिलिस्तीनी ने स्वीकार किया होता तो आज यह समस्या नही होती। तब 14 मई 1948 में इजराइल स्वतंत्र देश बना। फिलिस्तीन ने इसे अस्वीकार कर दिया। आज फिलिस्तीनियों की ऐतिहासिक गलती सिद्ध है। आज इजरायल ने गाजा में जो हवाई हमले हो रहे हैं, रक्तपात हो रहे हैं वह शायद नहीं होते यह फिलिस्तीन बहुत बड़ी गलती थी।

इजराइल के स्वतंत्र होने के 24 घंटे के अंदर फिलिस्तीन और 7 अरब देशों ने मिलकर इसराइल पर हमला कर दिया। इस अचानक हुए हमला में इजराइल पूरी तैयारी के साथ लड़ाई लड़ाअकेले ही इस लड़ाई में वह फिर से जीत गया। अब वह फिलिस्तीन के बहुत बड़े भूभाग में कब्जा कर लिया। उसका भूभाग 78 % हो गया फिलिस्तीन की जो जमीन मिल रही थी। 45% उसमें से उसके पास 22% बचा उसे इतना हीं संतोष करना पड़ा। इसे लेकर दुनिया में फिलिस्तीन की स्वतंत्रता की मांग करने लगा। 5 जून 1967 को फिर से इजरायल पर 6 अरब दोस्तों ने मिलकर 6 जून को हमला करने वाले थे।  लेकिन इसराइल को पता चल गया और 1 दिन पूर्व ही हो 5 जून को जॉर्डन, मिश्र पर हमला करके उनके एयर फोर्स को तबाह कर दिया। 6 दिन चले इस युद्ध में इसराइल ने पूरे फिलिस्तीन पर कब्जा कर लिया तथा अन्य अरब देशों को भी हरा दिया। यह हार फिलिस्तीन सहित अरब देशों को आज भी महंगी पड़ रही है। तब से इजरायल इन अरब देशों पर भारी पड़ता है। आज भी फिलिस्तीन पर जिस प्रकार से हम आज आतंकवादी संगठन आज भी इसराइल पर फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन हमास राकेट के द्वारा हमला कर रहा है।  इजराइल  भी जबावी कार्यवाही में फिलिस्तीनी लोग भी मर रहे हैं, इजराइल के लोग भी मर रहे हैं। दुनिया भी केवल तमाशा देख रही है। 

भारत सरकार भी बातचीत से शांति समाधान निकालने के पक्ष में है। भारत सरकार ने इजराइल को मान्यता तो दे दिया था। लेकिन राजनीतिक संबंध स्थापित नहीं किया था। उसका कारण था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू गुटनिरपेक्ष देश का समूह बनाए थे। जो शीत युद्ध में रूस घुटने पर एक देश बनाया था ना वह मेरे का केस गुट में थे ना सोवियत संघ के गुट में थे।  इसलिए गुटनिरपेक्ष देशों ने इजराइल को मान्यता नहीं दिया था। इसके कारण भारत में भी इजरायल को राजनीतिक संबंध स्थापित नहीं किया। लेकिन 1989 में सोवियत संघ टूट गया और दुनिया की राजनीति बदल गई। सोवियत संघ के टूटने से शीत युद्ध खत्म हो गया। इस बदली हुई परिस्थिति ने 1992 में भारत के उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने इजराइल को मान्यता दे दिया। इसराइल से राजनयिक संबंध शुरू हो गए और तब से राजनीतिक रूप से इजराइल हम लोग संबंध में भारत फिलिस्तीन और इजराइल के बीच में शांतिपूर्ण वार्ता से समस्या का हल निकालना चाहता है। लेकिन फिलिस्तीन की जो आतंकवादी संगठन हमास है यह नहीं चाहता कि शांतिपूर्वक बात हो। 

शुक्रवार, 14 मई 2021

14 मई 1948 को दुनिया का पहली यहूदी देश इजराइल अस्तित्व में आया

 

वास्तव में इजराइल का इतिहास 4000 वर्ष पुराना है, यहाँ पर यहूदियों का राज था। 2000 वर्षो में पूरी दुनिया में यहूदी भटकते रहे। 14 मई 1948 में इजराइल ने खुद को संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से आजाद राष्ट्र घोषित किया था। इजराइल वो देश अपने दुश्मन अरबों से घिरे होने के बाद भी उनकी नाक में दम कर रखा है। 1967 में 6 देशों की मिश्रित सेना को 6 दिन में हरा दिया था क्षेत्रफल में भारत के केरल से भी छोटा ये देश, आज हर मामले में दुनिया के बड़े-बड़े देशों से आगे है। इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद का जिक्र होते ही दुश्मनों के पसीने छूट जाते हैं। आज भी अरबों से अपने को जीवित रखने के लिए युद्ध कर रहा है।   

आज दुनिया के नक्शे में इजराइल जिस आकार में है, इसके पीछे सालों पुराना इतिहास है। कभी इजराइल की जगह तुर्की का ओटोमान साम्राज्य हुआ करता था। लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध में अग्रेजों के तरफ से यहूदियों ने लड़ा था। इस युद्ध में तुर्की की हार के बाद इस इलाके में ब्रिटेन का कब्जा हो गया। यहूदियों ने अग्रेजों से अपने देश इजराइल को स्वत्रंत करने की मांग किया था। इस पर अंग्रेजों ने सहमति दिया ब्रिटेन उस समय एक बड़ी शक्ति था। आर्थर बालफ़ोर ब्रिटिश विदेश मंत्री थे, जिन्होंने 2 नवम्बर सन् 1917 को ब्रिटिश  संसद  में यह घोषणा की कि इज़रायल को ब्रिटिश सरकार यहूदियों का धर्मदेश बनाना चाहती है 1926 में जब आर्थर बाल्फोर प्रधानमंत्री बने तो उनकी यह घोषणा बाल्फोर घोषणापत्र के नाम से जाना जाता है जिसमें सारे संसार के यहूदी यहाँ आकर बस सकें। ब्रिटिस के मित्रराष्ट्रों ने इस घोषण की पुष्टि की। इस घोषणा के बाद से इज़रायल में यहूदियों की जनसंख्या निरंतर बढ़ती गई। लगभग 21 वर्ष के पश्चात् मित्रराष्ट्रों ने सन् 1948 में एक  इज़रायल  नामक यहूदी राष्ट्र की विधिवत् स्थापना की। 

द्वितीय विश्वयुद्ध तक ये इलाका ब्रिटेन के कब्जे में ही रहा। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ दो नई ताकत बनकर उभरे। ब्रिटेन को इस युद्ध में काफी नुकसान उठाना पड़ा। 1945 में ब्रिटेन ने इस इलाके को यूनाइटेड नेशन को सौंप दिया। 1947 में यूनाइटेड नेशन ने इस इलाके को दो हिस्सों में बांट दिया। एक अरब राज्य फिलीस्तीन और एक इजराइल। यरुशलम शहर को अंतरराष्ट्रीय सरकार के प्रबंधन के अंतर्गत रखा गया। अगले ही साल इजराइल ने अपनी आजादी का ऐलान किया। इसी के साथ आज ही के दिन 1948 में दुनिया के एक शक्तिशाली देश का गठन हुआ। इजराइल ने जैसे ही अपनी आजादी का ऐलान कियाइसके महज चौबीस घंटे के अंदर ही अरब देशों की संयुक्त सेनाओं ने उस पर हमला कर दिया। इजराइल के लिए ये लड़ाई कठिन जरूर थीलेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। करीब अगले एक साल तक ये लड़ाई चलती रही। नतीजा ये हुआ कि अरब देशों की सेनाओं की हार हुई।

वैसे यहूदियों का भारत से भी बहुत पुराना सम्बन्ध रहा है। रोमन साम्राज्य के कारण उन्हें इजराइल से जान बचाकर भागना पड़ा था। उस समय के गुजरात में पहुचे थे, उस समय के राजाओं ने उन सभी का अच्छे से सत्कार किया था। यही से भारत में घुल मिल गए, आज भारत के कई हर कोने में मिल जायेगे। आज भी भारत को वे लोग सेकेण्ड होम लैड कहते है। आज भी यहूदी कहते है की भारत में उनका बहुत सम्मान मिला है। इसलिए कभी भी भारत के लिए मदद की लिए हमेशा तैयार रहते है। जब भी पाकिस्तान से युद्ध में इजराइल तुरंत मदद के लिए रहते है। भारत ने 11 मई 1998 में परमाणु परिक्षण किया था इजराइल ने भारत का खुलकर समर्थन किया था। कारगिल लड़ाई के समय भी इजराइल ने हथियार दिए थे। अभी चीन से 16 जून 2020 को सीमा विवाद पर इजराइल भारत के साथ खड़ा था  

17 सितम्बर 1950 को भारत ने इज़राइल राष्ट्र को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्रदान की। भारत राजनयिक सम्बन्ध नहीं था इसके दो कारण है  पहला, भारत गुट निरपेक्ष राष्ट्र था जो की पूर्व सोवियत संघ का समर्थक था तथा दूसरे गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की तरह इज़राइल को मान्यता नहीं देता था। दूसरा मुख्य कारण भारत फिलिस्तीन की स्वतन्त्रता का समर्थक रहा। यहाँ तक की 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र फिलिस्तीन (उन्स्कोप) नामक संगठन का निर्माण किया परन्तु 1989 में कश्मीर में विवाद तथा सोवियत संघ के पतन तथा पाकिस्तान के गैर-कानूनी घुसपैठ के चलते राजनितिक परिवेश में परिवर्तन आया और भारत ने अपनी सोच बदलते हुए इज़राइल के साथ सम्बन्धों को मजबूत करने पर जोर दिया और 1992 से नया दौर आरम्भ हुआ। 1992 इज़राइल के साथ भारत के राजनयिक सम्बन्ध स्थापित हुए। प्रधानमन्त्री नरसिंह राव ने इज़राइल के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध शुरू करने को मंजूरी दी। भूतपूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल अवधि में इज़राइल के साथ सम्बन्धों को नए आयाम तक पहुँचने की पुरजोर कोशिश की गयी। अटल बिहारी के प्रधानमन्त्री रहते हुए ही इज़राइल के तत्कालीन राष्ट्रपति एरियल शेरोन ने भारत की यात्रा की थी। वह यात्रा भी किसी इज़राइल राष्ट्रपति की पहली यात्रा थी। 2015 पहली बार भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का इज़राइल दौरा। जुलाई 2017  पहली बार भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की इज़राइल यात्रा।

 


लिंक -

https://hi.wikipedia.org/wiki/इज़राइल_का_इतिहास

क्या नेता और शासक इजरायल से प्रेरणा लेंगे ?

https://www.aajtak.in/education/history/story/yahudis-minorities-in-india-374776-2016-06-29

गुरुवार, 13 मई 2021

वुहान कोरोना वायरस के नए वेरिएंट को 'भारतीय' कहने पर भारत सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई | WHO ने कहा है कि हमने B. 1.617 वेरियंट को 'भारतीय वेरिएंट' ऐसा हमने नहीं कहा है |



वुहान वायरस या चीनी वायरस को कोरोना 19 कहा जाता है। WHO ने कभी भी चीनी वायरस के नाम लेकर नहीं कहा है, लेकिन भारत में जरुर ऐसा कहा है, कि 44 से कई देशों में भारत का वेरियंट मिला है इस बात पर भारत सरकार ने WHO पर कड़ी आपति दर्ज किये है। भारत सरकार ने उन मीडिया रिपोर्ट्स को खारिज किया है, जिसमें दावा किया जा रहा है विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्लूएचओ ने कहा है कि दुनिया के 44 देशों में कोरोना का भारत वाला वेरिएंट मिला है।  WHO ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वेरिएंट को 'भारतीय वेरिएंट' के रूप में नहीं कहा गया है। लेकिन कुछ मीडिया हाऊस ने ऐसा प्रचारित किया है। ऐसा करने वाले मीडिया हाउस कौन है। ऐसे मीडिया हाउस का काम है कि वर्तमान मोदी सरकार को बदनाम किया जाये लेकिन उन्हों भारत की बदनामी का डर नहीं है ऐसा काम विदेशी मीडिया जानबूझकर करती रही है लेकिन भारतीय मीडिया को ध्यान रखना चाहिए था ?



विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने भारत में कोविड़ 19 ने नया रूप लिया है इस कोरोना वायरस को नाम दिया है कोविड 19 अंश B.1.617 एक प्रकार के रूप में वर्गीकृत किया है। कई मीडिया रिपोर्टों ने इस वेरिएंट को 'भारतीय वेरिएंट' कहा है, जो कि पूरी तरह से गलत है, बिना किसी आधार के है। भारत में अभी जिस वेरिएंट का कहर दिख रहा है, वह ब्रिटेन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के वेरिएंट के बाद कोरोना का चौथा प्रकार B.1.617 माना जाता है। 

हम सभी जानते हैं कि कोरोना को चीन वुहान शहर के प्रयोगशाला में विकसित किया गया है। दुनिया इसे चीनी वायरस के नाम से जानती है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस वायरस को चायना वायरस कहते थे। यह वायरस लैबोरेटरी में बनने के कारण समय और परिस्थिति के कारण डबल म्यूटेंट हो जा रहा है। डबल म्यूटेंट के नाम से भी जाना जाता है, जो शरीर में एंटीबॉडीज को खत्म कर देता है। इसके फैलाने के एक वर्ष बाद इसे चायना वायरस नहीं कहा जा रहा बल्कि यह कहा जा रहा है ब्रिटेन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और भारत वेरियंट कह जा रहा है जिस वायरस को आज तक WHO ने नहीं कहा, अब इसे भारतीय वेरियंट कहा जाना यह हो सकता चीनी सरकार द्वारा प्रायोजित किया जा रहा है चीन इस समय दुनिया के लिए कांटा हो गया है चीन ने अपने बनाये हुए वायरस से बचने के लिए दुनियाभर मीडिया हाउस का बेहिसाब पैसा दे रहा है  यही मीडिया हाउस वायरस के नाम को बदल कर नए देशों के नाम से वेरियंट बता रहा, आम लोगों को भ्रमित कर रहा है यह साफ साफ देख रहा है की कैसे चीन के बुहान से निकला वायरस, अब ब्रिटेन, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और भारत वेरियंट कहा जाने लगा है  



भारत सरकार के आपत्ति के बाद  WHO ने स्पष्ट रूप से कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने दस्तावेज में  डबल म्यूटेंट स्ट्रेन यानी कोरोना वायरस के B.1.617 प्रकार को भारतीय वेरिएंटके रूप में वर्णित नहीं किया है। यहाँ तक की हम किसी भी देश का नाम भी नहीं लेते है  डबल म्यूटेंट वायरस का पता पहली बार 5 अक्टूबर, 2020 को चला, उस वक्त भारत में इतना व्यापक नहीं था।  भारत के बाहर ब्रिटेन में सबसे ज्यादा इस वेरिएंट के मामले सामने आए हैं।  WHO ने B.1.617 की घोषणा की- जो कि अपने म्यूटेशन और विशेषताओं के कारण चिंताजनक और खतरनाक रूप में गिना जाता है। इसलिए इसे पहली बार ब्रिटेन, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में कोविड -19 के तीन अन्य वेरिएंट वाली सूची में जोड़ा गया था।

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वायरस के मूल संस्करण की तुलना में वेरिएंट को अधिक खतरनाक के रूप में देखा जाता हैक्योंकि  अधिक से हवा में संचारित (फैलता) हो रहे हैं या घातक हैं। WHO ने बताया कि B.1.617 को सूची में जोड़ा गया, यह मूल वायरस की तुलना में अधिक आसानी से प्रसारित होता प्रतीत होता है। डब्ल्यूएचओ ने "प्रारंभिक साक्ष्य" की ओर भी इशारा किया कि वैरिएंट संकेत देते हुए प्रारंभिक प्रयोगशाला अध्ययनों पर भी प्रकाश डाला।